तुलसी का पौधा।Tulsi Plant In Hindi।
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तुलसी |
हिन्दू धर्म विश्व का सबसे प्राचीन और वैज्ञानिक धर्म माना गया हैं,और इसको वैज्ञानिक बनानें में इस धर्म के प्रतीकों जैसें तुलसी ,पीपल का विशिष्ठ स्थान हैं। तुलसी के बिना हिन्दू धर्मावलम्बीयों का आँगन सुना माना जाता हैं.बल्कि यहाँ तक कहा जाता हैं,कि जहाँ तुलसी का वास नहीं होता वहाँ देवता भी निवास नहीं करतें हैं। बिना तुलसी के चढ़ाया हुआ प्रसाद भी ईश्वर ग्रहण नहीं करतें हैं।
“तुलसी वृक्ष ना जानिये।
गाय ना जानिये ढोर।।
गुरू मनुज ना जानिये।
ये तीनों नन्दकिशोर।।”
अर्थात–
तुलसी को कभी पेड़ ना समझें,गाय को पशु समझने की गलती ना करें और गुरू को कोई साधारण मनुष्य समझने की भूल ना करें, क्योंकि ये तीनों ही साक्षात भगवान रूप हैं।
तुलसी सम्पूर्ण धरा के लिए वरदान है, अत्यंत उपयोगी औषधि है, मात्र इतना ही नहीं, यह तो मानव जीवन के लिए अमृत है ! यह केवल शरीर स्वास्थ्य की दृष्टि से ही नहीं, अपितु धार्मिक, आध्यात्मिक, पर्यावरणीय एवं वैज्ञानिक आदि विभिन्न दृष्टियों से भी बहुत महत्त्वपूर्ण है।
एक ओर जहाँ चरक संहिता, सुश्रुत संहिता जैसे आयुर्वेद के ग्रंथों, पद्म पुराण, स्कंद पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण आदि पुराणों तथा उपनिषदों एवं वेदों में भी तुलसी का महत्व एवं उपयोगिता बतायी गयी है, वहीं दूसरी ओर युनानी, होमियोपैथी एवं एलोपैथी चिकित्सा पद्धति में भी तुलसी एक महत्त्वपूर्ण औषधि मानी गयी है तथा इसकी खूब-खूब सराहना की गयी है।
विज्ञान ने विभिन्न शोधों के आधार पर माना है कि तुलसी एक बेहतरीन रोगाणुरोधी, तनावरोधी, दर्द-निवारक, मधुमेहरोधी, ज्वरनाशक, कैंसरनाशक, चिंता-निवारक, अवसादरोधी, विकिरण-रक्षक है। तुलसी इतने सारे गुणों से भरपूर है कि इसकी महिमा अवर्णनीय है। पद्म पुराण में भगवान शिव कहते हैं “तुलसी के सम्पूर्ण गुणों का वर्णन तो बहुत अधिक समय लगाने पर भी नहीं हो सकता।”
अपने घर में, आस पड़ोस में अधिक-से-अधिक संख्या में तुलसी के पौधे लगाना-लगवाना माना हजारों-लाखों रूपयों का स्वास्थ्य खर्च बचाना है, पर्यावरण-रक्षा करना है।
हमारी संस्कृति में हर घर आँगन में तुलसी लगाने की परम्परा थी। संत विनोबाभावे की माँ बचपन में उन्हें तुलसी को जल देने के बाद ही भोजन देती थीं। पाश्चात्य अंधानुकरण के कारण जो लोग तुलसी की महिमा को भूल गये, अपनी सस्कृति के पूजनीय वृक्षों, परम्पराओं को भूलते गये और पाश्चात्य परम्पराओं व तौर तरीकों को अपनाते गये, वे लोग चिंता, तनाव, अशांति एवं विभिन्न शारीरिक-मानसिक बीमारियों से ग्रस्त हो गये।
तुलसी, पीपल, आँवला, नीम – इन लाभकारी वृक्षों के रोपण का अभियान चलाया जाय। प्रतिदिन तुलसी को जल देकर उसकी परिक्रमा करें, तुलसी पत्रों का सेवन करें।
तुलसी का नाम वृंदा और उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था।
बता दें कि माता तुलसी का नाम वृंदा था. उनका जन्म राक्षस कुल में हुआ था. राक्षस कुल में जन्म लेने के बाद भी वृंदा भगवान श्री विष्णु जी की परम भक्त थी और सचे मन से उनकी पूजा भी किया करती थी. उनका विवाह राश्रस कुल में दानव राजा जलंधर के साथ हुआ था. वह काफी पतिव्रता स्त्री थी.
एक बार जब देवताओं और दानवोंके बीच युद्ध हुआ. उस दौरान जाते वक्त वृंदा ने अपने पति जलंधर से कहा कि स्वामी आप तो युद्ध पर जा रहें है जब तक आप जीत हासिल कर वापस नहीं आ जाते हो तब तक मैं आपके लिए पूजा करती रहूंगी और अपना संकल्प नहीं छोडूंगी।
वहीं जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा करने में जुट गई. ये ही नहीं वृंदा के व्रत का प्रभाव इतना अधिक था कि देवता जलंधर से जीतने में विफल हो रहे थे. जब देवता जीत हासिल करने में असफल हो रहें थे तो उस दौरान वह भगवान विष्णु जी की शरण में जा पहुंचे. सभी ने भगवान विष्णु से प्रार्थना करते हुए कहा कि किसी भी तरह वह देवताओं को युद्ध जीताने में मदद करें।
भगवान विष्णु जी ने वृंदा का संकल्प तोड़ने के लिए उनके पति जलंधर का रूप धारण।
ऐसी स्थिति में भगवान विष्णु बड़े ही दुविधा में आ गए. वे सोच रहे थे कि वृंदा को कैसे रोक जाए, क्योंकि वह उनकी परम भक्त थी. काफी सोचने और समझने के बाद भगवान विष्णु जी ने वृंदा के साथ छल करने का निर्णय तक ले लिया. उन्होंने वृंदा का संकल्प तोड़ने के लिए उनके पति जलंधर का रूप धारण कर लिया था.
जलंधर के वेश में विष्णु जी वृंदा के महल में जा पहुंचे. जैसे ही वृंदा ने अपने पति जलंधर की छवि देखी तो उनके चरण छुने के उद्देश्य से पूजा से उठ पडी. जिससे वृंदा का संकल्प टूट गया. जैसे ही उनका वृत संकल्प टूटा, देवताओं ने दानव जलंधर का सिर धड से अलग कर करके उन्हें मार दिया।
जब वृंदा को भगवान विष्णु जी के छल का आभास हुआ तो पहले तो वो जलंधर का कटा हुआ सिर लेकर खूब रोई और सती होने के पहले उन्होंने भगवान विष्णु जी को श्राप दे दिया. उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर बनने का श्राप दे दिया. ये ही नहीं विष्णु जी पत्थर बन भी गए. लेकिन इस बात से तमाम देवी-देवता और लक्ष्मी जी रोने लगे.
सभी ने मिलकर वृंदा से खूब मिन्नते की कि वह अपने श्राप से भगवान विष्णु को वंचित कर दें. आखिरकार वृंदा ने विष्णु जी को वंचित करने की बात स्वीकारी, और भगवान विष्णु अपने पुनः अवतार में वापस आ गए।
छल का प्रायश्चित करते हुए विष्णु जी ने खिले हुए पौधे को तुलसी का नाम दिया।
जब विष्णु जी ने देखा की वृंदा जिस स्थान पर सती हुई उस जगह एक पौधा खिला हुआ है. अपनी परम भक्त से छल का प्रायश्चित करते हुए विष्णु जी ने खिले हुए पौधे को तुलसी का नाम दिया और ये फैसला किया कि आज से इनका नाम तुलसी है और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और तुलसी जी की पूजा के बगौर मैं कोई भी भोग स्वीकार नहीं करूंगा।
कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है।
यही वजह है कि तब से सभी लोग तुलसी जी की पूजा करने लगे. बता दें कि कार्तिक मास में तुलसी जी के साथ शालिग्राम जी का विवाह किया जाता है. और एकादशी वाले दिन इसे तुलसी विवाह पर्व के रूप में मनाया जाता है. चरणामृत के साथ तुलसी को मिलाकर प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. तुलसी के पौधे को काफी पवित्र माना जाता है. तमाम हिंदू आपने घर के आंगन और दरवाजे में तुलसी का पौधा लगाते है. यही मुख्य कारण है कि हम उन्हें माँ तुलसी कहते है।
कार्तिक मास में तुलसी पूजन का विशेष महत्व क्यों ?
तुलसीजी लक्ष्मीजी (श्रीदेवी) के समान भगवान नारायण की प्रिया और नित्य सहचरी हैं; इसलिए परम पवित्र और सम्पूर्ण जगत के लिए पूजनीया हैं। अत: वे विष्णुप्रिया, विष्णुवल्लभा, विष्णुकान्ता तथा केशवप्रिया आदि नामों से जानी जाती हैं। भगवान श्रीहरि की भक्ति और मुक्ति प्रदान करना इनका स्वभाव है। वैसे तो नित्यप्रति ही तुलसी पूजन कल्याणमय है किन्तु कार्तिक में तुलसी पूजा की विशेष महिमा है।
कार्तिक पूर्णिमा को तुलसीजी का प्राकट्य हुआ था और सर्वप्रथम भगवान श्रीहरि ने उनकी पूजा की थी। अत: कार्तिक पूर्णिमा को भक्तिभाव से तुलसीजी की पूजा करने से विष्णुलोक की प्राप्ति होती है। तुलसी विष्णुप्रिया कहलाती है अत: तुलसीपत्र व मंजरियों से भगवान का पूजन करने से अनन्त लाभ मिलता है।
कार्तिक स्नान करने वाली स्त्रियां प्रतिदिन तुलसी के पौधे पर जल व रोली चढ़ाकर दीपक जलाती हैं और परिक्रमा करती हैं। तुलसी की स्तुति में ‘तुलसा’ गीत गाती हैं।
तुलसा महारानी नमो नमो,
हरि की पटरानी नमो नमो,
ऐसे का जप किए रानी तुलसा,
सालिग्राम बनी पटरानी बनी महारानी। तुलसा…
आठ माह नौ कातिक न्हायी,
सीतल जल जमुना के सेये
सालिग्राम बनी पटरानी बनी महारानी। तुलसा…
छप्पन भोग छत्तीसों व्यंजन,
बिन तुलसा हरि एक न मानी,
सांवरी सखी मैया तेरो जस गावें,
कातिक वारी मैया तेरो जस गावें
इच्छा भर दीजो महारानी। तुलसा …
चन्द्र सखी भज बालकृष्ण छवि,
हरि चरणन लिपटानी। तुलसा …
तुलसा-पूजन व गाने से जन्म-जन्मान्तर के पाप दूर हो जाते हैं। कुमारी कन्या को सुन्दर वर, स्त्री को संतान व वृद्धा को स्वर्ग की प्राप्ति होती है। कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी तथा भगवान विष्णु के प्रतीक शालिग्राम का धूमधाम से विवाह रचाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी को कार्तिक स्नान करने से श्रीकृष्ण (शालिग्राम) वर के रूप में प्राप्त हुए थे।
#1.तुलसी की किस्मे:
तुलसी की 6 से 7 प्रकार की किस्में होती हैं,परन्तु मुख्य रूप से तीन प्रकार की ही तुलसी अधिक अधिक प्रचलन में हैं.जो निम्न हैें::-
#1. राम तुलसी जिसका वानस्पतिक नाम (scientific name) आँसीमम ग्रेटिकम हैं.
#2.काली तुलसी या कृष्ण तुलसी जिसका वानस्पतिक नाम आँसीमम अमेरिकन हैं.
#3.पवित्र तुलसी इसे वानस्पतिक जगत में आँसीमम सेक्टम कहतें हैं.
भारतीय घरों में राम तुलसी जिसकी पत्तियाँ हरी (green) तथा कृष्ण तुलसी जिसकी पत्तियाँ बैंगनी रंग की होती हैं ,पायी जाती हैं.
#2.संगठन (compositions)::-
तुलसी की पत्तियों में 0.3 % तेल की मात्रा होती हैं,जिनमें युजीनाँल 71% , युजीनाँल मिथाईल ईथर 20%, तथा 3% काविकोल रहता हैं. इसमें विटामिन सी प्रचुरता में पाया जाता हैं.एसिड़ (acid) के रूप में पामिटिक,औलिक तथा लिनोलैनिक अम्ल उपस्थित रहतें हैं.जैव रसायनों में ट्रेनिन,सेवेनिन ,एल्कोलाँइड़ तथा ग्लाइकोलाँइड़ उपस्थित रहतें हैं.
#3.तुलसी का औषधिगत उपयोग::-
जहाँ तक तुलसी के औषधिगत प्रयोग की बात हैं,वहाँ भारतीय धर्मग्रन्थ और आयुर्वैदिक ग्रन्थों में इसके विषय में विस्तारपूर्वक लिखा गया हैं.
भावप्रकाश निघण्टु में लिखा हैं::-
तुलसी कटुका तिक्ता हृघोष्णा दाहपित्तकृत दीपक कुष्ठकृच्द्दास्त्रपाश्व्र रूक्कफवातजित
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