हिंदू नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को क्यों मनाते हैं? इस दिन का क्या महत्व है? एवं मनाने की विधि क्या है?
हिंदू धर्म में नूतन वर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से माना जाता है। यह दिन सभी हिंदुओं के लिए बड़े ही हर्ष व उल्लास का होता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा या वर्ष प्रतिपदा या युगादि कहा जाता है। आज ही के दिन महाराजा विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत का प्रारंभ किया था। इसे सृष्टि की सबसे प्राचीन कालगणना माना जाता है। शालिवाहन शक संवत (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग) महर्षि दयानंद जी द्वारा आर्य समाज का स्थापना दिवस भी आज ही के दिन है। नूतन वर्ष का प्रारंभ आनंद उल्लास में हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती है।
हिंदू नव वर्ष चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को क्यों मनाते हैं?
विक्रम संवत किसी संकुचित विचारधारा या पंथआश्रित नहीं है हम इसको पंथनिरपेक्ष रूप में देखते हैं। हमारी गौरवशाली परंपरा विशुद्ध रूप से प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धांतों पर आधारित है।और भारतीय काल गणना का आधार पूर्णतया पंथनिरपेक्ष है।आज भी हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च-अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं। यह समय दो ऋतुओं का संधि काल भी है। वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तो में गुड़ी पड़वा की गिनती होती है। भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है।और आज ही के दिन से ग्रहों, वारो, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय गणना के अनुसार माना जाता है।आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्र सम्मत कालगणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक भी माना जाता है।
आज से ही नव दुर्गा के नवरात्रि का शुभारंभ होता है। देवी दुर्गा के नौ रूपों में पहला स्वरूप शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है। यही नवदुर्गा में प्रथम दुर्गा है। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। नवरात्र पूजन में प्रथम दिवस मां शैलपुत्री की पूजा और उपासना की जाती है।
चैत्र शुक्ल प्रतिपदा के दिन ही मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री रामचंद्र जी के राज्य अभिषेक के रूप में मनाया जाता है। आज ही के दिन भगवान रामचंद्र जी का अयोध्या में राज्याभिषेक हुआ था।एवं आज ही के दिन महाराज युधिष्ठिर का भी हस्तिनापुर में राज्य अभिषेक हुआ था। इसलिए यह दिन हिंदुओं के लिए बड़े ही गौरव का दिन है। अतः भारत में आज के दिन को हिंदू नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
ब्रह्मा जी ने भी आज ही के दिन सृष्टि की रचना की थी। एवं भारत में प्रचलित सभी संवतो का प्रथम दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही है। अतः इसी दिन को हिंदू नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है।
इस दिन का क्या महत्व है?
इस दिन का महत्व इसलिए अधिक हो जाता है,क्योंकि चैत्र ही एक ऐसा महीना है जिसमें वृक्ष तथा लताएं पल्लवित एवं पुष्पित होती है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कलाओं का प्रथम दिवस माना जाता है।आज के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य जी ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए पंचांग की रचना की थी। यह समय दो ऋतु का संधि काल होता है।एवं प्रकृति भी नव पल्लव धारण करके नव संरचना के लिए ऊर्जावान होती है। मानव पशु- पक्षी यहां तक की जड़ -चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है।महाराज विक्रमादित्य ने आज से राष्ट्र को संगठित कर शको की शक्ति का उन्मूलन कर देश से भगा दिया। और उनके ही मूल स्थान अरब में विजयश्री प्राप्त की।और अपनी विजय दिवस के स्मृति स्वरूप यह प्रतिपदा संवत्सर के रूप में मनाई थी। सबसे प्राचीन काल गणना के आधार पर ही प्रतिपदा के दिन को विक्रम संवत के रूप में मनाया गया। आज यह दिन हमारे सामाजिक और धार्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धूरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है।हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति की उपासना कर शक्ति संचय कर सकते हैं।
हिन्दू नववर्ष मनाने की विधि क्या है?
हिंदू नव वर्ष को मनाने के लिए सर्वप्रथम हम अपने गौरवशाली संस्कृति और धर्म की रक्षा का संकल्प ले। सूर्य की प्रथम किरण के साथ अपने -अपने घरों में और मंदिरों में नववर्ष का स्वागत करें। मस्तक पर तिलक लगाएं। भगवान सूर्यनारायण को जल चढ़ाएं। शंख ध्वनि धार्मिक स्थलों पर,घर, गांव ,स्कूल ,कॉलेज आदि सभी मुख्य प्रवेश द्वार के ऊपर (तोरण अशोक आम पीपल नीम)आदि का बांध के भगवा ध्वज फहराये। सामूहिक भजन-कीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें।भारतीय नव वर्ष का स्वागत करें। एवं सभी भारतीय भाई-बहन संकल्प ले की अंग्रेजों द्वारा चलाया गया 1 जनवरी को नववर्ष न मनाकर अपना महान हिंदू धर्म वाला नववर्ष मनाएंगे।
वर्ष 2022 का नव संवत्सर: वर्ष 2022 का हिंदू नव संवत्सर 2 अप्रैल दिन शनिवार को चित्र शुक्ला प्रतिपदा को है ।विक्रमी संवत 2079 का यह प्रथम दिन है।
विक्रमादित्य ने शकों को मारकर अपने नाम पर विक्रम संवत चलाया इसलिये विक्रमसंवत्सर कहते हैं ।
#महाराजा__विक्रमादित्य__परमार
चक्रवर्ती सम्राट महाराज विक्रमादित्य परमार के बारे में देश को लगभग शून्य बराबर ज्ञान है,
जिन्होंने भारत को सोने की चिड़िया बनाया था, और स्वर्णिम काल लाया था । इन्ही के नाम से विक्रमी संवत चलता है।
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उज्जैन के राजा थे गन्धर्वसैन परमार, जिनके तीन संताने थी , सबसे बड़ी लड़की थी मैनावती , उससे छोटा लड़का भृतहरि और सबसे छोटा वीर विक्रमादित्य…बहन मैनावती की शादी धारानगरी के राजा पदमसैन के साथ कर दी , जिनके एक लड़का हुआ गोपीचन्द , आगे चलकर गोपीचन्द ने श्री ज्वालेन्दर नाथ जी से योग दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , फिर मैनावती ने भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग दीक्षा ले ली ,
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आज ये देश और यहाँ की संस्कृति केवल विक्रमदित्य के कारण अस्तित्व में है
अशोक मौर्य ने बोद्ध धर्म अपना लिया था और बोद्ध बनकर 25 साल राज किया था
भारत में तब सनातन धर्म लगभग समाप्ति पर आ गया था, देश में बौद्ध और जैन हो गए थे
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रामायण, और महाभारत जैसे ग्रन्थ खो गए थे, महाराज विक्रम ने ही पुनः उनकी खोज करवा कर स्थापित किया
विष्णु और शिव जी के मंदिर बनवाये और सनातन धर्म को बचाया
विक्रमदित्य के 9 रत्नों में से एक कालिदास ने अभिज्ञान शाकुन्तलम् लिखा, जिसमे भारत का इतिहास है
अन्यथा भारत का इतिहास क्या मित्रो हम भगवान् कृष्ण और राम को ही खो चुके थे
हमारे ग्रन्थ ही भारत में खोने के कगार पर आ गए थे,
उस समय उज्जैन के राजा भृतहरि ने राज छोड़कर श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से योग की दीक्षा ले ली और तपस्या करने जंगलों में चले गए , राज अपने छोटे भाई विक्रमदित्य को दे दिया , वीर विक्रमादित्य भी श्री गुरू गोरक्ष नाथ जी से गुरू दीक्षा लेकर राजपाट सम्भालने लगे और आज उन्ही के कारण सनातन धर्म बचा हुआ है, हमारी संस्कृति बची हुई है
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महाराज विक्रमदित्य ने केवल धर्म ही नही बचाया
उन्होंने देश को आर्थिक तौर पर सोने की चिड़िया बनाई, उनके राज को ही भारत का स्वर्णिम राज कहा जाता है
विक्रमदित्य के काल में भारत का कपडा, विदेशी व्यपारी सोने के वजन से खरीदते थे
भारत में इतना सोना आ गया था की, विक्रमदित्य काल में सोने की सिक्के चलते थे , आप गूगल इमेज कर विक्रमदित्य के सोने के सिक्के देख सकते हैं।
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विक्रम संवत् (आज का हिन्दू कैलंडर भी) विक्रमादित्य का स्थापित किया हुआ है।
भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
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