To become a successful Person you know yorself( कामयाब बनने के लिए स्वयं की शक्तियों को पहचानिए)
ग्रंथों में लिखा है, “हर व्यक्ति में प्रतिभा होती है, अगर उस प्रतिभा को व्यक्ति स्वयं ही नहीं पहचान पाए,तो इसमें दोष किसका?”
व्यक्ति को अपनी प्रतिभा की खोज स्वयं करनी पड़ेगी कोई दूसरा व्यक्ति इसमें सहयोग नहीं कर सकता।आईने में अपना चेहरा पहचानने के लिए हमें दूसरे का समर्थन नहीं चाहिए होता। इस सत्य को स्वीकार कर ले कि आईने में आप ही है, और आप बेमिसाल है।
चलिए इस कड़ी में आपको एक कहानी सुनाता हूं-
“एक बार एक व्यक्ति महान दार्शनिक टॉलस्टॉय के पास आया और बड़े दुखी स्वर में बोला-‘मैं इस समय बड़ी दुविधा में हूं।मेरे पास फूटी कौड़ी भी नहीं है,आप मेरी कुछ मदद करें’ टॉलस्टॉय उसकी बात को सुनकर कुछ देर सोचते रहे, फिर बोले कि मेरा एक दोस्त है,जो डॉक्टर है। एवं अंगों का व्यापार करता है।तुम एक काम करो 2 लाख में उसे अपनी दोनों आंखें बेच दो। वह युवक बोला- हरगिज़ नहीं। आंखें देखने के काम आती है, इन्हें बेच दूंगा तो मैं देखूंगा कैसे? नहीं मैं आँखे नहीं बेच सकता। युवक घबराया हुआ बोला। अच्छा तो इन हाथों को ही बेच दो इसकी कीमत 1 लाख तो दे ही देगा-टॉलस्टॉय ने कहा।
युवक ने साफ मना कर दिया और बोला मुझे आपसे ऐसी आशा नहीं थी। टॉलस्टॉय बोले -मैं तुम्हारी परेशानी को समझता हूं इसलिए कह रहा हूं। तुम्हारे लिए ये सौदा लाभकारी रहेगा।यदि तुम धनवान बनना चाहते हो तो एक करोड़ में अपना यह शरीर बेच डालो। हमेशा के लिए तकलीफों से छुटकारा मिल जाएगा। आप एक करोड़ की बात करते हैं मैं 100 करोड़ में भी यह शरीर नहीं बेचूंगा।युवक नाराज होकर बोला। तब टॉलस्टॉय मुस्कुराते हुए बोले – जो व्यक्ति 100 करोड़ में भी अपना जिस्म बेचने को तैयार ना हो,वह कैसे कहता है कि उसके पास कुछ भी नहीं है। अरे भाई, यह शरीर अमूल्य खजाना है। परिश्रम करो, सफलता अवश्य मिलेगी।”
आचार्य चाणक्य ने कहा है कि “100 करोड स्वर्ण मुद्राओं के द्वारा भी किसी की एक सांस नहीं खरीदी जा सकती।” अतः आप बेशकीमती है। अपने ध्येय को जानने वाले कभी भीड़ का हिस्सा नहीं बनते। क्योंकि भीड़ में ठीक प्रकार से किसी को ज्ञात नहीं होता कि जाना कहां है? वे एक दूसरे को धक्का देते हुए चलते है एवं अंत मे पछतावे कोही पाते हैं। महापुरुष कभी भीड़ में नहीं दिखते। भीड़ उनको प्रभावित नहीं कर सकती। बल्कि भीड़ को,वे प्रभावित करते हैं।
आप ईश्वर की अनूठी कृति है। इसकी कद्र करें। चीन में एक कहावत है कि परमात्मा हर मनुष्य को धरती पर भेजने से पहले उसके कान में कह देता है कि वह उसे सबसे अच्छा इंसान बना कर धरती पर भेज रहा है। आप 84 लाख योनियों की अंतिम योनि है। एवं मोक्ष मनुष्य योनि के द्वारा ही संभव है। इसलिए अपनी शक्तियों को पहचानिए एवं अपने सामर्थ्य व शक्ति का प्रयोग कर पूरे मनोयोग के साथ जीवन में सफलता प्राप्त करने का प्रयास करें।
अपनी योग्यताओं को पहचाने एवं उनके अनुरूप कार्य को करें आपका कार्य आपकी योग्यता अनुरूप होने से आप अच्छा कार्य करेंगे एवं आप सफलता की तरफ बढ़ेंगे। यदि आप अपने विवेक द्वारा पूर्वाग्रह मुक्त होकर सोचेंगे तो समझोतो के करार टूटते हुए महसूस होंगे। वह अंतःकरण से नई प्रेरणा व नई दृष्टि प्राप्त करेंगे। आप भी महान है अपने आप को देखने का नजरिया बदलिए।
चीन की एक प्रसिद्ध कहानी है -‘एक बार चीनी दार्शनिक कन्फ्यूशियस के पास चीन का सम्राट जाता है एवं जाकर उनसे बोलता है -तुम मुझे उस व्यक्ति के पास ले चलो जो महान हो। कन्फ्यूशियस बोलता है- महाराज आप से अधिक महान कौन हो सकता है? आप सत्य को जानने की भावना रखते हैं और जो ऐसी भावना रखता है वही महान है। सम्राट बोला लेकिन मुझसे महान भी तो कोई होगा? कन्फ्यूसियस बोला -आप से अधिक महान में हूँ क्योंकि सत्य के प्रति मेरा अनुराग है। और तुम से भी अधिक महान कौन है? – सम्राट ने पूछा। यह तो ढूंढना पड़ेगा। इतना कहकर वह सम्राट को लेकर चल पड़ा। कुछ आगे चलने पर उन्हें एक व्यक्ति दिखता है। जो कुआँ खोद रहा होता है। उसे देखकर कन्फ्यूशियस बोला- महामहिम मुझसे भी अधिक महान यह वृद्ध व्यक्ति है। सम्राट ने तुरंत पूछा कैसे? कन्फ्यूशियस बोला- इसकी आयु काफी व्यतीत हो चुकी है। शरीर भी दुबला पतला है।तब भी कुआं खोद रहा है। क्योंकि इसमें परोपकार की भावना है। परोपकार में ही इसको आनंद की अनुभूति होती है। जिसका तन और मन दोनों ही आनंद की अनुभूति में निमग्न हो उससे बढ़कर महान अन्य कौन हो सकता है?
रुचिपूर्ण कार्य का संतोष उसके फल से कम नहीं होता है। किसी कलाकार को सुंदर कृति तैयार करते समय जो संतुष्टि मिलती है उसकी पूर्ति धन से कभी नहीं की जा सकती। कार्य जितना रुचि पूर्ण होगा उतनी व्यक्ति को थकान कम महसूस होती है एवं मस्तिष्क पर अनावश्यक तनाव भी नहीं पड़ता है। इसलिए अपने रुचिकर कार्य से जुड़ने का प्रयास करें।
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