शिक्षा में राजस्थान:एक विस्तृत अध्ययन।EDUCATION SYSTEM IN RAJASTHAN IN HINDI।

EDUCATION SYSTEM IN RAJASTHANराजस्थान में शिक्षा:एक विस्तृत अध्ययन
शिक्षा

राजस्थान में शिक्षा का   इतिहास।(HISTORY OF EDUCATION IN RAJASTHAN)

राजस्थान की गौरवमयी गाथा हम सब पढ़ते हैं। आज के इस लेख के माध्यम से मैं आपको राजस्थान में शिक्षा का उद्भव किन चरणों से गुजरा।प्राचीन समय  से लेकर आज की आधुनिक शिक्षा प्रणाली तक पहुंचने में हमने किन -किन  चरणों को देखा। इसके बारे में विस्तृत व्याख्या प्रस्तुत कर रहा हूं ।जो निसंदेह राजस्थान की शिक्षा व्यवस्था को समझने में प्रत्येक पाठक की मदद करेगा।

7 वीं से 12 वीं शताब्दी तक राजस्थान में शिक्षा का प्रारूप।

राजस्थान में इस युग के अंदर शिक्षा का सबसे प्रमुख केंद्र भीनमाल था ।जिसे उस समय ‘श्रीमाल’कहां जाता था।इसी भीनमाल से  माघ, माहुक,मंडन,ब्रह्मगुप्त आदि विद्वानों का संबंध था। इस काल में शिक्षा प्रणाली निशुल्क होती थी। शिक्षक व शिष्य का संबंध आत्मिक होता था। गुरुजन अपने शिष्यों को धार्मिक शिक्षा जैसे वेद,पुराण, धर्म, ज्योतिष शास्त्र,गणित शास्त्र ,साहित्य ,संस्कृत व्याकरण, राजकाज,युद्धकला आदि से संबंधित विषय की शिक्षा प्रदान करते थे।
EDUCATION SYSTEM IN RAJASTHANराजस्थान में शिक्षा:एक विस्तृत अध्ययन

उस काल में शिक्षा निःशुल्क थी।अतः शिक्षकों के भरण पोषण की व्यवस्था शासक का कार्य थी। शासक व जनता दोनों शिक्षकों को भरण पोषण के लिए दान एवं अन्य उपहार देते थे। शिक्षा प्रणाली मौखिक होती थी, अतः वाद विवाद और विचार विनिमय को प्रमुखता दी जाती थी। जैन साहित्यकार रवि प्रभु श्री की धर्म घोष स्तुति से पता चलता है कि चौहान शासक अजयपाल ने धर्मघोष व  गुण चंद्र के बीच होने वाले वाद-विवाद की अध्यक्षता की थी। इस युग में शिक्षकों को आचार्य ,पंडित ,उपाध्याय ,भट्ट ,कविप्रवर, गुरुदेव आदि नामों से जाना जाता था। एवं तत्कालीन समाज में इनका अत्यधिक मान व सम्मान था।

12वीं से 18 वीं शताब्दी तक राजस्थान में शिक्षा।

इस युग में शिक्षा हेतु गुरुकुल ,मठ ,मंदिर, जैन उपासरे, तथा कई- कई पर प्राथमिक पाठशाला भी थी। जहां पर बालकों को प्रारंभिक शिक्षा दी जाती थी। राज्य की ओर से इन संस्थाओं को आर्थिक मदद व भूमि अनुदान दिया जाता था। उस भूमि की उपज से यह संस्थान चलते थे। जहां पर विद्यार्थी 18 वर्ष की आयु तक शिक्षा ग्रहण करता था ।यहां पर शिक्षा के प्रमुख विषय के रूप में वेद शास्त्र ,नीति शास्त्र ,मीमांसा ,दर्शन, धर्म शास्त्र ,पुराण ,ज्योतिष शास्त्र ,गणित ,साहित्य, संस्कृत आदि पढ़ते थे।यहां पर पढ़ाने वाले उच्च शिक्षित लोगों को विद्वान, पंडित, उपाध्याय, महामहोपाध्याय ,आचार्य आदि सम्मानजनक उपाधियों से नवाजा जाता था। ज्ञानी जनों को शासक वर्ग सम्मान भी देता था। इसके साथ ही साथ बालक अपनी प्रारंभिक तथा व्यवसायिक कौशल की शिक्षा अपने पैतृक व्यवसाय से भी सीखता था ।
कुशल दस्तकार व शिल्पकार खेती तथा वाणिज्य संबंधी शिक्षा बालक अपने घर से ही सीखता था। इस युग में स्त्रियों को भी शिक्षा देने की व्यवस्था थी। स्त्रियां अधिकांश नृत्य ,संगीत ,चित्रकला व चिकित्सा की शिक्षा ग्रहण करती थी ,परंतु शिक्षित स्त्रियों की संख्या काफी कम थी ।और उन्हें घर पर ही शिक्षा दी जाती थी ।अर्थात हम कह सकते हैं कि उस समय स्त्रियों के लिए औपचारिक शिक्षा का कोई केंद्र नहीं था ।उन्हें अनौपचारिक रूप से घर पर ही रख कर शिक्षा दी जाती थी ।18 वीं शताब्दी तक राजस्थान में प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था ही प्रचलित रही ।जिसमें शिक्षकों को खर्च हेतु अनुदान की व्यवस्था करने का कार्य राज्य का होता था। इस काल में शिक्षा का माध्यम संस्कृत तथा फारसी भाषा थी। विद्वान जन राजा का सहयोग पाते थे , एवं राजा भी इन्हें हर संभव मदद प्रदान करते थे ।यही कारण है कि इस काल का चारण साहित्य अति प्रसिद्ध है एवं उस काल के इतिहास को जानने में सर्वाधिक मददगार है। इसी काल में जोधपुर के साहित्यकार मुहणोत नैणसी द्वारा लिखित पुस्तक ‘मारवाड़ रा परगना री विगत वार’को ‘राजस्थान का गजेटियर’ माना जाता है ।इस पुस्तक के माध्यम से हम उस काल की संस्कृति ,रीति- रिवाज, सामाजिक व्यवस्था ,शासन व्यवस्था ,व्यापार व्यवस्था आदि के बारे में सरलता से जान सकते हैं। राजस्थान में शिक्षा ,कला ,संस्कृति व साहित्य आदि के विकास में राजाओं का योगदान काफी रहा है।वर्तमान में हम जितनी भी ऐतिहासिक इमारते देखते हैं यह उसी काल की कला, संस्कृति व शिक्षा का हमें ज्ञान करवाते हैं।
EDUCATION SYSTEM IN RAJASTHANराजस्थान में शिक्षा:एक विस्तृत अध्ययन
शिक्षा

आधुनिक राजस्थान में शिक्षा।

रियासत काल में राजस्थान में हिंदू पाठशाला एवं मुस्लिम मकतब शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे। किंतु अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के उदय के साथ ही आधुनिक अंग्रेजी स्कूल भी राजस्थान में शुरू हुए ।लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के आधार पर सर्वप्रथम अलवर एवं भरतपुर में 1842 में अंग्रेजी विद्यालय प्रारंभ हुए। 1844 में जयपुर एवं 1863 में उदयपुर रियासत में भी ऐसे विद्यालयों की स्थापना हुई ।19वीं सदी के मध्य तक राजस्थान में तीन प्रकार की कुल 647 शैक्षणिक संस्थाएं संचालित हुआ करती थी। वर्तमान की बात करें तो आज राजस्थान शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है एवं अभी हाल ही में सरकार के  निर्णय के अनुसार ग्राम पंचायत स्तर पर अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय, महात्मा गांधी अंग्रेजी माध्यम विद्यालय खोले गए हैं।

राजस्थान में शिक्षा की विकास यात्रा के प्रमुख बिंदु

  • राजस्थान की प्राचीन शिक्षा नगरी भीनमाल को कहा जाता था जो वर्तमान में जालौर जिले में  आया हुआ है।
  • राजस्थान में सर्वप्रथम आधुनिक अंग्रेजी स्कूल 1842 में अलवर एवं भरतपुर में स्थापित हुए।
  • अंग्रेजी शिक्षा हेतु लॉर्ड मेयो ने अजमेर में 1875 में मेयो कॉलेज की स्थापना की।
  • हीरालाल शास्त्री जी ने 1953 में टोंक में जीवन शिक्षा कुटीर नाम से महिला शिक्षण संस्था की स्थापना की ।जो वर्तमान में वनस्थली विद्यापीठ विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।
  • स्वतंत्रता सेनानी हरीभाऊ उपाध्याय ने अजमेर के निकट हतुंडी गांव में महिला शिक्षण संस्था की स्थापना की।
  • जयपुर के शासक राम सिंह ने 1844 में जयपुर में महाराजा स्कूल की स्थापना की जो वर्तमान में महाराजा कॉलेज के नाम से जाना जाता है। जयपुर में राजपूताना विश्वविद्यालय जिसे वर्तमान में राजस्थान विश्वविद्यालय कहा जाता है की स्थापना 1947 में की गई।
  • स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रयासों से 1898 में अजमेर में श्री मथुरा प्रसाद गुलाब देवी आर्य कन्या पाठशाला की स्थापना की गई।
  • वर्तमान में राज्य के 106240 विद्यालयों में लगभग एक करोड़ 68 लाख विद्यार्थी अध्ययन कर रहे हैं। इनमें से राजकीय विद्यालयों की संख्या 66044 है।
  • भारत सरकार द्वारा हाल ही में जारी पीजीआई इंडेक्स 2019-20 में राजस्थान राज्य को ए प्लस रैंकिंग दी गई है।

आधुनिक राजस्थान में शिक्षा की अलख।

स्वतंत्रता सेनानी हरीभाऊ उपाध्याय ने अजमेर के निकट हटूँडी गांव में महिला शिक्षण संस्था की स्थापना की। जयपुर के शासक राम सिंह ने 1844 में जयपुर में महाराजा स्कूल की स्थापना की, जो वर्तमान में महाराजा कॉलेज के नाम से जाना जाता है। जयपुर में राजपूताना विश्वविद्यालय जिसे वर्तमान में राजस्थान विश्वविद्यालय कहा जाता है, की स्थापना 1947 में की गई। स्वामी दयानंद सरस्वती के प्रयासों से 1898 में अजमेर में श्री मथुरा प्रसाद गुलाब देवी आर्य कन्या पाठशाला की स्थापना की गई। हीरालाल शास्त्री जी ने 1953 में टोंक में जीवन शिक्षा कुटीर नाम से महिला शिक्षण संस्था की स्थापना की, जो वर्तमान में वनस्थली विद्यापीठ विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

अंग्रेजी विद्यालयों का संचालन।

अजमेर में 1913 में स्थापित सावित्री कॉलेज और उदयपुर का महिला महाविद्यालय आर्य समाज से प्रेरित थे। ईसाई मिशनरियों द्वारा पहाड़ी लोगों को शिक्षित करने के लिए दिसंबर 1863 में टॉडगढ़ में रॉवर्स स्कूल स्थापित किया गया। इसी प्रकार अजमेर, ब्यावर, नसीराबाद, कोटा,अलवर और बांदीकुई में मिशनरी स्कूल खोले गए। रियासत काल में राजस्थान में हिंदू पाठशाला एवं मुस्लिम मकतब शिक्षा के प्रमुख केंद्र थे।किंतु अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के उदय के साथ ही आधुनिक अंग्रेजी स्कूल भी राजस्थान में शुरू हुए। लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के आधार पर सर्वप्रथम अलवर एवं भरतपुर में 1842 में अंग्रेजी विद्यालय प्रारंभ हुए। 1844 में उदयपुर एवं 1863 में उदयपुर रियासत में भी ऐसे विद्यालयों की स्थापना हुई। 19वीं सदी के मध्य तक राजस्थान में तीन प्रकार की कुल 647 संस्थाएं संचालित हुआ करती थी।
विधि शिक्षा के क्षेत्र में सर्वप्रथम भूपाल नोबल्स कॉलेज उदयपुर में 1946 में एलएलबी की कक्षाएं प्रारंभ की गई। उसके बाद लॉ कॉलेज जयपुर, जसवंत कॉलेज जोधपुर, राज ऋषि कॉलेज, अलवर और डूंगर कॉलेज, बीकानेर में विधि के अध्ययन की व्यवस्था की गई थी। आज राजस्थान शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर प्रगति कर रहा है। अभी हाल ही में सरकार के निर्णय के अनुसार प्रत्येक ब्लाक स्तर एवं ग्राम पंचायत स्तर पर अंग्रेजी माध्यम के विद्यालय महात्मा गांधी राजकीय अंग्रेजी माध्यम विद्यालय खोले जा रहे हैं। जिनकी राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा की जा रही है।

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