AMAZING FACTS ABOUT NASA( नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन)
NASA की शरुआत
नासा (नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन) की शुरुआत 1 अक्टूबर 1958 को ही उसका पहला महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट ‘मर्करी’ था। जिसका मुख्य उद्देश्य इस बात की जांच करना था, कि क्या मनुष्य अंतरिक्ष में अपने अस्तित्व को कायम कर सकता है। इसके पश्चात 1969 में नासा ने अपने सबसे महत्वपूर्ण अभियान को तब अंजाम दिया जब “अपोलो-11″ अभियान के माध्यम से पहले मानव ने पहली बार चंद्रमा पर अपना कदम रखा।
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नासा की सफलता की कहानी में Skylab और अपोलो-सोयूज अभियान के अतिरिक्त 1981 में अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की स्थापना मील के पत्थर के समान है। इसके अतिरिक्त मंगल ग्रह के विषय में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए वाइकिंग और पाथफाइंडर जैसे अभियानों का अपना अलग ही महत्व है। इस प्रकार नासा के विभिन्न अभियानों ने ब्रह्मांड के संबंध में मानव के ज्ञान में वृद्धि की है।
नासा के असफल अंतरिक्ष अभियान
1958 में अपनी स्थापना के बाद से ही नासा ने अंतरिक्ष में विज्ञान और प्रौद्योगिकी की दृष्टि से कई महत्वपूर्ण और सफल प्रोजेक्ट लॉन्च कीये है। इससे वह इस क्षेत्र में विश्व की अग्रणी संस्था बनकर उभरा है। यूं तो नासा के नाम ढेर सारी उपलब्धियां है, परंतु कुछ ऐसे भी प्रोजेक्ट है, जो मिट्टी के मोल खत्म हो गए। उनमें से कुछ तो तकनीकी खराबी या मानवीय भूल से बेकार होकर मलबे में तब्दील हो गए।
प्रस्तुत आलेख में एक नजर कुछ ऐसे ही असफल अभियानों पर डाली जा रही है:-
डीप स्पेस-2(DEEP SPACE-2)
Mars polar lender के साथ डीप स्पेस टू को भी मंगल ग्रह पर भेजा गया। डीप स्पेस-2 का मुख्य उद्देश्य मंगल की सतह में गहराई तक खुदाई कर पानी, मिट्टी और दूसरे रासायनिक संयोजन का पता लगाना था। MPL( मार्स पोलर लैंडर) की ही तरह डीप स्पेस-2 की असफलता का रहस्य अभी भी बरकरार है। यह दोनों ही प्रोजेक्ट नासा की 90 के दशक में चलाई गई जल्द, बेहतर और सस्ती नीति के तहत तैयार किए गए थे। इस असफलता के बाद नासा ने अपने स्पेस शटल कार्यक्रमों में काफी बदलाव किए हैं, और बड़े अभियानों पर ही ध्यान केंद्रित किया है।
ओसियों सैटलाइट(OSIO SATELLITE)
नासा का लक्ष्य ओसियो(ऑर्बिटिंग कार्बन ऑब्जर्वेटरी) सेटेलाइट के जरिए वैज्ञानिकों को एक मंच प्रदान करना था, जिससे वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड पर नजर रखी जा सके। इसका काम वैज्ञानिकों को मौसम में आ रहे बदलाव और ग्लोबल वार्मिंग के बारे में सूचना देना भी था।दुर्भाग्यवश ओसियों अंतरिक्ष की कक्षा में प्रवेश नहीं कर पाया, क्योंकि इस सैटेलाइट को ले जा रहा रॉकेट इससे अलग नहीं हो सका।नतीजन लॉन्च होने के 17 मिनट के भीतर ही उपग्रह का मलबा महासागर में गिर गया।
नासा हीलियोज(NASA HELIOS)
यह अंतरिक्ष अनुसंधान से जुड़ा कार्यक्रम नहीं था।हेलिओस सौर ऊर्जा से संचालित एक वायुमंडल रिसर्च प्लेटफार्म की अंतिम कड़ी था, जो वायुमंडल की सबसे ऊपरी सतह पर पहुंच काम करने में सक्षम था। इस श्रृंखला के तहत पहले छोड़े गए यानो ने उड़ान के कई रिकॉर्ड बनाए, लेकिन अफसोस कि हीलियोस इन तक भी नहीं पहुंच सका। उड़ान के 30 मिनट बाद ही हवा के तेज झोंके में फस कर यह प्रशांत महासागर में जाकर गिर गया।
एसबीआईआरएस(SBIRS)
चौकसी बरतने वाले उपग्रहों की श्रंखला में एसबीआईआरएस का काम वायुसेना की जरूरतों के अनुसार बैलिस्टिक मिसाइल लॉन्च की जानकारी एकत्र करना था। इस परियोजना के तहत कई छोटे-बड़े सेटेलाइट प्रक्षेपित किए जाते,जो अगले वर्ष से काम करना शुरू कर देते। पृथ्वी की कक्षा में पहुंचने के 7 सेकंड के भीतर ही इस श्रंखला का पहला सेटेलाइट बंद हो गया। सुरक्षा तंत्र बिगड़ने के बाद इसे खतरा न बनने देने का लक्ष्य सर्वोपरि हो गया था। इसलिए यह मिशन भी नासा का फेल हो गया।
द मार्स क्लाइमेट ऑर्बिटर(THE MARS CLIMATE ORBITOR-MCO)
1998 के मार्स मिशन में काम कर चुके लोगों ने ही इस मिशन को मंगल ग्रह के वायुमंडल की जानकारी लेने के लिए भेजा था। यह रेडियो सिगनल्स भेजने वाला था, लेकिन ऐसा हो नहीं सका यांत्रिकी के बेहतरीन नमूनो में से एक एमसीओ बनाते वक्त नासा के सबकॉन्ट्रैक्टर लॉकरहीड मार्टिन ने इसमें थ्रस्टर सॉफ्टवेयर इस्तेमाल किया,जो मीट्रिक यूनिट के बजाय इंपीरियल यूनिट पर काम करता था। नासा को यह जानकारी नहीं थी और इसी कारण वायुमंडल में गलत कोण से प्रवेश करने के कारण यह जलकर खाक हो गया।
मार्स पोलर लेंडर (एमपीएल)
लाल ग्रह (मंगल) की ज्यादा से ज्यादा जानकारी प्राप्त करने का अभियान 1998 से शुरू हुआ था। इसी का एक हिस्सा था एमपीएल, जिसे लाल ग्रह की मिट्टी समेत मौसम और उसकी सतह के बारे में जानकारी जुटाना था। यह मंगल ग्रह तक तो सफलता से पहुंचा लेकिन बाद में नासा का उससे संपर्क नहीं हो पाया। वैज्ञानिकों का मानना है कि ट्रांसमीटर में गड़बड़ी समेत ग्रह की सतह से टकराने जैसा कोई भी कारण इसकी असफलता की वजह हो सकता है। बहरहाल नासा को उम्मीद है कि एक दिन उन्हें एमपीएल जरूर मिलेगा और वह गड़बड़ी का पता लगा पाएंगे।
डार्ट स्पेसक्राफ्ट(DART SPACE CRAFT)
शटल लॉन्च होने के वक्त सेटेलाइट की मरम्मत से जुड़े खर्चे और रखरखाव से तंग आकर नासा ने डार्ट बनाया। इसका काम पहले से काम कर रहे दूरसंचार उपग्रह से तालमेल करना था, ताकि लॉन्चिंग और रखरखाव के काम से बचा जा सके। दुर्भाग्यवश यह कभी दूसरे उपग्रह से मिल ही नहीं पाया। कंप्यूटर से नियंत्रित होने वाले डार्ट ने दोनों के बीच की दूरी गलत माप ली। जिससे वह पहले से कार्यरत उपग्रह से टकराकर महासागर में जा गिरा। इस प्रकार नासा का यह एक महत्वपूर्ण अभियान अधूरा ही रह गया।
एनओएए-19(NOAA-19)
यह उपग्रह मौसमी उपग्रहों की श्रेणी का आखिरी उपग्रह था। जिसे वायुमंडल के बारे में जानकारी जुटाने के उद्देश्य से भेजा गया था। इसका काम ज्वालामुखी के फटने और मौसम के बारे में बेहतर अध्ययन करना भी था। इससे पहले अंतरिक्ष में जाने वाले इस प्रकार के कई उपग्रह बीच में ही गुम हो गए थे ।लेकिन NOAA-19 इनसे थोड़ा अलग था। सर्विसिंग के आखिरी समय में वैज्ञानिक यह पता करना भूल गए कि आगे ले जाने से पहले उपग्रह को बोल्ड किया गया है या नहीं, इससे लाखों डॉलर का यह उपकरण जमीन से टकराकर मलबे में तब्दील हो गया।
जेनेसिस
जेनेसिस को अंतरिक्ष में पहुंचकर सौर हवाओं के नमूने, गोल्ड, डायमंड और सैफायर की सीट्स में कैद करने थे। इनके अध्ययन से सूर्य और सौरमंडल के संयोजन के बारे में जाना जा सकता था। सूर्य के आसपास तैरती गैसों और कणों को कैद करना आसान था, लेकिन समस्या इन्हें धरती पर सुरक्षित लाना था। इस काम के लिए यह उपग्रह बहुत नाजुक था। इसलिए नासा ने इसे हवा में ही हुक करके एक पैराशूट के जरिए लाने की तैयारी की,परंतु अंतिम समय में पैराशूट खुल नहीं सका, और उपग्रह उटाह रेगिस्तान में गिर गया। हालांकि इसके बावजूद वैज्ञानिकों को इसके कुछ अंश अपने अनुसंधान के लिए मिल ही गए थे।
नासा के इन कुछ असफल अभियानों के बावजूद भी NASA वर्ल्ड की सबसे बेहतर स्पेस एजेंसी है। नासा का मुख्यालय अमेरिका में है।