शिवरात्रि क्यों मनाई जाती है, शिवरात्रि पूजन विधि एवं कथा। Why Shivratri is celebrated? Shivaratri worship method and story।
प्रिय पाठको,
शिवरात्रि के पावन पर्व की सभी शिव भक्तों को हार्दिक शुभकामनाएं।
शिवरात्रि का यह पर्व फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाया जाता है। वास्तव में महाशिवरात्रि त्रयोदशी की रात्रि के मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि सृष्टि के आदि में इसी दिन भगवान शंकर का ब्रह्मा से रुद्र के रूप में रात्रि के मध्य में अवतरण हुआ था।प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं।इसीलिए महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा गया है।
तीनों लोको की अपार सुंदरी तथा शीलवती गौरा को अर्धांगिनी बनाने वाले शिव प्रेतों तथा भूतों से घिरे रहते हैं। उनके शरीर पर मसानो की भस्म लगी रहती है।गले में सर्पों का हार शोभा पाता है। गले में विष है। जटाओं में जगत्तारिणी पावन गंगा है,तो माथे में प्रलयंकारी ज्वाला।बैल को वाहन के रूप में स्वीकार करने वाले शिव अमंगल रूप होने पर भी भक्तों को मंगल, श्री तथा सुख संपदा प्रदान करते हैं।कालों के काल देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है। महाशिवरात्रि के इस व्रत को ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र ,नारी, बालक ,वृद्ध हर कोई कर सकता है।
महाशिवरात्रि की पूजन विधि क्या है?(What is the worship process of Mahashivratri )
महाशिवरात्रि के इस व्रत के दिन प्रातः काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर स्नान कर शुद्ध धुले वस्त्र धारण कर श्रद्धा भक्ति सहित व्रत रखकर मंदिर में अथवा घर पर ही शिव पार्वती की पूजा गंगाजल, बिल्वपत्र ,पुष्प (यदि उपलब्ध हो तो पीले कनेर के पुष्प),रोली ,मौली, अक्षत (चावल ),तांबूल (पान),पुंगी फल (सुपारी),धतूरे के फल, आक फल,पुष्प,पत्र, इलायची, लौंग, दूध ,घी ,शहद, चीनी ,कमलगट्टा, प्रसाद, भांग इत्यादि से पूजन करें।भोग लगावे। आरती उतारे।धूप दीप समर्पित करें।’शिव चालीसा’ अथवा ‘शिव सहस्त्रनाम’ का पाठ करें। ओम नमः शिवाय ,ॐ महेश्वराय नमः इत्यादि दिव्य शिव मंत्रों का जाप करें।पाठ और जाप के पश्चात शंकरजी पर घोटी पीसी भांग चढ़ाये।
व्रत करने वाला व्रत के दिन झूठ ,प्रमाद ,लोभ ,क्रोध ,काम इत्यादि से दूर रहे। व्रत के दिन नमक और अन्न का सेवन ना करें। केवल फलाहार करें। फलाहार शाम को करना चाहिए। रात्रि में जागरण करें तथा भजन कीर्तन करें ।शिवरात्रि का व्रत एक महाव्रत है। इसकी महिमा का पुराणों में बड़ा गुणगान किया गया है।
महाशिवरात्रि की कथा(story of mahashivratri)
किसी गांव में एक ब्राह्मण परिवार रहता था ब्राह्मण का लड़का चंद्रसेन दुष्ट और पापी था।बड़े हो जाने पर उसकी इस नीच प्रवृत्ति का विकास होने लगा।वह बुरी संगत में पड़कर चोरी तथा जुए आदि में उलझ गया।चंद्रसेन की मां बेटे की हरकतों से परिचित होते हुए भी अपने पति को कुछ बताती नहीं थी।एक दिन ब्राह्मण अपने यजमान के यहां से पूजा करके लौट रहे थे तो मार्ग में दो लड़कों को सोने की अंगूठी के लिए लड़ते पाया।एक कह रहा था -यह अंगूठी चंद्रसेन से मैंने जीती है, दूसरी यह हट किये था कि अंगूठी चंद्रसेन से मैंने जीती है।यह सब देख -सुनकर बेचारा ब्राह्मण बहुत दुखी हुआ उसने दोनों लड़कों को समझा-बुझाकर अंगूठी वापस ले ली।घर आते ही ब्राह्मण ने पत्नी से चंद्रसेन के बारे में पूछा।उत्तर में उसने कहा -यही तो खेल रहा था अभी? पर चंद्रसेन तो पिछले 5 दिनों से लापता था।
ब्राह्मण ऐसे घर क्षण भर भी नहीं रहना चाहता था।जहां उसका जुआरी तथा चोर बेटा रह रहा है तथा उसकी मां उसके अवगुणों पर हमेशा पर्दा डालती हो। घर से ही कुछ चुरा ले जाने के लिए चंद्रसेन आ ही रहा था, कि दोस्तों ने पिता की नाराजगी उस पर जाहिर कर दी।चंद्रसेन उल्टे पांव भाग निकला रास्ते में कहीं मंदिर के पास कीर्तन हो रहा था।भूखा चंद्रसेन कीर्तन मंडली में बैठ गया उस दिन शिवरात्रि थी।
भक्तों ने शंकर पर तरह-तरह का भोग चढ़ा रखा था। चंद्रसेन इसी भोग सामग्री को चुराने की ताक में लग गया।कीर्तन करते -करते भक्तगण धीरे-धीरे सो गए।सब को सोया जानकर चंद्रसेन ने मौके का लाभ उठाकर भोग की चोरी की और वहां से भाग निकला। मंदिर से बाहर निकलते ही किसी भक्त की आंख खुली और उसने चंद्रसेन को भागते देख कर चोर- चोर शोर मचाया। लोगों ने उसका पीछा किया। भूखा चंद्रसेन भाग न सका और किसी डंडे के प्रहार से चोट खाकर गिरते ही मृत्यु को प्राप्त हो गया।अब मृतक चंद्रसेन को लेने शंकर के गण तथा यमदूत एक साथ वहां आ पहुंचे। यमदूतो के अनुसार चंद्रसेन नर्क का अधिकारी था। कारण उसने पाप ही किए थे।शिव के गणों के अनुसार चंद्रसेन स्वर्ग का अधिकारी था। कारण वह शिव भक्त था।
चंद्रसेन ने पिछले 5 दिनों से भूखा रहकर व्रत किया था शिवरात्रि को जागरण जो किया था।चंद्रसेन ने शिव पर चढ़ा हुआ नैवेध नहीं खाया था। वह तो नैवेध खाने से पूर्व ही प्राण त्याग चुका था। इसलिए भी शिव के गणों के अनुसार वह स्वर्ग का अधिकारी था। ऐसा भगवान शंकर के अनुग्रह से ही हुआ था। इस प्रकार चंद्रसेन मोक्ष का अधिकारी हुआ। यमदूत खाली हाथ लौटे और चंद्रसेन को भगवान शिव के सत्संग मात्र से ही मोक्ष मिल गया। पार्वती जी ने भगवान शिवशंकर से पूछा कि ऐसा कौन सा श्रेष्ठ पूजन है जिससे मृत्युलोक के प्राणी आपका सायुज्य सहज ही प्राप्त कर लेते हैं ।उत्तर में पार्वती को शिव जी ने शिवरात्रि के व्रत का विधान बताकर अपने मत की पुष्टि की।
फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी की महाशिवरात्रि को शिव और पार्वती विवाह का दिन भी माना जाता है। शिव विवाह की पौराणिक कथा कई तरह से पढ़ने और सुनने को मिलती है। यहां पढ़िए शिव विवाह की पौराणिक कथा।
शिव चालीसा (SHIV CHALISA)
॥दोहा॥
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥
॥चौपाई॥
जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥
भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥
अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥
मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥
नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥
कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥
देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥
किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥
तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥
आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥
किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥
दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥
कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥
पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा। जीत के लंक विभीषण दीन्हा॥
सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥
एक कमल प्रभु राखेउ जोई। कमल नयन पूजन चहं सोई॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भए प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
जय जय जय अनन्त अविनाशी। करत कृपा सब के घटवासी॥
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै। भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै॥
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो। येहि अवसर मोहि आन उबारो॥
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो। संकट ते मोहि आन उबारो॥
मात-पिता भ्राता सब होई। संकट में पूछत नहिं कोई॥
स्वामी एक है आस तुम्हारी। आय हरहु मम संकट भारी॥
धन निर्धन को देत सदा हीं। जो कोई जांचे सो फल पाहीं॥
अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी। क्षमहु नाथ अब चूक हमारी॥
शंकर हो संकट के नाशन। मंगल कारण विघ्न विनाशन॥
योगी यति मुनि ध्यान लगावैं। शारद नारद शीश नवावैं॥
नमो नमो जय नमः शिवाय। सुर ब्रह्मादिक पार न पाय॥
जो यह पाठ करे मन लाई। ता पर होत है शम्भु सहाई॥
ॠनियां जो कोई हो अधिकारी। पाठ करे सो पावन हारी॥
पुत्र होन कर इच्छा जोई। निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई॥
पण्डित त्रयोदशी को लावे। ध्यान पूर्वक होम करावे॥
त्रयोदशी व्रत करै हमेशा। ताके तन नहीं रहै कलेशा॥
धूप दीप नैवेद्य चढ़ावे। शंकर सम्मुख पाठ सुनावे॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्त धाम शिवपुर में पावे॥
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी। जानि सकल दुःख हरहु हमारी॥
॥दोहा॥
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करौं चालीसा। तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश॥
मगसर छठि हेमन्त ॠतु, संवत चौसठ जान। अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण॥
चमत्कारी दिव्य शिव मंत्र
चमत्कारिक शिव मंत्र
1. ॐ शिवाय नम:
2. ॐ सर्वात्मने नम:
3. ॐ त्रिनेत्राय नम:
4. ॐ हराय नम:
5. ॐ इन्द्रमुखाय नम:
6. ॐ श्रीकंठाय नम:
7. ॐ वामदेवाय नम:
8. ॐ तत्पुरुषाय नम:
9. ॐ ईशानाय नम:
10. ॐ अनंतधर्माय नम:
11. ॐ ज्ञानभूताय नम:
12. ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम:
13. ॐ प्रधानाय नम:
14. ॐ व्योमात्मने नम:
15. ॐ महाकालाय नम:
16. शिव गायत्री मंत्र : ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रूद्र प्रचोदयात्।।
17. ॐ ह्रीं नमः शिवाय ह्रीं ॐ।
18. ॐ नमः शिवाय
19. ॐ ऐं ह्रीं शिव गौरीमय ह्रीं ऐं ऊं।
20. ॐ आशुतोषाय नमः
21. ॐ बारह ज्योतिर्लिन्गाय नमः
शिव आरती
ॐ जय शिव ओंकारा, भोले हर शिव ओंकारा।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ हर हर हर महादेव…॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
तीनों रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
अक्षमाला बनमाला मुण्डमाला धारी।
चंदन मृगमद सोहै भोले शशिधारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता।
जगकर्ता जगभर्ता जगपालन करता ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका।
प्रणवाक्षर के मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी।
नित उठि दर्शन पावत रुचि रुचि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
लक्ष्मी व सावित्री, पार्वती संगा ।
पार्वती अर्धांगनी, शिवलहरी गंगा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
पर्वत सौहे पार्वती, शंकर कैलासा।
भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
जटा में गंगा बहत है, गल मुंडल माला।
शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ।। ॐ हर हर हर महादेव..।।
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ हर हर हर महादेव..॥
ॐ जय शिव ओंकारा भोले हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव अर्द्धांगी धारा ।। ॐ हर हर हर महादेव….।।…
देवाधिदेव महादेव से जुड़े अदभुत रहस्य
१–शिवजी की अष्टमूर्तियों के नाम क्या हैं ?
२–मनुष्य केशरीरमें अष्टमूर्तियाँ कहाँ कहाँ हैं ?
३–अष्ट मूर्तियों के तीर्थ कहाँ – कहाँ हैं ?
(१) अष्टमूर्तियों के नाम :
भगवान शिव के विश्वात्मक रूप ने ही चराचर जगत को धारण किया है| यही अष्टमूर्तियाँ क्रमश: पृथ्वी, जल, अग्नि,वायु,आकाश, जीवात्मा सूर्य और चन्द्रमा को अधिष्ठित किये हुए हैं |किसी एक मूर्ति की पूजा- अर्चना से सभी मूर्तियों की पूजा का फल मिल जाता है |
१———– शर्व
२————भव
३————रूद्र
४————उग्र
५————भीम
६————पशुपति
७————महादेव
८————ईशान
(२) मनुष्यों के शरीर में अष्ट मूर्तियों का निवास
१ आँखों में “रूद्र” नामक मूर्ति प्रकाशरूप है जिससे प्राणी देखता है
२ “भव ” ऩामक मूर्ति अन्न पान करके शरीर की वृद्धि करती है यह स्वधा कहलाती है।
३ “शर्व ” नामक मूर्ति अस्थिरूप से आधारभूता है यह आधार शक्ति ही गणेश कहलाती है।
४ “ईशान” शक्ति प्राणापन – वृत्ति को प्राणियों में जीवन शक्ति है।
५ “पशुपति ” मूर्ति उदर में रहकर अशित- पीत को पचाती है जिसे जठराग्नि कहा जाता है।
६ “भीमा ” मूर्ति देह में छिद्रों का कारण है।
७ “उग्र ” नामक मूर्ति जीवात्मा के ऐश्वर्य रूप में रहती है।
८ “महादेव ” नामक मूर्ति संकल्प रूप से प्राणियों के मन में रहती है।
इस संकल्प रूप चन्द्रमा के लिए
” नवो नवो भवति जायमान: ” कहा गया है ,
अर्थात संकल्पों के नये नये रूप बदलते हैं ||
(३) अष्टमूर्तियों के तीर्थ स्थल
१ सूर्य👉 सूर्य ही दृश्यमान प्रत्यक्ष देवता हैं|
सूर्य और शिव में कोई अन्तर नही है , सभी सूर्य मन्दिर वस्तुत: शिव मन्दिर ही हैं फिर भी काशीस्थ ” गभस्तीश्वर ” लिंग सूर्य का शिव स्वारूप है।
२ चन्द्र👉 सोमनाथ का मन्दिर है।
३ यजमान👉 नेपाल का पशुपतिनाथ मन्दिर है।
४ क्षिति लिंग👉 तमिलनाडु के शिव कांची में स्थित आम्रकेश्वर हैं।
५ जल लिंग👉 तमिलनाडु के त्रिचिरापल्ली में जम्बुकेश्वर मन्दिर है।
६ तेजो लिंग👉 अरूणांचल पर्वत पर है।
७ वायु लिंग👉 आन्ध्रप्रदेश के अरकाट जिले में कालहस्तीश्वर वायु लिंग है।
८ आकाश लिंग👉 तमिलनाडु के चिदम्बरम् मे स्थित है।
भवं भवानी सहितं नमामि
आप की माया आप को ही समर्पित है मुझ अज्ञानी में इतना सामर्थ्य कहाँ है जो आप की माया का वर्णन कर सकूँ।
तुलसीदास जी लिखते हैं…
सकल सुमंगल दायक रघुनायक गुन गान।
सादर सुनहिं ते तरहिं भव सिंधु बिना जलजान।।
प्रभु सियाराम स्नेही,
शुभम शिव श्रुति
🚩हर हर महादेव 🚩
🚩जय सियाराम 🚩
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