शास्त्र ज्ञान ने एक ब्राह्मण की रक्षा कैसे की?
neelgyansagar blog के प्यारे पाठको,
सादर वन्दन।
आज मैं आप लोगों को अत्यंत ही प्रेरणादायक कहानी सुनाने जा रहा हूं।यह कहानी एक ब्राह्मण देव की है। Main ummid Karta Hun Kahani padh kar aapko Apne Jivan Mein Prerna milegi।
तो कहानी की शुरुआत कुछ इस प्रकार है:- महाराज भोज के नगर में एक विद्वान ब्राह्मण रहते थे। वे स्वयं किसी से कुछ मांगने के लिए याचना नहीं करते थे। वे सदैव इमानदारी के पथ पर चलते थे, किंतु उनके पास लक्ष्मी की अत्यंत कमी थी ।अतः उन्हें अपने जीवन यापन में भी समस्या उत्पन्न हो रही थी। पर बिना मांगे उन्हें द्रव्य कहां से मिलता। दरिद्रता महा दुखदाई होती है। उससे व्याकुल होकर ब्राह्मण ने राजभवन में चोरी करने का निश्चय किया। वह रात्रि में राजभवन में पहुंचने में सफल हो गए। ब्राह्मण दरिद्र थे। दुखी थे। धन प्राप्ति के इच्छुक थे। और राजभवन में पहुंच गए। वहां सब सेवक-सेविका निश्चिंत होकर सो रहे थे।
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साभार-pexels |
स्वर्ण रत्न आदि बहुमूल्य पात्र इधर-उधर रखे हुए थे। ब्राह्मण चाहे तो उठा लेते। कोई रोकने वाला नहीं था। इतना होने पर भी एक रोकने वाला था और ब्राह्मण जैसे ही कोई वस्तु उठाने का विचार करते वह उन्हें उसी क्षण रोक देता था। वह था ब्राह्मण का शास्त्र ज्ञान। ब्राह्मण ने जैसे ही स्वर्ण राशि उठाने का संकल्प किया। बुद्धि में स्थित शास्त्र ने कहा स्वर्ण चोर नर्क गामी होता है। स्मृतिकार कहते हैं कि स्वर्ण की चोरी 5 महापापों में से एक है। वस्त्र,रत्न पात्र, अन्न आदि जो भी ब्राह्मण लेना चाहता उसी की चोरी को पाप बताने वाले शास्त्रीय वाक्य उनकी स्मृति में स्पष्ट होते। वह ठिठक जाते पूरी रात्रि बीत गई। सवेरा होने को आया। किंतु ब्राह्मण कुछ ले नहीं सके। सेवक जागने लगे। उनके द्वारा पकड़े जाने के भय से ब्राह्मण राजा भोज की शैया के नीचे ही छुप गए। नियमानुसार महाराज के जागरण के समय रानियां और दासिया सुसज्जित होकर जल की झारी तथा दूसरे उपकरण लेकर शैय्या के पास खडी हुई।
दरबारी वर्ग के लोग तथा परिवार के सदस्य प्रात कालीन अभिवादन करने द्वार पर एकत्रित हुए। सेवक समुदाय पंक्ति बद्ध प्रस्तुत हुए। उठते ही महाराज का स्वागत करने के लिए सजे हुए हाथी तथा घोड़े भी राज द्वार के बाहर प्रस्तुत किए गए। राजा भोज जागे और उन्होंने यह सब देखा। आनंद उल्लास में उनके मुख से एक श्लोक के तीन चरण निकले-
चेतोहरा युवतय: सुहृदयोनुकुलाः सद्वन्ध्वाह प्रणयगर्भरिच्छ भृतया:।
वलगंती दंति निव्हस्तरलास्तुरङ्ग:
इतना बोल कर महाराज रुक गए तो उनकी शैय्या के नीचे छिपे विद्वान ब्राह्मण से रहा नहीं गया। उन्होंने श्लोक का चौथा चरण पूरा कर दिया-
सम्मिलने नयन्योर्न ही किचचिंदस्ती।।
अर्थात नेत्र बंद हो जाने पर यह सब वैभव कुछ नहीं रहता। महाराज यह सुनकर चौके। उनकी आज्ञा से ब्राह्मण को शैय्या के नीचे से निकलना पड़ा। पूछने पर उन्होंने राजभवन में आने का कारण बतलाया। राजा भोज ने पूछा आपने चोरी क्यों नहीं कि? ब्राह्मण बोले राजन मेरा शास्त्र ज्ञान मुझे रोकता रहा। उसी ने मेरी रक्षा की। उसके उत्तर से प्रसन्न होकर राजा भोज ने ब्राह्मण को प्रचुर मात्रा में धन प्रदान किया और एक ब्राह्मण चोरी करने के महा अपराध से बच गए।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शास्त्र ज्ञान ही सर्वोत्तम धन है जो जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी साथ रहता है। शास्त्र ज्ञानी व्यक्ति कभी अधर्म का मार्ग नहीं अपना सकता। वह सदैव धर्म के रास्ते पर चलकर धर्म की ध्वजा को ऊपर उठाने का कार्य ही करता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि वह धर्म की रक्षा करता है अतः धर्म सदैव उसकी रक्षा करता है।
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