सीताबाड़ी का मेला कब व कहां भरता है?Sitabadi Ka Mela Rajasthan.
बारां जिले के पास केलवाड़ा कस्बे में ज्येष्ठ अमावस्या को विशाल मेला भरता है,जिसे सीताबाड़ी का मेला(Sitabadi Ka Mela Rajasthan.) कहते हैं। यह सहरिया जनजाति का कुंभ कहलाता है। जो हाडोती क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला है। इस स्थल को लव कुश की जन्म स्थली के रूप में जाना जाता है। यहां पर वाल्मीकि आश्रम, लक्ष्मण कुंड, सीता कुंड आदि प्रसिद्ध स्थल है।
हाडोती क्षेत्र में बारां जिले के उपखंड शाहबाद के केलवाड़ा कस्बे में प्रतिवर्ष आदिवासी लघु कुंभ के नाम से सुप्रसिद्ध सीताबाड़ी मेला जेष्ठ माह की कृष्ण पक्ष अमावस्या को आयोजित होता है।आध्यात्मिक स्थल सीताबाड़ी में कई राज्य व जिलों से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। कई श्रद्धालु कनक दंडवत करते हुए भी यहां आते हैं।
सीताबाड़ी का मेला केलवाड़ा बारां आदिवासियों का लघु कुंभ।
बारां जिले के आदिवासी सहरिया समाज की इस पवित्र मेले में गहरी आस्था है। मेला परिसर आदिवासी संस्कृति का दिग्दर्शन कराता है। सीताबाड़ी में स्थित प्रसिद्ध लक्ष्मण मंदिर, सीता मंदिर,लव कुश मंदिर, महर्षि वाल्मीकि मंदिरों के दर्शन भी लोग करते हैं।
मंदिरों में जलकुंड बने हुए हैं। जिनमें वाल्मीकि कुंड, सीता कुंड, लक्ष्मण कुंड, सूरजकुंड और लव कुश कुंड प्रमुख जल कुंड है।शिव पार्वती व राधा कृष्ण मंदिर कुंड भी बने हुए हैं। सीताबाड़ी में ही कुछ दूरी पर सीता कुटिया भी बनी हुई है।
सहरिया जनजाति का कुंभ|Sitabadi Ka Mela Rajasthan.
यह मेला दक्षिण-पूर्वी राजस्थान की ‘सहरिया जनजाति’ के सबसे बड़े मेले के रूप में जाना जाता है। सहरिया जनजाति के लोग इस मेले में उत्साह पूर्वक भाग लेते हैं। इसे ”सहरिया जनजाति के कुंभ” के रूप में भी जाना जाता है। इस मेले में सहरिया जनजाति के लोगों की जीवन शैली का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिलता है|
Sitabadi Ka Mela Rajasthan.सीताबाड़ी मेले का महत्त्व|
कहा जाता है कि रामायण काल में जब भगवान राम ने अपनी पत्नी सीता का परित्याग कर दिया था तब सीताजी को उनके देवर लक्ष्मण जी ने उनके निर्वासन की अवधि में सेवा के लिए इसी स्थान पर जंगल में वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में छोड़ा था।
एक किंवदंती है कि जब सीताजी को प्यास लगी तो सीताजी के लिए पानी लाने के लिए लक्ष्मणजी ने इस स्थान पर धरती में एक तीर मार कर जलधारा उत्पन्न की थी, जिसे ‘लक्ष्मण बभुका’ कहा जाता है। इस जलधारा से निर्मित कुंड को ‘लक्ष्मण कुंड‘ कहा जाता है।
यहाँ और भी कुंड स्थित है, जिनके जल को बहुत पवित्र माना जाता है। अक्सर भक्त लोग इनमें स्नान करते एवं पवित्र डुबकी लेते देखे जा सकते हैं। इस मेले में भाग लेने आने वाले श्रद्धालु यहाँ स्थित ‘वाल्मीकि आश्रम‘ में भी जाते हैं।
लोग यह भी मानते हैं कि रामायण काल में सीताजी के निर्वासन काल में ही प्रभु श्रीराम और सीता के जुड़वां पुत्रों ‘लव तथा कुश’ का जन्म वाल्मीकि ऋषि के इसी आश्रम में हुआ था। यह दो सीधे पत्थरों को खड़ा करके बनाई गई एक बहुत ही सरल क्षैतिज संरचना है।
सहरिया जनजाति के लोग अपनी सबसे बड़ी जाति-पंचायत का आयोजन भी वाल्मीकि आश्रम में ही करते हैं। लव-कुश जन्म स्थान होने के कारण सीता बाड़ी को ‘लव-कुश नगरी‘ भी कहा जाता है।
मेलार्थी यहाँ स्थित कुंडों में अपने शरीर एवं आत्मा की शुद्धि के लिए पवित्र स्नान करते हैं और फिर यहाँ स्थापित विभिन्न देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना करते हैं। यहाँ स्थित सबसे बड़ा कुंड ‘लक्ष्मण कुंड’ है, जिसका एक द्वार ‘लक्ष्मण दरवाजा’ कहा जाता है। इसके पास भगवान हनुमानजी की सुन्दर मूर्ति स्थापित है।
मंदिर की विशेषता|
सीताबाड़ी का मेला सीताबाड़ी मदिंर के पास लगता है। भक्त माता सीता और भगवान राम के दर्शन करने इस मंदिर में आते हैं। यह धार्मिक स्थल लोगों की आस्था का केंद्र तो है ही, वहीं यहां की प्राकृतिक छटा लोगों के मन को मोह लेती है, बारिश के समय प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को देशी-विदेशी पर्यटक निहारे बिना नहीं रह पाते हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर और मन को हर्षित करने वाला वनवासी क्षेत्र केलवाड़ा राजस्थान की आदिवासी संस्कृति की छटा तो बिखेरता ही है, वहीं कस्बे के पास स्थित सीताबाड़ी मंदिर त्रेता युग की यादें लोगों के मन में उद्वेलित कर देता है। भक्त मंदिर में दर्शन कर अपने आपको सभी भगवानों की कृपा का पात्र मानते हैं।
सीताबाड़ी मंदिर के पास माता सीता और श्रीराम के अनुज लक्ष्मण के खूबसूरत मंदिर स्थित हैं। यहां सात जलकुंड बने हैं, जिनमें वाल्मीकि कुंड, सीता कुंड, लक्ष्मण कुंड, सूरज कुंड और लव-कुश कुंड प्रमुख जलकुंड हैं। सीताबाड़ी मंदिर के पास घने जंगल में सीता कुटी बनी हुई है। कहा जाता है कि निर्वासन के दौरान माता सीता रात्रि में यहीं विश्राम किया करती थीं।