प्रथम राजस्थान रत्न कवि कन्हैया लाल सेठिया की जयंती 11 सितंबर।Poet Kanhaiya Lal Sethiya Biography Famous Rajasthani poem Pathal-Pithal।
साभार-फेसबुक
कन्हैया लाल सेठिया का जन्म राजस्थान के सुजानगढ़ चूरू में हुआ। राजस्थानी और हिंदी के प्रसिद्ध आधुनिक कवि के रूप में इन्हें प्रसिद्धि प्राप्त है।इनकी प्रमुख लोकप्रिय रचनाएं हैं- पाथल और पीथल,लीलटांस, धरती धोरा री, निर्ग्रंथ, सबद, अघोरी काल, कुं-कू, मिंजर,रमणीय रा दुहा आदि।
Kanhaiya Lal Sethiya Biography
करोड़ों राजस्थानीओ की धड़कनों का प्रतिनिधि गीत “धरती धोरा री‘ तथा “पाथल और पीथल“के रचयिता, साहित्य मनीषी एवं चिंतक कन्हैया लाल सेठिया का जन्म 11 सितंबर 1919 को सुजानगढ़ कस्बे में हुआ। सुजानगढ़ में प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता चले गए।रियासती शासन के दौरान स्वतंत्रता सेनानियों का उत्पीड़न देखकर वे अत्यधिक विचलित हुए और उन्होंने विरोध करने का संकल्प ले लिया। एक बार वे कोलकाता से अपने साथ तिरंगा झंडा छिपाकर ले गए और सुजानगढ़ में अपने घर से घुड़साल तक बच्चों का जुलूस भी निकाला। सन 1934 में गांधीजी के संपर्क में आने के बाद उन्होंने खादी पहनना और दलितोंद्वार के लिए कार्य करना शुरू किया।
साहित्य के प्रति उनकी रुचि तो छात्र जीवन से ही थी।किंतु सन 1941 में प्रकाशित इनके पहले काव्य संग्रह “वनफुल” ने ही इन्हें एक संवेदनशील कवि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया।देश प्रेम और राष्ट्रीयता से ओतप्रोत “अग्निवीणा” की कविताओं के कारण इन पर राजद्रोह का इल्जाम भी लगाया गया। सेठिया जी का कवि वक्त की नब्ज पहचानता है। यही कारण है कि इनकी लंबी साहित्य यात्रा के पड़ाव समसामयिक परिवेश से जुड़े रहे हैं। अनाम, निरग्रंथ, मर्म, प्रणाम, स्वागत, देहविदेह आदि रचनाओं में वर्तमान भारत की धड़कन सुनाई देती है।
कन्हैया लाल सेठिया जी सच्चे अर्थों में जनकवि है। इनकी “पाथल और पीथल”कविता ने न जाने कितने लोगों की करुणा को विगलित किया है और “धरती धोरा री गीत” तो आज भी जन जन का कंठ हार बना हुआ है।
सेठिया जी की राजनीतिक चेतना सन 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन से अधिक मुखरित हुई।उन्होंने सिंध के नेताओं जयरामदास, दौलतराम, चोइथराम गिद्वानी के संग जुलूस में भाग लिया और कराची में ही जनसभाओं में शामिल हुए।उसी वर्ष उन्होंने सुजानगढ़ में बीकानेर राज्य साहित्य सम्मेलन का संचालन किया और गांधीजी का चित्र भी मंच पर लगाया। सन 1945 में प्रजा परिषद के प्रमुख कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने सामंतवाद का विरोध करते हुए अपनी कविता के माध्यम से कृषक समुदाय को प्रभावित किया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी वे राजनीति में सक्रिय रहे और सन 1952 में सुजानगढ़ क्षेत्र से चुनाव लड़ा। राजस्थान के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हुए उन्होंने आबू को राजस्थान में शामिल कराने के लिए अथक संघर्ष किया और इसमें सफल भी हुए। तब से लेकर आज तक वे राष्ट्रीय समस्याओं विशेषकर राजस्थान की समस्याओं के प्रति अत्यंत जागरूक होकर कार्य करते रहे हैं।
सामाजिक उत्थान के लिए भी सेठिया जी ने कई कार्य किए हैं। उनके भागीरथ प्रयासों से पेयजल समस्या, अकाल समस्या,वृक्षारोपण, वन संवर्धन आदि समस्याओं का निराकरण करने में काफी सफलता मिली और वे इन समस्याओं के प्रति अंत तक सजग रहे। भारतीय संस्कृति के नायक के रूप में भी सेठिया जी का योगदान भुलाया नहीं जा सकता। हल्दीघाटी समारोह, चित्रकूट मेला, पश्चिमी सांस्कृतिक परिषद उदयपुर आदि में सक्रिय भागीदारी के अतिरिक्त राजस्थान की कला और पर्यटन के विकास हेतु भी आपने अनेक प्रयास किए थे।
पोद्दार कैंसर अस्पताल, गोरखपुर, महावीर इंटरनेशनल, कोलकाता, नगर श्री, सुजानगढ़,राजस्थान परिषद कोलकाता जैसी ख्याति नाम संस्थाओं के माध्यम से भी इन्होंने जन सेवा के अनेक महत्वपूर्ण कार्य कीए है।शिक्षा के क्षेत्र में भी सेठिया जी का कम योगदान नहीं है। अनेक विश्वविद्यालयों, महाविद्यालयों तथा विद्यालयों की स्थापना में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। राजस्थान की अनेक शिक्षण संस्थाएं आपकी ऋणी है। राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर की स्थापना में भी इनका विशेष प्रयास रहा है। सेठिया जी अनेक पुरस्कारों से सम्मानित हो चुके हैं।
1976 में इनकी कृति लीलटांस को केंद्रीय साहित्य अकादमी नई दिल्ली द्वारा पुरस्कृत किया गया।वहीं सन 1988 में निर्ग्रन्थ पर मूर्ति देवी पुरस्कार, 1987 में सबद पर सूर्यमल मिश्रण शिखर पुरस्कार तथा इनकी कृति सतवादी पर टांटिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। राजस्थानी और हिंदी में 30 से भी अधिक पुस्तकों की रचना करने इन दोनों ही भाषाओं की श्रीवृद्धि की है। अंग्रेजी,बंगाली, मराठी भाषा में इनकी अनेक कृतियों के अनुवाद हो चुके हैं। राजस्थानी भाषा की संवैधानिक मान्यता हेतु भी इन्होंने अथक प्रयास किए हैं। सेठिया जी ने आज के भौतिक युग में भी कविता को जीवित रखा था। और अपनी लेखनी को कभी विराम नहीं दिया। वह बराबर अपनी संवेदनशीलता और जिजीविषा का पीयूष सभी वर्ग के लोगों को अपनी मृत्यु 11 नवंबर 2008 तक पिलाते रहे। राजस्थानी साहित्यकार दिवंगत कन्हैया लाल सेठिया को मृत्यु उपरांत 2012 में राजस्थान सरकार द्वारा राजस्थान रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। श्री कन्हैया लाल सेठिया राजस्थान रत्न पुरस्कार प्राप्त करने वाले प्रथम व्यक्ति है।
राजस्थानी भाषा की प्रसिद्ध कविता पाथल और पीथल।Famous Rajasthani poem Pathal-Pithal Kanhaiya Lal Sethiya Biography
अरे घास री रोटी ही जद बन बिलावड़ो ले भाग्यो।
नान्हो सो अमरयो चीख पड्यो राणा रो सोयो दुख जाग्यो।
हूं लड्यो घणो हूं सह्यो घणो
मेवाड़ी मान बचावण नै,
हूं पाछ नहीं राखी रण में
बैर्यां री खात खिडावण में,
जद याद करूँ हळदीघाटी नैणां में रगत उतर आवै,
सुख दुख रो साथी चेतकड़ो सूती सी हूक जगा ज्यावै,
पण आज बिलखतो देखूं हूँ
जद राज कंवर नै रोटी नै,
तो क्षात्र-धरम नै भूलूं हूँ
भूलूं हिंदवाणी चोटी नै।
मैं’लां में छप्पन भोग जका मनवार बिनां करता कोनी,
सोनै री थाल्यां नीलम रै बाजोट बिनां धरता कोनी,
अै हाय जका करता पगल्या
फूलां री कंवळी सेजां पर,
बै आज रुळै भूखा तिसिया
हिंदवाणै सूरज रा टाबर,
आ सोच हुई दो टूक तड़क राणा री भीम बजर छाती,
आंख्यां में आंसू भर बोल्या मैं लिखस्यूं अकबर नै पाती,
पण लिखूं कियां जद देखै है आडावळ ऊंचो हियो लियां,
चितौड़ खड्यो है मगरां में विकराळ भूत सी लियां छियां,
मैं झुकूं कियां ? है आण मनैं
कुळ रा केसरिया बानां री,
मैं बुझूं कियां ? हूं सेस लपट
आजादी रै परवानां री,
पण फेर अमर री सुण बुसक्यां राणा रो हिवड़ो भर आयो,
मैं मानूं हूँ दिल्लीस तनैं समराट् सनेशो कैवायो।
राणा रो कागद बांच हुयो अकबर रो’ सपनूं सो सांचो,
पण नैण कर्यो बिसवास नहीं जद बांच नै फिर बांच्यो,
कै आज हिंमाळो पिघळ बह्यो
कै आज हुयो सूरज सीतळ,
कै आज सेस रो सिर डोल्यो
आ सोच हुयो समराट् विकळ,
बस दूत इसारो पा भाज्यो पीथळ नै तुरत बुलावण नै,
किरणां रो पीथळ आ पूग्यो ओ सांचो भरम मिटावण नै,
बीं वीर बांकुड़ै पीथळ नै
रजपूती गौरव भारी हो,
बो क्षात्र धरम रो नेमी हो
राणा रो प्रेम पुजारी हो,
बैर्यां रै मन रो कांटो हो बीकाणूँ पूत खरारो हो,
राठौड़ रणां में रातो हो बस सागी तेज दुधारो हो,
आ बात पातस्या जाणै हो
घावां पर लूण लगावण नै,
पीथळ नै तुरत बुलायो हो
राणा री हार बंचावण नै,
म्है बाँध लियो है पीथळ सुण पिंजरै में जंगळी शेर पकड़,
ओ देख हाथ रो कागद है तूं देखां फिरसी कियां अकड़ ?
मर डूब चळू भर पाणी में
बस झूठा गाल बजावै हो,
पण टूट गयो बीं राणा रो
तूं भाट बण्यो बिड़दावै हो,
मैं आज पातस्या धरती रो मेवाड़ी पाग पगां में है,
अब बता मनै किण रजवट रै रजपती खून रगां में है ?
जंद पीथळ कागद ले देखी
राणा री सागी सैनाणी,
नीचै स्यूं धरती खसक गई
आंख्यां में आयो भर पाणी,
पण फेर कही ततकाळ संभळ आ बात सफा ही झूठी है,
राणा री पाघ सदा ऊँची राणा री आण अटूटी है।
ल्यो हुकम हुवै तो लिख पूछूं
राणा नै कागद रै खातर,
लै पूछ भलांई पीथळ तूं
आ बात सही बोल्यो अकबर,
म्हे आज सुणी है नाहरियो
स्याळां रै सागै सोवै लो,
म्हे आज सुणी है सूरजड़ो
बादळ री ओटां खोवैलो;
म्हे आज सुणी है चातगड़ो
धरती रो पाणी पीवै लो,
म्हे आज सुणी है हाथीड़ो
कूकर री जूणां जीवै लो
म्हे आज सुणी है थकां खसम
अब रांड हुवैली रजपूती,
म्हे आज सुणी है म्यानां में
तरवार रवैली अब सूती,
तो म्हांरो हिवड़ो कांपै है मूंछ्यां री मोड़ मरोड़ गई,
पीथळ नै राणा लिख भेज्यो आ बात कठै तक गिणां सही ?
पीथळ रा आखर पढ़तां ही
राणा री आँख्यां लाल हुई,
धिक्कार मनै हूँ कायर हूँ
नाहर री एक दकाल हुई,
हूँ भूख मरूं हूँ प्यास मरूं
मेवाड़ धरा आजाद रवै
हूँ घोर उजाड़ां में भटकूं
पण मन में मां री याद रवै,
हूँ रजपूतण रो जायो हूं रजपूती करज चुकाऊंला,
ओ सीस पड़ै पण पाघ नही दिल्ली रो मान झुकाऊंला,
पीथळ के खिमता बादल री
जो रोकै सूर उगाळी नै,
सिंघां री हाथळ सह लेवै
बा कूख मिली कद स्याळी नै?
धरती रो पाणी पिवै इसी
चातग री चूंच बणी कोनी,
कूकर री जूणां जिवै इसी
हाथी री बात सुणी कोनी,
आं हाथां में तलवार थकां
कुण रांड़ कवै है रजपूती ?
म्यानां रै बदळै बैर्यां री
छात्याँ में रैवैली सूती,
मेवाड़ धधकतो अंगारो आंध्यां में चमचम चमकै लो,
कड़खै री उठती तानां पर पग पग पर खांडो खड़कैलो,
राखो थे मूंछ्याँ ऐंठ्योड़ी
लोही री नदी बहा द्यूंला,
हूँ अथक लडूंला अकबर स्यूँ
उजड्यो मेवाड़ बसा द्यूंला,
जद राणा रो संदेश गयो पीथळ री छाती दूणी ही,
हिंदवाणों सूरज चमकै हो अकबर री दुनियां सूनी ही।
(मींझर)
यह रचना कन्हैया लाल सेठिया जी की उत्कृष्ट कविता मानी जाती है।जो महाराणा प्रताप और पृथ्वीराज राठौड़ के बीच के मार्मिक पत्र व्यवहार को दर्शाती है।