लोकदेवता गोगाजी का जीवन परिचय
लोकदेवता गोगा जी का जन्म ददरेवा(चुरु) में नागवंशीय चौहान परिवार में विक्रम संवत 1003 में हुआ था। इनके पिता का नाम जेवर सिंह और माता का नाम बाछल था। मारवाड़ के पंच पीरों में प्रमुख गोगाजी को सांपों का देवता, जाहिरपीर के रूप में पूजा जाता है। गोगाजी ने गौ रक्षार्थ अपने मौसेरे भाइयों अरजन- सुरजन व उनके साथी मुस्लिमों के विरुद्ध युद्ध में वीरगति की प्राप्ति की थी।
गोगाजी की पत्नी का नाम मैनल था एवं इनकी सवारी नीली घोड़ी थी। गोगाजी का समाधि स्थल गोगामेड़ी(नोहर, हनुमानगढ़) में है, जहां पर प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी को गोगाजी की स्मृति में विशाल मेला भरता है। गोगामेडी की बनावट मकबरानुमा है एवं उसके दरवाजे पर बिस्मिल्लाह अंकित है। गोगाजी के थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे होते हैं, एवं गोगाजी का प्रतीक चिन्ह साँप होता है। गोगामेडी का वर्तमान स्वरूप बीकानेर महाराजा गंगा सिंह की देन है।
राजस्थान में धार्मिक मेले
उत्सवो और मेलों का प्रदेश राजस्थान अपने पारंपरिक मेलो, त्योहारों एवं पर्वो से भी देश विदेश में विख्यात है। इनके माध्यम से राजस्थान के जनजीवन को बारीकी से समझा जा सकता है। राजस्थान को अगर नजदीक से देखना हो, महसूस करना हो, तो मेले-पर्वो में भाग लेना किसी सुखद अनुभव से कम नहीं होगा। मेले एवं त्यौहार दरअसल हमारी कोमल भावनाओं को जगाते ही नहीं है, बल्कि जीवन में उमंग और उत्साह का संचार भी करते हैं।पूरे विश्व में मेलों एवं त्योहारों का अभिप्राय एक ही है और वह है सामूहिक रूप में जीवन की उमंग एवं उल्लास की अभिव्यक्ति।
मेले एवं त्यौहार एकाकी रूप में नहीं मनाए जाते बल्कि यह समूह में मनाए जाते हैं।मनुष्य को एक दूसरे के निकट लाने का कार्य भी मेले एवं त्यौहार ही करते हैं, इनसे ही सामाजिक परंपरा जीवित रहती है और जीवन का अंग बन जाती है।सांस्कृतिक एकता, सामाजिक सद्भाव को बढ़ावा देने वाले मेले एवं त्यौहार से सभ्यता की सजीवता बनी रहती है।
मेलो एवं त्योहारों के मूल में प्राय धर्म होता है।धार्मिक आस्था की अभिव्यक्ति, लोक देवी देवताओं की पूजा अर्चना, तीर्थ से पुण्य कमाने की भावना से मनाए जाने वाले धार्मिक मेलों में से एक प्रमुख मेला है गोगाजी का मेला। गोगाजी का मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्ण नवमी को गोगाजी की स्मृति में गोगामेडी(नोहर, हनुमानगढ़) में भरता है।
गोगाजी का मेला
गोगाजी का मेला लोकप्रिय वीर गोगा जी की स्मृति में मनाया जाता है, जो कि हिंदुओं के बीच गोगा वीर तथा मुस्लिमों के बीच जाहरपीर के नाम से जाने जाते है। यह देवता सांप के देवता के रूप में भी विख्यात है। गोगाजी ने जिस स्थान पर समाधि ली थी, वह स्थान अब गोगामेड़ी के नाम से विख्यात है।गोगाजी के भक्त देश के सभी स्थानों पर पाए जाते हैं। यहां भाद्रपद माह में होने वाले मेले के दौरान हजारों की संख्या में हिंदू व मुस्लिम धर्मावलंबी एकत्रित होकर श्रद्धानवत होते हैं। यह मेला 3 दिन तक चलता है।बाड़मेर जिले में यह उत्सव सर्प पूजा एवं आराधना के रूप में मनाया जाता है। भाद्रपद की कृष्ण नवमी के दिन ग्रामीण दूध एकत्रित कर उसकी स्वादिष्ट खीर बनाते हैं, तथा गोगाजी की प्रतिमा पर भोग लगाते हैं। गोगाजी के बारे में यह अवधारणा है कि इनकी पूजा करने से सभी प्रकार के विषदंश से मुक्त रहा जा सकता है।
गोगाजी के प्रमुख पूजा स्थल
- ददरेवा(चूरू)-शीर्ष मेड़ी।
- गोगामेड़ी(हनुमानगढ़)-धुरमेडी।
- गोगाजी की ओल्डी(जालौर)।
राजस्थान के किसान वर्ग में गोगाजी का बहुत बड़ा महत्व है। किसान गोगाजी के नाम की राखी बांधते हैं, जिसे गोगा राखड़ी कहा जाता है। किसान हल और हाळी के नौ गांठो की राखी बांध कर वर्षा ऋतु में प्रथम बार हल चलाता है। इसी राखी को गोगा राखड़ी के नाम से जाना जाता है।
गोगाजी के नाम का एक नृत्य भी प्रसिद्ध है, जिसे गोगा नृत्य कहते हैं यह नृत्य शेखावाटी क्षेत्र में प्रसिद्ध है। गोगा जी की पूजा अश्वारोही योद्धा के रूप में भी की जाती है।
गुरु गोरखनाथ के शिष्य गोगाजी
सिद्ध वीर गोगा देव गुरु गोरखनाथ के प्रमुख शिष्यों में से एक हैं। राजस्थान के छह सिद्धों में गोगाजी को समय की दृष्टि से प्रथम माना गया है। गोगा देव का जन्म स्थान राजस्थान के चुरू जिले के दत्तखेड़ा में स्थित है। जहां पर सभी धर्म और सम्प्रदाय के लोग मत्था टेकने के लिए दूर-दूर से आते हैं।
नाथ परम्परा के साधुओं के लिए यह स्थान बहुत महत्व रखता है। दूसरी ओर कायम खानी मुस्लिम समाज उनको जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं तथा उक्त स्थान पर मत्था टेकने और मन्नत मांगने आते हैं। इस तरह यह स्थान हिंदू और मुस्लिम एकता का प्रतीक है। लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगाजी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजा जाता है। लोग उन्हें गोगाजी चौहान, गुग्गा, जाहिर वीर व जाहर पीर के नामों से पुकारते हैं। मध्यकालीन महापुरुष गोगाजी हिंदू, मुस्लिम, सिख संप्रदायों की श्रद्धा अर्जित कर एक धर्मनिरपेक्ष लोकदेवता के नाम से पीर के रूप में प्रसिद्ध हुए।
गोगाजी का जन्म राजस्थान के ददरेवा (चुरू) चौहान वंश के राजपूत शासक जैबर (जेवरसिंह) की पत्नी बाछल के गर्भ से गुरु गोरखनाथ के वरदान से भादो सुदी नवमी को हुआ था। चौहान वंश में राजा पृथ्वीराज चौहान के बाद गोगाजी वीर और ख्याति प्राप्त राजा थे। गोगाजी का राज्य सतलुज से हांसी (हरियाणा) तक था।
जयपुर से लगभग 250 किमी दूर स्थित सादलपुर के पास दत्तखेड़ा (ददरेवा) में गोगा देवजी का जन्म स्थान है। दत्तखेड़ा चुरू के अंतर्गत आता है। गोगा देव की जन्म भूमि पर आज भी उनके घोड़े का अस्तबल है और सैकड़ों वर्ष बीत गए, लेकिन उनके घोड़े की रकाब अभी भी वहीं पर विद्यमान है। उक्त जन्म स्थान पर गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है और वहीं है गोगा देव की घोड़े पर सवार मूर्ति। भक्तजन इस स्थान पर कीर्तन करते हुए आते हैं और जन्म स्थान पर बने मंदिर पर मत्था टेककर मन्नत मांगते हैं।
हनुमानगढ़ जिले के नोहर उपखंड में स्थित गोगाजी के पावन धाम गोगा मेड़ी स्थित गोगाजी का समाधि स्थल जन्म स्थान से लगभग 80 किमी की दूरी पर स्थित है !
गोगा नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं।।
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