हमारा पर्यावरण हमारा भविष्य
आदिकाल से ही हम लोग प्रकृति एवं पर्यावरण के पूजक रहे हैं।भारतीय संस्कृति मैं पेड़ -पौधों व जंतुओं दोनों को सदैव ही पूजनीय मानकर इनका संरक्षण किया गया है ।हम लोग हमारे प्रत्येक कार्य में सर्वप्रथम प्रकृति पूजा को देते हैं, चाहे वह किसी भी रूप में हो। लेकिन हम सर्वप्रथम प्रकृति को ही पूजते हैं।अर्थात,प्राकृतिक जीवो को पूजते हैं। जैसे राजस्थान में दशहरे पर खेजड़ी का पूजन करना, इसी तरह पीपल पूजन करना,तुलसी पूजन करना, नीम को नारायण मानना ,श्वेतार्क में गणेश जी का निवास मानना, शमी में शनिदेव का निवास मानना,पशुओं में गाय को माता मानना ,चूहे को गणेश जी का वाहन मानना ,बैल को नंदी स्वरूप मानकर पूजन करना आदि।
ORIGIN OF ENVIRONMENT AND ITS MEANING(पर्यावरण)
‘पर्यावरण’ शब्द दो शब्दों के मेल से बना है ‘परी’ व’आवरण’अर्थात हमारे चारों ओर का आवरण। पर्यावरण शब्द इंग्लिश के Environment शब्द से लिया गया है जो वास्तव में फ्रेंच भाषा के ‘Environner’,शब्द से बना हैl जिसका अर्थ है, घिरा हुआ या किसी चीज को घेरना।
भारत सरकार के पर्यावरण संरक्षण अधिनियम ,1986 के अनुसार,ENVIRONMENT
भारत सरकार के पर्यावरण संरक्षण अधिनियम ,1986 के अनुसार,ENVIRONMENT किसी जीव के चारों तरफ धीरे भौतिक एवं जैविक दशाओं एवं उनके साथ अंतःक्रिया को सम्मिलित करना कहलाता है। क्योंकि, मनुष्य एक प्राकृतिक क्षेत्र के साथ -साथ सामाजिक व मानव निर्मित क्षेत्र के भीतर रहता है । अतः मनुष्य को घेरने वाले समस्त सामाजिक ,सांस्कृतिक, प्राकृतिक व कृत्रिम क्षेत्र मनुष्य के पर्यावरण का निर्माण करते हैं।
वास्तव में,ENVIRONMENT सभी जैविक तथा अजैविक अवयवों का मिश्रण है। पर्यावरण के विभिन्न अवयव एक दूसरे से जुड़े हुए और परस्पर आश्रित रहते हैं।
दोस्तों ,
मानव इस प्रकृति का एकमात्र ऐसा सजीव है ।जो पर्यावरण को किसी न किसी रूप में नुकसान पहुंचाता है ।और ,इस मनुष्य के पहुंचाए गए नुकसान का खामियाजा समस्त प्राणियों व पेड़ पौधों को भुगतना पड़ता है। मानव के विकास की इस अंधी दौड़ ने हमारे पर्यावरण को सर्वाधिक नुकसान पहुंचाया है, और परिणाम स्वरूप कई जैविक जातियां विलुप्त हो चुकी है ।एवं, कई विलुप्ति की कगार पर है।
हमें समय रहते यह समझना होगा की ENVIRONMENT को सुरक्षित रखकर ही हम हमारे भविष्य का निर्माण कर सकते हैं। अगर समय रहते हमने हमारी आवश्यकताओ व आदतों में बदलाव नहीं किया तो आने वाला समय हमारी पृथ्वी के लिए भयानक होगा। सामान्यता देखने में यह आता है की प्रकृति को सर्वाधिक नुकसान पढ़े -लिखे लोग पहुंचाते हैं।कम पढ़े -लिखे, संस्कृति ,धर्म व पुरानी रूढ़यों से जुड़े हुए लोग इस प्रकृति को कम नुकसान पहुंचाते हैं।
आदिवासी महिला |
पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयास केवल सरकारी स्तर तक सीमित
आज मनुष्य शांति की खोज में भटक रहा है ।लेकिन पर्यावरण को बचाने के लिए प्रयास केवल सरकारी स्तर तक सीमित है ।अतः अगर वास्तविक शांति चाहिए, तो हमें इस प्रकृति की सुंदरता को निखारना होगा हमें अधिक से अधिक पेड़ लगाने होंगे, चाहे सरकारी सहयोग मिले या ना मिले ।यह हम सभी को अपना कर्तव्य समझकर करना होगा तभी हम हमारे आने वाली पीढ़ियों को विकास के साथ -साथ स्वास्थ्य भी दे पाएंगे । वास्तविक शांति तो प्रकृति की गोद में बसती है।
सुबह के समय पक्षियों का चहचहाना ,नदियों का कल -कल कर बहना, पेड़ों का लहराना, तितलियों का रंग बिरंगे फूलों पर रस लेना इन सभी को ध्यान पूर्वक देखने व महसूस करने पर हमें आत्मिक शांति मिलती है ।ऐसी शांति किसी अन्य स्रोत से नहीं मिल सकती है। अतः हमें हमारे भविष्य को सुरक्षित रखने हेतु पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम उठाने पड़ेंगे ।जिस प्रकार मनुष्य तकनीक में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहा है ठीक उसी प्रकार इस पर्यावरण को संरक्षित करने में भी सभी को अपनी भूमिका निभानी होगी तभी यह संभव हो पाएगा।
Best of luck
A GOOD POST ON ENVIRONMENT
थैंक्स
Thanks
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