राजस्थान के प्रमुख इतिहासकार।RAJASTHAN KE PRAMUKH ITIHASKAR।
राजस्थान के इतिहास में कई प्रमुख इतिहासकारों का योगदान रहा है जिनमें से कुछ प्रमुख इतिहासकारों का परिचय मैं आज यहां आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूं:-
1. मुहणोत नैणसी
मुहणोत नैणसी राजस्थान के प्रसिद्ध इतिहासकार है।जिनकी इतिहास विषय की घटनाओं में बचपन से ही रुचि थी। चारण भाटों से प्राप्त जानकारी को यह लिपिबद्ध कर लेते थे। मुहणोत नैणसी का जन्म ओसवाल वैश्यों की मुहणोत शाखा में 1610 ई. में हुआ। इनके पिता का नाम जयमल एवं माता का नाम स्वरूप देवी था। मुहणोत घराना कई पीढ़ियों से मारवाड़ राजघराने की सेवा में काम करता आया था। युवावस्था में नैणसी को भी राज्य की सेवा में नियुक्त कर लिया गया।। 1657-58 ईसवी में नैणसी की सैनिक एवं राजनीतिक योग्यता को देखकर महाराजा जसवंत सिंह जी ने उसे अपना दीवान नियुक्त किया। 10 वर्ष तक राज्य की सेवा की। जब औरंगजेब ने महाराजा जसवंत सिंह को शिवाजी का दमन करने के लिए औरंगाबाद भेजा तो वे अपने साथ नैणसी तथा उसके भाई सुंदर दास को भी लेते गए। वही महाराजा जसवंत सिंह उनसे नाराज हो गए तथा दोनों भाइयों को बंदी बना लिया गया तथा अंत में उन्हें जोधपुर भेजते समय मरवा दिया गया। यह विस्मय जनक घटना थी।
नैणसी के लिखे हुए महत्वपूर्ण ग्रंथ
मोहनोत नैणसी ने दो महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखे थे। जिनमें पहला है- “नैणसी री ख्यात” व दूसरा है- “मारवाड़ रा परगना री विगतवार” इसमें नैणसी री ख्यात अधिक महत्वपूर्ण ग्रंथ सिद्ध हुआ है।
2. कर्नल जेम्स टॉड
20 March 1782 ई. को England में जन्मे टॉड 1798 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी में एक सैनिक रंगरुट बनकर भारत आए। 1801 ईस्वी में दिल्ली के निकट एक पुरानी नहर की पैमाइश का काम किया तथा 1805 ईस्वी में दौलतराव सिंधिया के दरबार में एक सैनिक टुकड़ी में नियुक्त हुए। 1817 से 1822 ईसवी के मध्य टॉड को पश्चिमी राजपूत राज्यों में ईस्ट इंडिया कंपनी का पोलिटिकल एजेंट बनाकर भेजा गया। इस अवधि में टॉड ने वहां की इतिहास विषयक जानकारी एकत्रित कि। उसे राजपूत शासकों से इतना अधिक लगाव हो गया था कि उसके अधिकारियों को भी उसकी स्वामी भक्ति पर संदेह उत्पन्न हो गया। उसे 1822 ईसवी में स्वास्थ्य के आधार पर त्यागपत्र देना पड़ा। तत्पश्चात टॉड इंग्लैंड चले गए और 1829 ईस्वी में उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘एनल्स‘ का प्रथम खंड तथा 1832 ईस्वी में द्वितीय खंड प्रकाशित हुआ। ‘पश्चिमी भारत की यात्रा’ नामक ग्रंथ उनकी मृत्यु (1835 ईस्वी) के पश्चात 1839 ईस्वी में प्रकाशित हुआ।
कर्नल जेम्स टॉड द्वारा रचित एनल्स राजस्थान के राजपूतों के विषय में विश्वकोश माना जाता है। एनल्स के प्रथम खंड में राजपूताने की भौगोलिक स्थिति, राजपूतों की वंशावली, सामंती व्यवस्था और वीरभूमि मेवाड़ का इतिहास है। द्वितीय खंड में मारवाड़, बीकानेर, जैसलमेर, आमेर और हाडोती के राज्य का इतिहास है। ‘पश्चिमी भारत की यात्रा’ नामक ग्रंथ में भ्रमण करते समय व्यक्तिगत अनुभवों के साथ-साथ राजपूती परंपराओं, अंधविश्वासों, आदिवासियों के जीवन, मंदिरों, मूर्तियों, पुजारियों और अन्हिलवाड़ा, अहमदाबाद तथा बड़ौदा का इतिहास लिखा हुआ है। एक विदेशी होते हुए भी कर्नल टॉड ने राजपूत समाज के विषय में विस्तृत विवरण दिया है।
कर्नल टॉड की मान्यता ने कि “राजस्थान में कोई छोटा सा राज्य भी ऐसा नहीं है जिसमें थर्मोपोली जैसी रणभूमि ना हो और शायद ही कोई ऐसा नगर मिले जहां लियोनिडास जैसा वीर पुरुष पैदा ना हुआ हो” यह कहकर टॉड ने यूरोप के निवासियों को आश्चर्यचकित कर दिया था। कर्नल टॉड का ग्रंथ इतना महत्वपूर्ण होते हुए भी दोष युक्त है उसने राजपूत जाति के विषय में अपूर्ण विवरण दिया है। यह वैज्ञानिक पद्धति द्वारा लिखा ग्रंथ नहीं है। संभवत राजस्थान के इतिहास से संबंधित टॉड को इतनी सामग्री उपलब्ध नहीं हो पाई थी जितनी वर्तमान में उपलब्ध है।वह संस्कृत, प्राकृत, अरबी,फारसी भाषाओं का जानकार भी नहीं था। उस समय वह अनुवादको पर निर्भर था।अनुवादको की त्रुटियों का समावेश भी उसके लेखन को दोष पूर्ण बनाता है।
3. कविराजा श्यामल दास
महामहोपाध्याय कवि राजा श्यामल दास का जन्म मेवाड़ के ढोकलिया गांव में 1838 ईस्वी में हुआ था। इन्हें मेवाड़ के महाराणा शंभू सिंह ने राज्य के इतिहास लेखन का दायित्व सौंपा था। इस हेतु महाराणा ने एक पृथक विभाग स्थापित किया तथा दो अन्य सहायकों की नियुक्ति भी की। इस विभाग में उपलब्ध ऐतिहासिक सामग्री की सहायता से श्यामल दास ने 1871 ईसवी में ‘वीर विनोद’ ग्रंथ लिखना प्रारंभ किया, जो 1886 ईसवी के आसपास छपकर तैयार हुआ। दो खंडों में उपलब्ध वीर विनोद 2684 पृष्ठों का विशाल ग्रंथ है। जिसे लिखने में 15 वर्ष का समय लगा।
वीर विनोद मुख्य रूप से उदयपुर राज्य का इतिहास है, लेकिन इसमें प्रसंगवश उन राज्यों का भी इतिहास है जो किसी न किसी प्रकार से उदयपुर से संबंधित हुए। इस प्रकार से यह ग्रंथ राजस्थान का संपूर्ण इतिहास है। महाराणा शंभू सिंह ने इन्हें कविराजा की उपाधि प्रदान की थी।
4. सूर्यमल मिश्रण
सूर्यमल मिश्रण का जन्म 1815 ईस्वी में हुआ। इनके पिता का नाम चंडीदान एवं माता का नाम भवानी बाई था। चंडीदान बूंदी नरेश महाराज राम सिंह जी के आश्रित कवि थे। अपने पिता के पश्चात सूर्यमल ने महाराव राम सिंह के दरबार में कवि के रूप में प्रसिद्धि पाई। उन्होंने वंश भास्कर, वीर सतसई, बलवद्धिलास,छंदोभ मूल, सती रासो आदि ग्रंथों की रचना की।
महाराव की आज्ञा अनुसार 1840 ईसवी में वंश भास्कर लिखना प्रारंभ किया, लेकिन किन्हीं कारणों से 1856 ईसवी में लेखन कार्य बंद कर देना पड़ा। तत्पश्चात उनके दत्तक पुत्र मुरारी दान ने इस ग्रंथ को पूर्ण किया। यह मूल ग्रंथ 2500 पृष्ठों का है। सूर्यमल मिश्रण ने बूंदी का इतिहास लेखन प्रारंभ किया था। लेकिन वंश भास्कर में राजपूताने का ही नहीं अपितु उत्तरी भारत का संपूर्ण इतिहास समाया हुआ है।राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ वंश भास्कर में सामाजिक और सांस्कृतिक विवरण भी विस्तार पूर्वक उल्लेखित है।
5. पंडित गौरीशंकर हीरानंद ओझा
गौरीशंकर हीरानंद ओझा का जन्म 1863 ईस्वी में सिरोही रियासत के रोहिडा गांव में हुआ था। ये मुंबई से हाईस्कूल की परीक्षा पास कर उदयपुर में बस गए। उदयपुर में अंग्रेजी रेजिडेंट ने इन्हें एक संग्रहालय के निर्माण का कार्य सौंपा। इसके पश्चात वे अजमेर में राजस्थान के रेजिडेंट अर्स्किन के संपर्क में आए। अर्स्किन ने 1908 में उन्हें अजमेर बुलाकर राजस्थान म्यूजियम का क्यूरेटर बना दिया। ओझा जी ने 30 वर्ष तक इस पद पर कार्य किया।
ओझा जी द्वारा रचित ‘सिरोही राज्य का इतिहास’ 1911 ईस्वी में प्रकाशित हुआ। इसके बाद उन्होंने उदयपुर, डूंगरपुर, बांसवाड़ा तथा प्रतापगढ़ के गुहिल-सिसोदिया राज्यों का इतिहास लिखा। इसके पश्चात बीकानेर राज्य का इतिहास लिखा। फिर उन्होंने जोधपुर राज्य का इतिहास लिखना प्रारंभ किया जिसकी दो जिल्द ही प्रकाशित हो पाई। यद्यपि उनके द्वारा राजस्थान के संपूर्ण राज्यों के इतिहास ग्रंथ नहीं लिखे गए लेकिन इन्हें पूर्ण राजस्थान का इतिहासकार कहा जा सकता है। गौरीशंकर हीरानंद ओझाजी पुरातत्ववेत्ता थे। उन्हें लिपि माला तथा स्थापत्य कला की विशेष जानकारी थी। उन्होंने अपने ग्रंथों के लेखन में पूरा सामग्री का भरपूर प्रयोग किया है।