मोहिनीअट्टम नृत्य।Mohiniattam Dance।
मोहिनीअट्टम नृत्य |
भारतीय नृत्य शैली मोहिनी अट्टम।Indian Classical Dance Mohiniattam।
भरतनाट्यम,कुचिपुड़ी और ओडीसी की ही भांति मोहिनीअट्टम भी देवदासी नृत्य परंपरा की विरासत है।मोहिनी शब्द का आशय उस युवती से है जो इच्छाओं को प्रेरित करती है या दर्शकों का हृदय जीत लेती है। एक विख्यात कथा है की विष्णु भगवान ने शिव को आकृष्ट करने हेतु मोहिनी का रूप धारण किया था। क्षीर सागर मंथन और भस्मासुर वध दोनों प्रसंगों में। इसलिए ख्याल है कि वैष्णव भक्तों ने इस नृत्य शैली को मोहिनीअट्टम नाम दिया।
प्रारूप में यह भरतनाट्यम जैसा ही है।गति ओडीसी की ही भांति शालीन पर वेशभूषा सादी और आकर्षक होती है।यह मुलत: एकल नृत्य है। मोहिनीअट्टम का सर्वप्रथम उल्लेख 16वीं शताब्दी के मषमंगलम नारायणन नंबूदिरि द्वारा विरचित “व्यवहारमाला” में मिलता है।
मोहिनीअट्टम नृत्य का इतिहास।History of Mohiniattam Classical Dance।
19वीं शताब्दी में भूतपूर्व त्रावणकोर के शासक स्वाति तिरुनाल ने इस नृत्य शैली को प्रोत्साहित करने और इसे स्थित रूप प्रदान करने की बड़ी कोशिश की। कवि वल्लतोल ने ही इसका पुनरुद्धार किया और आधुनिक युग में 1930 में स्थापित केरल कलामंडलम के माध्यम से इसे प्रतिष्ठा पूर्ण स्थान दिलाया। वल्लतोल ने कला मंडल की स्थापना के साथ ही मोहिनी अट्टम के बचे कुचे जानकारों को ढूंढा तथा कल्याणी अम्मा, नागमणि गोपीनाथ और कल्याणीकुट्टी अम्मा जैसे लोगों को लेकर आए। कुछ उत्साही बच्चों को लाया गया और आज मोहिनीअट्टम भारत के लोकप्रिय शास्त्रीय नृत्य में से एक है।
वल्लतोल ने मोहिनीअट्टम के बचे हुए जानकारों के साथ मोहिनीअट्टम का एक स्वरूप खड़ा करने की कोशिश की।आज जो भी मोहिनीअट्टम होता है। वह कला मंडल शैली का कहलाता है। वल्लतोल ने कथकली की 24 मुद्राएं भी अभिनय के लिहाज से इस नृत्य शैली में शामिल की,किंतु इसके नैसर्गिक अंगों,कोमल पद संचालन और सौम्य अंग अभिनय को उन्होंने बरकरार रखा। आज वल्लतोल और कलामंडल शैली के मोहिनीअट्टम के कई आलोचक यह कहते हैं कि इस नृत्य शैली का कोई भी निश्चित रूप नहीं बन सका है। लेकिन यह बात तय है कि 1930 से पहले और बाद में मोहिनीअट्टम यदि नजर आता है तो यह वल्लतोल के ही प्रयासों का नतीजा है।
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