वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय। INTRODUCTION OF MAHARANA PRATAP IN HINDI

Table of Contents

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय। INTRODUCTION OF MAHARANA PRATAP IN HINDI

मेवाड़ी सरदार महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास में अजर अमर है।कहा जाता है कि राजपूताने में महाराणा प्रताप न होते तो संभवत हिंदू धर्म को बचाए रखना मुश्किल हो जाता। अकबर के बढ़ते साम्राज्य को रोकने में अहम भूमिका महाराणा प्रताप ने निभाई थी। महाराणा प्रताप का संक्षिप्त जीवन परिचय इस ब्लॉग पोस्ट में,मैं आप लोगों तक पहुंचा रहा हूं।उम्मीद करता हूं इस जानकारी को पढ़कर आप अपना ज्ञानवर्धन करेंगे।

“हूँ भूख मरूं‚ हूँ प्यास मरूं‚ मेवाड़ धरा आजाद रह्वै।
हूँ घोर उजाड़ां मैं भटकूँ‚ पण मन में माँ री याद रह्वै।।”
                                             – महाराणा प्रताप
नाम – कुँवर प्रताप जी (श्री महाराणा प्रताप सिंह जी)
जन्म – 9 मई, 1540 ई.
जन्म भूमि – कुम्भलगढ़, राजस्थान
पुण्य तिथि – 29 जनवरी, 1597 ई.
पिता – श्री महाराणा उदयसिंह जी
माता – राणी जयवन्ता कँवर जी
राज्य – मेवाड़
शासन काल – 1568–1597ई.
शासन अवधि – 29 वर्ष
वंश – सुर्यवंश
राजवंश – सिसोदिया
राजघराना – राजपूताना
धार्मिक मान्यता – हिंदू धर्म
युद्ध – हल्दीघाटी का युद्ध
राजधानी – उदयपुर
पूर्वाधिकारी – महाराणा उदयसिंह
उत्तराधिकारी – राणा अमर सिंह
बचपन का नाम -कीका
राज्याभिषेक- गोगुंदा में

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय। INTRODUCTION OF MAHARANA PRATAP IN HINDI

अन्य जानकारी –

महाराणा प्रताप सिंह जी के पास एक सबसे प्रिय घोड़ा था, जिसका नाम ‘चेतक‘ था। राजपूत शिरोमणि महाराणा प्रतापसिंह   उदयपुर,   मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे। वह तिथि धन्य  है, जब मेवाड़ की शौर्य-भूमि पर मेवाड़-मुकुटमणि राणा प्रताप का जन्म हुआ।  महाराणा का नाम इतिहास में वीरता और दृढ़ प्रण के लिये अमर है। महाराणा प्रताप की जयंती विक्रमी सम्वत् कॅलण्डर के अनुसार प्रतिवर्ष ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष तृतीया को मनाई जाती है।

महाराणा प्रताप के बचपन का नाम क्या था?

महाराणा प्रताप का बाल्य जीवन अपने पिता के साथ मेवाड़ के पर्वतीय एवं वन्य प्रदेश में निवास करने वाली वनवासी बस्तियों में बिता।वह इन वनवासी लोगो में कीका के नाम से लोकप्रिय थे।

महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक

कुंवर प्रताप, उदय सिंह के सबसे बड़े पुत्र थे। इनका जन्म 9 मई 1540 ईस्वी को हुआ। इनकी माता पाली के अखेराज सोनगरा चौहान की पुत्री जयवंताबाई थी। महाराणा उदय सिंह ने अपनी प्रिय भटियानी रानी के कहने पर उसके पुत्र जगमाल को मेवाड़ का राजा  बनाया। जबकि मेवाड़ के सरदार महाराणा प्रताप को मेवाड़ का शासक बनाना चाहते थे। इसलिए गोगुंदा में 32 वर्षीय प्रताप का मेवाड़ी सामंतों, सरदारों ने राज्याभिषेक कर दिया। प्रताप मेवाड़ के महाराणा प्रताप बन गए,और जगमाल रूठ कर अकबर की शरण में चला गया। राणा प्रताप ने 28 फरवरी 1572 को गोगुंदा में राज्य अभिषेक होने के पश्चात कुंभलनेर जाकर मेवाड़ का सिंहासन ग्रहण किया। महाराणा प्रताप ने राज्य सिंहासन ग्रहण करते ही शपथ ली कि जब तक वह चित्तौड़ को मुगलों से स्वतंत्र नहीं कर लेगा तब तक न तो थाली में रोटी खाएगा और न हीं बिस्तर पर लेटेगा। राणा ने आजीवन इस शपथ का पालन किया।

शासन ग्रहण करते समय महाराणा प्रताप के सामने कौन सी समस्याए थी?

  • मुगल शासक अकबर मेवाड़ पर नजरें गड़ाए हुए बैठा था। उसकी इस राज्य पर अधिकार करने की तीव्र अभिलाषा थी। उससे मेवाड़ की रक्षा करना महाराणा का प्रमुख कार्य था।
  • दीर्घकालीन युद्ध के कारण मेवाड़ की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो चुकी थी, उसे ठीक करना अत्यंत आवश्यक था।
  • चित्तौड़, मांडलगढ़, बदनौर, बागोर, जहाजपुर और रायला आदि परगनो पर मुगलों का अधिकार था। उनको इन क्षेत्रों से खदेड़ कर वापस अपना साम्राज्य जमाना था।
  • मेवाड़ की सैन्य शक्ति कमजोर पड़ चुकी थी, क्योंकि अनेक मेवाड़ी सरदार विभिन्न युद्धों में मारे गए थे, तथा इस कमजोर स्थिति को पुनः ठीक कर मेवाड़ को शक्तिशाली राज्य बनाना था।

इस प्रकार उपरोक्त समस्याओं के निवारण हेतु राणा प्रताप के सामने  दो ही रास्ते थे। प्रथम- अपनी स्वतंत्रता बनाए रखने के लिए युद्ध स्तर पर सभी प्रकार की तैयारियों में जुट जाए। द्वितीय- अकबर की अधीनता स्वीकार कर ले। 

राणा प्रताप ने सिसोदिया वंश की प्रतिष्ठा के अनुकूल एवं प्रगाढ़ स्वतंत्रता  प्रेम ने चाहे कठिन ही क्यों न हो?  प्रथम मार्ग का चुनाव किया। तत्पश्चात प्रताप ने आत्मविश्वास के साथ मेवाड़ के स्वामी भक्त सरदारों तथा वनवासी भीलो की सहायता से शक्तिशाली सेना का संगठन किया तथा उसने अपनी राजधानी गोगुंदा से कुंभलगढ़ स्थानांतरित की।

महाराणा प्रताप के आदर्श जीवन से मेवाड़ी जनता में जन जागरण

कुंभलगढ़ में आने के पश्चात महाराणा प्रताप ने सर्वप्रथम मेवाड़ क्षेत्र में सभी गांवों, बस्तियों में व्यापक जन जागरण का कार्य किया था। क्योंकि मुगल आक्रमणकारियों ने इस क्षेत्र में जिस प्रकार की तबाही मचाई थी, उससे यहां के निवासियों की आंखें पथरा गई थी। उनमें निराशा, हताशा गहरे पैठ कर गई थी। ऐसा अनायास ही नहीं हुआ था।  उदय सिंह के शासनकाल में 1568 ईसवी में अकबर ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लेने के पश्चात अपनी सेना को आदेश दिया था, कि वह मेवाड़ में इस प्रकार तबाही मचा दे कि लोग फिर कभी उठकर खड़े ही ना हो सके। परिणाम स्वरुप निर्दोष जनता को बेरहमी से क़त्ल किया गया। आसपास के नगरों और गांवों को जलाकर राख कर दिया गया। मुगल सेना ने स्त्री और बच्चों को भी नहीं छोड़ा। इस दृश्य को देखने वालों की मानसिकता का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। वह जिंदा लाश बन चुके थे। अतः अब इनसे शेष रहे नागरिकों को ही उठ खड़ा होने के लिए राणा का यह जन जागरण अभियान था। मुगलों से सफलता प्राप्त करना ही राणा जन सामान्य को अपने जीवन का एकमात्र लक्ष्य बता रहे थे, तथा अपनी प्रतिज्ञा का पालन करते हुए कठोर जीवन भी जी रहे थे। राणा के व्यक्तिगत आदर्श जीवन से मेवाड़ की जनता अभिभूत होती जा रही थी, और उनके साथ जुड़ती जा रही थी। राणा प्रताप के द्वारा स्वतंत्रता प्राप्ति हेतु किए गए जन जागरण अभियान से मेवाड़ की जनता में जीने की ललक उत्पन्न हुई, तथा एक नवीन उत्साह एवं साहस का संचार हुआ। वे सब महाराणा प्रताप के नेतृत्व में अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए उठ खड़े हुए और संगठित होने लगे।

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय। INTRODUCTION OF MAHARANA PRATAP IN HINDI

महाराणा प्रताप के जीवन का मूल्यांकन

महाराणा स्वतंत्रता की अमर ज्योति को प्रज्ज्वलित करने वाले महान शासक थे। उनकी मृत्यु के साथ राजपूत शासकों के इतिहास का एक अध्याय समाप्त हो गया। हल्दीघाटी के युद्ध के पश्चात उन्हें अधिकांश समय पहाड़ियों में बिताना पड़ाथा। सम्मुख युद्ध के स्थान पर छापामार पद्धति से युद्ध करते हुए उन्होंने अकबर की मुगल सेना को खूब छकाया। पर्वतीय क्षेत्र में रहने वाले वनवासियों के सहयोग से उन्होंने तत्कालीन भारत के विशाल साम्राज्य की सेना एवं सेनानायकों को कभी भी सफल नहीं होने दिया, उल्टे उन्हें अपने प्राणों की रक्षा के लिए हमेशा चिंतित रहना पड़ा,और कई सेनानायकों को प्राण गंवाने पड़े। यह सही है,कि पर्वतीय क्षेत्र में रहने के कारण महाराणा एवं उनके परिवार को भी कष्ट उठाने पड़े थे, लेकिन उन्होंने अपनी स्वतंत्रता की कीमत सर्वाधिक ऊंची आंकी थी। जिसकी रक्षा के लिए उन्होंने अपने प्राणों को भी महत्व नहीं दिया, और ये पर्वतीय क्षेत्र तो उनके लिए कर्मभूमि स्वरूप बन गए थे। यही उनकी रक्षा हुई और यही के निवासियों ने मुगल सेना को भी टक्कर दी। राणा के आत्मविश्वास व दृढता जैसे गुणों ने अकबर को 20 वर्षों से भी अधिक समय तक व्याकुल बनाए रखा। राणा की स्वाधीनता अकबर को शूल की तरह चुभती रही और अपने सभी सेनापतियों को बारी-बारी तथा एक साथ भेज कर भी वह महाराणा प्रताप का कुछ भी नहीं बिगाड़ सका। 

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय। INTRODUCTION OF MAHARANA PRATAP IN HINDI

महाराणा प्रताप महान व्यक्ति थे। उनके जीवन पद्धति से लोगों में उनके प्रति श्रद्धा और भक्ति उत्पन्न हुई थी। प्रताप के स्वाभाविक गुणों सादाजीवन, अदम्य साहस, परिश्रम,उदारता एवं दयालुता ने उन्हें सभी का सम्मानीय एवं पूजनीय बना दिया। स्वयं अकबर जो उन्हें अपना कट्टर शत्रु मानता था वह भी उनके गुणों का कायल था। जब अकबर के दरबार में प्रताप के देहावसान का समाचार दिया गया तो वह स्तब्ध रह गया और प्रताप के गुणों का स्मरण करते हुए उसकी आंखों में आंसू निकल आए। राणा प्रताप की मृत्यु ने अकबर के हृदय को हिला दिया। यह महाराणा प्रताप की पूर्ण विजय थी। ऐसी विजय का उदाहरण अन्यत्र दुर्लभ है। डॉ. ओझा लिखते हैं,कि प्रातः स्मरणीय,  हिंदू वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप सिंह का नाम राजपूताने के इतिहास में सबसे अधिक महत्वपूर्ण और गौरवपूर्ण है। वह स्वदेशाभिमानी,स्वतंत्रता के पुजारी, स्वार्थ त्यागी,नीतिज्ञ, दृढ़ प्रतिज्ञ,सच्चे वीर और उदार क्षत्रिय तथा कवि थे।

महाराणा प्रताप जयंती ज्येष्ठ शुक्ल तृतीया। MAHARANA PRATAP JAYANTI IN HINDI

सिसोदिया वंश के गौरव भारत के महान सपूत राणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 विक्रम संवत 1597 ज्येष्ठ सुदी 3, रविवार को कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था।
उनके पिता महाराणा उदयसिंह भी महान योद्धा थे। महाराणा उदय सिंह की जीवन रक्षा पन्नाधाय की कथा से जुड़ी है, जो इस प्रकार है:-
उदय सिंह के पिता की मृत्यु के पश्चात उनके भाई विक्रमादित्य ने गद्दी संभाली।बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी और महाराजा रतन सिंह की एकमात्र जीवित उत्तराधिकारी पुत्र उदय सिंह का वध करने के लिए निकल पड़ा। उस समय पन्नाधाय उदय सिंह की देखभाल करती थी। पन्ना का अपना बेटा भी उदय सिंह की ही उम्र का था। जिसका नाम चंदन था। इस अवसर पर महल में शोर मचा और पन्ना को पता लगा कि बनवीर उदय सिंह का वध करने के लिए नंगी तलवार हाथ में लिए आ रहा है, तो उसने उदय सिंह को महल में गुप्त स्थान पर छुपा दिया। जब बनवीर ने महल के अंदर आकर उदय सिंह के बारे में पूछा, तो पन्नाधाय ने अपने बेटे की ओर संकेत कर दिया।
 
पन्नाधाय का बेटा उस समय सो रहा था। बनवीर ने उसे उदय सिंह समझ कर उसका वध कर दिया। अगले दिन पन्नाधाय फलों की टोकरी में उदय सिंह को छुपाया और उसे लेकर कुंभलगढ़ पहुंच गई। कुंभलगढ़ में आशा शाह को उदय सिंह को सौंप कर वापस चली आई। उस समय उनकी आयु 6 वर्ष थी। बड़ा होने के बाद उदय सिंह ने चित्तौड़गढ़ जीत लिया। बनवीर को सत्ता से हटाने में अनेक राजपूत सरदारों ने भी उनका साथ दिया।चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़,मांडलगढ़ आदि अन्य महत्वपूर्ण दुर्गों पर अधिकार जमा लिया। इस प्रकार लगभग पूरे मेवाड़ पर महाराणा का एकछत्र राज्य हो गया। 
इन्हीं दिनों महाराणा प्रताप का जन्म हुआ। उस समय राजपूत राजाओं के बीच महाराणा उदयसिंह एक सम्मानित राजा थे। चित्तौड़गढ़ राजपूतों की गतिविधियों का केंद्र था।राणा प्रताप सिंह बचपन से ही बहुत साहसी और निडर थे।बच्चों के साथ खेल-खेल में ही दल बना लेते थे,और ढाल-तलवार के साथ युद्ध करने का अभ्यास किया करते थे।अपने लड़ाकू तेवर और अस्त्र-शस्त्र संचालन में निपुणता के कारण शिक्षाकाल में ही मित्रों के बीच भी लोकप्रिय हो गए थे। उनमें नेतृत्व के गुण इसी अवस्था में उजागर होने लगे थे।
राणा प्रताप युवा हो चुके थे और भाला तथा अस्त्र-शस्त्र चलाने में पूरी निपुणता प्राप्त कर चुके थे। 28 फरवरी 1572 को राणा उदयसिंह की मृत्यु हो गई। उसी समय राणा प्रताप का राजतिलक गोगुंदा में हुआ।
राणा प्रताप ऐसे राणा हुए जिन में देश प्रेम की अटूट भावना थी। उस समय दिल्ली पर अकबर का शासन था।उसके पास धन-धान्य की कमी नहीं थी एवं उसके पास असंख्य सैनिक भी थे, तो भी राणा प्रताप ने मुगल सेना से अंतिम क्षण तक लोहा लिया। उनके स्मरण से ही वीरत्व की याद आ जाती है। उन्होंने अपनी जन्मभूमि मेवाड़ की स्वाधीनता के लिए अनेक आपत्तियों का सामना किया। राज सिंहासन पर बैठते ही राणा प्रताप ने शपथ ली थी, कि –जब तक वे चित्तौड़ पर अपना केसरिया झंडा न फेहरा लेंगे तब तक सोने चांदी के पात्रों का उपयोग नहीं करेंगे,पत्तों पर ही खाएंगे, पुआल के बिछोने पर सोएंगे तथा दाढ़ी मूछ नहीं तराशेंगे। 
चित्तौड़ पर मुगलों का अधिकार हो गया था। राणा ने अपना समस्त जीवन प्रण पालन में लगा दिया। राणा प्रताप के संकेत पर स्वाभिमानी स्वदेशरागी वीर राजपूत राज महल छोड़कर झोपड़ियों में आ बसे और पहाड़ों पर विषम संकट झेलते हुए स्वाधीनता प्राप्ति के उद्योग में संलग्न हो गए। जयपुर, जोधपुर, बीकानेर तथा अन्य राज्यों के राजपूत राजाओं ने सम्राट अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली थी। प्रताप ने ऐसे विकट समय में मेवाड़ के सिंहासन पर बैठकर देश के समस्त राजपूत राजाओं के सामने एक मिसाल पेश की थी, अकबर की अधीनता स्वीकार न करके। 
महाराणा प्रताप ने डटकर मुगलों से टक्कर ली। प्रताप का पहला कार्य राज्य की सुव्यवस्था करना था। उस समय कुंभलगढ़ का किला राजधानी का काम कर रहा था। राणा ने उसे सुरक्षित रखने के लिए कई प्रयत्न किए, अन्य दुर्गों का भी जीर्णोद्धार करवाया। मेवाड़ के जो प्रांत राणा के हाथ से निकल गए थे, उन्हें शत्रु के लिए निकम्मा बनाने की चेष्टा की गई। उन्हें कुछ सफलता प्राप्त हुई। यह आज्ञा प्रसारित कर दी गई थी कि- चित्तौड़ के नीचे के मैदान में कोई खेती न करें, कोई ग्वाला जानवरों को न चराये और कोई गृहस्थ दिया न जलाए। इस प्रदेश को बिल्कुल उजाड़ दिया गया, ताकि शत्रु उस पर पैर न जमा सके।

अकबर के सेनापति आमेर के राजा मानसिंह का अपमान

दक्षिण पूर्व के राज्यों को जीतकर आमेर के मानसिंह जो भारमल के पोते थे,राणा प्रताप के यहां पहुंचे। राणा ने उन्हें भोजन के लिए निमंत्रण दिया। मानसिंह जब भोजन करने के लिए बैठे,तो वहां राणा नहीं आए। उन्होंने राणा की प्रतीक्षा की और उन्हें बार-बार बुलावा भेजा। फिर भी राणा नहीं आए। इसका कारण जानने के लिए मान सिंह ने नौकरों  से पूछा तो उन्होंने बताया कि प्रताप उच्च कुल के छत्रिय है, और आपका पारिवारिक संपर्क मुगलों से है। अतः आपके साथ बैठकर भोजन न करने का यही कारण है। यह सुनकर मानसिंह नाराज हो गया और झुंझलाते हुए क्रोध में सीधे अकबर के पास पहुंचा। मानसिंह के चले जाने के बाद राणा ने उस स्थान को गंगाजल से धुलवाया तथा पानी पीने आदि के पात्रों को फिकवा दिया।
 
मानसिंह को जब उसके गुप्तसरो द्वारा यह बात मालूम हुई, तो वह और आग बबूला हो गया और शाही सेना लेकर प्रताप से युद्ध करने के लिए जा पहुंचा।

       टोप कटे बख्तर कटे, बहलोल खां का हर अंग कटे।
       सुरंग रंग का अश्व कटे, शत्रु का अभिमान कटे।।
                       #जय_महाराणा_प्रताप

वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय। INTRODUCTION OF MAHARANA PRATAP IN HINDI


मेवाड़ गौरव, वीर शिरोमणि, राजपूत सम्राट महाराणा प्रताप की जन्म जयंती पर हार्दिक शुभकामनाएं।

4 thoughts on “वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप का जीवन परिचय। INTRODUCTION OF MAHARANA PRATAP IN HINDI”

  1. I am currently perfecting my thesis on gate.oi, and I found your article, thank you very much, your article gave me a lot of different ideas. But I have some questions, can you help me answer them?

    Reply

Leave a Comment