वन हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है?(Importance of trees/forest)
“वृक्ष हमे देते है जीवन ,हम भी तो कुछ देना सीखे”
क्या मानव जाति के सच्चे सेवक है वृक्ष?
वृक्षों की आध्यात्मिक प्रेरणा का लाभ प्राप्त करने के लिए प्राचीन काल में गुरुकुल,गुरु आश्रम, मंदिर, जलाशय आदि वृक्षों से घिरे हुए हुआ करते थे। उनकी शीतल छाया में विद्यार्थी पढ़ते थे। गुरु- शिष्य परंपरा का निर्वाह करते थे।प्रकृति की सघन शोभा उनके हृदय व मस्तिष्क में सदाचार, संयम, सेवा, सुचिता, सुरुचि, प्रेम, सुव्यवस्था और सकारात्मकता के भाव भरती थी।
वे लोग जो भूगोल पढ़ते हैं उन्हें मालूम होगा कि अब पहाड़ों पर बर्फ का जमना धीरे-धीरे कम होता जा रहा है।पहले जितनी मोटी परत जमती थी, अब नहीं जमती।गर्मी आती है, सूरज तपता है, तो यह बर्फ थोड़े समय में ही गल कर बह जाती है। और बाद में नदियां सूख जाती है। उत्तर भारत की बात करें तो वर्ष भर पानी देने वाली गंगा और यमुना में भी अब पहले जितना पानी नहीं आता। इसका मूल कारण है वृक्षों और वनों का कटाव। हरे वृक्षों वाले वन आपको आकर्षित करते हैं ।यह पानी बरसने में भी सहायक होते हैं। किंतु वृक्षों की संख्या घटने से वर्षा में भी कमी आई है ,और जिसका दुष्प्रभाव अब सिंचाई जैसे महत्वपूर्ण कार्य पर पड़ रहा है। वृक्ष अधिक हो तो जल भी अधिक मिले और घरों में प्रयोग के लिए लकड़ियां भी मिलती रहे।इमारती लकड़ी के अभाव में भवन निर्माण पहले से बहुत महंगा हो गया है। भारतीय स्थापत्य कला का संपूर्ण गौरव ही नष्ट होता जा रहा है। क्योंकि अब वह बहुत महंगा कार्य हो गया है। असाधारण काम जैसे रोटी बनाने के लिए भी लकड़ी प्राप्त नहीं होती । इसका दुष्प्रभाव कृषि उपज पर भी पड़ने लगा है पहले की अपेक्षा खेती की उपजाऊ शक्ति कम रह गई है।
वृक्ष और भगवान शंकर की तुलना
भगवान शंकर की प्रतिष्ठा इसलिए हुई थी कि उन्होंने देवत्व की रक्षा के लिए विषपान किया था। वृक्ष जो मानव जाति की रक्षा के लिए निरंतर विष पीते हैं एवं बदले में अमृत तत्व देते हैं, उनकी प्रतिष्ठा की कोई चिंता नही कर रहा है। पर्यावरण में कार्बन डाइऑक्साइड वह विषैली गैसें लगातार बढ़ रही है इसके लिए पूर्ण रूप से मानव जिम्मेदार है। यह गंदगी नैसर्गिक रूप से दबाव डालती रहे, तो धीरे-धीरे मनुष्य की आयु आधी हो जाएगी। स्वास्थ्य खराब हो जाएगा। प्राण और शारीरिक शक्ति नष्ट हो जाएंगी। रोग बढ़ेंगे और मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता बिल्कुल घट जाएगी ।वर्तमान में यह परिस्थिति बिगड़ी हुई है, आने वाले कल और भी बिगड़ेगी क्योंकि जो कार्बन डाइऑक्साइड हम पैदा करते हैं वह ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही है। जिससे वृक्षों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता जा रहा है।
वृक्षों की संख्या तो घट गई किंतु कार्बन- डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ गई।वृक्ष न रहेंगे तो इस बढ़ती हुई कार्बन -डाइऑक्साइड की सहनशक्ति मनुष्य की शक्ति से बाहर हो जाएगी। जिसका प्रभाव उसकी आयु,स्वास्थ्य, शक्ति, शरीर,सब पर बहुत भयँकर पड़ेगा।
वृक्षों के प्रति हमारे मन में श्रद्धा का भाव है हम इनकी पूजा भी करते हैं किंतु अकेली श्रद्धा से काम भी तो नहीं चलता, जहां वृक्षों के द्वारा सैकड़ों अनुदान और वरदान हमें मिलते हैं। तब हमारा भी तो कर्तव्य है कि उनकी संख्या को बढ़ाएं। पुराणों में यह बात धार्मिक महत्व देकर विस्तार से कही गई है। इसलिए वृक्षारोपण को एक परम पुनीत कर्तव्य मानकर उसे एक अभियान के रूप में चलाया जाना चाहिए।वृक्षों के परिधान पृथ्वी माता की शोभा बढ़ाते हैं। इसके लिए हमें भी योगदान करना चाहिए।
संसार में जितनी वनस्पति है वह सब औषधि रूप है ऐसा आयुर्वेद ग्रंथों में बताया गया है। इस रूप में छोटे -बड़े सभी पेड़ -पौधे मनुष्य जाति की सेवा करते हैं। अनेक वृक्षों के फल जैसे बेल ,आंवला ,नीम, पीपल, अर्जुन आदि औषधियों में प्रयुक्त होते हैं।कई वृक्षों के फूल काम में लिए जाते हैं। कितने ही वृक्षों की डालियाँ और छाले दवाई के काम आती है। पीपल आदि की लकड़ी से यज्ञ करके बड़े-बड़े राज रोगों को दूर करने के विधान हिंदुओं के धर्म ग्रंथों में विस्तार से मिलते हैं। पहाड़ों पर पाए जाने वाले अनेक वृक्षों का उपयोग केवल औषधियों के रूप में ही किया जाता है।चंदन की लकड़ीयो की उपयोगिता और सुगंध प्रसिद्ध है। गूलर के फल, अंजीर के फल तथा जैतून के तेल की रोग निरोधक क्षमता कि वैध लोग बड़ी प्रशंसा करते हैं। तुलसी, देवो को प्रिय आंवला, पीपल आदि मनुष्य के लिए इतनी उपयोगी है, कि इन्हें देवता मानकर उनकी पूजा और उपासना का भी विधान हिंदू धर्म में बताया गया है।
वृक्षों का ऋण हम कैसे चुकाये?
वृक्षों का ऋण चुकाने के लिए हम उनकी कृतज्ञता प्रकट करने के लिए उन्हें एक बहुमूल्य संपत्ति मानकर उनकी समृद्धि का प्रयत्न करें। एवं उनकी रक्षा करें। इसी में मानव जीवन की भलाई है। वृक्षों की सघनता जितनी बढ़ेगी उतना ही अधिक हमें आध्यात्मिक, प्राकृतिक, आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होगा।
वनों से हमें क्या क्या लाभ है?
वृक्ष जहां होते हैं वहां रेगिस्तान नहीं होता,साथ ही यह वृक्ष जीवन भर हमें कई प्रकार की संप्रदाय प्रदान करते हैं। जैसे वनों से मूल्यवान इमारती लकड़ी,जलाऊ लकड़ी, लाख, गोंद, रेशम,कत्था, फल- फूल,औषधियां आदि चीजें प्रदान करते हैं। नार्वे,स्वीडन तथा रूस के कोणधारी वनों के क्षेत्रों के निवासियों का जीवन तो पूर्ण रूप से वनों पर ही आधारित होता है। उनकी पूरी अर्थव्यवस्था वन उद्योग पर ही टिकी हुई है। भारत की बात करें तो आदिवासी समाज जो जंगलों में रहता है उनका पूरा जीवन वन्य संपदा पर ही आधारित है। अतः जीवन-पर्यंत मनुष्य जाति को लाभ पहुंचाने वाले इन वनों को नहीं काटना चाहिए ,एवं प्रत्येक व्यक्ति को अधिक से अधिक वृक्षारोपण करना चाहिए।इसी में मानवता की भलाई है। एवं आने वाली पीढ़ियों के लिए हम एक अच्छी दुनिया छोड़कर जा सकते हैं जहां पर उन्हें स्वस्थ वायु मिल सके।