रूणिचा रा धणी रामसा पीर, बाबा रामदेवजी का मेला।

लोकदेवता रामदेवजी का जीवन परिचय।Biography of Lokdevta Baba Ramdev।

पंच पीरों में प्रमुख लोक देवता रामदेव जी का जन्म उंडूकास्मेर बाड़मेर में तंवर वंश के ठाकुर अजमल जी के यहां हुआ था। इनकी माता का नाम मैणादे था। इनको अर्जुन का वंशज माना जाता है। संपूर्ण राजस्थान,गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों में रामसापीर, रुणिचा रा धणी व बाबा रामदेव आदि नामों से प्रसिद्ध है। रामदेव जी का जन्म भाद्रपद शुक्ल द्वितीया विक्रम संवत 1462 (1405 ईसवी) को बाड़मेर के शिव तहसील के उंडू कासमेंर गांव में हुआ तथा भाद्रपद सुदी एकादशी विक्रमी संवत 1515(1458 ईस्वी) को इन्होंने रुणिचा के राम सरोवर के किनारे जीवित समाधि ली थी। इनका विवाह अमरकोट (वर्तमान में पाकिस्तान में) के सोढा राजपूत दलै सिंह की पुत्री निहालदे (नेतलदे) के साथ हुआ था।

रुणिचा (रामदेवरा)।Runicha(Ramdevra)।

हिंदू इन्हें कृष्ण का अवतार मानकर तथा मुसलमान रामसापीर के रूप में पूजते हैं।यह मल्लीनाथ जी के समकालीन थे।मल्लीनाथ जी ने इन्हें पोकरण क्षेत्र जागीर में दिया था। रामदेव जी ने पोकरण के पास रुणिचा गांव बसाया था, जो अब रामदेवरा के नाम से प्रसिद्ध है। रामदेव जी को रोग निवारण देवता, पंगु को पैर, अंधे को आंख तथा  निपुत्रों को पुत्र दाता देवता माना जाता है। वे महान समाज सुधारक थे। इनके इस कार्य में पाबूजी व हड़बूजी ने सहयोग किया। बाबा रामदेव जी के गुरु का नाम बालीनाथ था। जैसलमेर के रामदेवरा (रुणिचा) में रामदेव जी ने समाधि ली थी। जहां इनके मंदिर पर भाद्रपद शुक्ला द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेला भरता है।

सामाजिक व सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक बाबा रामदेव।

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रामदेवजी ने समाज में व्याप्त छुआछूत ऊंच-नीच आदि बुराइयों को दूर कर सामाजिक समरसता स्थापित की थी। अतः सभी जातियों के एवं सभी समुदायों के लोग इनको पूजते हैं। ये अपनी वीरता और समाज सुधार के कारण पूज्य हुए। रामदेव जी को विष्णु का अवतार माना जाता है एवं रामदेवजी के बड़े भाई वीरमदेवजी को बलराम का अवतार मानते हैं। कामड़िया पंथ की शुरुआत रामदेवजी से प्रारंभ हुई मानी जाती है।

इनके गुरु का नाम बालीनाथ था। ऐसी मान्यता है कि रामदेवजी ने बाल्यावस्था में ही सातलमेर(पोकरण क्षेत्र) में तांत्रिक भैरव राक्षस का वध करके उसके आतंक को समाप्त किया एवं जनता को कष्टों से मुक्ति दिलाई। रामदेवजी ने पोकरण कस्बे को पुनः बसाया तथा रामदेवरा (रुणिचा)में राम सरोवर का निर्माण करवाया था।

जैसलमेर जिले के पोकरण कस्बे की उत्तर दिशा में 12 किलोमीटर दूरी पर स्थित रामदेवरा गांव है, जो बाबा रामदेव के नाम से जाना जाता है।यहां बाबा रामदेव की समाधि बनी हुई है। यहां भाद्रपद सुदी द्वितीया से भाद्रपद सुदी ग्यारस तक बड़ा मेला भरता है। वर्ष 1931 में बीकानेर महाराजा गंगा सिंह ने समाधि के चारों और मंदिर का निर्माण करवाया। बाबा रामदेव जी तवर जाति के राजपूत संत थे। जिन्होंने वर्ष 1458 ईस्वी में समाधि ली थी। 

पीरों के पीर रामसा पीर।Piro ke pir Ramsa pir।

इनके बारे में यह कथा प्रचलित है कि मक्का से आए पांच पीरों ने उनकी चमत्कारिक शक्ति की परीक्षा ली और आश्वस्त होने पर वे उनके समक्ष श्रद्धावत हो गए।तभी से मुस्लिम इन्हें रामशाह पीर व हिंदू इन्हें भगवान कृष्ण के अवतार मानते हैं। भाद्रपद में बाबा रामदेवजी का मेला भरता है। लोक देवता रामदेव जी के मेले में दूरदराज से लोग पैदल चलकर मनौती मांगने आते हैं।रामदेवरा के समीप एक तालाब है।ऐसा माना जाता है कि इसे स्वयं बाबा रामदेवजी ने बनाया था। सांस्कृतिक एकता के प्रतीक इस मेले के दौरान मवेशियों का मेला भी आयोजित किया जाता है। जिसमें विभिन्न नस्लों के मवेशियों का क्रय-वक्रय भी किया जाता है।

रामदेवजी का मेला व दर्शनीय स्थल।Ramdev Ji ka mela।

रामदेवरा में बाबा रामदेवजी का मंदिर ,रामदेव सरोवर,गुरुद्वारा, पर्चा बावड़ी आदि दर्शनीय स्थल है। रामदेवजी की शिष्या डाली बाई का समाधि स्थल भी देखने लायक स्थान है। भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से एकादशी तक विशाल मेले का आयोजन रामदेवरा में रामदेवजी के विशाल मंदिर पर होता है। जिसकी मुख्य विशेषता सांप्रदायिक सद्भाव है। क्योंकि यहां हिंदू, मुस्लिम एवं अन्य धर्मों के लोग बड़ी मात्रा में आते हैं। भाद्रपद द्वितीया को जन्मोत्सव एवं भाद्रपद दशमी को समाधि उत्सव होता है। इस मेले का दूसरा आकर्षण रामदेवजी की भक्ति में कामड़ जाति की स्त्रियों द्वारा किया जाने वाला तेरहताली नृत्य है।इनके अन्य मंदिर जोधपुर के पश्चिम में मसूरिया पहाड़ी पर, बिराटिया (ब्यावर, अजमेर) एवं सुरताखेड़ा (चित्तौड़गढ़) में भी है। जहां इनके मेले भरते हैं। इनका एक मंदिर छोटा रामदेवरा गुजरात में भी है। रामदेवजी के प्रतीक चिन्ह के रूप में खुले चबूतरे पर ताख (आला) बनाकर उसमें संगमरमर,पीले पत्थर के इनके पगल्ये (चरण चिन्ह) बनाकर गांव-गांव में पूजे जाते हैं। इनके मेघवाल भक्तजनों को रिखिया कहते हैं।रामदेवजी के भक्त इन्हें श्रद्धापूर्वक कपड़े का बना घोड़ा चढ़ाते हैं। रामदेव जी का घोड़ा लीला था। भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को बाबे री बीज के नाम से पुकारा जाता है तथा यही तिथि रामदेवजी के अवतार की तिथि के रूप में भी लोक प्रचलित है।

रामदेवजी की एक  प्रसिद्ध रचना है जिसका नाम ‘चौबीस बाणिया’ है। रामदेवजी के नाम पर भक्त रात्रि जागरण करते हैं,जिसे जम्मा जागरण कहा जाता है। जम्मा जागरण में रिखियो को बुलवाकर भजन का आयोजन करवाया जाता है।

रामदेव जी गुरु के महत्व को स्वीकार करते हुए कहते थे कि भवसागर से गुरु ही पार उतार सकता है।उनका मूर्ति पूजा में कोई विश्वास नहीं था। वे तीर्थ यात्रा के भी विरोधी थे। उन्होंने कहा कि गुरु के आदेशों पर चलने से अमर ज्योति मिल जाती है।इस हेतु उन्होंने सर्वश्रेष्ठ मार्ग ‘अजपाजाप’ को बतलाया है। रामदेव जी की फ़ड़ का वाचन मुख्य रूप से जैसलमेर व बीकानेर में किया जाता है।

समाज सुधारक बाबा रामदेवजी।Social reformer Baba Ramdev Ji।

रामदेवजी एक वीर योद्धा होने के साथ-साथ समाज सुधारक भी थे। उनका जाति व्यवस्था एवं वर्ण व्यवस्था में बिल्कुल भी विश्वास नहीं था। उनके अनुसार संसार में ऊंच-नीच जैसी कोई चीज नहीं है। डाली बाई रामदेवजी की अनन्य भक्त थी। रामदेवजी ने इसे अपनी धर्म बहन बनाया था। डाली बाई ने रामदेव जी से 1 दिन पूर्व उनके पास ही जीवित समाधि ले ली थी। वहीं पर डाली बाई का मंदिर बना हुआ है।मक्का से आए पांच पीरों को रामदेवजी ने ‘पंच पीपली’ नामक स्थान पर पर्चा दिया था। जिस विशिष्ट योगदान के लिए रामदेवजी की पूजा होती है, वह समाज की सभी जातियों और धर्मों के अनुयायियों के साथ समान व्यवहार। उन्होंने छुआछूत का बहिष्कार कर सबको अपनाया था।

रामदेव जी की मुख्य शिक्षाएं है-

कर्मवाद में विश्वास, गुरु एवं सत्संग का महत्व,नाम स्मरण पर बल, धार्मिक आडंबर एवं जाति-पांति का विरोध।

तेरहताली नृत्य(Terahtali Dance)

कामड़ जाति के रामदेवजी के भोपा (उपासको)  द्वारा प्रस्तुत नृत्य जिसमें स्त्रियां हाथ पांव में बंधे तेरह मंजीरों को बजाती हुई नृत्य करती है। पुरुष तानपुरा पर रामदेवजी की लीला, गाथा व भजन गाते हैं।इनके प्रमुख कलाकार है- मांगी बाई, मोहनी आदि।

राजस्थान के प्रमुख लोकदेवता बाबा रामदेवजी:महत्वपूर्ण तथ्य(Important facts about Baba Ramdev Ji)

1. जन्म- उपडुकासमेर, शिव तहसील (बाड़मेर) में हुआ।

2. रामदेव जी तवंर वंशीय राजपूत थे।

3. पिता का नाम अजमल जी व माता का नाम मैणादे था।

4. इनकी ध्वजा, नेजा कहताली हैं

5. नेजा सफेद या पांच रंगों का होता हैं

6. बाबा राम देव जी एकमात्र लोक देवता थे, जो कवि भी थे।

7. राम देव जी की रचना ” चैबीस बाणिया” कहलाती है।

8. रामदेव जी का प्रतीक चिन्ह “पगल्ये” है।

9. इनके लोकगाथा गीत ब्यावले कहलाते हैं।

10. रामदेव जी का गीत सबसे लम्बा लोक गीत है।

11. इनके मेघवाल भक्त “रिखिया ” कहलाते हैं

12. “बालनाथ” जी इनके गुरू थे।

13. प्रमुख स्थल- रामदेवरा (रूणिया), पोकरण तहसील (जैसलमेर)

14. बाबा रामदेव जी का जनम भाद्रशुक्ल दूज (बाबेरी बीज) को हुआ।

15. राम देव जी का मेला भाद्र शुक्ल दूज से भाद्र शुक्ल एकादशी तक भरता है।

16. मेले का प्रमुख आकर्षण ” तरहताली नृत्य” होता हैं।

17. मांगी बाई (उदयपुर) तेरहताली नृत्य की प्रसिद्ध नृत्यागना है।

18. तेरहताली नृत्य कामड़ सम्प्रदाय की महिलाओं द्वारा किया जाता है।

19. रामदेव जी श्री कृष्ण के अवतार माने जाते है।

20. तेरहताली नृत्य व्यावसासिक श्रेणी का नृत्य है।

21. छोटा रामदेवरा गुजरात में है।

22. सुरताखेड़ा (चित्तोड़) व बिराठिया (अजमेर) में भी इनके मंदिर है।

23. इनके यात्री ‘जातरू’ कहलाते है।

24. रामदेव जी हिन्दू तथा मुसलमान दोनों में ही समान रूप से लोकप्रिय है।

25. मुस्लिम इन्हे रामसापीर के नाम से पुकारते है।

26. इन्हे पीरों का पीर कहा जाता है।

27. जातिगत छुआछूत व भेदभाव को मिटाने के लिए रामदेव जी ने “जम्मा जागरण ” अभियान चलाया।

28. इनके घोडे़ का नाम लीला था।

29. रामदेव जी ने मेघवाल जाति की “डाली बाई” को अपनी बहन बनाया।

30. इनकी फड़ का वाचन मेघवाल जाति या कामड़ पथ के लोग करते है।

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