महिला शक्ति: राजस्थान की 15 इतिहास प्रसिद्ध महिलाएँ(15 Historical Famous Women Of Rajasthan)
राजस्थान जिसे आजादी से पूर्व राजपूताना के नाम से जाना जाता था। राजपूताने का इतिहास वीरता व शौर्य से भरा पड़ा है यहां हर 10 कोस पर लियोनार्डो द विंची जैसे योद्धा जन्मे है।पुरुषों के साथ ही साथ महिलाएं भी यहां पर वीरता व पराक्रम में पीछे नहीं रही है चाहे मुगल काल में जौहर की ज्वाला में धधक कर अपने प्राणों की आहुति दे देना हो या स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का साथ देना।
राजस्थान की महिला शक्ति इतिहास के पन्नों में अगर हम नजर डालें तो हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर चली है। यहां मैं आपको भक्ति मार्ग, अंग्रेजों का विरोध व अन्य क्षेत्रों में ऐतिहासिक उपलब्धि वाली राजस्थान की 15 महिलाओं के बारे में बताने जा रहा हूं।
राजस्थान की इतिहास प्रसिद्ध 15 महिलाएं:
1. चित्तौड़गढ़ की महारानी पद्मिनी
राणी पद्मिनी सिंगल दीप की राजकुमारी व मेवाड़ के महाराणा राणा रतन सिंह की पत्नी थी। कहां जाता है कि 1303 में जब अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया था तब धोखे से राणा रतन सिंह को बंदी बनाकर अपने साथ ले गया था। एवं वहां ले जाकर अपने किले में कैद करवाया था। तब रानी पद्मिनी ने उन्हें वहां से निकालने के लिए दो वीरो- गोरा और बादल को चुनिंदा सैनिको के साथ भिजवाया था। गोरा-बादल ने अद्भुत रण-कौशल दिखाते हुए अलाउद्दीन खिलजी के चंगुल से राणा रतन सिंह को छुड़ा लिया था। अलाउद्दीन के किले में ही इन मेवाड़ी वीरों ने जबरदस्त मारकाट मचा दी थी।जिस पर क्रोधित होकर अलाउद्दीन खिलजी ने 1303 ईस्वी में अपनी पूरी सेना के साथ में चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया था इस आक्रमण में राणा रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गए थे एवं महारानी पद्मिनी ने अन्य स्त्रियों के साथ जोहर कर लिया था। महारानी पद्मिनी के इस बलिदान को प्रत्येक भारतवासी सदैव याद रखेगा।
2. कृष्ण भक्त मीराबाई
मीराबाई का जन्म मेड़ता राजघराने में हुआ था।इनके पिता का नाम रतन सिंह था। मीराबाई का विवाह मेवाड़ के महाराणा सांगा के पुत्र भोज के साथ हुआ था।विवाह के सात वर्ष बाद भोजराज की मृत्यु के बाद मीरां इस संसार से विरक्त हो गई।और अपना सम्पूर्ण ध्यान कृष्ण भक्ति पर ही केन्द्रित कर दिया।मीराबाई को आमतौर पर श्री कृष्ण की भक्ति का त्रिस्तंभ भी माना जाता है। परंतु मीरा ने राजसी परिवार से होने के बावजूद समाज में व्याप्त विष्नेताओ का तिरस्कार करके एक निम्न जाती के संत रविदास जी को अपना गुरु बनाया।
3. डूंगरपुर की कालीबाई भील
डूंगरपुर जिले के गांव रास्तापाल की निवासी भील कन्या कालीबाई रास्तापाल की पाठशाला में पढ़ती थी। जून 1947 में डूंगरपुर महारावल के फरमान के बावजूद जब रास्तापाल की पाठशाला बंद नहीं की गई तो पुलिस सुपरिटेंडेंट एवं मजिस्ट्रेट दल-बल सहित पाठशाला बंद कराने पहुंचे। जब पुलिस ने पाठशाला बंद कर इसकी चाबी उनके सुपर्द करने का आदेश दिया तो प्रजामंडल कार्यकर्ता नानाभाई खाट ने मना कर दिया। इस पर सिपाहियों ने नानाभाई खाट की पिटाई कर अध्यापक सेंगाभाई को ट्रक से बांध कर घसीटना शुरू कर दिया। इस पर 13 वर्षीय भील बालिका काली भाई जो अपने खेत से घास काट कर लौट रही थी। तब उसने अपने गुरु सेंगाभाई को ट्रक के पीछे घसीटते देखा। तो वह भी ट्रक के पीछे दौड़ पड़ी और चिल्लाने लगी- मेरे गुरु जी को कहां ले जा रहे हो? ट्रक को रुकते देखकर उसने सिपाहियों की चेतावनी की परवाह किए बिना दराँती से सेंगाभाई के कमर से बंधी रस्सी काट दी। मगर तभी पुलिस की गोलियों ने कालीबाई को छलनी कर दिया। यह घटना 18 जून 1947 की है। अंत में अपने गुरु को बचाने के प्रयास में काली बाई ने 20 जून 1947 ईस्वी को दम तोड़ दिया। रास्तापाल में काली बाई की स्मृति में एक स्मारक बना हुआ है। डूंगरपुर में गैप सागर के किनारे एक पार्क में काली बाई की मूर्ति भी लगी हुई है।
4. अलवर की आनंद कुंवरी
अलवर नरेश विजय सिंह की पटरानी आंनद कुंवरी ने भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति से ओत-प्रोत होकर 1910 ईस्वी के लगभग 105 गेय पद तथा 5 दोहों का एक ग्रंथ लिखा जिसमें प्रत्येक पद अलग रागिनी पर आधारित है। इस ग्रंथ में मेवाती भाषा मिश्रित ब्रज का उपयोग किया गया है।
5. नागौर की करमा बाई
करमा बाई का जन्म नागौर जिले में हुआ था। यह जाट परिवार में जन्मी थी। करमा बाई भगवान जगन्नाथ की भक्त कवियत्री थी। मान्यता है कि भगवान ने उनके हाथ से खिचड़ा खाया था। इस घटना की स्मृति में आज भी जगन्नाथपुरी में भगवान को खिचड़ा परोसा जाता है।
6. मांड गायिका गवरी देवी
सन 1920 ईस्वी में जोधपुर में जन्मी गवरी देवी मांड गायकी के लिए प्रसिद्ध है।इनके पिता बंसीलाल बीकानेर महाराजा गंगा सिंह के दरबारी गायक थे। यह 24 वर्ष की आयु में विधवा हो गई थी। उसके बाद जोधपुर नरेश उम्मेद सिंह के दरबार में रही। बाद में रीवा चली गई। इन्होंने 1979 ईस्वी में रूस में आयोजित भारत महोत्सव में भी भाग लिया था। सन 1988 ईस्वी में 68 वर्ष की आयु में इनका निधन हुआ। गवरी देवी ने विश्व स्तर पर मांड गायकी का प्रचार-प्रसार किया।
7. वागड़ की मीरा गवरी बाई
डूंगरपुर जिले के ब्राह्मण परिवार में जन्मी गवरी बाई बाल विधवा थी। कृष्ण भक्ति के कारण इन्हें वागड़ प्रदेश की मीराबाई भी कहा जाता है। इन्होंने “कीर्तन माला” नामक ग्रंथ की रचना की थी।जिसमें 801 पद है। 1818 ईस्वी में इन्होंने यमुना जी में जल समाधि ली थी।
8. ब्रजकंवरी बाकावती
ब्रजकंवरी का जन्म 1760 ई. में जयपुर राज्य के लिवाणा ठिकाने में हुआ था। एवं इनका विवाह किशनगढ़ के महाराजा राज सिंह के साथ हुआ था। ब्रजकवरी भगवान कृष्ण की बड़ी भक्त थीं।उन्होंने बृजदासी के नाम से भक्ति परक काव्य की रचना की। श्रीमद्भागवत का दोहा चौपाई में पांच खंडों में अनुवाद भी किया। जिसे ब्रजदासी भागवत कहा जाता है। इनके अन्य ग्रंथों में सालव जुद्ध, आशीष संग्रह तथा व्याव विहारी है।इनकी भाषा राजस्थानी मिश्रित ब्रज है।
9. उदयपुर की राजकुमारी कृष्णा कुमारी
1803 ई. मैं राजा मानसिंह जोधपुर राज्य की गद्दी पर बैठे। उनके पूर्व में जोधपुर नरेश भीम सिंह की सगाई उदयपुर की राजकुमारी कृष्णा कुमारी के साथ हुई थी। किंतु विवाह होने से पहले ही जोधपुर नरेश भीम सिंह की मृत्यु हो गई। इस पर मेवाड़ नरेश भीम सिंह ने कृष्णा कुमारी का संबंध जयपुर के राजा जगत सिंह के साथ कर दिया। जोधपुर के नए राजा मानसिंह ने महाराणा को लिखा कि कृष्णा कुमारी का विवाह तो जोधपुर नरेश से होना निश्चित हुआ था इसलिए राजकुमारी का विवाह मेरे साथ किया जाए। मानसिंह की इस बात से जयपुर नरेश बिगड़ गया और उसने पोकरण ठाकुर सवाई सिंह के साथ मिलकर जोधपुर राज्य पर आक्रमण कर लिया। इस युद्ध में बीकानेर नरेश सूरत सिंह भी जयपुर की तरफ से जोधपुर राज्य पर चढ़ गए। जोधपुर नरेश मानसिंह ने पिंडारी नेता अमीर खां की सेवाओं को प्राप्त किया और अमीर खां उदयपुर गया तथा उसने महाराणा को उकसाया कि वह राजकुमारी कृष्णा कुमारी को अपने हाथों से जहर दे दे अन्यथा उसे जोधपुर राज्य तथा पिंडारियों की सम्मिलित सेना से निपटना पड़ेगा। महाराणा भीमसिंह के शक्तावत सरदार अजीत सिंह ने भी आमिर खान का समर्थन किया।जब कृष्णा कुमारी ने देखा कि उसके कारण लाखों हिंदू वीरों के प्राण संकट में आने वाले हैं तो उसने जहर पी लिया। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महाराणा ने अपने हाथों से राजकुमारी कृष्णा कुमारी को जहर पिला दिया। जब चुंडावत अजीत सिंह को इस बात का पता लगा तो उसने भरे दरबार में महाराणा भीमसिंह की निंदा की तथा शक्तावत अजीत सिंह और उसकी पत्नी को श्राप दिया कि वे भी संतान की मृत्यु का कष्ट देखे। कहते हैं कि चुंडावत सरदार के श्राप से कुछ दिनों बाद ही शक्तावत अजीत सिंह के पुत्र और पत्नी की मृत्यु हो गई। शक्तावत अजीत सिंह जीवन से विरक्त होकर मंदिरों में भटकने लगा।
10.बणी-ठणी
यह किशनगढ़ रियासत के सुरसुरी गांव की गुजरी थी। तथा किशनगढ़ नरेश सामंत सिंह(नागरी दास) की प्रीत पात्री थी। राजा सामंत सिंह ने बनी-ठनी में राधा जी के रूप सौंदर्य की कल्पना करके राधा जी के अद्भुत चित्र बनाएं जो बनी ठनी के चित्र कहलाते हैं। इसे राजस्थान की मोनालिसा भी कहा जाता है। इसी से किशनगढ़ चित्र शैली का विकास हुआ। बनी ठनी स्वयं भी कृष्ण भक्त थी। तथा सदैव कृष्ण भक्ति में लीन रहती थी। भारत सरकार ने बनी ठनी पर एक डाक टिकट भी जारी किया था।
11. अल्लाह जिलाई बाई
बीकानेर की रहने वाली अल्लाह जिलाई बाई मांड गायकी के लिए प्रसिद्ध है। इन्हें 1982 में पद्मश्री से नवाजा गया था। इन के गाए हुए गीत “केसरिया बालम आवो नी पधारो म्हारे देश” को राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिली। 1992 ई. में इस सुर कोकिला का निधन हुआ।
12. गींदोली
राव मल्लीनाथ के समय में मारवाड़ के मालाणी परगने के सिणली गांव की स्त्रियां गौरी पूजन के लिए गांव से बाहर स्थित तालाब पर गई थी। उस समय गुजरात का बादशाह उनका अपहरण करके उन्हें वहां से ले गया। इस पर मल्लिनाथ का वीर पुत्र जगमाल उनके पीछे गया। उसने बादशाह को युद्ध में परास्त करके हिंदू स्त्रियों को छुड़वा लिया तथा साथ ही बादशाह की शहजादी गींदोली को भी उठा लाया। मारवाड़ में आज भी गींदोली की स्मृति में यह गीत गाया जाता है- ‘गींदोली जगमाल म्हाले, गींदोली किम दीजे हो राज।
बादशाह ने गींदोली को छुड़वाने के लिए कई प्रयास किए, किंतु जगमाल ने गींदोली को नहीं छोड़ा और अपने रंग महल में रख लिया। इसके संबंध में कहा जाता है:-
“गींदोली गुजरात सूं, असपत री थी आण।
राखी रंग निवास में, थे जगमा जुवान।।”
कहीं-कहीं यह प्रसंग भी मिलता है कि जगमाल स्वयं युद्ध पर नहीं गया था। उसका सेनापति ओपजी गींदोली का हरण करके लाया था।
13. नन्ही भगतण
मारवाड़ नरेश जसवंत सिंह द्वितीय की प्रीत पात्री नन्ही भक्तन जोधपुर राज्य में अत्यंत प्रभावशाली महिला थी। एक बार महर्षि दयानंद सरस्वती ने राजा जसवंत सिंह को मदिरा के नशे में धुत होकर नन्ही भगतण की पालकी को अपने कंधे पर उठाए हुए देख लिया। इससे क्रोधित होकर महर्षि दयानंद ने राजा को धिक्कारा। इससे कुपित होकर नन्ही भगतण ने महर्षि दयानंद को विष दे दिया। महर्षि को अजमेर ले जाया गया। जहां कुछ दिनों बाद उनका निधन हो गया।
14. रूठी रानी उमादे
उमादे जैसलमेर के रावल लूणकरण की पुत्री थी। इनका विवाह 1536 ईसवी में मारवाड़ के शासक राव मालदेव के साथ हुआ था। विवाह के अवसर पर अत्यधिक मदिरापान करने पर मालदेव दासी के शयन कक्ष में चले जाने से उमादे राव मालदेव से रूठ गई। यह इतिहास में रूठी रानी के नाम से विख्यात हो गई और अजमेर के दुर्ग में ही रहने लगी। शेरशाह के अजमेर पर आक्रमण की आशंका को देखते हुए मालदेव ने उन्हें जोधपुर बुलवाया मगर मालदेव की अन्य रानियों ने उसे जोधपुर आने से रोकने के लिए आसा नामक चारण कवि को उसके पास भेजा। उसने रानी को एक दोहा सुनाया और उस दोहे को सुनकर उमादे ने जोधपुर जाने से इंकार कर दिया। उसने कोसाने में अपना डेरा डाल दिया और यही रहने लगी। 1547 ईस्वी में यह अपने दत्तक पुत्र राम के साथ गुंदोज चली गई। वहां से उसी के साथ केलवा जाकर रहने लगी। राव मालदेव की मृत्यु होने पर वह सती हुई।
15. अमृता देवी बिश्नोई
अमृता देवी विश्नोई का संबंध राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव से है। जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में भाद्रपद शुक्ल दशमी सन 1730 ईस्वी में विश्नोई संप्रदाय के 363 स्त्री-पुरुषों ने अमृता देवी विश्नोई के नेतृत्व में वृक्षों को काटने से बचाने हेतु पेड़ों से लिपट कर अपने प्राण त्याग दिए। इन की स्मृति में खेजड़ली गांव में भाद्रपद शुक्ला दशमी को प्रतिवर्ष विशाल मेले का आयोजन होता है। विश्नोई समाज में कहा जाता है- “सिर साठे रुख रहे तो भी सस्ता जाण।”
कहे अमृता सुनो,निज धर्म की आण।
सिर सांटे रूंख रहे, तो भी सस्तो जाण।
खेजड़ली शहीदी दिवस के पावन अवसर पर मां अमृता देवी एवं 363 शहीदों को मेरा शत्-शत् नमन।
वृक्षों की रक्षा के लिए अपना जीवन न्योछावर कर देने की विश्व में ऐसी कोई अन्य मिसाल नहीं है।
यह महान बलिदान युगों-युगों तक आने वाली पीढिय़ों के लिए प्रेरणा देता रहेगा।