“हिम्मत ए मर्दा मदद ए खुदा”-साहसी बनकर अपने जीवित होने का परिचय दो

“हिम्मत ए मर्दा मदद ए खुदा”-साहसी बनकर अपने जीवित होने का परिचय दो।

साहस ही सफलता की कुंजी है।(Saahas-hi-Safalata-ki-kunji-hai)

भावनाओं को व्यक्त करने के लिए जैसी बुद्धि व वाणी मनुष्य को मिली है। संसार के किसी अन्य जीव-जंतु को नहीं मिली। संसार की सारी मशीनें एक ही शरीर के सम्मुख आश्चर्य से खड़ी है। खाने-पीने, चलने-फिरने, की स्वचालित मशीन और कोई भी नहीं जैसी मनुष्य को प्राप्त है। 
पारस्परिक प्रेम और स्नेह, त्याग और आत्मोत्सर्ग, सौहार्द संगठन और सहानुभूति के बल पर मानव चाहे तो इस धरती पर स्वर्ग उतारकर रख दे। इन से भी बढ़कर श्रेष्ट व अनुपम वस्तु उसे मिली है, वह हैं- आत्मिक बल की अनुपम संपदा।इसे प्राप्त कर मनुष्य सचमुच देवता बन जाता है।
इन महत्वपूर्ण अनुदान का स्वामी होकर भी उसकी दीनता देखकर बड़ी निराशा होती है। लगता है, उसने इनका दुरुपयोग कर लिया।भय से बढ़कर अनिष्टकारी दूसरा कोई मनोविकार नहीं है। यह ऐसा महान घातक शत्रु है, जो व्यक्ति की विकास विजय को पराजय में, आशा को निराशा में, उन्नति को अवनति में, क्षण भर में बदल कर रख देता है।
भय के दो रूप हैं- एक क्रियात्मक दूसरा भावनात्मक। पहला कर्ता और परिस्थिति के स्थूल संयोग व संघर्ष की आशंका से होता है। रात के अंधकार में डर जाना, चोर बदमाश की किसी आतताई के आक्रमण आदि की आशंका को इस कोटि में माना जाता है किंतु दूसरी प्रकार का है जो मनुष्य को देर तक उत्पीड़ित करता है वह है मन का भय।  इसके पीछे भी आधार क्रियात्मक हो सकते हैं किंतु ऐसा भय अधिकतर निराधार ही होता हैं।
पहले से उतना नुकसान नहीं होता क्योंकि वह घटना के अंदर ही समाप्त हो जाते हैं किंतु निरंतर शारीरिक व मानसिक शक्तियों का शोषण करने वाला तो यह मन का भय ही होता है।
भयभीत होने का अर्थ है आत्म बल की कमी, आत्मविश्वास की न्यूनता। आने वाली कठिनाइ या दुर्घटना से आतंकित होने का एक ही अर्थ होता है उससे लड़ने-जूझने और संघर्ष करने का साहस नहीं है। यह मनुष्य का एक बड़ा दुर्गुण है कि बिना जाने-पहचाने केवल कागजी कंस से,कपोल कल्पित मान्यताओ से भयभीत रहे।भय की परिस्थिति के मूल तक पहुंच कर देखें तो वास्तविकता कुछ भी नही निकलेगी।
मानसिक दुर्बलताओ के अतिरिक्त भय का और कोई कारण नहीं। यदि कुछ भी हो तो भी उसे अपने मनोबल के द्वारा विवेक और बुद्धि के माध्यम से सुलझाया जाना संभव है। एक आदमी अंधेरे में पाँव धरता है तो आगे भूत खड़ा दिखाई देता है। बेचारा डर जाता है। छाती धड़कने लगती है।छूटा की भूत सवार हुआ। फिर जैसी कल्पना करते जाते हैं,भूत वैसे ही करने लगता है। और एक दूसरा व्यक्ति थोड़ी हिम्मत बांधता है। सारा साहस बटोरकर आगे बढ़ता है। सोचता है देखे यह भूत भी क्या बला है? आगे बढ़ता तो हवा के कारण हिलती डुलती झाड़ी केअतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं देता है। उसे पता चल जाता है की भूत और कुछ नहीं अपना ही मानस-पुत्र है।अपनी ही कल्पना की तस्वीर है।डर जाने के 90% कारण ऐसे ही होते हैं। 
कहावत है-“हिम्मते मर्दा मदद-ए-खुदा।”  अनेक ऐसी घटनाएं घटित हुई है जब छोटे-छोटे बालकों ने खूंखार हिंसक जानवरों का मुकाबला करके  उनसे अपनी आत्मरक्षा की है। भयभित होने का तो एक ही अर्थ  है-अपने प्रतिद्वंदी के आक्रमण के सामने सिर झुका देना,डर जाना, जानबूझकर अपने आपको आपत्तियों के जाल में फंसा देना।
 छोटे-छोटे जीव-जंतु,पशु- पक्षी घनघोर जंगलों में भी निर्भय विचरण करते रहते हैं। अनेक भयानक परिस्थितियां होते हुए भी उन्हें इस तरह निर्भीक घूमते देखते हैं ,तो मनुष्य की क्षमता पर शारीरिक व मानसिक शक्ति पर संदेह होने लगता है।
 भय मनुष्य की योग्यता कुंठित कर देने का प्रमुख कारण है । मानवीय योग्यताओं को देखते हुए यह आशा की जाती है कि लोग प्रतिदिन उन्नति की ओर, विकास की ओर बढ़ते चले जाए। आज जिस स्थिति में है, कल उससे बेहतर स्थिति में हो। आज की अपेक्षा कल कुछ अधिक धनवान, बलवान, गुणी एवं शिक्षित हो।किंतु इस तरह भयभीत रहकर अपनी विकास गति को शिथिल कर डालने की बात अच्छी नही लगती है। यह सब इसलिए होता है कि आने वाली घटनाओं तथा परिस्थितियों को बढ़ा चढ़ा कर देखते हैं और अपनी शक्तियों को कमजोर मानते हैं। इससे पराक्रम तथा कर्तव्यनिष्ठा का नुकसान होता है। जिस कर्म के लिए यथार्थ की आवश्यकता थी वह नहीं हो पाता। कई बार तो उसके स्थान पर अनुचित कार्य तक होते देखे जाते है।  


कायर कोई महत्वपूर्ण कार्य पूरा करने में समर्थ नहीं हो पाता है। सफलता प्राप्त करनी हो तो भय रहित होकर उस कार्य में जुड़ना पड़ेगा,अन्यथा मानसिक एकाग्रता लग्न एवं तत्परता न बन पड़ेगी। जिसकी कार्य पूर्ति के लिए आवश्यकता अनुभव की गई थी। छिन्न- भिन्न एवं दुर्बल मनोबल से कोई कार्य पूरे नहीं होते। इसलिए पहले साहस का अनुसरण करना होता है।
 भय सफलता का सबसे बड़ा बाधक है । साहसी और हिम्मतवर व्यक्ति हजार कठिनाइयों में भी विचलित नहीं होते। जीवन के किसी भी क्षेत्र में व्यवस्था एवं क्रम बनाए रखने के लिए सुदृढ मनोबल एवं साहसी होने की अत्यंत आवश्यकता है।इनके अभाव में पग-पग पर भय उत्पादक परिस्थितियां रास्ता रोकती और पीछे लौटने को मजबूर कर देती है। विकास की गाड़ी रुके नहीं, सफलता की मंजिल तक पहुंचने में संदेह न रहे, इसके लिए भय व भीरुता को छोड़ना पड़ेगा। परिस्थितियों से संघर्ष करने की हिम्मत करनी पड़ेगी तभी किसी महत्वपूर्ण निष्कर्ष में पहुंचना संभव हो सकेगा। 
घर में प्रचुर संपत्ति है। सुंदर मकान, आज्ञाकारी स्वामी भक्त सेवक, सज्जन परिवार सभी कुछ है। शरीर भी पूर्ण स्वस्थ और बलिष्ठ है, पर जिस जीवन में सदैव भय और आतंक छाया रहता है उसे कभी सुखी ना कहेंगे। भय संसार में सबसे बड़ा दुख है। जिन्हें संसार में रहते हुए यहां की परिस्थितियों का भय नहीं हो तो वह भी मृत्यु की कल्पना से कांप उठते हैं ।इसलिए यह निश्चित ठहरता है कि अभय होने के सदृश सुख इस संसार में नहीं है। भय विमुख होना मनुष्य का सबसे बड़ा सौभाग्य है। भय के लिए कारण निर्दिष्ट होना जरूरी नहीं है। मानसिक कमजोरी ,दुःख या हानि की काल्पनिक आशंका से ही लोग भयभीत रहते हैं। सही कारण तो बहुत थोड़े होते हैं।

Join neelgyansagar blog on Telegram

 

Leave a Comment