सूर्य नगरी जोधपुर।SUNCITY JODHPUR IN HINDI।

सूर्य नगरी जोधपुर का गढ़ मेहरानगढ़।SUNCITY JODHPUR’S MEHRANGARH IN HINDI।

क्षेत्रफल की दृष्टि से राजस्थान का सबसे बड़ा संभाग जोधपुर है। इस खूबसूरत नगर को राव जोधा जी ने बसाया था। जोधपुर को सूर्य नगरी के नाम से भी जाना जाता है। सूर्योदय के साथ यह शहर सूर्य की रोशनी से जगमगाने लगता है। यहां पर सूर्य की किरणें सर्वाधिक पडती है। प्राचीन काल में यह नगर मारवाड़ रियासत की राजधानी हुआ करता था।

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यह सुंदर शहर 8 द्वारो और अनगिनत बुर्जो से घिरा हुआ है। यहां का 10 किलोमीटर ऊंचा परकोटा देखकर लगता है कि यहां का इतिहास बेहद गौरवशाली और समृद्ध रहा है।

परकोटे के अंदर का जोधपुर घुमावदार संकरी गलियां, चौक और अपनायत के बोल लिए मेहमान नवाजी के लिए हमेशा आतुर। एक बार यहां आए तो बार-बार आने का मन करें। बोली इतनी मधुर कि क्या कहे? हर एक के लिए संबोधन में जी हुकुम। चाहे छोटा हो या फिर बड़ा। सूर्य नगरी में ऊंची पहाड़ी पर बना हुआ है मयूर की आकृति में एक विशाल दुर्ग, जिसे मेहरानगढ़ कहते हैं। मयूर आकृति के कारण इस दुर्ग को मयूरध्वज गढ़ और गढ़ चिंतामणि के नाम से भी जाना जाता है। 

यहां से देखने पर दूर तक फैले जोधपुर नगर का बेहद सुंदर नजारा होता है। पक्के मकान, सड़के, चौक, तालाब।अपनापन और भाईचारे की मारवाड़ी संस्कृति के जीवंत गवाह यहां के वाशिंदे। करवट लेता वक्त बिता जा रहा है। परंतु जोधपुर के अपनेपन और यहां की आत्मीयता के रंग अभी भी वैसे के वैसे ही है। इन रंगों की छटा कहीं भी हल्की नहीं हुई है।

हर साल यहां पर सैकड़ों सैलानी भ्रमण हेतु आते हैं और आकर के यहां के अपनायत की संस्कृति को जीवन पर्यंत याद रखते हैं।

जोधपुर के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल

मेहरानगढ़ का किला/ मयूरध्वज गढ़/गढ़ चिंतामणि

मेहरानगढ़ के किले का निर्माण राव जोधा जी ने करवाया था। चिड़िया टूक नामक ऊंची पहाड़ी पर बना 15वीं शताब्दी का यह विशालकाय दुर्ग, पथरीली चट्टानों पर मयूर की आकृति में बना हुआ है। इस दुर्ग को कभी मयूरध्वजगढ़ और कभी गढ़चिंतामणि के नाम से जाना गया। राजस्थान के दुर्गों में अपनी विशालता और समृद्धि, स्थापत्य कला में मेहरानगढ़ सच में एक मिसाल है। 
मेहरानगढ़ यानी नरबलि से निर्मित दुर्ग। नरबलि से निर्मित इसलिए कि इसकी नीव में जिंदा आदमी नींव के पत्थर के रूप में डाला गया था। हालांकि इसमें कोई जोर जबरदस्ती नहीं की गई थी। परंतु जीवित आदमी को नींव के पत्थर के रूप में इस्तेमाल का यह गढ़ आज भी गवाह है। इतिहासकार ‘गौरी शंकर हीरानंद ओझा’ द्वारा लिखें ग्रंथ “जोधपुर राज्य का इतिहास” के अनुसार ज्योतिषियों की सलाह पर किले की नींव के मुहूर्त के समय समृद्धि व सुरक्षा के लिए किले में राजिया भाम्बी नाम के जिंदा आदमी को गाढ़ा गया था। 
कहानी इसके पीछे की भी कम रोचक नहीं है, दरअसल मारवाड़ की राजधानी पहले मंडोर हुआ करती थी। जो आज के मेहरानगढ़ से लगभग 9 किलोमीटर दूरी के स्थल मंडोर को सुरक्षा के लिहाज से अनुपयुक्त समझते हुए राव जोधा के दिमाग में यह आया, कि क्यों न राजधानी को यहां से स्थानांतरित किया जाए। इसी सोच के आधार पर बाद में उन्होंने मंडोर से लगभग 9 किलोमीटर दक्षिण में उस समय के प्रसिद्ध योगी चिड़िया नाथ के नाम पर बनी पहाड़ी पर दुर्ग की नींव रखवाई। 
किले की सुरक्षा और समृद्धि के लिए उन्होंने तब तांत्रिको और ज्योतिषियों से विचार-विमर्श किया, तो उन्होंने किले की नींव में जिंदा आदमी गाढ़ने का परामर्श दिया। इस आधार पर पूरे राज्य में मुनादी कराई गई कि राज्य हित में अगर कोई उसके लिए तैयार होता है, तो उसके परिवारजनों को प्रचुर मात्रा में धन प्रदान किया जाएगा। राजीया इसके लिए तब सहर्ष ही तैयार हो गया। इसके बदले उसके परिवार को प्रचुर मात्रा में धन और जागीर प्रदान की गई।
विक्रम संवत 1515 की ज्येष्ठ सुदी ग्यारस और ईसवी सन के हिसाब से 13 मई 1459 ईस्वी में जोधपुर किले की नींव रखी गई थी।किले में जहां जीवित व्यक्ति को गाढ़ा गया, आज भी उसके ठीक ऊपर दुर्ग का खजाना तथा नक्कारखाने के भवन बने हुए हैं।
लगभग 125 मीटर ऊंचाई पर स्थित मेहरानगढ़ दुर्ग अपने उन्नत प्राचीर और विशाल बुर्जो से दूर से ही आकर्षित करता है। किले की सुदृढ़ प्राचीरो ने चारों ओर फैल कर 100 फीट लंबी तथा 750 फीट चौड़ी भूमि को घेर रखा है। किले की यह विशाल उन्नत प्राचीरे लगभग 20 से 120 फीट ऊंचाई की है। मोटाई इनकी 12 फीट से 70 फीट तक है। इनके मध्य  स्थान पर गोल और चौकोर बुर्ज बनी हुई है। किले की दीवारों के ऊपरी भाग पर तोपों के मोर्चे बने हुए है। किले की प्राचीर के नीचे दो छोटे तालाब ‘रानी तालाब’ और ‘गुलाब तालाब’ बने हुए है।कहते हैं किले की सुरक्षा के लिए तैनात सेना यहीं से पानी खींच कर प्राप्त करती थी।
मेहरानगढ़ दुर्ग में प्रवेश करने के लिए पहाड़ी के घुमावदार सर्पिलाकार मोड़ो के रास्ते से होकर जाना पड़ता है। किले के भीतर जाने के लिए प्रसिद्ध द्वार है -गोपाल पोल, भैरू पोल, जयपोल, डेढ़ कांग्ररे की पोल, इमरती दरवाजा, फतेहपोल,लोहा पोल और सूरज पोल। इनमें शहर से किले में जाने का मुख्य द्वार फतेहपोल है। 
कहते हैं इसे महाराजा अजीतसिंह ने मुगलों को हराने के उपलक्ष में बनवाया था। यहां से जब हम आगे जाते हैं तो दाईं तरफ महलों की विशाल ऊंचाई दिखाई देती है। थोड़ा आगे बढ़ते ही सामने आता है राव जोधा फालसा। कहते हैं यह कभी दुर्ग का पहला प्रवेश द्वार था। इससे आगे भीतर जाने का प्रवेश द्वार लोहा पोल है। यहां राजपूत नारियों की 31 हथेलियों के निशान अंकित है। जिन्होंने जोहर किया था।ऊपर आज जहां मेहरानगढ़ संग्रहालय है -वहां जाने का द्वार सूरजपोल है। यहीं पर थोड़ा आगे श्रृंगार चौकी बनी हुई है। इस चौकी पर ही पहले राजाओं का राज्याभिषेक हुआ करता था।
जो भी पर्यटक जोधपुर घूमने आते हैं वह मेहरानगढ़ किले को जरूर देखने जाते हैं। इसकी सुंदरता देखकर सैलानी अति प्रसन्न होते हैं। लाल पत्थरों से बना जोधपुर का यह दुर्ग स्थापत्य कला का विशिष्ट उदाहरण है। किले की संरचना इस कदर खूबसूरत है कि बार-बार इसके सौंदर्य को निहारने का सहसा ही मन करता है। किले के अंदर बने महल, उनके झरोखे, मेहराब, जालिया सभी कुछ में मानव शिल्पीओने अपनी संपूर्ण कला को उड़ेल दिया है। 
मेहरानगढ़ दुर्ग दो मंजिला है। शीश महल, सिली खाना अर्थात शस्त्रागार के साथ ही दौलत खाना, फूल महल जिसे कभी रंग महफिल कहा जाता था कि वास्तुकला अद्भुत है। अजीत विलास, तख्त विलास, सरदार विलास, दीपक महल और चंदन महल दुर्ग के स्थापत्य कला के बेमिसाल उदाहरण है। लाल पत्थरों से निर्मित यह सुंदर भवन मनमोहक व भव्य है। महलों का निर्माण अलग-अलग समय पर शासकों द्वारा करवाए जाने के कारण इनमें विभिन्न शैलियों का अद्भुत समावेश भी है। 
कांच और सोने से जड़ित छत के मोती महल में भित्ति चित्रकारी के नायाब नमूने देखे जा सकते हैं। इसे महाराजा सुर सिंह द्वारा बनवाया गया था। इसके साथ ही फूल महल का अंदरूनी सौंदर्य भी अत्यधिक आकृष्ट करता है। कभी दीवाने खास कहे जाने वाले इस महल की दीवारों पर सोने की पच्चीकारी का कार्य किया हुआ है। तख्त विलास दरअसल पहले शयनागार रहा है।इसमें ढोला मारु का चित्र सजीव सा प्रतीत होता है। इसी प्रकार महाराजा अजीतसिंह का बनाया फतेह महल भी अपनी बनावट में कलात्मकता लिए हुए हैं। जिसे मुगलों से युद्ध करने और उनसे विजय प्राप्त करने के स्मारक के रूप में बनाया गया था। 
इन सभी महलों की एक खास बात यह है कि इनकी जालिया,झरोखे, मेहराब सभी कुछ कलात्मकता लिए वास्तु तथा स्थापत्यकला में बेमिसाल है। यह किला दूर से देखने पर इतना सुंदर प्रतीत होता है, लगता है, मानो यह दूर से ही मौन आमंत्रण दे रहा है।