सिरोही रियासत का इतिहास व दर्शनीय स्थल(HISTORY OF SIROHI STATE AND MAIN TOURIST PLACES)

सिरोही रियासत का इतिहास व दर्शनीय स्थल।सिरोही की स्थापना का महोत्सव।

सिरोही जिले का परिचय:

सिरोही राजस्थान की देवनगरी के नाम से प्रसिद्ध शहर एवं जिला मुख्यालय है। रियासत काल में सिरोही एक स्वतंत्र राज्य था जिस पर चौहान वंश के देवड़ा शासकों का आधिपत्य था। राजस्थान के एकीकरण के समय सबसे अंत में 1 नवंबर 1956 को जुड़ने वाला राज्य सिरोही ही था।
अरावली पर्वतमाला के आसपास बसा हुआ यह राज्य वर्तमान में एक जिला मुख्यालय है एवं इस जिले में कुल 5 तहसीलें हैं। जो क्रमशः आबू रोड, पिंडवाड़ा, सिरोही, रेवदर एवं शिवगंज है। वर्तमान में यहां के सांसद श्री देवजी पटेल है एवं सिरोही विधानसभा के विधायक श्री संयम लोढ़ा है। सिरोही जिले की सीमा गुजरात राज्य के साथ मिलती है अतः यहां की भाषा गुजराती से मिलती जुलती है। सिरोही की सीमा उदयपुर,राजसमंद, पाली एवं जालौर जिले से मिलती है।

तहसील का नामपिन कोडलोकप्रिय शहरमानचित्र
पिंडवाड़ा307022पिंडवाड़ा, भावरीनक्शे में देखें
आबू रोड307026आबू रोड, माउंट आबू, संतपुरनक्शे में देखें
रेवदर307514रेवदरनक्शे में देखें
सिरोही307001सिरोही, गोयलीनक्शे में देखें
शिवगंज302027शिवगंजनक्शे में देखें


सिरोही की स्थापना का इतिहास:-

सिरोही .नगर की स्थापना आखातीज की बीज को गुरुवार के दिन १४२५ ई. में हुई थी। तब राजपूतों में आखातीज पर शिकार से वर्षभर का शकुन देखा जाता था। इसमें खरगोश का शिकार ही अनिवार्य था। महाराव सहस्त्रमल भी परंपरा कायम रखने के लिए दूज को सारणेश्वर मार्ग के बिजोला की ओर करीब ५०० घुड़सवार तथा २५ लाऊरी श्वानों के साथ रवाना हुए। राजा का कारवां गुजरने के दौरान नर खरगोश झाडिय़ों से निकला और आबू की ओर करीब एक किलोमीटर भागा। उसके पीछे सभी श्वान भी पड़े हुए थे। एक स्थान पर खरगोश आक्रमण की मुद्रा में खड़ा हो गया। उसके पास एक भी श्वान नहीं जा रहा था। घेरा बनाकर दूर से ही भौंकने लगे। महाराज सहस्त्रमल ऐसा देख हैरान हो गए और सरदार से पूछा कि अभी तो खरगोश जोर से भाग रहा था लेकिन अचानक ये क्या हुआ? इस पर सरदार ने कहा कि यह वीर भूमि है। यह अब शेर हो गया। इसके बाद राजा ने शिकार कर लिया और उस स्थान पर पेड़ गाड़ दिया। उसके बाद यहां पीले रंग का बड़ा पत्थर भी स्थापित किया। इस तरह सिरोही की नींव पड़ी।
इसलिए दिया नाम:

सिरोही की तलवारें विश्व प्रसिद्ध हैं। तलवार का पर्यायवाची सि-रोही यानी सिर काटने वाली, इसलिए इसका नाम सिरोही पड़ा।


सिरोही का प्रसिद्ध किला :- 
राव शिवभान को लुम्बा के छठे वंशज शोभा के नाम से जाना जाता था, उन्होंने अंततः चंद्रावती को छोड़ दिया और ‘सिरनवा’ पहाड़ी के नीचे एक शहर की स्थापना की और शीर्ष पर एक किला बनाया, वर्ष 1405 ईस्वी में नव स्थापित शहर को शिवपुरी कहा जाता था। राव शिवभान द्वारा स्थापित शहर उनके लिए उपयुक्त नहीं था, इसलिए, उनके बेटे राव सहसाल ने 1425 ईस्वी में इसे छोड़ दिया और वर्तमान शहर सिरोही का निर्माण किया और इसे राज्य की राजधानी बनाया। राव सहशमाल के शासनकाल के दौरान,  मेवाड़ के राणा कुम्भा  ने हमला किया और पिंडवाड़ा से सटे आबू, वसंतगढ़ और क्षेत्र पर विजय प्राप्त की। राणा कुंभा ने वसंतगढ़ में एक महल का भी जीर्णोद्धार किया । वर्ष 1452 ई में राव अचलेश्वर के तीर्थस्थल के पास कुंभेश्वर में एक टैंक और एक मंदिर भी बनाया। अबू पर कुतुबुद्दीन की मदद से गुजरात का राजा, जो कुंभा से भी मित्रता रखता था। लेकिन लाखा अपने क्षेत्र को वापस पाने में असफल रहा।


सिरोही के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थलों की जानकारी:- 

राजस्थान के सुंदरतम जिलों में से एक सिरोही है जो राजस्थान के दक्षिण में आया हुआ है जिसकी सीमा गुजरात राज्य से लगती है।

1. माउंट आबू:-

सिरोही जिले के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल में माउंट आबू जिसे राजस्थान का शीमला कहा जाता है।माउंट आबू एक प्रसिद्ध स्थल है वहां पर जैन धर्म का प्रसिद्ध देलवाड़ा जैन मंदिर स्थित है। जिसका निर्माण तेजपाल एवं वास्तु पाल ने करवाया था। दिलवाड़ा जैन मंदिर के साथ ही माउंट आबू में ब्रह्माकुमारी संस्थान का एक सुंदर पीस पार्क भी मौजूद है। एवं माउंट आबू में नक्की झील मौजूद है जिसका धार्मिक महत्व बहुत अधिक है।कहा जाता है कि इस झील का निर्माण नाखून से खोदकर एक रात्रि में किया गया था। माउंट आबू में अर्बुदा देवी का मंदिर भी स्थित है जो लोकप्रिय एवं दर्शनीय है। माउंट आबू पर स्थित राजस्थान की सबसे ऊंची चोटी गुरु शिखर मौजूद है जिसकी ऊंचाई समुद्र तल से 1722 मीटर है। माउंट आबू को अभयारण्य भी बनाया गया है जिसमें जंगली मुर्गे प्रसिद्ध है।सिरोही का जिला पशु भी जंगली मुर्गे को ही घोषित किया गया है । इस अभयारण्य में जंगली मुर्गे के साथ लगभग 10,000 से अधिक प्रकार की वनस्पतियां पाई जाती है एवं जंतुओं में मोर,भालू, जंगली मुर्गे, तेंदुए एवं सर्पो की कई प्रजातियां पाई जाती है।

2. सरस्वती मंदिर अजारी:-

राजस्थान के सिरोही जिले में पिंडवाड़ा तहसील में अजारी गांव के पर्वत पर सरस्वती माता का मंदिर स्थित है जो राजस्थान का एकमात्र सरस्वती मंदिर है। एवं इस मंदिर पर आकर प्रतिवर्ष भक्त सरस्वती माता की पूजा अर्चना करते हैं।मान्यता है कि यहां आकर पूजा करने  से सरस्वती माता प्रसन्न होकर वरदान देती है जिससे साधक अच्छी वाणी प्राप्त करता है। तारक मेहता का उल्टा चश्मा सीरियल के शैलेश लोढ़ा प्रतिवर्ष इस मंदिर में आते हैं एवं माता की पूजा अर्चना करते हैं प्रसिद्ध कवि एवं मोटिवेशनल स्पीकर शैलेश लोढ़ा का माता के प्रति अद्भुत लगाव है।

3. ब्रह्मा जी का मंदिर कालंद्री:-

राजस्थान का प्रसिद्ध ब्रह्मा मंदिर पुष्कर अजमेर में आया हुआ है किंतु सिरोही जिले में भी एक ब्रह्मा जी का मंदिर स्थित है। जो सिरोही जिला मुख्यालय से 18 किलोमीटर की दूरी पर कालंद्री ग्राम में आया हुआ है। यह मंदिर पुरोहित समाज का एक प्रधान मंदिर है एवं सिरोही जिले का एकमात्र ब्रह्मा मंदिर है। इस मंदिर में प्रति वर्ष मेले का आयोजन होता है एवं दूर-दूर से भक्त यहाँ दर्शन को आते हैं सिरोही जिले का यह एक प्रसिद्ध स्थल है।

4. सारणेश्वर महादेव मंदिर:-

सिरोही रियासत का इतिहास व दर्शनीय स्थल(HISTORY OF SIROHI STATE AND MAIN TOURIST PLACES)

सिरोही जिले के देवड़ा शासकों के कुलदेवता का प्रसिद्ध मंदिर सारणेश्वर महादेव मंदिर सिरोही शहर के पास में स्थित है। यह मंदिर पूरे जिले के लोगों की आस्था का केंद्र है एवं प्रतिवर्ष यहां पर मेले का आयोजन होता है।इस मंदिर का संबंध रेबारी समाज से भी  है।जिसे देवासी समाज भी कहा जाता है। रबारियों का सबसे मेला बड़ा मेला इस मंदिर पर ही भरता है। सारणेश्वर महादेव मंदिर का संबंध प्राचीन इतिहास में अलाउद्दीन खिलजी के आक्रमण से भी जोड़ा जाता है।
सारणेश्वर महादेव को सरनुया नाथ  भी कहा जाता है। वैसे सारणेश्वर महादेव मंदिर ग्राम पंचायत गोयली में पड़ता है। यह मंदिर वर्तमान में देवस्थान विभाग की संपदा है।

5. आम्बेश्वर महादेव मंदिर पालडी एम:-

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सिरोही जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर ग्राम पंचायत पालडी एम में पड़ता है यह मंदिर अरावली पर्वत माला पर स्थित है सड़क सड़क मार्ग से यह मंदिर नेशनल हाईवे पर स्थित है इस मंदिर में एक बार विशाल मेले का आयोजन भी किया गया था जिसे अर्थ कुंभ की संज्ञा दी गई थी। भगवान शिव-शंकर महादेव का यह मंदिर प्राकृतिक वातावरण एवं प्रकृति के सौंदर्य को प्रदर्शित करता हुआ दिखाई देता है। जहां मंदिर के पास ही अनवरत बहता हुआ जल है जो झरने के रूप में नीचे आता है मंदिर के पास ही मां गंगा का मंदिर भी प्रसिद्ध है।यह मंदिर समुद्र तल से लगभग 500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।मंदिर पर जाने के लिए लगभग 300 चिढिया चढ़नी पड़ती है एवं इस प्राकृतिक वातावरण में खूब सारे बंदर भी रहते हैं लोग यहां पर बंदरों को भोजन भी करवाते हैं एवं दर्शन करने के लिए सदैव आते हैं।

सिरोही रियासत का इतिहास व दर्शनीय स्थल(HISTORY OF SIROHI STATE AND MAIN TOURIST PLACES)

मंदिर के प्रधान पुजारी श्री राजू जी रावल ने बताया की भगवान महादेव से जो भी मन्नत मांगी जाती है वह सदैव पूरी होती है। इसलिए यहां लोग अपनी मन्नतें मनवाने के लिए दूर-दूर से आते हैं। इस मंदिर के प्रधान पुजारी पालडी एम गांव के रावल ब्राह्मण समाज के श्री इंद्र जी रावल है मंदिर की व्यवस्था पूर्ण रूप से इनके अधीन है।


6.गणकेश्वर महादेव मंदिर पालडी एम:-

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सिरोही जिला मुख्यालय  लगभग 16 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत पालडी एम का मुख्यालय स्थित है इस गांव की पहाड़ी पर अरावली पर्वतमाला का सबसे  प्राचीनतम शिव मंदिर गणकेश्वर महादेव मंदिर (Gankeshwar Mahadev Temple) स्थित है। यहां पर एक सुंदर कुण्ड भी मौजूद है जिसमें वर्षा ऋतु में झरने का जल गिरता है जो इस मंदिर की सुंदरता को और अधिक बढ़ा देता है। इस स्थान पर शिवरात्रि को बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।

7.मीरपुर मंदिर

मीरपुर का यह मंदिर भगवान पार्श्‍वनाथ जो कि 23वें जन र्तीथकर है, को समर्पित है। इस मन्दिर को 9वीं शताब्दी में राजपूत काल में बनवाया था। इस मन्दिर के बारे में कहा जाता हैं कि संगमरमर से बना हुआ यह मंदिर राजस्थान का सबसे पुराना स्मारक है। और अब वर्तमान में यह मंदिर अपने उसी रूप में बना हुआ है। जिसके नक्काशी और स्तंभ अपनी भारतीय पौराणिक मान्यताओं से अवगत कराते हैं।

8.पावापुरी मंदिर 

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पावापुरी तीर्थ सिरोही रोड स्टेशन से ४१ कि.मी. की दूरी पर है। आबु रोड स्टेशन से बस तथा टेक्सी की सुविधा है। अहमदाबाद – दिल्ली हाइवे नं. १४ पर यह तीर्थ है। आबु रोड रेल्वे स्टेशन से ५४ कि.मी. दूरी पर पावापुरी तीर्थ है। राजस्थान सिरोही जिले राजमार्ग पर नवनिर्मित तीर्थ है।

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लगभग ५०० बिघा जमीन पर बनाया हुआ तीर्थ इसमें मूलनायक श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ भगवान की चमत्कारी प्रतिमा विराजमान है तथा चार अधिष्ठायक देव-देवी विराजमान है। साधु-साध्वी वेयावच्च, जीवदया क्षेत्र एवं पशुऔ का कक्ष, आश्रम तथा गोशाला है। ५००० हजार से ज्यादा पशु गोशाला में है। यह तीर्थ मालगाम के धर्म प्रेमी दानदाता के.पी. संघवी परिवार द्वारा यह स्वद्रव्य से निर्माण किया है, जो देश-विदेश में प्रख्यात है। ठहरने की व्यवस्था यहां रहने के लिए तीन धर्मशाला तथा विशाल भोजनशाला तथा बड़े संघ को ठहरने के लिए सभी सुविधा है। आयंबील करने तथा साधु-साध्वीजी के लिए सुंदर उपाश्रय की व्यवस्था है।

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9. चेनजी बावसी की तपोस्थली गणेश आश्रम वाण

सिरोही जिला मुख्यालय से 27 किलोमीटर एवं शिवगंज तहसील मुख्यालय से 22 किलोमीटर की दूरी पर ग्राम पंचायत वाण का मुख्यालय है।

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यह ग्राम पंचायत सम्भवतः राजस्थान की सबसे छोटी ग्राम पंचायत है। इस गांव में कई सिद्ध पुरुषों ने तप किया है। अतः इस गांव को संतो की तपोस्थली के नाम से भी जाना जाता है। इस गांव में गणेश आश्रम स्थित है, जो भगवान गणेश जी का प्रसिद्ध मंदिर है। एवं यहां चेनजी महाराज की समाधि भी बनी हुई है। वर्तमान में इस स्थान पर इस आश्रम के महंत शक्ति श्री राजू गिरी जी महाराज बैठते हैं। एवं वही इस मंदिर एवं आश्रम का संचालन करते हैं। गांव वाण में ही पहाड़ी पर डोरी वेरी एवं भगवान वेधनाथ महादेव का प्रसिद्ध मंदिर भी स्थित है।


सिरोही रियासत का इतिहास व दर्शनीय स्थल(HISTORY OF SIROHI STATE AND MAIN TOURIST PLACES)


सिरोही स्थापना दिवस के उपलक्ष में दिनांक 30 अप्रैल 2022 को सिरोही में रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति एवं सिरोही के लोक लाडले विधायक श्रीमान संयम लोढ़ा के मुख्य आतिथ्य में कार्यक्रम की शुरुआत की गई एवं इस स्थापना दिवस समारोह पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया।

सिरोही रियासत का इतिहास व दर्शनीय स्थल(HISTORY OF SIROHI STATE AND MAIN TOURIST PLACES)

इस कार्यक्रम में सिरोही जिले के गणमान्य नागरिक मौजूद रहे एवं कार्यक्रम का पूरा आनंद लिया गया।

सिरोही विधायक श्रीमान संयम लोढ़ा के प्रयासों से बेहद ही खूबसूरत कार्यक्रमों का आगाज हुआ।

SANYAM LODHA JI MLA SIROHI

सिरोही स्थापना दिवस कार्यक्रम में सिरोही के विधायक श्रीमान संयम जी लोढा के साथ शिक्षक नेता पोसालिया निवासी श्री गोपाल सिंह जी राव का भी  सानिध्य रहा।

सिरोही स्थापना महोत्सव में अहिंसा सर्कल, सिरोही के मुख्य बाजार से अरविंद पैवेलियन तक विशाल शोभायात्रा  का आयोजन भी किया गया।

SANYAM LODHA JI MLA SIROHI

तलवार प्रदर्शनी, स्ट्रीट फ़ोटो गैलेरी, महिलाओं की प्रतियोगिता, पेन्टिग-स्कैच प्रतियोगिता में शिरकत की।कार्यक्रम में जिला कलक्टर डॉ भंवरलाल जी, जिला न्यायाधीश विक्रांत गुप्ता जी भी साथ रहे।

सिरोही राज्य का इतिहास 

सिरोही शहर दक्षिणी राजस्थान में एक जाना माना नाम है। सिरोही, सिरोही जिले का एक प्रशासनिक मुख्यालय है जिसमें पांच तहसीलें शामिल हैं- आबूरोडशिवगंजरेवदरपिंडवाड़ा और सिरोही। 

शहर ने अपना नाम पश्चिमी ढलान पर “सिरनवा” पहाड़ियों से विकसित किया है जहां यह स्थित है। कर्नल टॉड के अनुसारसिरोही नाम रेगिस्तान (रोही) के सिर (सर) से लिया गया थाजिन्होंने इसके बारे में अपनी पुस्तक “ट्रैवल्स इन वेस्टर्न इंडिया” में लिखा था। इसके नाम की उत्पत्ति के बारे में एक और कहानी यह है कि यह “तलवार” से ली गई है। 

सिरोही राज्य के शासक देवड़ा चौहान अपनी बहादुरी और प्रसिद्ध तलवारों के लिए प्रसिद्ध थे। 1405 मेंराव शोभा जी (जो चौहानों के देवड़ा कबीले के पूर्वज राव देवराज के वंश में छठे थे) ने सिरनवा पहाड़ी के पूर्वी ढलान पर एक शहर शिवपुरी की स्थापना कीजिसे खुबा कहा जाता है। पुराने शहर के अवशेष यहां पड़े हैं और वीरजी का एक पवित्र स्थान अभी भी स्थानीय लोगों के लिए पूजा स्थल है।   राव शोभा जी के पुत्र श्रेष्ठमल ने सिरनवा पहाड़ियों के पश्चिमी ढलान पर वर्तमान शहर सिरोही की स्थापना की थी। उन्होंने वर्ष 1482 (V.S.) यानी 1425 (A.D.) में वैशाख के दूसरे दिन (द्वितीय) सिरोही किले की आधारशिला रखी। देवड़ा के तहत इसे राजधानी और पूरे क्षेत्र के रूप में जाना जाता था जिसे बाद में सिरोही के नाम से जाना जाता था। पौराणिक परंपरा मेंइस क्षेत्र को “अर्बुध प्रदेश” और अरबंदाचल यानी अर्बुद + आंचल के रूप में संदर्भित किया गया है।  

स्वतंत्रता के बाद भारत की केंद्र सरकार और सिरोही राज्य के छोटे शासक के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। समझौते के अनुसारसिरोही राज्य का राज्य प्रशासन 5 जनवरी, 1949 से 25 जनवरी, 1950 तक बॉम्बे सरकार द्वारा लिया गया था। प्रेमा भाई पटेल बॉम्बे राज्य से पहले प्रशासक थे। 1950 में सिरोही का राजस्थान में विलय हो गया। 787 वर्ग किमी का क्षेत्रफल राज्य संगठन आयोग की सिफारिश के बाद 1 नवंबर, 1956 को सिरोही जिले के आबूरोड और देलवाड़ा तहसीलों का नाम बदलकर बॉम्बे राज्य कर दिया गया। यह जिले की वर्तमान स्थिति बनाता है। कर्नल मेलसन के रूप में “सिरोही” ने ठीक ही टिप्पणी की “राजपुताना में एक ऐसा डोमेन है जिसने मुगलोंराठौरों और मराठाओं की आधिपत्य को स्वीकार नहीं करते हुए अपनी स्वतंत्रता बनाए रखी”। 

सिरोही में रियासत उसी शाखाचौहान की एक शाखा हैजिसे भारत के अंतिम हिंदू सम्राट ने झुकाया था। ऐतिहासिक गौरव जनता के साथ-साथ व्यक्तियों से भी जुड़ा हैसही महसूस होने पर सम्मानजनक गौरव के लिए प्रेरित करता हैऔर यह किसी को भी नहीं हो सकता हैइसलिए चौहानों की विशेष सीट “शानदार जिद्दी देवड़ा” की तुलना में अधिक मजबूती से चिपके रहते हैंजिन्होंने सिरोही पर शासन किया था (पिछली छह शताब्दियां) सिरोही = सर + उही यानी सिरोही का अर्थ है “आत्म सम्मान सबसे महत्वपूर्ण है भले ही सिर अलग हो” इसकी महान पुरातनताएक समृद्ध विरासत और एक रोमांचक इतिहास है। पौराणिक परंपरा मेंइस क्षेत्र को हमेशा अर्बुदारण्य कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि ऋषि वशिष्ठ अपने पुत्रों को विश्वामित्र द्वारा मारे जाने के बाद माउंट आबू के दक्षिणी भाग में समाधीलिन हुए थे।  

कर्नल टॉड ने माउंट आबू को “हिंदुओं का ओलंपस” कहा क्योंकि यह पुराने दिनों में एक शक्तिशाली राज्य की सीट थी। मौर्य वंश ने आबू में चंद्र गुप्त के साम्राज्य का एक हिस्सा बनायाजिन्होंने ईसा पूर्व चौथी शताब्दी के प्रारंभ में शासन किया था। आबू का क्षेत्र क्रमिक रूप से क्षत्रपोंशाही गुप्तोंवैशा वंश के कब्जे से गुजराजिसके सम्राट हर्ष आभूषण थेचौरससोलंकी और परमार। परमारों के जालोर से चौहानों ने आबू में राज किया। जालोर में चौहान शासकों की छोटी शाखा में एक वंशज लुंबा ने वर्ष 1311 ईस्वी में परमार राजा से आबू को जब्त कर लिया और उस क्षेत्र का पहला राजा बन गया जिसे अब सिरोही के राज्य के रूप में जाना जाता है। 

बनास नदी के तट पर स्थित चंद्रावती का प्रसिद्ध शहरराज्य की राजधानी थी और लुंबा ने वहां अपना निवास स्थान लिया और 1320 ईस्वी तक शासन किया। राव शिवभान लोकप्रिय रूप से लुंबा के छठे वंश के शोभा के रूप में जाने जाते थेअंत में चंद्रावती को छोड़ दिया और सिरनवा‘ पहाड़ी के नीचे एक शहर की स्थापना की और शीर्ष पर एक किला बनाया, 1405 ईस्वी में नव स्थापित शहर को शिवपुरी कहा जाता था। लेकिन राव शिवभान द्वारा स्थापित शहर उनके लिए उपयुक्त नहीं थाइसलिएउनके बेटे राव सहस्मल ने 1425 ईस्वी में इसे छोड़ दिया और सिरोही के वर्तमान शहर का निर्माण किया और इसे राज्य की राजधानी बना दिया।राव सहस्मल  के शासनकाल के दौरानप्रसिद्ध राणा मेवाड़ के कुंभ ने आबूवसंतगढ़ और पिंडवाड़ा से सटे क्षेत्र पर हमला किया और विजय प्राप्त की। राणा कुंभा ने वसंतगढ़ में एक महल और वर्ष 1452 ईस्वी में अचलेश्वर के मंदिर के पास कुंभस्वामी में एक तालाब और एक मंदिर का जीर्णोद्धार किया।

सभी सिरोही वासियों को सिरोही स्थापना दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं



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