शीतलासप्तमी व्रत कथा, पूजा विधि, आरती & शुभ मुहूर्त Summary of Shitlasaptsmi And Ashtami

 

शीतलासप्तमी व्रत कथा, पूजा विधि, आरती & शुभ मुहूर्त Hindi  Summary

प्रिय पाठकों
नील ज्ञान सागर ब्लॉग की आज की अपनी पोस्ट में, मैं आपको शीतला माता की पूजन विधि, व्रत कथा,आरती व शुभ मुहूर्त के बारे में संक्षिप्त में बताने का प्रयास कर रहा हूं।उम्मीद है,यह जानकारी आपके ज्ञानवर्धन में उपयोगी साबित होगी:-

कौन है माता शीतला?

Sheetala saptmi 2022: शीतला माता (Maa Sheetala) साफ-सफाई, स्वच्छता और आरोग्य की देवी हैं। शीतला माता अपने हाथों में सूप, झाड़ू, नीम के पत्ते और कलश धारण करती हैं, जो कि स्वच्छता और रोग प्रतिरोधकता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है की शीतला माता की पूजा करने से परिवार के लोगों को रोग (Disease), दोष और बीमारियों से मुक्ति मिल जाती है। शीतलाष्टमी को कई इलाकों में बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है। आइए जानते है शीतला सप्तमी की तिथि, मुहूर्त, महत्व और पूजा विधि। यहाँ  आप शितलासप्तमी व्रत कथा, पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्त्व के बारे में पूरी जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

शीतला सप्तमी की व्रत कथा क्या है?  Sheetala Saptami Vrat Katha Hindi

एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया व उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा. उस दिन सभी को बासी भोजन ग्रहण करना था. इसलिये पहले दिन ही भोजन पका लिया गया था. लेकिन दोनों बहुओं को कुछ समय पहले ही संतान की प्राप्ति हुई थी कहीं बासी भोजन खाने से वे व उनकी संतान बिमार न हो जायें इसलिये बासी भोजन ग्रहण न कर अपनी सास के साथ माता की पूजा अर्चना के पश्चात पशओं के लिये बनाये गये भोजन के साथ अपने लिये भी रोट सेंक कर उनका चूरमा बनाकर खा लिया. जब सास ने बासी भोजन ग्रहण करने की कही तो काम का बहाना बनाकर टाल गई. उनके इस कृत्य से माता कुपित हो गई और उन दोनों के नवजात शिशु मृत मिले.

जब सास को पूरी कहानी पता चली तो उसने दोनों को घर से निकाल दिया. दोनों अपने शिशु के शवों को लिये जा रही थी कि एक बरगद के पास रूक विश्राम के लिये ठहर गई. वहीं पर ओरी व शीतला नामक दो बहनें भी थी जो अपने सर में पड़ी जूंओं से बहुत परेशान थी. दोनों बहुओं को उन पर दया आयी और उनकी मदद की सर से जूंए कम हुई तो उन्हें कुछ चैन मिला और बहुओं को आशीष दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जाये उन्होंने कहा कि हरी भरी गोद ही लुट गई है इस पर शीतला ने लताड़ लगाते हुए कहा कि पाप कर्म का दंड तो भुगतना ही पड़ेगा.

बहुओं ने पहचान लिया कि साक्षात माता हैं तो चरणों में पड़ गई और क्षमा याचना की, माता को भी उनके पश्चाताप करने पर दया आयी और उनके मृत बालक जीवित हो गये. तब दोनों खुशी-खुशी गांव लौट आयी. इस चमत्कार को देखकर सब हैरान रह गये. इसके बाद पूरा गांव माता को मानने लगा.

शीतला सप्तमी की पूजा विधि क्या है?

माता के प्रसाद के लिए एवं परिवार जनों के भोजन के लिए एक दिन पहले ही भोजन पकाया जाता है. माता को सफाई पसंद है, इसलिए सब कुछ साफ-सुथरा होना आवश्‍यक है. इस दिन प्रात: काल उठना चाहिए. स्नान करें. व्रत का संकल्प लेकर विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करें. पहले दिन बने हुए यानि बासी भोजन का भोग लगाएं. साथ ही शीतला सप्तमी-अष्टमी व्रत की कथा सुनें.

शीतला सप्तमी के दिन सुबह उठकर सबसे पहले स्नान कर साफ वस्त्र पहने.

शीतलाष्टमी के पूजन में साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें.

नारंगी रंग के कपड़े को शुभ माना जाता है.

शीतला मां की भोग वाली थाली में दही, पुआ, पूरी, बाजरा और मीठे चावल रखें.

मां को सबसे पहले रोली,अक्षत, मेहंदी और वस्त्र चढ़ाएं और ठंडे पानी से भरा लोटा मां को समर्पित करें.

शीतला मां को भोग लगाएं और आटे के दीपक से आरती उतारें.

पूजा के अंत में नीम के पेड़ पर जल चढ़ायें.

शीतला सप्तमी मुहूर्त 2022

हिंदू पंचाग के अनुसार  राजस्थान में यह त्योहार इस बार चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की सप्तमी/अष्टमी को मनाया जाएगा। इस साल ये तिथि 24 मार्च2022 को सप्तमी व 25 मार्च 2022 को अष्टमी  पड़ रही है. शीतलाष्टमी को बसौड़ा भी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन शीतला माता को बासी भोजन का ही भोग लगाया जाता है. एक दिन पहले घर की साफ-सफाई करके मां के भोग के लिए दही, पुआ, पूरी, बाजरा और मीठे चावल बनाए जाते हैं. भोग लगाने के बाद घर के सभी सदस्य बासी भोजन करते हैं. मान्यता है कि इस दिन घर में चूल्हा नहीं जलाना चाहिए.

शीतला सप्तमी का महत्व क्या है?

मां की पूजा करने से व्यक्ति के रोगों का समूल नाश हो जाता है। मां की पूजा बच्चों की दीर्घायु और आरोग्य के लिए की जाती है। मां शीतल की उपासना से व्यक्ति के जीवन में खुशहाली आती है। इनके कृपा से चेचक रोग से छुटकारा मिलता है।

शीतला माता का  स्त्रोत

वंदेऽहं शीतलां देवीं रासभस्थां दिगंबराम् ।

मार्जनीकलशोपेतां शूर्पालंकृतमस्तकाम् ॥

इसका अर्थ यह है कि शीतला माता हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाड़ू) और नीम के पत्ते धारण किए होती हैं. गर्दभ की सवारी किए हुए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं.

शीतला माता की आरती

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता,

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता। जय शीतला माता…

रतन सिंहासन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता,

ऋद्धि-सिद्धि चंवर ढुलावें, जगमग छवि छाता। जय शीतला माता…

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता,

वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता । जय शीतला माता…

इन्द्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा,

सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता। जय शीतला माता…

घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता,

करै भक्त जन आरति लखि लखि हरहाता। जय शीतला माता…

ब्रह्म रूप वरदानी तुही तीन काल ज्ञाता,

भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता। जय शीतला माता…

जो भी ध्यान लगावें प्रेम भक्ति लाता,

सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता। जय शीतला माता…

रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता,

कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता। जय शीतला माता…

बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता,

ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता। जय शीतला माता…

शीतल करती जननी तू ही है जग त्राता,

उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता। जय शीतला माता…

दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता,

भक्ति आपनी दीजे और न कुछ भाता।

जय शीतला माता…।

प्रिय पाठको मैं उम्मीद करता हूं कि आपको माता शीतला के बारे में संपूर्ण जानकारी देने की कोशिश की है जो आपको पसंद आएगी पाठकों के लिए आरती, पूजा विधि, व्रत कथा  आदि दी हुई है।यहाँ से आप व्रत कथा को पढ़कर माँ शीतला को प्रसन्न कर सकते है। माता शीतला हमारी रोगों से रक्षा करती है । पूरे परिवार को रोग मुक्त करने के लिए लोग माता शीतला की पूजा करते हैं। एवं राजस्थान के ग्रामीण अंचल में इस दिन मेले का आयोजन भी होता है ।इस पर्व को लोग बास्योड़ा के नाम से भी जानते हैं। इस दिन चूल्हा घर में नहीं जलाया जाता एवं बासी भोजन ही किया जाता है।

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