राजस्थान सुनवाई का अधिकार अधिनियम 2012 क्या है?RAJASTHAN SUNVAI KA ADHIKAR ADHINIYAM KYA HAI?
राजस्थान सरकार द्वारा 21 मई 2012 से राजस्थान सुनवाई का अधिकार अधिनियम,2012 लागू किया जा चुका है। यह कानून राजस्थान लोक सेवा अदायगी अधिनियम 2011 का अनुगामी पूरक कानून है। इस अधिनियम का उद्देश्य नागरिकों को जन सुनवाई का मौका देकर उनके आवास अथवा स्थान के निकट जैसे- ग्राम पंचायत, तहसील, उपखंड या जिला स्तर पर तयशुदा समय सीमा में उपलब्ध कराना है। इस अधिनियम के मुख्य प्रावधान निम्नलिखित है:-
- नियत समय सीमा(stipulated time limit) के भीतर किसी परिवाद(complaint) पर नागरिकों को प्रदत्त सुनवाई का कोई अवसर और परिवाद पर सुनवाई में किए गए विनिश्चय के बारे में सूचना प्राप्त करने का अधिकार है।
- सरकारी कार्यालय या निकटस्थ केंद्र पर शिकायत व समस्या संबंधी परिवाद प्रारूप संख्या-1 में दर्ज कराने की व्यवस्था की गई है। किसी भी स्तर यानी परिवाद की सुनवाई, प्रथम अपील, द्वितीय अपील और पुनरीक्षण पर किसी भी परिवादी को कोई फीस नहीं देनी है।
- नियत समय सीमा उस तारीख से प्रारंभ होगी जिसको कोई परिवाद लोक सुनवाई अधिकारी(Public Hearing Officer) को या परिवाद प्राप्त करने के लिए उसके द्वारा प्राधिकृत व्यक्ति को फ़ाइल किया जाता है। परिवाद की प्राप्ति की सम्यक रूप से प्रारूप संख्या-2 में अभीस्वीकृति दी जाएगी। प्रत्येक परिवाद पर लोक सुनवाई अधिकारी एक विशिष्ट रजिस्ट्रीकरण संख्या (यूनिक नंबर) दिया जाएगा।यह संख्याक सभी स्तरों पर यानि परिवाद की सुनवाई, प्रथम अपील, द्वितीय अपील और पुनरीक्षण में प्रयुक्त किया जाएगा।
- नियम 5 के द्वारा परिवाद संबंधित नहीं होने पर लोक सुनवाई अधिकारी को परिवाद अंतरण की व्यवस्था की गई है।
- प्रत्येक लोक सुनवाई अधिकारी परिवादो की सुनवाई के लिए सप्ताह में कम से कम 2 दिन नियत करेगा और अपने कार्यालय के सूचना पट्ट पर प्रारूप संख्या-4 में उसे अधिसूचित करेगा।
- परिवाद की प्राप्ति की तारीख से 15 दिन में परिवाद की सुनवाई और निपटारा करना आवश्यक होगा।
- शिकायतकर्ता के निवास स्थान के निकटतम स्थान पर सुनवाई की व्यवस्था की गई है।
- परिवाद पत्र लोक सुनवाई अधिकारी को मिलने के बाद उस पर 7 दिन में कार्रवाई जरूरी होगी। ऐसा न करने पर कारण बताना होगा। यह भी बताना होगा कि परिवादी किस अधिकारी के कार्यालय में जाए और क्या अर्जी लगाएं।
- परिवाद खारिज करने पर कारण लिखित रूप में स्पष्ट करने होंगे।
- शिकायत/परिवाद पर लिए गए निर्णय की सूचना 7 दिनों में देना अनिवार्य है
- कानून स्थानीय निकाय, स्वायत्तशासी संस्था, निगम, बोर्ड, कारपोरेशन एवं विश्वविद्यालय पर भी लागू किया गया है।
- विभाग का लोक सुनवाई अधिकारी तय समय में परिवादी को सुनवाई का अवसर देगा। इसकी सूचना लोक सुनवाई अधिकारी को अपने कार्यालय के बाहर बोर्ड पर बड़े-बड़े अक्षरों में लगानी होगी।
- अगर किसी लोक सुनवाई अधिकारी ने सुनवाई से इनकार किया तो परिवादी असंतुष्ट होने पर प्रथम अपील अधिकारी को अपील कर सकेगा। प्रथम अपील अधिकारी लोक सुनवाई अधिकारी को उसके द्वारा विनिर्दिष्ट समयावधि में परिवादी को सुनवाई का अवसर प्रदान करने का आदेश दे सकेगा या अपील खारिज कर सकेगा। प्रथम अपील अधिकारी को अपील फाइल किए जाने की तारीख से 21 दिन की सीमा में अपील का निपटारा करना होगा।
- प्रथम अपील प्राधिकारी के विनिश्चय के विरुद्ध अपील प्राधिकारी को 30 दिन के भीतर अपील की जा सकेगी।
- प्रथम अपील प्राधिकारी व द्वितीय अपील प्राधिकारी को किसी अपील का विनिश्चय करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के अधीन सिविल न्यायालय की शक्तियां होगी।
- शास्ति अधिरोपित करने के संबंध में द्वितीय अपील प्राधिकारी के किसी आदेश द्वारा व्यथित लोक सुनवाई अधिकारी या प्रथम अपील प्राधिकारी उस आदेश की तारीख से 60 दिन की कालावधी के भीतर राज्य सरकार द्वारा नाम निर्दिष्ट अधिकारी या पदाधिकारी को पुनरीक्षण के लिए आवेदन कर सकता है। नामनिर्दिष्ट अधिकारी या प्राधिकारी विहित प्रक्रिया के अनुसार आवेदन का निपटारा कर सकेगा।
- राज्य सरकार ने अपने-अपने विभागों के प्रभारी सचिवों को पुनरीक्षण प्राधिकारी के रूप में नामनिर्दिष्ट किया है।
- नामनिर्दिष्ट लोक सूचना अधिकारी, प्रथम अपील प्राधिकारी, द्वितीय अपील प्राधिकारी एवं पुनरीक्षण अधिकारी के कार्यालयों में समस्त रिकॉर्ड नियम 19 में वर्णित पंजिकाओ में संधारित किए जाएंगे।
- लोक सेवक, सूचना का अधिकार, लोक सेवा गारंटी के मामले शामिल नहीं होंगे।
- अधिनियम में सूचना और सुगम केंद्र, ग्राहक सेवा केंद्र, कॉल सेंटसेंट, हेल्पडेस्क और जन सहायता केंद्रों की स्थापना किए जाने के प्रावधान है।यह केंद्र शहरों से लेकर पंचायत स्तर तक खोले गए हैं।