भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास स्वर्गीय राजीव गांधी का सपना।

भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग का विकास स्वर्गीय राजीव गांधी जी का सपना।DEVELOPMENT OF FOOD PROCESSING INDUSTRIES IN INDIA।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि देश के संपूर्ण विकास के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी ने दो प्रमुख क्षेत्रों के कायाकल्प एवं विकास की कल्पना की थी- सूचना तकनीकी और खाद्य प्रसंस्करण।
उन्होंने भारत को तकनीकी सुपर पावर तथा भारत के चहुमुखी विकास के लिए निर्धनतम वर्ग के विकास को एक अनिवार्य शर्त के रूप में माना था।

स्वर्गीय राजीव गांधी महान दूरदर्शी थे। उनके अंदर कल और आज को देखने की अद्भुत क्षमता थी। उन्होंने देश को वैश्विक आर्थिक ताकत बनाने का सपना देखा और महसूस किया कि भारत में ग्रामीण क्षेत्र के सशक्तिकरण से ही यह सपना सच होगा। स्वर्गीय राजीव जी ने कृषि के क्षेत्र में तकनीकी के प्रयोग पर विशेष ध्यान दिया और देश के विशाल कृषि स्रोतों को परंपरागत दायरे से ऊपर ले जाने की कोशिश की। उन्होंने भारत में मौजूद खाद्य प्रसंस्करण की असीम संभावनाओं को समझा और माना कि कृषि और संबंधित कार्यों में लगे लाखों लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार में यह क्षेत्र अहम भूमिका अदा कर सकता है। देश में खाद्य प्रसंस्करण मंत्रालय स्थापित करने का लक्ष्य किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाना तथा भारतीय कृषि को वाणिज्यिक स्वरूप प्रदान करना था। 


80 के दशक में भारत ने आईटी और टेलीकॉम क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की थी। उनका दूसरा सपना सच हुआ जब खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र एक संगठित उद्योग के रूप में विकसित हुआ। इस उद्योग की वजह से कृषि क्षेत्र में सुधार हुआ। किसानों को उचित लाभ मिले और रोजगार के अवसर भी बढे।

भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के प्रमुख कार्य

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के लिए राष्ट्रीय प्राथमिकताओं और लक्ष्यों के तहत योजनाएं एवं नीतियां बनाता है और उन्हें लागू करता है। यह मंत्रालय इस क्षेत्र में निवेश लाता है। उद्योगों को मार्गदर्शन प्रदान करता है। उनकी मदद करता है और खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास के लिए सहयोगी माहौल तैयार करता है। 

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय के प्रमुख लक्ष्य है- कृषि उत्पादों के बेहतर उपयोग और उनकी गुणवत्ता को बढ़ावा देना, भंडारण व्यवस्था में सुधार के जरिए खाद्य उत्पादों में होने वाली बर्बादी को कम करना और कृषि उत्पादों के प्रसंस्करण एवं परिवहन में सुधार करना है। इनके अलावा खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में आधुनिक तकनीकी को शामिल करना, शोध एवं विकास को प्रोत्साहित करना, बेहतर गुणवत्ता वाले निर्यात के लिए सुविधाएं एवं प्रोत्साहन प्रदान करना और खेतों से लेकर उपभोक्ताओं तक आपूर्ति श्रंखला के बीच की दूरी को कम करने के लिए उचित बुनियादी ढांचा प्रदान करना भी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय का कार्य है।

कृषि उत्पादक से संस्कृत खाद्य निर्यातक तक का भारत का सफर

स्वतंत्रता प्राप्ति के समय देश के सकल घरेलू उत्पाद में कृषि का योगदान लगभग 70% था। यह देश को 85% रोजगार प्रदान करता था। तब से देश की जीडीपी में कृषि की भागीदारी घटती रही है। वर्तमान में देश की जीडीपी में कृषि एवं संबद्ध क्षेत्र का योगदान 25% के लगभग है। लेकिन इस पर आज भी देश की 75% आबादी निर्भर है।औसत कृषि जीडीपी में भी कमी आई है। 80 के दशक में औसत कृषि जीडीपी दर 3.6 5% थी। जो 2006-07 में घटकर 1.5% हो गई। भारत दालो, दूध और चाय का सबसे बड़ा उत्पादक है। जबकि फलों, सब्जियों, चावल, गेहूं, गन्ने और खाद्य तेलों के उत्पादन में उसका दूसरा स्थान है। मुर्गी पालन में पांचवा और मछली उत्पादन में भारत का सातवां स्थान है।

भारत अपने फल एवं सब्जियों का मात्र 2%, दूध का 35%, मछली का 26% और मांस का 35% ही  प्रसंस्कृत करता है। इसके विपरीत विकसित देशों में प्रसंस्करण प्रतिशत 70-80 है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों के विकास से देश के किसानों की आय में काफी इजाफा होगा। खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में 13 मिलियन प्रत्यक्ष और 35 मिलियन अप्रत्यक्ष लोगों को रोजगार मिला हुआ है।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय का गठन जुलाई 1988 में किया गया। जिसका मकसद देश में खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों का विकास करना था। एक मजबूत और प्रभावशाली खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र कृषि के वाणिज्यीकरण विविधता प्रदान करने की दिशा में अहम भूमिका अदा करता है। यह क्षेत्र कृषि उत्पादों की गुणवत्ता बढ़ाने, रोजगार सृजन, किसानों की आय बढ़ाने और कृषि उत्पादों के लिए निर्यात बाजार तैयार करने में मदद करता है।

भारत में मेगा फूड पार्क

हरित क्रांति की वजह से भारत खाद्य पदार्थों की कमी की स्थिति से उबर कर अतिरिक्त उत्पादन की स्थिति में पहुंच गया है। लेकिन इस अतिरिक्त उत्पादन का भारतीय अर्थव्यवस्था को तब तक कोई लाभ नहीं मिलेगा जब तक इस उत्पादन का बेहतर ढंग से भंडारण एवं प्रसंस्करण और स्वच्छता एवं आकर्षक ढंग से पैकेजिंग नहीं की जाती है। भारत में खुलने वाले फूड पार्क इसे संभव बनाएंगे। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री के अनुसार मेगा फूड पार्क देश में खाद्य प्रसंस्करण की अवधारणा को बल देंगे। मेगा फूड पार्क एक औद्योगिक पार्क होगा। जिसका मकसद खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। इसके लिए सरकार ने 30 मेगा फूड पार्क स्थापित करने का लक्ष्य रखा था। 2015 तक 10 मेगा फूड पार्क बनाए जा चुके हैं। बाकी पर सरकार कार्य कर रही है।

मेगा फूड पार्क इस क्षेत्र की तरक्की के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होंगे। क्योंकि ये पार्क बड़े पैमाने पर निवेश को आकर्षित करेंगे। इन पार्कों में बड़े पैमाने पर आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिलने की संभावना है। मेगा फूड पार्क रोजगार सृजन के लिहाज से भी काफी महत्वपूर्ण होंगे। मेगा फूड पार्क एक सुनियोजित agri-horticultural प्रोसेसिंग जोन होगा, जहां पर प्रसंस्करण की बेहतरीन सुविधा उपलब्ध होगी। इसके अलावा यहां पर बेहतरीन बुनियादी ढांचा और सप्लाई चैन की भी स्थापना की जाएगी। इस प्रस्ताव योजना का उद्देश्य किसानों, प्रसंस्करण करने वालों और छोटे विक्रेताओं को साथ लाना है। साथ ही कृषि उत्पादों को बाजार तक ले जाना है, ताकि किसानों की आय में इजाफा हो और बर्बादी को कम किया जा सके और वैल्यू एडिशन को ज्यादा से ज्यादा बढ़ाया जा सके।

मेगा फूड पार्क का मकसद किसानों को रिटेल मार्केट से सीधे जोड़ना है, ताकि बिचौलियों की भूमिका को कम किया जा सके और किसानों को उनकी उपज का अधिक से अधिक लाभ दिलाया जा सके और यही स्वर्गीय राजीव गांधी जी का सपना था। यह पार्क 10 लाख लोगों को रोजगार प्रदान करेंगे। भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में ₹1 लाख करोड़ के निवेश की जरूरत होगी। इसमें 10% योगदान सरकार का होगा बाकी धन निजी क्षेत्र से आएगा।

वर्तमान में पंजाब, झारखंड, उत्तर पूर्व क्षेत्र, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड,तमिलनाडु, कर्नाटक, महाराष्ट्र व आंध्र प्रदेश में मेगा फूड पार्क स्थापित किए जाने की योजना है। 11वीं योजना के तहत 30 पार्क विकसित किए जाएंगे। शुरुआत में 10 पार्क विकसित किए जा चुके हैं। मेगा फूड पार्क में न केवल खाद्य उत्पादों के प्रसंस्करण के लिए स्थान मुहैया कराएंगे बल्कि उत्पादन से लेकर उपभोक्ता तक संपूर्ण चैन विकसित करेंगे। दरअसल इस योजना के पीछे यह सोच थी कि जब तक उत्पादन से उपभोग स्तर तक एक व्यापक समन्वयक चैन नहीं होगी इस उद्योग का समुचित विकास नहीं हो पाएगा। पार्क को 50% सब्सिडी दी जाएगी और बाकी धन निजी क्षेत्र द्वारा मुहैया कराया जाएगा। रांची में एशिया के सबसे बड़े मेगा पार्क बनाने के लिए एमओयू पर हस्ताक्षर किए जा चुके हैं, इसके अतिरिक्त हरिद्वार में विश्व के सबसे बड़े मेगा फूड पार्क बनाने का प्रस्ताव है।

खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में रोजगार

खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं और यह प्रसंस्कृत खाद्यों के लिए निश्चित रूप से दुनिया के बड़े बाजारों में से एक है। प्रसंस्करण उद्योग के जिन क्षेत्रों में तरक्की की भरपूर संभावनाएं हैं वह है- डेयरी, फल एवं सब्जियां, वाइन, कन्फेक्शनरी और मुर्गी उत्पाद। 

वे उत्पादन जिनके निर्यात बाजार में बढ़ोतरी हो रही है वह है- अचार, चटनी, फलों का गूदा, प्रसंस्कृत फल एवं सब्जियां,  डीहाइड्रेटेड सब्जियां और फ्रोजेन फल एवं सब्जियां और साथ ही  प्रसंस्कृत पशु आधारित उत्पाद।

संपूर्ण खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एक श्रम आधारित क्षेत्र है और यहां पर एक लंबी श्रृंखला के तहत होने वाले सभी गतिविधियों के प्रत्येक स्तर पर लोगों की जरूरत होती है। आधुनिक खाद्य प्रसंस्करण तकनीकी ने आज के सुपरमार्केट के विकास को आसान बनाया है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एक उपभोक्ता खाद्य उद्योग के रूप में विकसित हो रहा है। जिसमें पास्ता, ब्रेड, केक, पेस्ट्री, कॉर्नफ्लेक्स, रेडी टू ईट और रेडी टू कुक उत्पाद, बिस्किट, सॉफ्ट ड्रिंक्स, बियर, अल्कोहल पेय पदार्थ,मिनरल एवं पैकड वाटर शामिल है। इस तरह उपभोग खाद्य क्षेत्र का चलन तेजी से बढ़ रहा है।

21 जून 2007 में कैबिनेट ने एक समग्र योजना को अनुमति प्रदान की थी। जिसका मकसद भारत के खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को प्रोत्साहित करना और देश के कृषि विकास को बढ़ावा देना था। रिपोर्ट के मुताबिक देश में प्रसंस्कृत और पैकड खाद्य पदार्थों के करीब 400 मिलियन उच्च एवं मध्य वर्ग के उपभोक्ता है। इसके अलावा वर्ष 2030 तक 200 मिलियन उपभोक्ता और बढ़ जाएंगे। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भारत में अभी शैशवावस्था में है। लिहाजा इस क्षेत्र में रोजगार की भरपूर संभावनाएं है।

ग्लोबल फोकस

भारत के खाद्य निर्यात को बढ़ावा देने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता पर ध्यान देना जरूरी है। वैश्वीकरण और टैरिफ व non-tariff बाधाओं को हटाने की वजह से घरेलू बाजार में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता शुरू हो गई है। लिहाजा यह जरूरी हो गया है कि भारतीय उद्योग प्रतियोगिता में बने रहने के लिए खाद्य सुरक्षा एवं गुणवत्ता के मजबूत मानकों का पालन करें।

निष्कर्ष

इस क्षेत्र में कोल्ड चेन के रूप में बुनियादी ढांचे, पैकेजिंग सेंटर, वैल्यू ऐडेड सेंटर और आधुनिक बूचड़खानो का अभाव रहा है। इस क्षेत्र को ऊर्जा प्रदान करने के लिए बुनियादी ढांचे में सुधार करना बेहद जरूरी है। सरकार ने उद्योगों के विकास के लिए बुनियादी ढांचे के विकास और विस्तार को उच्च प्राथमिकता प्रदान की है। देश में कृषि एवं खाद्य क्षेत्र में अपर्याप्त बुनियादी ढांचा होना एक बड़ी समस्या है। इसलिए बुनियादी ढांचे के विकास को विशेष प्रमुखता प्रदान की गई है। खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में मौजूदा बुनियादी समस्याओं के समाधान के लिए खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय ने 10वीं योजना के दौरान बुनियादी ढांचे के विकास की तमाम योजनाएं लागू की थी। पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गांधी जी ने जो सपना किसानों की उन्नति के लिए देखा था वह खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा देने पर ही पूर्ण किया जा सकता है।

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