राजस्थान का हृदय अजमेर।The heart of Rajasthan-Ajmer।

राजस्थान का हृदय अजमेर।The heart of Rajasthan-Ajmer।

अजमेर शहर को राजस्थान का हृदय कहा जाता है क्योंकि यह राज्य के मध्य भाग में स्थित है।अजमेर राजस्थान के सात संभागों में से एक है एवं यह जिला मुख्यालय भी है। अजमेर का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इस शहर का संबंध पृथ्वीराज चौहान से है।
राजस्थान का हृदय अजमेर।The heart of Rajasthan-Ajmer।
साभार-pexel

राजस्थान का अजमेर नगर अपनी ऐतिहासिक पूरा संपदा व शिल्प कला एवं सौंदर्य के लिए देश के पर्यटन स्थलों में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यहां के मंदिर, प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिक किले आदि अपने आप में पर्यटकों को आकर्षित करने वाली विशेषताएं समेटे हुए हैं। जयपुर शहर से दक्षिण में लगभग 130 किलोमीटर दूर एक सुंदर घाटी में अजमेर नगर स्थित है। अजमेर अपने प्राकृतिक सौंदर्य तथा वास्तुकला की दृष्टि से अत्यंत दर्शनीय स्थल है। अजमेर को चारों दिशाओं से अरावली पर्वत की ऊंची श्रृंखलाओं ने अपनी गोद में समेटा हुआ है।

अजमेर की स्थापना का इतिहास

अजमेर नगर की स्थापना सातवीं शताब्दी में अजय राज चौहान द्वारा की गई थी।अजमेर शहर से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजय पाल का मंदिर आज भी अजमेर के संस्थापक की याद अपने में संजोए हुए हैं। अजय राज चौहान ने अपने नाम के आधार पर अजय मेरु नगर बसाया और इसे अपनी राजधानी बनाया।इसी अजयमेरु को वर्तमान में अजमेर कहा जाता है। मुस्लिम आक्रमणकारियों के विरुद्ध सामरिक दृष्टि से अजमेर का राजधानी के रूप में निर्माण अजय राज की दूरदर्शिता का ज्वलंत प्रमाण है।

अजमेर नगर के प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल

तारागढ़ का किला

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साभार-facebook

अजमेर के प्रतापी शासक अजय राज ने सर्वप्रथम अजमेर में एक सुंदर दुर्ग का निर्माण करवाया था। जिसे आज तारागढ़ के नाम से जाना जाता है। तारागढ़ समुद्रतल से 3000 फुट व जमीन से लगभग 790 फुट ऊंची एक पहाड़ी के शिखर पर बना हुआ किला है। इस अजेय दुर्ग ने चौहान शासकों के कई ऐतिहासिक युद्ध देखे है। किले के अंदर पानी के 5 कुंड बने हुए है और बाहर की ओर एक झालरा बना हुआ है। किले में ही मीर साहब की दरगाह अत्यंत दर्शनीय है। वर्तमान में तारागढ़ पर्यटकों को अजमेर में सर्वाधिक आकर्षित करता है। तारागढ़ को गढ़ बिठली भी कहा जाता है।

ढाई दिन का झोपड़ा

ढाई दिन का झोपड़ा हिंदू वास्तु शिल्पकला का प्राचीनतम और उत्कृष्ट नमूना है। यह तारागढ़ पहाड़ी से नीचे की तरफ बना हुआ है। ढाई दिन का झोपड़ा न केवल भारत में बल्कि संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। यहां पर मूर्तियों में बड़े सुंदर ढंग से सूक्ष्म खुदाई की गई है। सम्राट बीसलदेव द्वारा लगभग सन 1143 ईस्वी में निर्मित यह ढाई दिन का झोपड़ा मूल रूप से एक संस्कृत पाठशाला हुआ करता था। जिसे मोहम्मद गौरी ने अजमेर पर विजय प्राप्त करके मस्जिद के रूप में परिवर्तित करवा दिया था। ढाई दिन का झोपड़ा अजमेर में पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इतिहास में रुचि रखने वाले लोग यहां पर भ्रमण करने जरूर आते हैं।

ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह

अजमेर नगर में ही ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह आई हुई है जिन्हें गरीब नवाज भी कहा जाता है।अजमेर में ही मुस्लिम संप्रदाय का बहुत बड़ा तीर्थ स्थल के रूप में यह स्थान प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि ख्वाजा साहब, मोहम्मद गौरी की सेना के साथ सन 1162 में भारत आए और बाद में अजमेर में ही बस गए। मरने के बाद उन्हें उसी मकान में दफनाया गया था, जहां पर वह रहते थे। 

उसके बाद सन 1464 में मांडू के सुल्तान गयासुद्दीन खिलजी द्वारा वहां की कब्र और गुंबद का निर्माण करवाया गया। तब तक उनका यह स्थल इतना प्रसिद्ध नहीं हुआ करता था। दरगाह की प्रसिद्धि मुगल बादशाह अकबर के शासनकाल में हुई। बादशाह अकबर ने दरगाह में शानदार मस्जिद, बुलंद दरवाजा एवं महफिल खाने का निर्माण करवाया। प्रतिवर्ष उर्स के अवसर पर विश्व के विभिन्न देशों से हजारों लाखों श्रद्धालु दरगाह पर आते हैं। दरगाह के बुलंद दरवाजे तथा महफिल खाने को देखने के लिए भी यहां हजारों की संख्या में पर्यटक आते हैं। जो भी पर्यटक अजमेर नगर के भ्रमण हेतु आते हैं वह ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर जरूर जाते हैं।

अकबर का किला-मैगजीन

अकबर के किले को मैगजीन के नाम से भी जाना जाता है।अजमेर शहर के मध्य में ही यह स्थित है। मुगल बादशाह अकबर का यह किला एक बड़ी वर्गाकार इमारत के रूप में है। इस किले की वर्गाकार इमारत के प्रत्येक कोने में अष्टकोण वाली बुर्जियां है। यह इमारत अकबर ने अजमेर यात्रा के दौरान अपनी विश्राम स्थली के रूप में बनवाई थी। मैगजीन के बीच इमारत में ही एक संग्रहालय बना हुआ है। यह संग्रहालय पुरातत्व महत्व की वस्तुओं का अनुपम भंडार है। संग्रहालय में आदित्य प्राचीन प्रतिमाएं, बहुमूल्य शिलालेख, ऐतिहासिक महत्व के ताम्रपत्र, भारत के महत्वपूर्ण प्राचीन सिक्के, प्राचीन हथियार व कवच तथा राजपूत व मुगल शैली के चित्र विशिष्ट आकर्षण के केंद्र है। यह संग्रहालय भी देश-विदेश के पर्यटकों के आकर्षण का प्रमुख केंद्र है।

आनासागर झील

अजमेर नगर के प्रमुख दर्शनीय स्थलों में आना सागर झील का भी महत्वपूर्ण स्थान है। इस झील का निर्माण पृथ्वीराज चौहान के पितामह आनाजी ने सन 1140 ईस्वी में करवाया था। कहा जाता है कि एक युद्ध में आनाजी ने यहां शत्रुओं को भारी संख्या में मार डाला था और उस भयंकर रक्तपात को धोने के लिए नदी पर बांध बनाकर इसे पानी से भर दिया। मुगल बादशाह जहांगीर ने आनासागर झील के किनारे सुंदर बगीचा लगवाया जिसे दौलत बाग के नाम से जाना जाता है। जहांगीर के बाद शाहजहां ने भी इस सुंदर झील को सवारने का कार्य किया था। 

शाहजहां ने यहां 1240 फुट लंबा संगमरमर का कटहरा(कटोरा) और सफेद दूधिया रंग के संगमरमर के पांच सुंदर मंडप बनवाए थे। इसके निर्माण में उच्च कोटि का संगमरमर काम में लिया गया था। इनमें से कुछ पत्थर तो पारदर्शी भी है। अजमेर नगर के प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने के लिए पर्यटक इस स्थल पर आकर शांति का अनुभव करते हैं। यह बेहद सुंदर प्राकृतिक वातावरण को दर्शाती हुई झील है।

ऋषभदेव जी का मंदिर- सोनीजी की नसिया

अजमेर नगर में ही विश्व प्रसिद्ध ऋषभदेव जी का सुंदर मंदिर बना हुआ है। जो पर्यटकों को अपनी और आकर्षित करता है। यह मंदिर अत्यंत ही मनमोहक पच्चीकारी के कारण भी महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लाल पत्थर से बने हुए विशाल भवन के रूप में जैन तीर्थंकर ऋषभदेव जी के इस मंदिर का निर्माण सन 1865 में मूलचंद सोनी ने करवाया था। इसी कारण इस मंदिर को सोनी जी की नसिया के नाम से भी जाना जाता है।

इस मंदिर में दीवारों व छतों पर सोने की अत्यंत सुंदर पच्चीकारी का कार्य किया हुआ है। इसी कमरे के एक भाग में गोलाकार आकृतियो में जैन मतानुसार सृष्टि की रचना का भव्य दृश्य प्रस्तुत किया गया है। दूसरे भाग में प्राचीन अयोध्या नगरी का दृश्य चित्रित है। दक्षिण में प्रयाग एवं त्रिवेणी, वटवृक्ष और ऋषभ देव जी की प्रतिमा है।इसमें  विमानों में बैठे देवी-देवताओं द्वारा पुष्प वर्षा के दृश्य अत्यंत आकर्षक रूप से चित्रित किए गए हैं। वस्तुतः यह मंदिर वास्तु कला व शिल्प कला का एक उत्कृष्ट व अनूठा उदाहरण है। जो भी पर्यटक अजमेर नगर में आते हैं वे सोनी जी की नसिया देखने जरूर जाते हैं।

तीर्थराज पुष्कर

सभी तीर्थों में जो सिरमौर है वही है तीर्थराज पुष्कर। पुष्कर को ब्रह्मा की नगरी भी कहा जाता है। अजमेर शहर से लगभग 11 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम दिशा में तीर्थराज पुष्कर स्थित है। यह हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। 3 दिशाओं में पहाड़ियों से घिरा हुआ है पुष्कर। पुष्कर को नाग पर्वत माला अजमेर शहर से अलग करती है। नाग पहाड़ पर बने हुए हैं 5 कुंड और मुनि अगस्त्य की एक गुफा। ऐसा माना जाता है कि कालिदास ने अपने सुप्रसिद्ध संस्कृत ग्रंथ ‘अभिज्ञान शाकुंतलम्‘ की रचना इसी नाग पर्वत पर की थी।

पुष्कर झील की उत्पत्ति की कहानी बड़ी रोचक है पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुष्कर की उत्पत्ति तब हुई जब भगवान ब्रह्मा यज्ञ करने के लिए किसी शांत जगह की तलाश कर रहे थे। कहते हैं तभी भगवान के हाथों में से कमल पुष्प पुष्कर घाटी में जा गिरा। तत्काल ही वहां एक झील फूट पड़ी। यही झील आज की पवित्र पुष्कर झील है। यहां कार्तिक पूर्णिमा में विशाल मेला लगता है। जिसमें देश के विभिन्न भागों से लाखों करोड़ों की संख्या में हिंदू एकत्रित होते हैं। हिंदुओं के साथ-साथ इस मेले को देखने के लिए
दूसरे धर्मों के लोग भी आते हैं। साथ ही विदेशी सैलानी भी यहां पर बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। पुष्कर मेला एक विश्व प्रसिद्ध मेला है।

पुष्कर में अनेक मंदिर है जिनमें ब्रह्मा का मंदिर तो बहुत प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि संपूर्ण भारत में ब्रह्मा का यह अकेला मंदिर है।यह झील के पश्चिम में पहाड़ की चोटी पर बना हुआ है। अजमेर का यह प्राकृतिक सौंदर्य पर्यटकों को बरबस अपनी ओर आकर्षित करता हैं। यही कारण है कि अजमेर में आने वाले विदेशी पर्यटकों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

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