वृक्षारोपण एक पुण्य कार्य(Plantation is our basic duty)
हिंदू धर्म और संस्कृति में जो स्थान विद्या, व्रत, ब्रह्मचर्य, ब्राह्मण, गाय, देव ,मंदिर ,गंगा, गायत्री एवं गीता ,रामायण आदि धर्म ग्रंथ- इन सबको दिया गया है,वैसा ही वृक्षों को भी महत्व दिया गया है ।यह महत्व उन्हें उनके द्वारा प्राप्त होने वाले लाभो को देखते हुए दिया गया है। परमपिता परमात्मा ने सूर्य, चंद्रमा, बादल ,वृक्ष, नदि,गाय और सज्जन पुरुषों को इस संसार में परोपकार करने के लिए ही भेजा है।
यह सभी सदैव परोपकार के कार्य में ही लगे रहते हैं और यह स्पष्ट है कि एक सज्जन पुरुष और वृक्ष में गुणों की दृष्टि से कोई भेद नहीं है ।जिस प्रकार सज्जन व्यक्ति समाज के हित और कल्याण में तत्पर रहते हैं, वृक्ष भी उसी तरह का लक्ष्य बनाकर प्राणी मात्र के हित में अपने आप को तिल- तिल कर उत्सर्ग करते रहते हैं।वृक्ष में देवत्व की प्रतिष्ठा स्वीकार करते हुए गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि संपूर्ण वृक्षों में, मैं पीपल वृक्ष हूं। उपरोक्त कथन में जहां भगवान कृष्ण ने अपने आप को पीपल वृक्ष के समान घोषित किया है वहां उनके कथन से यह सिद्ध हो जाता है कि वृक्ष देव, ऋषियों ,सिद्धो,और गंधर्वो के समकक्ष प्रतिष्ठित होते हैं। संसार में यदि कल्याणकारी, परोपकारी ,समदर्शी फलदाई और वरदाई व्यक्तियों, देवो, या गंधर्वो को प्रतिष्ठा दी जाए तो वृक्ष उनमें सबसे पहले आते हैं। इन्हीं बातों पर पूरी तरह विचार करने के बाद भारतीय मनीषियों ने वृक्षारोपण और वृक्ष की प्रतिष्ठा को महान पुण्य माना है। और उनसे अनेक प्रकार के वरदान मिलने की बात कही है ।हमारे धर्म ग्रंथों में ऐसे अनेक उदाहरण विद्यमान है विष्णु स्मृति में कहा गया है कि जो मनुष्य वृक्षों का रोपण करता है ,वे वृक्ष परलोक में उसके पुत्र होकर जन्म लेते हैं। वृक्षों का दान करने वाला वृक्षों के पुष्पों द्वारा देवताओं को प्रसन्न करता है ।और मेघ के बरसने पर छाता के द्वारा अभ्यागतो को तथा जल से पितरों को प्रसन्न करता है। पुष्पों का दान करने से समृद्धिशाली होता है ।कुआं, उद्यान, तालाब और देव मंदिर का पुनः संस्कार अर्थात जीर्णोद्धार कराने वाला व्यक्ति मौलिक फल प्राप्त करता है अर्थात उनके नूतन निर्माण कराने के समान ही पुण्य फल पाता है। उसके विपरीत जो वृक्षों को नष्ट करते या काटते हैं उनकी निंदा ऋग्वेद में भी की गई है जिस प्रकार दुष्ट बाज पक्षी दूसरे पखेरू की गर्दन मरोड़ कर उन्हें दुख देता है और मार डालता है, तुम वैसे ना बनो और इन वृक्षों को दुख ना दो। उनको काटो मत ,यह पशु -पक्षी और जीव-जंतुओं को शरण देते हैं। हमें भी उन ऋषियों के आदर्शों का पालन करना है ,उनकी आज्ञा का पालन करने से इस प्रकृति की सुंदरता बनी रहेगी ।
तुलसीदास जी ने रामराज्य के सुखों का वर्णन करते हुए लिखा है कि उस समय जंगलों में वृक्ष खूब फल देते थे। वृक्ष और लताएं मनोवांछित फल देते थे। अर्थात हम कह सकते हैं कि हिंदू धर्म में वृक्षों का स्थान बहुत ही ऊंचा वह पूजनीय है। उस समय वृक्षों को अधिक मात्रा में लगाते थे । वृक्षों के प्रति प्रजा में आदर का भाव रहता था यही कारण है कि उस समय की प्रकृति भी संतुलित थी। समय पर वर्षा होती थी। नदिया बराबर बहती रहती थी। समुद्र अपनी मर्यादा में रहता था। इन सब सुविधाओं के पीछे वृक्षो और वनस्पतियों का बड़ा हाथ था ।और हमें इसका आनायास ही लाभ इसलिए मिल जाता था कि हम उन आदेशों का भली-भांति पालन करते थे।जो मानवीय जीवन की सुव्यवस्था के लिए उपयोगी और आवश्यक था। अब जबकि उनके आदेशो की अवज्ञा हो रही है ,और उसके सामूहिक दुष्परिणाम भी हमारे सामने हैं। हमारे जीवन का हर क्षेत्र कष्ट और कठिनाइयों से घिर चुका है। पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले रूसी अंतरिक्ष यात्री यूरी गागरिन सद्भावना यात्रा पर आए तो पत्रकारों ने उनसे अंतरिक्ष यात्रा के बारे में पूछा, यूरी गागरिन ने बताया संभवतः पृथ्वी ही समस्त खगोल में एक ऐसा ग्रह है ।इससे सुंदर और कोई दूसरा ग्रह नहीं इसका कारण उन्होंने इसकी प्राकृतिक सुषमा व हरितिमा बताया। अगर वृक्ष ना होते तो धरती भी एक उजड़ी एवं वीरान जैसी स्थिति में होती।तब अंतरिक्ष वासियों को तो क्या धरती वालों को भी यहां किसी सौंदर्य के दर्शन नहीं होते।यहां सर्वत्र उदासी सी दिखाई देती और उसका प्रभाव लोगों की मानसिक स्थिति पर भी पड़ता । हम देखते हैं फाल्गुन महीने में जब पतझड़ हो जाता है और वृक्षों के केवल ठूँठ रह जाते हैं, तो न जाने कैसी आत्मिक आकुलता उत्पन्न हो जाती है।
मनुष्य की आत्मा में दुख की अनुभूति होती है।वही दूसरी ओर सावन महीने में आंतरिक उल्लास, प्रगाढ़ प्रेम भावनाएं,प्रसन्नता, सरसता आदि के उदगार अपने आप उमड़ने लगते हैं ।क्योंकि उन दिनों प्रकृति सर्वत्र हरी-भरी जान पड़ती है। उसी के प्रभाव स्वरूप इस प्रकार की सरस भावना जागृत होती है ।
अतः हम कह सकते हैं इस पृथ्वी की सुंदरता को बनाए रखने के लिए हमें वृक्षारोपण पर अधिक जोर देना है। सार्वजनिक स्थानों पर वृक्षारोपण किया जाना चाहिए और केवल वृक्ष लगाने मात्र से ही काम नहीं हो जाएगा, उन वृक्षों को समय-समय पर पानी व खाद भी पर्याप्त मात्रा में ध्यान रख कर देना है। अगर ऐसा प्रत्येक प्राणी करने लगेगा तो यह जो कार्बन उत्सर्जन की समस्या से विश्व पीड़ित है ,अनेक रोगों ने मानव जाति को घेर रखा है ।इससे छुटकारा पा सकते है।
“रेगिस्तान में पेड़ नहीं होते ऐसा कहा जाता है। वस्तुतः कहना यह चाहिए कि जहां पेड़ नहीं होते वहां रेगिस्तान होता है।” जैसा भारत के विद्वानों ने वृक्षों को लगाना अनिवार्य बतलाया है।उसी प्रकार रोम, बेबीलोन तथा फारस के विद्वानों ने भी वर्षा के लिए वनों के संरक्षण को शासन का प्रमुख उत्तरदायित्व बताया है। और अपने देश की सरकारों को इस बात के लिए बाध्य किया कि राष्ट्र की समृद्धि के लिए वृक्षारोपण एवं वन संरक्षण को प्रमुख राजकीय उत्तरदायित्व समझा जाए।