भारतीय लोकतंत्र की विधायिका: संसद Legislature of Indian Democracy: Parliament

भारतीय लोकतंत्र की विधायिका: संसद।(Legislature of Indian Democracy: Parliament)।


भारत की विधायिक को संसद कहा जाता है। संसद में राष्ट्रपति व दो सदन राज्यसभा और लोकसभा सम्मिलित होते हैं। राज्यसभा को उच्च सदन कहा जाता है, एवं लोकसभा को निम्न सदन। संसद के प्रत्येक सदन को अपनी पिछली बैठक के बाद 6 महीने के भीतर- भीतर  बैठक आहूत करनी आवश्यक होती है। कुछ मामलों में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक भी आयोजित की जाती है।

राज्यसभा क्या है?(What is Rajya Sabha?)

भारतीय संविधान के प्रावधान के अनुसार भारत में राज्यसभा के अंदर 250 सदस्य होते हैं। जिनमें से 238 सदस्य एकल संक्रमणीय मत द्वारा निर्वाचित होते हैं। एवं 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा नाम निर्देशित किए जाते हैं। जो साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा से जुड़े होते हैं। राज्यसभा के लिए निर्वाचन अप्रत्यक्ष होता है।राज्यों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व द्वारा एकल संक्रमणीय मत द्वारा उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा किया जाता है। और संघ शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों का निर्वाचन संसद द्वारा बनाए गए कानून के अनुसार किया जाता है राज्यसभा को उच्च सदन भी कहा जाता है। राज्यसभा को कभी भंग नहीं किया जा सकता है। हर दूसरे वर्ष में एक तिहाई सदस्य सेवानिवृत्त होते हैं और नए सदस्यों का निर्वाचन होता है। राज्यसभा के सदस्य का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।


लोकसभा क्या होती है?(What is Lok Sabha?)


संसद का निम्न सदन जिसका गठन जनप्रतिनिधियों द्वारा होता है, लोकसभा कहलाती है। इन जनप्रतिनिधियों का निर्वाचन जनता द्वारा व्यस्क मताधिकार और प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा किया जाता है। संविधान में दी गई व्यवस्था के अनुसार वर्तमान में भारतीय लोकसभा में अधिक से अधिक 552 सदस्य हो सकते हैं। जिनमें से 530 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं 20 सदस्य संघ शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। एवं दो सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो इंडियन समुदाय से किया जाता है। वर्तमान में भारतीय लोकसभा में 545 सदस्य हैं।

लोकसभा का कार्यकाल 5 वर्ष के लिए होता है। लोकसभा अपने प्रथम अधिवेशन के नियत तारीख से 5 वर्ष तक बनी रहती है, किंतु आपातकाल की स्थिति में संसद विधि द्वारा ऐसी अवधि को बढ़ा भी सकती है जो एक बार में 1 वर्ष से अधिक नहीं होती है। लोकसभा में बहुमत दल का नेता प्रधानमंत्री बनता है।

संसद के सदस्य के रूप में निर्वाचित होने के लिए व्यक्ति को भारत का नागरिक होना चाहिए । एवं राज्यसभा के लिए जिस की न्यूनतम आयु 30 वर्ष और लोकसभा के लिए न्यूनतम आयु 25 वर्ष से कम नहीं होनी चाहिए। एवं पागल एवं दिवालिया घोषित ना हो।

भारतीय संसद के कार्य और शक्तियां(Functions and Powers of Indian Parliament)

भारत की संसद के महत्वपूर्ण कार्यों में विधायिका कार्य, प्रशासनिक कार्य ,बजट पारित करना ,जनता की शिकायतों पर कार्रवाई करना, विकास योजनाएं बनाना ,अंतरराष्ट्रीय संबंध और राष्ट्रीय नीतियों पर चर्चा करना आदि शामिल होते हैं। कुछ परिस्थितियों में संसद राज्यों के लिए विशेष रूप से आरक्षित विषयों के संबंध में भी कानून पारित कर सकती है। भारतीय संविधान में यह भी प्रक्रिया दी गई है कि संसद में राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाकर तथा उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, मुख्य चुनाव आयुक्त एवं महा नियंत्रक एवं महालेखाकार को उनके पद से हटाने की शक्ति भी संविधान में दी हुई है। सभी कानूनों को संसद के दोनों सदनों की सहमति से ही पास किया जा सकता है। लेकिन मुद्रा विधेयक के संबंध में लोकसभा को सर्वोच्च शक्ति प्राप्त होती है। विधायिका शक्तियों के अतिरिक्त संसद आवश्यकता पड़ने पर संविधान में संशोधन भी कर सकता है। भारतीय संसद के कार्य की प्रकृति न केवल विविधता पूर्ण है, बल्कि आकार के हिसाब से बहुत अधिक है । इसे न्यूनतम समय में अधिक से अधिक कार्य करना पड़ता है।यह अपने समक्ष आने वाले सभी विधायी और अन्य विषयों की विस्तृत जांच नहीं कर सकता इसलिए इसके अधिकांश कार्य का निष्पादन समितियों द्वारा किया जाता है। संसद के दोनों सदनों की समितियों की बनावट एक जैसी होती है। जिसमें कोई अंतर नही पाया जाता है। इन समितियों की नियुक्ति, कार्यकाल,ओर कार्य करने की प्रक्रिया लगभग एक जैसी ही होती है।

सार रूप में हम कह सकते हैं कि संसदीय समितियां दो प्रकार की होती है- स्थाई समितियां और तदर्थ समितियां। स्थाई समितियों का चयन अथवा नियुक्ति प्रत्येक वर्ष अथवा समय -समय पर किया जाता है। यह समितियां लगभग हर समय स्थाई आधार पर काम करती रहती है। तदर्थ समितियों की नियुक्ति तदर्थ आधार पर आवश्यकता अनुसार ही की जाती है। और जैसे ही उनको सौपा गया कार्य पूरा हो जाता है, इन समितियों का कार्यकाल भी समाप्त हो जाता है।

क्या राज्य सरकारें भी विधायिका का भाग होती  है?(Are state governments also a part of the legislature?)

हां,राज्य सरकारें भी विधायिका का भाग होती है। जिस प्रकार से संसदीय संरचना केंद्र सरकार के लिए है। उसी तरह राज्य सरकार के लिए भी विधानसभा व विधानमंडल होते हैं। केंद्र सरकार की ही तरह राज्य सरकारें भी मंत्री मंडल द्वारा चलाई जाती है, जिनका नेतृत्व मुख्यमंत्री करता है। राज्य स्तर पर राज्यपाल संवैधानिक प्रधान होता है। राज्यपाल का कर्तव्य होता है कि वह संविधान की सुरक्षा करें व केंद्र के प्रतिनिधि के रूप में भी काम करें। राज्यपाल की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष के लिए की जाती है। और वह राष्ट्रपति की इच्छा से अपने पद पर बना रह सकता है। अर्थात राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने से पहले किसी भी समय राज्यपाल को उसके पद से हटाया भी जा सकता है। राज्यपाल को एक से अधिक बार उसी राज्य अथवा किसी अन्य राज्य में राज्यपाल के पद पर नियुक्ति करने में कोई प्रतिबंध भारत में नहीं है। भारत का कोई भी नागरिक जो 35 वर्ष की आयु का हो,उसे राज्यपाल बनाया जा सकता है। लेकिन शर्त यह रहेगी कि वह अपने कार्यकाल के दौरान किसी लाभ के पद पर नहीं रह सकता। राज्यपाल की नियुक्ति और बर्खास्तगी की प्रक्रिया स्पष्ट रूप से सुझाव देती है। व्यवहार में केंद्र को राज्यपाल को नियुक्त करने की शक्ति प्राप्त है।

जिस प्रकार से केंद्र में प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है । ठीक उसी प्रकार राज्य स्तर पर मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। एवं अन्य  मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल करता है। मंत्री अपने पद पर राज्यपाल की इच्छा तक ही बने रह सकते हैं। संसदीय लोकतंत्र की प्रथा के अनुसार किसी मंत्री के मामले में राज्यपाल की इच्छा का अर्थ है, मुख्यमंत्री की इच्छा। और सामूहिक रूप से मंत्री परिषद की इच्छाऔर विधानसभा का विश्वास। राज्यपाल मंत्री परिषद को भंग करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग कर सकता है। जब राज्यपाल मंत्री परिषद को भंग करता है तब राज्य का प्रशासन राष्ट्रपति की ओर से राज्यपाल करता है । इसलिए ऐसी अवस्था को राष्ट्रपति शासन कहा जाता है। केंद्र की तरह ही मंत्री बनने के लिए व्यक्ति का विधानसभा का सदस्य होना जरूरी है, किंतु किसी गैर सदस्य को भी मंत्री पद पर नियुक्त किया जा सकता है। लेकिन शर्त यह रहती है कि उसे 6 महीने के भीतर- भीतर विधानमंडल का सदस्य बनना जरूरी होता है।

भारतीय संविधान में आपातकालीन प्रावधान क्या है? (What is the emergency provision in the Indian Constitution?)

भारत के संविधान में विशेष परिस्थितियों में आपातकाल की घोषणा करने का भी प्रावधान किया हुआ है। आपातकाल की घोषणा करने की शक्ति राष्ट्रपति में निहित होती है। जो वास्तव में मंत्री परिषद की शक्ति होती है। किंतु मंत्रिपरिषद की सलाह पर राष्ट्रपति आपातकाल घोषित कर सकता है। संविधान में तीन प्रकार की आपातकालीन शक्तियों का उल्लेख है जो निम्न प्रकार है:

  1. भारत अथवा उसके किसी एक भाग की सुरक्षा को बाहरी आक्रमण अथवा भीतरी सशस्त्र विद्रोह से खतरा होने पर संपूर्ण भारत अथवा उसके किसी एक भाग के लिए आपातकाल की घोषणा की जा सकती है।
  2. किसी राज्य सरकार की व्यवस्था संविधान के प्रावधानों के अनुसार संचालित ना होने की स्थिति में राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की घोषणा की जा सकती है। जिसे राष्ट्रपति शासन कहा जाता है।
  3. भारत अथवा उसके किसी भाग की वित्तीय स्थायित्व को खतरा होने पर वित्तीय आपातकाल की घोषणा की जा सकती है।

भारत की कार्यपालिका द्वारा की गई किसी भी प्रकार की आपातकाल की घोषणा तभी मान्य होती है, जब संसद द्वारा उसकी पुष्टि की जाती है। राष्ट्रीय आपातकाल के समय केंद्रीय सरकार किसी भी राज्य को निर्देश दे सकती है। किसी विषय के संबंध में कानून बना सकती है । लोकसभा के कार्यकाल को बढ़ा सकती है। और मूल स्वतंत्रता और कुछ मूल अधिकारों को लागू करने के लिए न्यायालय जाने की स्वतंत्रता को प्रतिबंधित भी कर सकती है। भारत के किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा के मामले में राज्य सरकार की गतिविधियां केंद्र सरकार के अधीन आ जाती है। एवं वित्तीय आपातकाल की स्थिति में केंद्र सरकार किसी भी राज्य को निर्देशों में विनिर्दिष्ट किए गए नियमों के अनुसार वित्तीय कामकाज को निपटाने का निर्देश दे सकती है।

निष्कर्ष: निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि भारत एक राज्यों का संघ है। एवं एक संप्रभु, संपन्न,समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य है। इसमें संसदीय लोकतंत्र प्रणाली की सरकार है जिसके संविधान में एक ही विशेषताओं वाले संघ राज्य की व्यवस्था होती है। संविधान विधायी शक्तियों को केंद्रीय संसद और राज्य विधानसभाओं में विभाजित करता है। और शेष शक्तियां संसद को प्रदान करता है। संविधान को संशोधन करने की शक्ति भी संसद को प्रदान की गई है। भारत के अंदर कार्यपालिका का संवैधानिक प्रमुख राष्ट्रपति होता है। वास्तविक कार्यकारी शक्तियां मंत्रिपरिषद को प्रदान की गई है। जिसका प्रमुख प्रधानमंत्री को किया गया है। मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदाई होता है। इसी तरह से राज्य में राज्यपाल कार्यपालिका का प्रमुख होता है। लेकिन मुख्यमंत्री की अध्यक्षता में मंत्री परिषद को वास्तविक कार्यकारी शक्तियां प्रदान की गई होती है। संविधान सभी नागरिकों को व्यक्तिगत एवं सामूहिक रूप से मूल अधिकारों के रूप में कुछ बुनियादी अधिकार प्रदान करता है। जो वाद योग्य होते हैं। इन अधिकारों में अंतःकरण की और धर्म के वैध रूप से मानने,आचरण करने और प्रचार करने की स्वतंत्रता नागरिकों की किसी भी वर्ग को अपनी संस्कृति, भाषा अथवा लिपि को संरक्षित करने का अधिकार होता है। अल्पसंख्यकों को अपनी इच्छा अनुसार शैक्षिक संस्थाएं स्थापित करने और उनका प्रशासन चलाने का अधिकार भी इसमें शामिल है। 1976 में संविधान के 42 वें संशोधन से नागरिकों के मूल कर्तव्य को भी संविधान में शामिल किया गया है। संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व भी शामिल है। जो वाद योग्य होते हैं। नागरिकों के कल्याण के अलावा राज्य के नीति निदेशक सिद्धांत के अनुसार राज्य अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा का संवर्धन करता है। राष्ट्रों के बीच में न्याय और संबंधों को बनाए रखता है। और वार्ता के माध्यम से अंतरराष्ट्रीय विवादों का समाधान करने की भावना को प्रोत्साहित करता है।भारतीय संविधान में सार्वभौमिक व्यस्त मताधिकार का प्रावधान है। केंद्र, राज्य एवं स्थानीय सरकारों के लिए स्वतंत्र और प्रत्यक्ष चुनाव का प्रावधान है।  संविधान में स्वतंत्र न्यायपालिका, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, लोक सेवा आयोग, और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति ,अल्पसंख्यक और भाषा के लिए विशेषज्ञों का भी प्रावधान किया गया है।

भारत का संविधान केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बंटवारा भी करता है। इसमें संघ सूची ,राज्य सूची और समवर्ती सूची तीन प्रकार की सूची है। जो दो प्रकार की सरकारों को दी गई विधायी शक्तियों का वर्णन करती है। राज्यों की कार्यकारी शक्तियों का उपयोग इस तरह किया जाना चाहिए, जिससे संसद द्वारा बनाए गए कानूनों का अनुपालन हो सके। दो प्रकार की सरकारों की कर संबंधी शक्तियां केंद्र एवं राज्य सूची में शामिल है। केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को अनुदान भी दिया जा सकता है। भारत का राष्ट्रपति देश और कार्यपालिका का प्रमुख होता है। वह रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति भी होता है। वह संसद की बैठक बुलाता है। सत्र का अवसान करता है। संसद को संबोधित करता है। और उन्हें संदेश देता है। तथा लोकसभा को भंग कर सकता है। वह सजा को माफ भी कर सकता है।अथवा बदल भी सकता है। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही अपनी शक्तियों का उपयोग करता है।

 

महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी:

Q 1.भारतीय संसद में कौन-कौन सम्मिलित होते है?
उत्तर-राष्ट्रपति,राज्य सभा व लोकसभा 
 
Q 2.भारतीय संसद का उच्च सदन कौन सा है?
उत्तर- राज्य सभा 
 
Q 3.संसद का निम्न सदन कौनसा होता है?
उत्तर – लोकसभा 
 
Q 4.भारतीय लोकसभा में वर्तमान में अधिक से अधिक कितने सदस्य हो सकते हैं?
उत्तर- 550 (25 जनवरी 2020 तक यह संख्या 552 थी। जिनमे 530 सदस्य राज्यों का प्रतिनिधित्व करते हैं एवं 20 सदस्य संघ शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करते हैं। एवं दो सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा एंग्लो इंडियन समुदाय से किया जाता था। किन्तु अब भारत में एंग्लो इंडियन समुदाय जनसँख्या नगण्य है अतः 104 वे संविधान संसोधन द्वारा इनके मनोनयन को रद्द किया जा चूका है)
 
Q 5.राज्य सभा में कुल कितने सदस्य होते है?
उत्तर- 250

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3 thoughts on “भारतीय लोकतंत्र की विधायिका: संसद Legislature of Indian Democracy: Parliament”

  1. Hello sir,
    104 संशोधन के तहत अंगलो इंडियन की सीटों का निरसं किया गया है क्या

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  2. एंग्लो-इंडियन समुदाय के लोगों को भी संसद और राज्य की विधानसभाओं में नामित किया जाता रहा है. यह प्रावधान 25 जनवरी 2020 तक था जिसे अब सरकार ने समाप्त करने का फ़ैसला लिया है.

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