मीणाओं का महाकुंभ गौतम जी का मेला(GAUTAM JI MELA)

मीणाओं का महाकुंभ गौतमजी(भूरिया बाबा) का मेला

प्रिय पाठकगण,
आज मैं आप लोगों को मीणा समाज के महाकुंभ गौतम जी (भूरिया बाबा के मेले) के बारे में जानकारी दे रहा हूं।
अरावली पर्वत श्रंखला के बीच सुकड़ी नदी के किनारे पोसालिया कस्बे से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर मीणा समाज के आराध्य देव भगवान गौतम ऋषि महादेव का मंदिर स्थित है।

मंदिर परिसर में स्थित प्रमुख मंदिरों में भगवान गौतम ऋषि महादेव मंदिर, गंगा मैया मंदिर, चामुंडा माता मंदिर, मत्स्य अवतार श्री मिनेश भगवान मंदिर, मीणा संत शिरोमणि नाथ जी महाराज मंदिर, मीणा आदिपुरुष ऋषि मुनि व भगवान घाटमदास मंदिर व अन्य मीणा संत-साधूओ के मंदिर स्थित है।

सिरोही से कितनी दूरी पर है गौतम ऋषि का मंदिर?

यह मंदिर सिरोही जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर की दूरी पर व शिवगंज तहसील मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

भूरिया बाबा का जयघोष:

ऋषि मुनिवर घाटमदास महाराज को आमजन भूरिया बाबा के नाम से जानते हैं।और लोग मेले के दिन “भूरिया बाबा की जय” जय घोष के साथ मेला स्थल की तरफ प्रस्थान करते हैं। यह मेला मीणा समाज का अदभुत मिलन है। लगभग 3 लाख से अधिक लोग इस मेले में आते हैं। इस मेले में दक्षिणी राजस्थान के सिरोही, जालौर,पाली एवं मीणा समाज के पूरे भारतवर्ष में फैले हुए समाज बंधु इस मेले में भाग लेने के लिए आते हैं।
पाली, सिरोही,व जालौर के 11 परगना मीणाबंधु स्वयं को घाटमवंशी बताते है इसके अलावा मंदिर परिसर के आसपास मीणा समाज के ऐतिहासिक प्रमाण व इतिहास से संबंधित विभिन्न भवन व स्मारक स्थित है,जिनमें मीणा समाज के इतिहास और सांस्कृतिक पहलुओं की झलक देखने को मिलती है।

मीणाओं का महाकुंभ गौतम जी का मेला कब भरता है?

गौतम ऋषि महादेव अर्थात गौतम जी का मेला प्रतिवर्ष अप्रैल माह में 14 व 15 अप्रैल के दिन भरता है। इस मेले की तैयारियां मीणा समाज के बंधु कई दिनों पूर्व से शुरू कर देते हैं। एवं मेले की घोषणा होने के साथ ही मीणा समाज के लोग शराब को पूर्ण रूप से त्याग देते हैं,एवं मेला पूर्ण होने तक कोई भी मीणा समाज का व्यक्ति शराब को हाथ नहीं लगाता है। मेले में शराब पीकर आने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध रहता है। एवं इस मेले की समस्त व्यवस्था देखने का कार्य मीणा समाज के लोग ही करते हैं। इस मेले में वर्दीधारी पुलिस वालों का जाना सख्त रूप से बना होता है।

दक्षिण-पश्चिम राजस्थान का सबसे विशाल मेला गौतम ऋषि का मेला

पश्चिमी राजस्थान के सबसे विशाल मेले गौतम ऋषि के मेले में मेले के दिन साक्षात गंगा मैया का अवतरण होता है। जो किसी चमत्कार से कम नहीं है। यहां पर सुकड़ी नदी जो इस अप्रेल माह की तपतपाती गर्मी के बीच इस सूखी हुई नदी के अंदर अपने आप ही दो 3 फीट की गहराई पर गंगा मैया का आगमन हो जाता है। और पूरे मेले में लोग गंगा मैया का पूजन करते हैं। मीणा समाज के अंदर इस दिन का बहुत महत्व है।
इस मेले में मीणा समाज के सभी व्यक्ति मेले में भाग लेते हैं। एवं दो दिन तक वहीं पर रहते हैं। इस मेले की शासन प्रशासन की बागडोर प्राचीन काल से प्रचलित परंपरा के अनुसार मीणा समाज के पंच- पटेल व मीणा समाज के युवाओं के हाथ में होती है।जिसमें स्थानीय राज्य सरकार के कर्मचारी सहयोग करते हैं। परंतु वर्दीधारी पुलिस कर्मियों का मेले में प्रवेश वर्जित है।यह मीणा समाज की प्राचीन परंपरा है। यह मेला मीणा बंधुओं की सामाजिक एकता व समरसता का प्रतीक माना जाता है। यह एक विश्वसनीय धार्मिक स्थल है जो मीणा बंधुओं व आम जन की आस्था का केंद्र है।

भूरिया बाबा की शपथ के बाद कभी झूठ नहीं बोलते मीणा बंधु:

मीणा समाज में भूरिया बाबा के प्रति इतनी अगाध श्रद्धा है कि वे उनके नाम की शपथ लेकर कभी झूठ नहीं बोलते। एवं गलत कार्य भी नहीं करते हैं।
भूरिया बाबा का यह मेला आदिवासी मीणा समाज के लिए एक सांस्कृतिक और सामाजिक वार्षिक उत्सव की तरह होता है। यहां मेले की वर्षों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए मीणा समाज के लोग अपने अस्थाई बसेरों(एताईयो) में अपने रिश्तेदारों, मित्रों तथा विशेषकर जवाईयो को बुलाकर उनकी मेहमान नवाजी करते है। इसमें सबसे खास बात यह है कि मेले के दौरान यह लोग अपने जमाई को अपने अस्थाई बसेरो में बुलाते हैं व उनके स्वागत एवं सम्मान में महिलाएं व युवतियां लोकगीत गाती है।
मीणाओं का महाकुंभ गौतम जी का मेला(GAUTAM JI MELA)

इस अवसर पर मीणा समाज के लोग अपने जवान लड़के-लड़कियों के शादी के रिश्ते भी तय करते हैं। एवं अस्थाई बसेरो पर रिश्तेदारों जवाइयों व मित्रों को भोजन, मिष्ठान, चूरमा की मनवार की जाती है। मेले में श्रद्धा और आस्था का ज्वार इतना अधिक होता है कि संपूर्ण परिसर में दिनभर भूरिया बाबा के जयकारे गूंजते रहते हैं।

महाआरती में श्रद्धालु हवन कुंड में नारियल की आहुतियां देकर सुख- समृद्धि की कामना करते हैं। मेले की अंतिम घड़ी तक मेले में हाट बाजार से खरीदारी करना,सगे संबंधियों से मिलना, खाने-पीने की एक दूसरे को मनवार करना एवं अपने भक्ति व शक्ति के संगम के रूप में इस मेले का आनंद लेना।
मेले में बच्चों के लिए खिलौनों की दुकाने, झूले एवं खानपान की कई दुकानें लगती है। जो मेले की शोभा बढ़ाती है।
मेले में उत्साह एवं उमंग की अनोखी सांस्कृतिक झांकी दृष्टिगत होती है। जब युवा पांव में घुंघरू, हाथ में रंग-बिरंगी रिबन व अन्य सामग्री के साथ सज-धज कर, नृत्य करते हुए भूरिया बाबा के यश गीत गाते नजर आते हैं। आदिवासियों का उत्साह इतना अधिक होता है कि मेले की अंतिम घड़ी तक वे इसका भरपूर आनंद लेते हैं।

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