सकारात्मक सोच से सफल बने।The key factor of success is Positive Thinking।

सकारात्मक सोच
सकारात्मक सोच

सकारात्मक सोच से सफल बने।The key factor of success is Positive Thinking।

औजारों-हथियारों को ठीक तरह काम करने के लिए उनकी धार तेज रखने की आवश्यकता पड़ती है। इसके लिए उन्हें पत्थर पर रगड़ कर शान पर चढ़ाने की आवश्यकता पड़ती है। प्रतिभा भी यकायक परिष्कृत स्तर की नहीं बन जाती, इसके लिए हर रोज अपनी कमजोरियों से जूझना और संस्कारी आदर्शवादीता के अभीवर्धन का प्रयास निरंतर जारी रखना पड़ता है। हमें हमारे जीवन में सकारात्मक सोच के लिए कोई न कोई कारण निरंतर अपनाना पड़ता है।

 


रोज घर में बुहारी लगाने की, नहाने,कपड़े धोने की आवश्यकता पड़ती है। अपने गुण कर्म स्वभाव में कहीं ना कहीं से मलिनता घुस पड़ती है। उसका निराकरण करना नित्य ही आवश्यक होता है।मन में, स्वभाव में, पूर्व संचित  कुसंस्कारों व परिचितों के संपर्क से मात्र अनुचित ही पल्ले बंधता है।

उसका निराकरण अपने आप से जुड़े बिना, समझाने से लेकर धमकाने तक का प्रयोग करने के अतिरिक्त स्वच्छता, शालीनता बनाए बिना नहीं हो सकता। हमें उच्च आदर्शों को अपनाना होता है।उन्ही उच्च आदर्शों में एक है सकारात्मक सोच। जब तक हमारी सकारात्मक सोच नहीं होगी तब तक हमें मन वांछित परिणाम नहीं मिलते।

सकारात्मक सोचिए।Think Positive In Hindi।

पानी का गिलास आधा भरा हुआ सामने रखा है। सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति उसे आधे भरे के संतोष के साथ देखेगा।वह सोचेगा पूरा तो खाली नहीं है, कम से कम आधा तो भरा हुआ है। नकारात्मक सोच उसी गिलास को आधा खाली होने के कष्ट के साथ देखेगा।आधे का संतोष उसे दिखाई नहीं देगा। आधा खाली होने का दर्द उसे सताता रहेगा। वह आधे भरे के सुख से भी वंचित रह जाएगा। 

यदि आपको 10 हजार की हानि हो गई तो इसे यू भी सोचा जा सकता है,कि चलो अच्छा हुआ जो 20000 की हानि नहीं हुई। हमारा ध्यान दूसरे के सुख साधनों पर अधिक जाता है, किंतु ईश्वर प्रदत्त अपने भले सीमित साधनों पर नहीं जाता। अपनी एक टांग टूट जाने पर ईश्वर को धन्यवाद दे कि दोनों तो नहीं टूटी। उसने दो टांगे देकर एक ही तो ली है। दूसरी तो सलामत है। काम तो चल जाएगा।हानि में लाभ तलाशना सकारात्मक सोच है।

सदा अच्छा सोचे।Always think positive।सकारात्मक सोच|

सदा अच्छा सोचे।अच्छा सोचने के लिए आपका वातावरण और परिवेश भी अच्छा होना चाहिए।आपका अध्ययन, चिंतन व संपर्क माकूल हो, मित्रों को संख्या में कम व गुणों में अधिक रखें। मित्रता उससे रखें जिसकी मदद से आपके द्वारा अच्छे कार्य संपन्न हो सके। अच्छे मित्रों के बीच कभी संपन्नता-विपन्नता कि खाई नहीं बनती।

मित्रता स्थिर रखने हेतु मित्र से कभी हित नहीं साधे। दोनों के त्याग परस्पर एक दूसरे की इच्छा पूर्ति कर देते हैं। पति-पत्नी के रिश्ते, रस्मों से अधिक अच्छे मित्रों की भांति प्रगाढ़ता पा सके तो गृहस्थ जीवन अधिक सुखद हो सकता है। 

अच्छी पुस्तकों का अध्ययन करें।उनके द्वारा जीवन को जानने समझने वाले मार्गों पर चलने की प्रेरणा प्राप्त करें।आप जब अपने विवेक से अपनी क्षमताओं का बल आकोगे तो मंजिल की झलक आपको दिखने लग जाएगी। जिसने इस झलक को देख लिया, जान लिया, तो उसमें उसे पाने की तलब पैदा हो जाएगी।

यह तलब आपकी मुश्किलों को हल करते हुए कामयाबी की मंजिल तक जरूर पहुंचाएगी एवं जिसने उस झलक को अनदेखा किया उसका अवसर चला गया। फिर तो रेलगाड़ी चले जाने के बाद स्टेशन पर पहुंचने की बात बचती है।


अच्छे अवसर सदा नहीं आते बुजदिल व कमजोर लोग उसकी प्रतीक्षा करते रहते हैं। सिर्फ जागरूक व हिम्मत वाले लोग ही कामयाबी की गाड़ी में बैठे नजर आते हैं। आप स्टेशन नहीं जाओगे तो रेलगाड़ी आपके घर नहीं आएगी। तब सफलता क्यों आने लगी आपके समीप। आपको स्टेशन पर पहुंचने का श्रम तो करना ही पड़ेगा।


ईश्वर द्वारा पुरुषार्थ हेतु दिए गए साधनों का सदुपयोग नहीं करना उनकी अवहेलना करना है। प्रयास किए बिना कुछ लोग भाग्य से पाने की प्रतीक्षा ही करते रहते हैं, जबकि विवेकपूर्ण मार्ग निश्चित कर उस पर चल पडने वालों के सामने कामयाबी खड़ी मिलती है।


चमत्कार सदा नहीं होते तथापि इनकी अपेक्षा प्राय बहुतायत से होती है।आलसी और अकर्मण्यत व्यक्ति चमत्कार से पाने की प्रतीक्षा में कीमती समय गंवाते रहते हैं।ऐसे नाकारा लोगों पर आश्रित परिजन बड़ा दुख पाते वे। अंततोगत्वा फुटपाथो की संख्या बढ़ाते हैं। आप अपनी हैसियत से कमजोर को देखेंगे तो एक सुकून मिलेगा कि इनसे तो हम बेहतर है,मानो आपके जख्मों पर जरा सी मलहम लग गई हो।

मस्तिष्क और हृदय की दूरियां ही कष्ट है व नजदीकी राहत। नीचे देखने पर राहत का कारण मस्तिष्क और हृदय की दूरी भी कम होना है।उधर,आप अपनी हैसियत से ऊपर देखेंगे तो आपके मस्तिष्क और हृदय की दूरी बढ़ जाएगी व आपकी गर्दन भी दुखने लगेगी। चूंकि देर तक गर्दन ऊपर करके नहीं देखा जा सकता।

आप पूर्वाग्रह से ग्रसित न रहे,उनसे मुक्त होने का प्रयास करें। बार-बार पीछे नहीं देखे,क्योंकि  बार-बार पीछे देख कर आगे बढ़ने वाले को ठोकर लगा करती है। अतीत की मान्यताओं में देश, काल, परिस्थितिवश जिन संशोधनों की आवश्यकता हो,उन्हें अवश्य करना चाहिए और संशोधन हुए भी है- हजारों वर्षों से यह माना जा रहा था सूरज पृथ्वी के चक्कर लगाता है किंतु बाद में पता चला कि पृथ्वी सूरज के चक्कर लगाती है।आप सदैव महापुरुषों के जीवन के प्रेरणादायक प्रसंग को अपने हृदय में संजो कर रखें और अपनी चेतना को सुसुप्त होने से बचाएं।


अपनी गरीबी पर आंसू न बहाए। अपने पुरुषार्थ को जानें और गरीबी दूर भगाए। यदि आप में काम करने की प्रबल इच्छा है तो कोई काम आपको आपकी प्रतीक्षा करता जरूर नजर आएगा। काम करने वालों के लिए काम की कमी नहीं होती है।बेरोजगारी पुरुषार्थ के सामर्थ्य की अनभिज्ञता है।

कुछ भी मुफ्त में पाने की लालसा मत कीजिए।यहां मुफ्त में कुछ नहीं मिलता।आप दूसरों से जो भी चाहते हैं, पहले उसे देना सीखे। एक विचारक ने कहा है- हमारा व्यवहार ही हमें दूसरों के द्वारा लौटता है। सब दूसरों की मदद वह मुस्कान चाहते हैं किंतु स्वयं यह नहीं सोचते कि यही चीजें हम दूसरों को कितनी देते हैं? ऊपर से लोगों पर आक्षेप लगाकर जमाने को कोसा करते हैं।


सदैव प्रसन्नचित्त रहें।तनाव को पोषण नही दे। सामने आई समस्या का ठंडे दिमाग से समाधान निकालें। उस पर शीघ्र अमल करें। तनाव नहीं रहेगा। किसी काम को कल करने की प्रवृत्ति तनाव बढ़ाती है और कल पर छोड़े गए काम आज तक पूरे नहीं हुए। शांत मन से अपने को, अपने परिवेश को देखें।अपनी आवश्यक आवश्यकताओं को जाने।इतना भर पाने पर संतोष माने। अपने को परिवेश के अनुकूल डालें या अपने परिवेश को बदलने का प्रयास करें।घड़ी के पेंडुलम जैसी मन स्थिति हमें कहीं नहीं पहुंचने देती।

 

 
 

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