Amazing facts in hindi about dogs।कुत्तों के बारे में अनोखे तथ्य।

amazing facts in hindi about dogs।कुत्तों के बारे में अनोखे तथ्य।

कहां जाता है कि मिस्र पर विजय अभियान के दौरान नेपोलियन ने कुत्तों को स्काउट्स के रूप में प्रयोग किया था। रूसी-जापानी युद्ध में यह कुत्तों का ही कमाल था कि मंसूरिया प्रदेश में ज्वार-बाजरे के खेतों में बेहोश पड़े घायल सैनिकों को खोज कर उनकी जान बचाई।

तुर्की के सुल्तान ने तो अपनी आर्मी में बकायदा कुछ कुत्तों को ‘एंबुलेंस डॉग्स’ नाम से भर्ती किया हुआ था। जिनका काम ही घायलों की खोज खबर रखना था। दक्षिणी अफ्रीकन युद्ध में कुत्तों को संतरी बनाकर छावनीयों की चौकीदारी पर लगाया जाता था। युद्ध में कुत्तों का उपयोग तो आम बात है पर नस्ले अलग-अलग है। ऐसा शायद भौगोलिक वातावरण की भिन्नता के कारण है।

फ्रांस में मुख्यता मैलिनोइस, ग्रोनेंनडेल, बाररोग शियारे तथा बर्गर आलेमंड आदि नस्ले सैनिक कार्य के लिए पाली जाती है।शुरू में इन्हें घायलों को ढूंढने व चिकित्सा यूनिटों के सहयोग का प्रशिक्षण दिया जाता है,परंतु धीरे-धीरे ज्यादा बुद्धिमता के कामों में इन्हें लगाया जाता है।संदेशवाहक के रूप में इनका उपयोग बड़ा सुरक्षित एवं सुनिश्चित महसूस किया जाता है।

जर्मन शेफर्ड(German Shepherd)

Amazing facts in hindi about dogs
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दुनिया में आजकल सबसे ज्यादा महत्व जर्मन शेफर्ड नस्ल का है। प्रथम विश्व युद्ध से पहले तक इस नस्ल को कोई जानता नहीं था, लेकिन उस समय संदेश पहुंचाने, घायलों को ढूंढने, दुश्मनों की चालों से अपनी टुकड़ियों को सचेत करने और बारूदी सुरंगों को खोजने में इस नस्ल के कुत्तों ने जो कमाल किया उससे सब आश्चर्यचकित थे।

अमेरिका और ब्रिटेन की टुकड़ियों ने भी जर्मन शेफर्ड नस्ल के कुत्तों को पालना शुरू किया।जैसे-जैसे सैनिक कमांडरों ने इन पर ज्यादा ध्यान देना शुरू किया, वैसे-वैसे इनके उपयोग के नए क्षेत्र सामने आने लगे।इन्हें लाइट मशीनगनो को खींचने तथा गोला बारूद ले जाने के लिए भी काम में लिया जाने लगा।

रोटवेलियर कुत्ता (Rottweiler Dog)

Amazing facts in hindi about dogs
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पुलिस तथा सेना के कामों में हाथ बंटाने में रोटवेईलर नस्ल ने भी खूब नाम कमाया। इस नस्ल का नाम पड़ा पश्चिमी जर्मनी के रोटवैल कस्बे के नाम पर जहां से इस नस्ल का विकास हुआ है।

उस क्षेत्र में यह पालतू पशुओं के झुंडों की सुरक्षा हेतु काम में लिया जाता था। इस के कद्दावर शरीर और स्वस्थ व चतुर दिमाग ने इसे सेना के लिए महत्वपूर्ण बना दिया है।

डॉबरमैन(Dobermann)

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द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान डॉबरमेन नस्ल के कुत्तों का संतरी तथा स्काउट के रूप में प्रयोग किया गया। इसी तरह से ब्रिटेन में फौजी कार्यों के लिए लैबराडोर(Labrador) तथा अल्सेशियन (Alsatian)  नस्लो को प्राथमिकता दी जाती है।वहां इनका प्रशिक्षण रॉयल आर्मी वेटरनरी कोर द्वारा किया जाता है।

पिछले कुछ दशकों में कुत्तों का नशीले पदार्थों,विस्फोटकों,धातुओ व अपराधियों को सूंघकर ढूंढ निकालने के लिए प्रयोग किया जाने लगा है।इस काम में कुत्ते कितने दक्ष साबित हुए है इस बात का पता इस तथ्य से लगता है कि अमेरिकन आर्मी के एक जर्मन शेफर्ड कुत्ते को मादक द्रव्य की खोज के लिए 220 बार लगाया गया। हर बार सफलता मिली। 220 तस्कर और 330 बक्से पकड़े गए। इस प्रकार सफलता का प्रतिशत 100 रहा।

अब भारत में भी कुत्तों का प्रयोग सेना और पुलिस के सहयोग के लिए होने लगा है।ग्वालियर (मध्य प्रदेश) के निकट टेकनपुर में इनका एक प्रशिक्षण केंद्र है।सीमा सुरक्षा बल (BSF) के प्रशिक्षण केंद्र में लैब्राडोर,अल्सेशियन तथा डाबरमैन नस्लों के बहुत छोटी उम्र के पिल्ले लाए जाते हैं। 3 माह की छोटी उम्र में ही कुत्तों को कठोर परिश्रम तथा कड़े अनुशासन के बीच प्रशिक्षण लेना पड़ता है, तभी आगे जाकर यह मादक पदार्थों की तस्करी पकड़ने, विस्फोटक सामग्री को ढूंढ निकालने,हत्या की गुत्थी को सुलझाने तथा समुद्र व पहाड़ों पर दुर्घटनाग्रस्त विमान का कॉक पिट ढूंढ निकालने जैसे अचंभे में डाल देने वाले कारनामे कर दिखाने में सफल होते हैं।

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