मिट्टी के बर्तन (Earthen pot) में खाने के लाभ कौनसे है?
डाक्टर खोजने की बजाय क्यों न स्वास्थ्य खोजा जाये वो भी सिर्फ खाने और पकाने की आदतों को बदल कर?
यहाँ हम केवल पकाने की विधी पर बात करेगें।
भारत में पाककला का अद्भुत भंडार है जो स्वास्थ्य और स्वाद दोनों ही द्रष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। चिन्ताजनक है कि हम सभी उसे छोड़ते जा रहे हैं।
खाना पकाने में में किये जाने वाले बर्तनों का चयन इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है जिसे हम सभी आधुनिकता और सुविधाजनक लगने के कारण बदलते जा रहे हैं और बीमारियों को निमंत्रण दे चुके हैं।
शरीर को अगर नियमित तौर पर पर्याप्त माइक्रो न्यूट्रियंट्स (सूक्ष्म पोषक तत्व) मिलते रहें तो शरीर जल्दी बीमार नहीं पड़ता।
खाना पकाने का सबसे सुरक्षित, उपयुक्त और पवित्र मिट्टी का बर्तन (Earthen pot) है।
1- मिट्टी के पात्र में पका भोजन अन्य धातु की तुलना में जल्दी खराब नहीं होता|
2- मिट्टी का बर्तन भोजन को पकाता है, सिर्फ गलाता नहीं।
3- मिट्टी के बर्तन में पके खाने के माइक्रो न्यूट्रियंट्स 100% अपने प्राकृतिक रुप में सुरक्षित रहते हैं।
4- मिट्टी के बर्तन (Earthen pot) में पका भोजन वात पित्त और कफ को सम रखता है अगर शरीर में वात, कफ और पित्त की मात्रा सम है तो रोग होने की संभावना न के बराबर होती है।
मिट्टी के बर्तनों (Earthen pot) के अलावा कांसे के बर्तन है महत्वपूर्ण।
मिट्टी के अलावा अगर कोई और धातु उपयुक्त है तो वह है काँसा, इसमें खाना पकाने पर केवल 3% माइक्रो न्यूट्रियंट्स कम होते हैं।उसके बाद आता है पीतल, इसमें पकाने पर 7% माइक्रो न्यूट्रियंट्स कम होते हैं।
लोहे के बर्तन में आयरन प्रचुर मात्रा में मिलता है इसमें हरे साग-सब्जी बनाया जाना स्वादिष्ट और लाभकारी है।
तांबा को आँच पर नहीं चढ़ाया जाना चाहिए इसका पानी पीना अमृत तुल्य है ये रक्त शुद्धि का सबसे लाभदायक स्रोत है। इसके अलावा ये वात, कफ और पित्त को भी बैलेंस रखने में सहयोगी है।
प्रेशर कुकर होता है अत्यंत खतरनाक।
प्रेशर कुकर सबसे ख़तरनाक होता है इसमें केवल 7% ही माइक्रो न्यूट्रियंट्स बचते हैं यानि कि 87% खत्म हो जाते हैं। अल्युमिनियम जल्दी अवशोषित होने वाली धातु है जिससे खाना मिलकर विषाक्त हो जाता है। अल्युमिनियम, कैल्शियम और आयरन को सोख लेता है जिससे अल्जाइमर, नर्वस सिस्टम और हड्डियां कमजोर हो जाती हैं।
नॉन स्टिक में टेफ्लॉन की पर्त चढ़ी होती है जो खतरनाक पॉलिमर प्यूम फीवर को जन्म देती है और वातावरण में खतरनाक गैसों को छोड़ती है अतः ये पक्षियों और मनुष्य दोनों के लिये खतरनाक है।
अगर हमें स्वस्थ रहना है तो पकाने के तरीकों को तो बदलना ही पड़ेगा।