स्वस्थ शरीर के लिए आजमायें ये भोजन के टिप्स। TIPS OF FOOD FOR GOOD HEALTH

स्वस्थ शरीर के लिए आजमायें ये भोजन के टिप्स। TIPS OF FOOD FOR GOOD HEALTH

जीवन की तीन महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है- भोजन, पानी तथा हवा। भोजन का मतलब केवल पेट भरना नहीं होता, बल्कि यह भी ध्यान रखना आवश्यक है, कि भोजन शुद्ध, सात्विक और ताजा हो। शरीर के समस्त अंग अवयवों का निर्माण, शारीरिक विकास, वृद्धि एवं समस्त क्रियाकलाप भोजन पर ही निर्भर होते है। अतः भोजन के बारे में कभी भी लापरवाही नहीं करें। पौष्टिक भोजन से शारीरिक व मानसिक विकास सही तरीके से होता है। शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति उत्पन्न होती है। वहीं दूसरी तरफ बासी, दूषित एवं अपौष्टिक भोजन शरीर में कई प्रकार के रोगों को उत्पन्न करते हैं, एवं शरीर के विकास को भी अवरुद्ध कर देते हैं। निरोगी, स्वस्थ तथा ऊर्जावान बने रहने के लिए हमें सदैव संतुलित भोजन करना चाहिए। इसके बारे में कुछ महत्वपूर्ण टिप्स यहां बताए जा रहे हैं:-
  • भोजन हमेशा संतुलित ले। कोशिश करें कि थाली में भोजन में सभी आवश्यक तत्व मौजूद हो। केवल पेट भरने से कोई लाभ नहीं है। भोजन में प्रोटीन के लिए दाले, विटामिंन के लिए हरी सब्जियां तथा कच्चा सलाद एवं फैट के लिए घी, तेल इत्यादि एवं कार्बोहाइड्रेट के लिए रोटी, चावल आदि पर्याप्त मात्रा में उपस्थित हो।
  • दूषित वह बासी भोजन नहीं करे, बल्कि ताजा व पौष्टिक आहार ही लें। दूध, दही, छाछ का नियमित सेवन करने से स्वस्थ रहने में सहायता मिलती है। शरीर का विकास भी अच्छा होता है। शारीरिक बल एवं बुद्धि दोनों में अभिवृद्धि होती है।
  • पानी नियमित रूप से एवं पर्याप्त मात्रा में पिए। दिन भर में लगभग 5 से लेकर 7 लीटर पानी पीना स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ रहता है। 
  • भोजन से लगभग आधा घंटा पहले पानी पीना तथा भोजन के बीच-बीच में थोड़ा-थोड़ा पानी पीना चाहिए। इससे भोजन का सही पाचन होने में सहायता मिलती है, एवं भोजन करने के लगभग आधे घंटे बाद में पानी पिए। 
  • रात में सोते समय एक गिलास गर्म दूध पीना सेहत के लिए अच्छा होता है। इससे अच्छी नींद आने में सहायता मिलती है।
  • भोजन को अच्छी तरह से चबा-चबाकर खाना चाहिए। भगवान ने हमारे मुंह में 32 दांत दिए है, अतः प्रत्येक निवाले को 32 बार चबाना चाहिए। 
  • जन्म के समय शिशु के मुंह में दांत नहीं होते इसका तात्पर्य है कि उसे केवल मां का दूध पिलाएं। सातवें-आठवें महीने में दांत निकलने की शुरुआत होने के साथ ही अर्ध तरल आहार प्रारंभ करें और जैसे-जैसे दांतो की संख्या बढ़ती जाए वैसे वैसे ही ठोस आहार देना प्रारंभ करते रहे। ऐसे ही बुढ़ापे में जैसे-जैसे दांत गिरने लगे, वैसे ही ठोस आहार की मात्रा कम करते जाए तथा दलिया, खिचड़ी, सूप इत्यादि तरल खाद्य पदार्थों की मात्रा बढ़ाते जाए। इसे प्रकृति के साथ सहयोग करना ही समझे। इसी में समझदारी है। 
  • बुढ़ापे में दांत टूटने के साथ ही आंतों की पाचन शक्ति भी कमजोर होती जाती है। उसी के अनुरूप आहार लेने की व्यवस्था हमें करनी चाहिए। व्यक्ति को सलाद, सब्जियां तथा मौसमी फल प्रचुर मात्रा में खाने चाहिए। 
  • सब्जियों में विटामिन होते हैं, जो शरीर को अनेक रोगों से बचाने में सहायक होते हैं। खट्टे व पीले फलों में विटामिन सी होता है। जो शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता उत्पन्न करते हैं। अतः आंवला, नींबू, संतरा, मौसमी इत्यादि  खट्टे फलों का प्रयोग भरपूर मात्रा में करना चाहिए। 
  • हरी पत्तेदार सब्जियों में आयरन, फोलिक एसिड होता है, जो रक्त निर्माण में सहायक होने से खून की कमी को दूर करता है। इसका भरपूर प्रयोग करें। 
  • प्रात:काल धूप में विटामिन डी होता है, जो कि हड्डियों के निर्माण में सहायक होता है।

मनुष्य के शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता स्वस्थ और सामान्य बनी रहे,इसके लिए आवश्यक है, कि पूरी तरह उचित आहार-विहार का ध्यान रखते हुए प्राकृतिक जीवन व्यतीत किया जाए। लेकिन वर्तमान समय में मनुष्य आधुनिकता के परिवेश में फस कर प्रकृति के नियमों का खुला उल्लंघन करने लगा है, और उसने अपने आहार-विहार में भी अनियमितता को अपना लिया है। 


इन्हीं सब का यह परिणाम है, कि आज अधिकाधिक व्यक्ति रोगों का शिकार बनते रहते हैं, अन्यथा कुछ वर्षों पूर्व तक मनुष्य चिकित्सकों की पहुंच से लगभग दूर ही था। यह बात बिल्कुल स्पष्ट है, कि न केवल उदर संबंधी रोगों के लिए बल्कि अधिकांश शारीरिक रोगों के पीछे एकमात्र प्रमुख कारण उसके द्वारा लिया जाने वाला दूषित और अनियमित आहार है। भोज्य पदार्थों में ही सभी तरह के रोगों और स्वच्छता के 99% कारक छिपे हुए रहते हैं। इसलिए सदैव हमें भोजन के अंदर उपरोक्त सावधानियां बरतनी चाहिए।

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