How celebrated brijdham Holi Mahotsav?(ब्रजधाम का होली महोत्सव व फूलो की होली कैसे मनाते हैं?)

ब्रजधाम का होली महोत्सव व फूलो की होली।

 
प्रिय पाठको,

हिंदू धर्म में रंगो के त्यौहार होली का बड़ा महत्व है। होली त्योहार बच्चों ,बूढ़ो, युवाओं, महिलाओं सभी के द्वारा बड़े ही धूमधाम से एक दूसरे को रंग लगाकर सामूहिक रूप से मनाया जाता है। होली का त्यौहार प्रतिवर्ष फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाया जाता है।

इस त्यौहार को मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से एक कथा भक्त प्रहलाद, उसकी बुआ होलीका व भगवान श्री नारायण से संबंधित है ,एवं एक अन्य कथा भगवान श्री कृष्ण व राधा रानी से संबंधित है।

इस पोस्ट में मैं आप लोगों को ब्रजधाम के अंदर मनाए जाने वाली होली के बारे में जो लगभग 40 दिन तक मनाई जाती है के बारे में विस्तार से बताऊंगा आपको यह लेख अवश्य ही पसंद आएगा एवं आपकी जानकारी में वृद्धि भी करेगा।

ब्रज आकर रज(मिट्टी) की  होली जिसने खेल ली उनसे ठाकुर दूर थोड़ी रहते है?

ब्रजरज (ब्रज की मिट्टी) की मान्यता क्या है ?

ब्रजरज का कण-कण श्रीकृष्ण में समाया हुआ है और श्रीकृष्ण ब्रज में समाये हुए हैं। ब्रज की भूमि श्रीकृष्ण की लीलाओं और उनके चरण से पवित्र और शुद्ध है। यहां पर हर जगह आपको चमत्कार ही चमत्कार मिलेंगे। ब्रजभूमि के गोकुल के रमणरेती मंदिर में चारों तरफ रेत ही रेत है।

यहां जो भक्त दर्शन करने के लिए आता है, वह बिना ब्रजरज में लेटे नहीं जाता। फाल्गुन मास में तो यहां भक्तों की भारी भीड़ देखने को मिलती है देश विदेश से होली मनाने के लिए कृष्ण भक्त यहां आते हैं लोगों में ऐसी मान्यता है कि बाल्य अवस्था में बाल गोपाल यहां पर खेला करते थे और ब्रजरज में लेटते थे।

इसलिए इस  ब्रजरज को लेकर गजब की मान्यता है। इस ब्रज की मिट्टी को इतनी चमत्कारिक माना जाता है कि यहां पर आकर जो भी होली खेलता है उसके सब के दुख- दर्द मिट जाते हैं, क्योंकि भगवान श्री कृष्ण इसी ब्रजरज के अंदर अपने बाल शाखाओं के साथ में होली खेलते थे।

ब्रज के पुजारी कहते है कि रज(मिट्टी) की गेंद बनाकर एक-दूसरे को मारने से पुण्य मिलता है और सभी दुख व कष्ट दूर होते हैं। भक्तजन यहां कर रज में लेटते हैं ताकि इस पवित्र रज से वो भी पवित्र हो सकें। क्योंकि बाल कृष्ण यहां पर चले और खेले थे, जिसकी वजह से यह जगह पवित्र है।

यह ब्रजरज काफी पूजनीय मानी जाती है। कई लोग तो इस रेत को अपने साथ लेकर जाते हैं। बताया जाता है कि यहां की रेत को घुटने व जोड़ों पर रखने से पूरा दर्द दूर हो जाता है। रमणरेती आने वाले भक्त रज का तिलक भी लगाते हैं, जिनको श्रीकृष्ण के चरण रज को माथे से लगाने की अनुभूति होती है। यहां पर संत आत्मानंद गिरि आए थे।

माना जाता है कि उनको भगवान श्रीकृष्ण ने साक्षात दर्शन दिए थे इसलिए भी यह स्थल काफी सिद्ध माना जाता है। साथ ही संत रसखान ने भी यहां तपस्या की थी, यहां इनकी समाधि बनी हुई है।

लोग इस ब्रजरज से घर भी बनाने की कोशिश करते हैं। बताया जाता है ऐसा करने से उनके अपने घर का सपना भी पूरा हो जाता है। रमणरेती में रमण बिहारी जी का मंदिर है। यहां पर प्राचीन मंदिर के जर्जर होने के कारण नए मंदिर में रमण बिहारी जी को विराजमान किया गया है। मंदिर में राधा-कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति विराजमान है। बताया जाता है कि जो भी सच्चे मन से जो कुछ भी मांगता है, उसकी हर इच्छा पूरी होती है।

होली का त्योहार हर साल फाल्गुन महीने के पूर्णिमा तिथि के दिन मनाया जाता है इसके अगले दिन प्रतिप्रदा को रंग खेला जाता है।

भगवान श्री कृष्ण ने खेली थी सबसे पहले फूलों की होली राधा रानी के साथ।

 फुलेरा दूज (फूलो की होली) की कथा क्या है?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इस दिन श्री कृष्ण ने होली खेलने की परंपरा शुरू की थी। एवं मान्यताओं के अनुसार अधिक वयस्तता के कारण भगवान कृष्ण, राधा जी से मिलने के लिए नहीं आ पा रहे थे। जिसके कारण श्री राधा रानी के दुखी होने पर उनकी सहेलियां भी श्री कृष्ण से रूठ गईं।

राधा के उदास होने के कारण मथुरा के वन सूख गए और पुष्प मुरझाने लगे थे। वनों की हालत का अंदाजा लग गया, ये सब देख भगवान श्री कृष्ण ने राधा से मिलने का निश्चय किया।

How celebrated brijdham Holi mahotsav?(ब्रजधाम का होली महोत्सव व फूलो की होली कैसे मनाते हैं?)

श्री कृष्ण जैसे ही राधा से मिलने वृन्दावन पहुंचे, राधा खुश हो गई और चारों ओर फिर से हरियाली छा गई| पास के मुरझाए हुए पुष्पों के खिल जाने पर कृष्ण जी ने उसे तोड़ लिया और राधा को छेड़ने के लिए उन पर मारने लगे।

कृष्ण के जवाब में राधा ने भी ऐसा ही किया। यह देख वहां मौजूद ग्वाले और गोपियां भी एक दूसरे पर फूल बरसाने लगे। इसी दिन फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि यानी कि दूज थी। इसलिए इस तिथि को फुलेरा दूज के नाम से जाना जाता है।

इसी तरह फुलेरा दूज पर फूलों की होली खेलने की शुरुआत हुई। इसीलिए कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने ही सबसे पहले राधा और गोपियों संग होली खेली थी।

श्री कृष्ण एवं राधा जी के जीवन से जुड़े इस ब्रज धाम की ब्रजरज में अगर आपको भी समय मिले तो जाकर होली महोत्सव का आनंद जरूर लेना चाहिए ।यहां पर देसी -विदेशी यात्रियों व धर्म प्रेमियों का मेला  भरता है ,जिससे होली महोत्सव को चार चांद लग जाते हैं।

🌸🌸 कथा- “ब्रज की माटी”🌸🌸

देवताओं ने व्रज में कोई ग्वाला कोई गोपी कोई गाय, कोई मोर तो कोई तोते के रूप में जन्म लिया।कुछ देवता और ऋषि रह गए थे।वे सभी ब्रह्माजी के पास आये और कहने लगे कि ब्रह्मदेव आप ने हमें व्रज में क्यों नही भेजा? आप कुछ भी करिए किसी भी रूप में भेजिए।ब्रह्मा जी बोले व्रज में जितने लोगों को भेजना संभव था उतने लोगों को भेज दिया है अब व्रज में कोई भी जगह खाली नहीं बची है।

देवताओं ने अनुरोध किया प्रभु आप हमें ग्वाले ही बना दें ब्रह्माजी बोले जितने लोगों को बनाना था उतनों को बना दिया और ग्वाले नहीं बना सकते।देवता बोले प्रभु ग्वाले नहीं बना सकते तो हमे बरसाने को गोपियां ही बना दें ब्रह्माजी बोले अब गोपियों की भी जगह खाली नही है।देवता बोले गोपी नहीं बना सकते, ग्वाला नहीं बना सकते तो आप हमें गायें ही बना दें। ब्रह्माजी बोले गाएं भी खूब बना दी हैं।अकेले नन्द बाबा के पास नौ लाख गाएं हैं।अब और गाएं नहीं बना सकते।

देवता बोले प्रभु चलो मोर ही बना दें।नाच-नाच कर कान्हा को रिझाया करेंगे।ब्रह्माजी बोले मोर भी खूब बना दिए। इतने मोर बना दिए की व्रज में समा नहीं पा रहे।उनके लिए अलग से मोर कुटी बनानी पड़ी।

देवता बोले तो कोई तोता, मैना, चिड़िया, कबूतर, बंदर  कुछ भी बना दीजिए। ब्रह्माजी बोले वो भी खूब बना दिए, पुरे पेड़ भरे हुए हैं पक्षियों से।देवता बोले तो कोई पेड़-पौधा,लता-पता ही बना दें।

ब्रह्मा जी बोले- पेड़-पौधे, लता-पता भी मैंने इतने बना दिए की सूर्यदेव मुझसे रुष्ट है कि उनकी किरने भी बड़ी कठिनाई से ब्रिज की धरती को स्पर्श करती हैं।देवता बोले प्रभु कोई तो जगह दें हमें भी व्रज में भेजिए।ब्रह्मा जी बोले-कोई जगह खाली नही है।

तब देवताओ ने हाथ जोड़ कर ब्रह्माजी से कहा प्रभु अगर हम कोई जगह अपने लिए ढूंढ़ के ले आएं तो आप हम को व्रज में भेज देंगे।ब्रह्मा जी बोले हाँ तुम अपने लिए कोई जगह ढूंढ़ के ले आओगे तो मैं तुम्हें व्रज में भेज दूंगा। देवताओ ने कहा धुल और रेत कणो कि तो कोई सीमा नहीं हो सकती और कुछ नहीं तो बालकृष्ण लल्ला के चरण पड़ने से ही हमारा कल्याण हो जाएगा हम को व्रज में धूल रेत ही बना दे।ब्रह्मा जी ने उनकी बात मान ली।

इसलिए जब भी व्रज जाये तो धूल और रेत से क्षमा मांग कर अपना पैर धरती पर रखे, क्योंकि व्रज की रेत भी सामान्य नही है, वो ही तो रज देवी – देवता एवं समस्त ऋषि-मुनि हैं…!!

जय श्रीराधे जी…🙏🙏

आप सभी पाठको को होली की शुभकामनाएं।

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