राजस्थानी भाषा में वर्षा के कितने नाम। RAJASTHANI BHASHA ME VARSHA KE KITNE NAAM।

 राजस्थानी भाषा में वर्षा के कितने नाम।

छल बल रा मारग किता,तो हांथा किरतार।
मारणा मारग मोकळा, मेह बिना मत मार।।
अर्थात, हे प्रभु! तेरे पास तो छल और बल के कितने ही रास्ते हैं मारने के लिए और मारना ही है तो उनसे ही मार दे, किंतु बिना मेह(बरसात) के मत मारो।

राजस्थान की मातृभाषा राजस्थानी है। जिसमें जीवन से जुड़े अवयवों, प्रकृति के नाना रूपों के इतने नाम, संज्ञाए राजस्थानी भाषा में दी हुई है कि कोई उन्हें जान ले, समझ ले तो शब्द संपन्न हो सकता है। राजस्थानी भाषा में हर माह की वर्षा का अलग-अलग नाम व स्वरूप दिया हुआ है। माघ माह में होने वाली वर्षा को मावठ कहते हैं।

बूंद का पहला नाम हरि है। फिरतो, मेघपुहप, बिरखा, बरखा,घणसार, मेवलीयो, बुलो, सीकर,फुहार, छिडको, छांटो,  छिडको,छछोहो, टपको,टीपो, टपूकलो, झिरमिर, पूणग, जीखो, झिरझिराट, और उससे आगे झड़ी, रीठ एवं भोट। झड़ी जब लगातार बरसती है तो झड़, मंडण,बरखावल हलूर आदि नामों से जानी जाती है। अलग-अलग महीनों की वर्षा के भी राजस्थानी भाषा में अलग-अलग नाम होते हैं। सावन की वर्षा को लोर,भाद्रपद की वर्षा झड़ी, आश्विन की वर्षा मोती, कार्तिक माह की वर्षा कटक, मार्गशीर्ष की  वर्षा फांसरडो, पौष की वर्षा पावठ, माघ की वर्षा मावठ, फागुन की वर्षा फटकार, चैत्र की वर्षा चड़पडाट,, वैशाख की वर्षा हलोतिया, जेठ की वर्षा झपटो और आषाढ़ की वर्षा सरवांत कहलाती है।  
राजस्थानी भाषा एक समृद्ध भाषा है। जिसमें एक ही शब्द के अनगिनत पर्यायवाची देखने को मिल जाते हैं। राजस्थान के लोगों के लिए वर्षा अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह ही उनके जीवन का आधार होती है। क्योंकि इस क्षेत्र को रेगिस्तान ने भी समृद्ध किया है। दूर-दूर तक फैला हुआ थार का रेगिस्तान वर्षा की आस लिए वर्षपर्यंत इंतजार करता है बारिश की फुहारों का। इसलिए वर्षा का स्वागत यहां पर लोग घर में आई नहीं बहू( बीनणी)मानकर करते हैं। राजस्थान में वर्षा और मेहमान कभी-कभी ही आते हैं, लेकिन आए तो स्वागत में सारे लोग पलक पावडे बिछाने में कोई कोर कसर बाकी नहीं छोड़ते।
यहां के लोगों को वर्षा के ज्ञान की जानकारी भी कम नहीं है। सौ कोस की कौंध(चमक) और 30 कोस की गाज(गर्जना) के माध्यम से प्रकाश और ध्वनि की चाल का फर्क यहां के ग्वाले भली भांति जानते हैं। वर्षा इस मरुस्थल में सबसे कम होती है। लेकिन इसके स्वागत के लिए पूरा चौमासा है। वर्षा को धारण करने वाले बादलों के सारे प्रांतों एवं भाषाओं में सबसे अधिक नाम यहीं पर मिलते हैं। बादलों के इतने नाम हैं कि उन नामों की गिनती के आगे बादल खुद कम पड़ जाते हैं।
 
बादल को राजस्थानी भाषा में जलधर, जलहर, जलवाह, जलधरण, जलद ,जीभूत, घटा,सारंग, बोम, बोमचर, मेघ, मेघाडबर, मुदिर, महिममंडण, धरमंडण, धरणनद, पाथोद, पीथल, पिरथीराज, पिरथीपाल, पावस, डाबर, डंबर, दलबादल, घणमंड, जलजाल, काली- काँठल, कारायण, कंद, हब्र, मैमंट,महाजाल,महाघण,रामइयो,  सेहर,बसु, बैकुंठवासी, महीरंजण, अम्ब, बरमण, नीरद, पालग,बलाहक, जलवह, जलमंडल, घणांघन, तड़ितवान,तोइद, परजन, महिपाल, तरत्र, निर्झर, भरण निर्वाण, तनयतु,गयणि, महंत किलाण, रोरगंजन इत्यादि अनेक नाम मिलते हैं। इन नामों में भी गांवो का सामान्य किसान और खेत जोतने वाला हाळी 10-20 और नाम इसमें जोड़ दें तो अचंभे की बात नहीं होगी।
राजस्थानी भाषा में बादलों के नामों का नामकरण उनकी चाल-ढाल उनके आकार-प्रकार के अनुसार किया गया है। वर्षा ऋतु के बड़े बादलों का नाम शीखर और छोटे-छोटे लहरदार बादल छितरी कहलाते हैं। बड़े बादलों के समूह में अलग छूटा हुआ  छोटा सा बादल भी इन नामों की गिनती में नहीं छूटता। उसे चुंखलो कहकर बतलाया जाता है। हवा के रथ में बैठकर बरसने के लिए दूर से आता हुआ बादल कलायण कहलाता है। काले बादलों की घटा के आगे सफेद बादलों की ध्वजा सी फहरती जो दिखती है, उसे कोरण अथवा कागोलड़ कहा जाता है। सफेद ध्वजा के बिना काली घटा जो आती दिखती है उसे कांठल कहते हैं।इतने नामों के बादल अगर एक साथ आकाश में हो तो चारों दिशाएं भी छोटी पड़ जाएगी।  ऊंचाई-निचाई और बीच में उड़ने वाले बादलों के नाम भी अलग-अलग मिल जाएंगे।

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