What makes a teacher great?

What makes a teacher great?

गुरु महिमा: एक कवितामय गीता सार सहित प्रेरक चिंतन


प्रस्तावना:
“गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः,
गुरु साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरवे नमः॥”

ये पंक्तियाँ केवल श्लोक नहीं, शिक्षक की महिमा का महाकाव्य हैं। एक महान शिक्षक वही जो ज्ञान के दीप से अज्ञान का अंधकार मिटाए, विद्या की गंगा बहाए, और जीवन के युद्धक्षेत्र में अर्जुन बनकर खड़े शिष्य को “गीता का ज्ञान” दे। आइए, कविता और गीता के सार के साथ जानें—क्या बनाता है शिक्षक को महान?


1. ज्ञान का सागर: विद्या दान की महिमा

कविता:
“कलम की ताकत से लिखता है भाग्यों के पन्ने,
गुरु की छाया में खिलते हैं सपनों के कन्ने॥”

गीता सार (अध्याय 4, श्लोक 34):
“तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया,
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥”

(ज्ञानी सत्यदर्शियों के पास जाओ, विनम्रता से ज्ञान प्राप्त करो।)

व्याख्या:
महान शिक्षक वह है जो:

  • अनुभव और ज्ञान का भंडार हो, पर अहंकार से मुक्त।
  • प्रश्नों को प्रोत्साहित करे, क्योंकि गीता में भी अर्जुन के प्रश्नों से ज्ञान का प्रवाह हुआ।
  • सेवाभाव सिखाए—जैसे एकलव्य ने गुरु द्रोण के प्रति समर्पण दिखाया।

2. करुणा और धैर्य: गुरु का हृदय

कविता:
“थाम लेता है हाथ जब गिरने लगे कोई,
गुरु तो धरती सा धैर्य रखता है, सूरज सा तेज होई॥”

गीता सार (अध्याय 12, श्लोक 13-14):
“अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च…”
(जो द्वेष रहित, सबके प्रति मित्रवत और करुणामय है, वही प्रिय है।)

व्याख्या:

  • सहनशीलता: हर छात्र की गति अलग होती है। गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को धैर्य से समझाया।
  • प्रेमपूर्ण अनुशासन: डाँट और प्यार का संतुलन—जैसे युधिष्ठिर को धर्म का पाठ पढ़ाया गया।

3. निःस्वार्थ मार्गदर्शन: कर्मयोग की शिक्षा

कविता:
“नहीं चाहता मोक्ष भी, नहीं चाहता स्वर्ग का सुख,
गुरु तो फल त्यागकर, बोता है ज्ञान के बीज मुख॥”

गीता सार (अध्याय 2, श्लोक 47):
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन…”
(कर्म पर ही तुम्हारा अधिकार है, फल में नहीं।)

व्याख्या:

  • फल की इच्छा रहित: महान शिक्षक छात्रों की सफलता को ही अपना पुरस्कार मानते हैं।
  • कर्मयोगी: वे ज्ञान देकर भी “मैंने सिखाया” का अहंकार नहीं रखते।

4. आदर्श चरित्र: जीती-जागती मिसाल

कविता:
“पढ़ाता नहीं, जीता है वो पाठ,
गुरु का आचरण ही तो है सबसे बड़ा व्याख्यान॥”

गीता सार (अध्याय 3, श्लोक 21):
“यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः…”
(जो श्रेष्ठजन करते हैं, सामान्य लोग भी वैसा ही अनुसरण करते हैं।)

व्याख्या:

  • सत्यनिष्ठा: चाणक्य ने चंद्रगुप्त को सत्य का पाठ पढ़ाया।
  • सादगी: कबीर के गुरु रामानंद जीवन भर सरलता में रहे।

5. नवाचार और रचनात्मकता

कविता:
“पुराने पन्नों में नए अर्थ ढूँढ़ लेता है,
गुरु तो परंपरा और आधुनिकता का सेतु बन जाता है॥”

गीता सार (अध्याय 10, श्लोक 41):
“यद्यद्विभूतिमत्सत्त्वं…”
(जो कुछ भी श्रेष्ठ और ऐश्वर्यपूर्ण है, वह मेरी ही विभूति है।)

व्याख्या:

  • अनुकूलनशीलता: आधुनिक तकनीक और प्राचीन ज्ञान का समन्वय।
  • रचनात्मक शिक्षण: महाभारत में विदुर नीति के उदाहरणों से समझाना।

उपसंहार: गुरु ही है संसार का तारणहार

कविता:
“गुरु की महिमा को शब्दों में कैसे बाँधूँ?
वह तो वह दीपक है जो स्वयं जलकर मुझे रोशन करता है॥”

गीता सार (अध्याय 18, श्लोक 78):
“यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः…”
(जहाँ गुरु (कृष्ण) और शिष्य (अर्जुन) का मिलन होता है, वहीं विजय निश्चित है।)

महान शिक्षक की परिभाषा:
वह जो ज्ञान देता है, चरित्र निर्माण करता है, प्रेरित करता है, और स्वयं एक मूक प्रेरणा बन जाता है—यही तो है “गीता के गुरुत्व” का सार!


“नमस्ते सदा वत्सले मातृभूते,
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः॥”

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