KAVITA QUOTES IN HINDI।KAVITA IN HINDI।HINDI GEET QUOTES। Hindi kavitaen।हिन्दी कविता। मुक्तक।
गीत की जब बात उठती है तब हमें एक पंक्ति याद आती है- “गीत एक अनवरत नदी है” इस अनवरत धार में नेकी और बदी दोनों बहते हैं। गीत में पत्थर के पिघलते मसौदे भी देखे जाते हैं, पत्थर पर उगे हुए तुलसी के पौधे भी और अनवरत प्रवाह मान धारा की लहर लहर में किरणों के वलय कौंधते देते हुए भी दिखते हैं। गीत की लंबी यात्रा में गीत के तमाम रूप देखने को मिलते हैं। गीत में बहुत शक्ति है जो किरणों की गति से आकर पृथ्वी और आकाश को एक कर देने की क्षमता रखती है। यदि नई कविता गीत काव्य को नए बोध और नए बिम्बो की ओर झुकने के लिए प्रेरित करती है तो गीत नई कविता को अतिरिक्त बौद्धिकता और शुष्कता से उबारने में भी समर्थ है।
इस लेख में प्रस्तुत है कुछ प्रसिद्ध हिंदी कविताओं से कथन जो आपको पसंद आएंगे:-
1. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की एक रचना
“जब-जब सर उठाया, अपनी चौखट से टकराया। मस्तक पर लगी चोट। मन में उठी कसोट।। अपनी ही भूलों पर मैं बार-बार पछताया। दरवाजे घट गए या मैं ही बड़ा हो गया। दर्द के क्षणों में कुछ समझ नहीं पाया।।
शीश झुका आओ,बोला शहर का आसमान। शीश झुका आओ, बोली भीतर की दीवारें। दोनों ने ही मुझे छोटा करना चाहा। बुरा किया तुमने जो यह घर बनाया। जब जब सिर उठाया, अपनी चौखट से टकराया।।”
2. आरसी प्रसाद सिंह की पंक्तियां
“छिपाने को छिपा लेता विकल चित्कार मैं सारा। मगर अभिव्यक्ति की मानव सुलभ तृष्णा नहीं जाती।।”
3. गिरिजा कुमार माथुर का गीत
” मैं शुरू हुआ मिटने की सीमा रेखा पर।। रोने में था आरंभ किंतु गीतों में मेरा अंत हुआ।।”
4. माखनलाल चतुर्वेदी की कलम से
“चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूंथा जाऊं। चाह नहीं प्रेमी माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ।। चाह नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊं। चाह नहीं देवों के सिर पर चढ़ भाग्य पर इठलाऊँ।। मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक। मातृभूमि पर शीश चढ़ाने जिस पथ जावें वीर अनेक।।”
5. बालकृष्ण शर्मा नवीन की प्रसिद्ध पंक्तियां
“कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाए। एक हिलोर इधर से आए एक हिलोर उधर से आए।।”
6. रूप नारायण त्रिपाठी जी के प्रसिद्ध मुक्तक
“राग बजता है रंग बजता है प्यार का अंग अंग बजता है। आप हंसते हैं खिलखिलाकर तो, रूप का जलतरंग बजता है।।”
“दीप की लौ मचल रही होगी रूह करवट बदल रही होगी। रात होगी तुम्हारी आंखों में नींद बाहर टहल रही होगी।।”
“एक था रंक एक राजा था एक जलवायु में पले दोनों। मैंने देखा कि अंततोगत्वा एक ही आग में जले दोनों।।”
“जैसे कोई फकीर हो तन्हा जैसे कोई अधीर हो तन्हा। ताड़ का पेड़ जैसे टीले पर एक गम की लकीर हो तन्हा।।”
” मैं आ न सकूंगा वहां महलों के आसपास। मैं गा न सकूंगा वहां गमलों के आसपास। रहने दो मेरी वादीए-शादाब में मुझे खेतों में महकती हुई फसलों के आसपास।”
6. श्री हरि के मुक्तक
“हर कदम इम्तिहान लेता है और हर सांस आजमाती है। मौत के होंठ चूमने वाले जा तुझे जिंदगी बुलाती है।।”
“हर सांस उम्र है और हर कदम मंजिल है, यह उम्र और मंजिलें साथ लिए जाओ। हर पल की अपनी दुनिया, अपनी रंगत है, जीवन भी क्या है बस, महसूस किए जाओ।।”
“यह रक्त चुस्ती धरा, शीश पर लदा व्योम, तू क्यों जीवन को व्यर्थ समझ कर रोता है? हर नई पीर, हर नई टिस,हर नई कसक, हर नई चीज का भी कुछ मतलब होता है।।”
7. श्रीकृष्ण तिवारी का काव्य
“रोज जहर पीना है सर्प दंश सहना है, मुझको तो जीवन भर चंदन ही रहना है।
वक्त की हथेली पर प्रश्न-सा जड़ा हूँ मैं टूटते नदी तट पर पेड-सा खड़ा हूं मै।
रोज धूप पीनी है सूर्य दंश सहना है, कितना भी चिटकूँ पर दर्पण ही रहना है।”
8. रामकुमार वर्मा की मौन करुणा
“मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूं। जानता हूं इस जगत में फूल की है आयु कितनी? और युवक की उभरती सांस में है वायु कितनी। इसलिए आकाश का विस्तार सारा चाहता हूं। मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूं।।
प्रश्नचिन्ह में उठी है भाग्य सागर की हिलोरे। आंसुओं से रहित होगी क्या नयन की नमीत कोरे। जो तुम्हें कर दे द्रवित वह अश्रु धारा चाहता हूं। मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूं।।”
9. हंस कुमार तिवारी की पंक्तियां
“मिट्टी वतन की पूछती वह कौन है? वह कौन है? इतिहास जिस पर मौन है। जिसके लहू की बूंद का टीका हमारे भाल पर, जिसके लहू की लालिमा, स्वातंत्र्य शिशु के भाल पर, जो बुझ गया गिरकर गगन से, निमिष में तारा सदृश, बच ओस जितना भी न पाया, अश्रु जिसका काल पर, जो दे गया जीवन विजन के फूल सा हंस नाश को….. जिसके लिए दो बूंद भी स्याही नहीं इतिहास को? वह कौन है?”
10. भगवतीचरण वर्मा जी की दीवानों की हस्ती
” हम दीवानों की क्या हस्ती है, आज यहां कल वहां चले, मस्ती का आलम साथ चला, हम धूल उड़ाते जहां चले।
आए बनकर उल्लास अभी, आंसू बनकर बह चले अभी, सब कहते ही रह गए, अरे, तुम कैसे आए, कहां चले?
किस और चले? यह मत पूछो, चलना है, बस इसलिए चले, जग से उसका कुछ लिए चले, जग को अपना कुछ दिए चले।
दो बात कही, दो बात सुनी, कुछ हंसे और फिर कुछ रोए, चखकर सुख-दुख के घूंट को, हम एक भाव से पिए चले।
हम भीख मंगो की दुनिया में, स्वच्छंद लुटा कर प्यार चले, हम एक निशानी-सी उर पर, ले असफलता का भार चले।
हम मानरहीत, अपमान रहित, जी भरकर खुलकर खेल चुके, हम हंसते हंसते आज यहां, प्राणों की बाजी हार चले।।”
11. हरिवंश राय बच्चन जी की अग्निपथ
“अग्निपथ!अग्निपथ! अग्निपथ! वृक्ष हों भले खड़े, हो घने, हो बड़े, एक पत्र-छाँह भी, मांग मत, मांग मत, मांग मत, अग्निपथ!अग्निपथ! अग्निपथ!
तू न थकेगा कभी, तू न थमेगा कभी, तू न मुड़ेगा कभी, कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ, अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!
यह महान दृश्य है, चल रहा मनुष्य है, अश्रु-स्वेद रक्त से, लथपथ, लथपथ, लथपथ, अग्निपथ! अग्निपथ! अग्निपथ!”
12. कवि उदयभानु हंस की कविता भेड़ियों के ढंग से कुछ पंक्तियां
“देखिए कैसे बदलती आज दुनिया रंग। आदमी की शक्ल-सूरत, आचरण में भेड़ियों के ढंग।
द्रोपदी फिर लूट रही है, दिनदहाड़े, मौन पांडव, देखते हैं आंख फ़ाड़े, हो गया है सत्य अंधा, न्याय बहरा, और धर्म अपंग, नींव पर ही तो, शिखर का रथ चलेगा।।”
13. मधुर शास्त्री की पंक्तियां
” अपना दुख ही दुख लगता है यह दुनिया की मजबूरी है, दुख की नदी किनारे दो है दुखिया दुखिया में दूरी है, कोयल गाती मधुबन हंसता, सूरज रोता, चांद अगन है, आने जाने वाले जग में चलने वाले का जीवन है।
नयन तुम्हारे, मेरी आंखें, नाम अलग, मुस्कान एक है।
सुख की छाया चंचल, तब भी सब में लालच है छाया का, छाया का लोभी, लोभी है मन के मंदिर की काया का, काया की लोभी दुनिया में मन का लोभी एक नहीं है, सच भी तब कड़वा लगता है जिसमें वचन विवेक नहीं है।
राग तुम्हारा, सरगम मेरी, नाम अलग है, ज्ञान एक है, दर्द तुम्हारा, मेरी पीड़ा, नाम अलग है, प्राण एक है।”
14. देवी प्रसाद शुक्ला राही की प्रसिद्ध पंक्तियां
“जिंदगी आखिर कहां तक, सब्र की मूरत गढ़ेगी, घुटन जितनी ही अधिक हो, आँच उतनी ही बढ़ेगी, आंधियों को भी बुलाना, दर्द वाले जानते हैं, रूढ़ियों की राख, कब तक आग के सर पर चढ़ेगी? शौक हो जिनको, जिए परछाइयों की ओट लेकर- मैं उजाले की निशानी हूं, मुझे फुर्सत नहीं है।।”
15. कन्हैयालाल वाजपेयी की रचना
“आधा जीवन जब बीत गया, वनवासी सा गाते-रोते, अब पता चला इस दुनिया में, सोने के हिरन नहीं होते। संबंध सभी ने तोड़ लिए, चिंता ने कभी नहीं तोड़े, सब हाथ जोड़ कर चले गए, पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़ें।”
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