भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान की सफलता की कहानी। Success story of Indian Space Science IN HINDI।
भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान कार्यक्रम की नीव डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा और डॉक्टर विक्रम साराभाई द्वारा रखी गई थी। तब से लेकर के आज तक के अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में भारत ने निरंतर प्रगति की है।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का प्रारंभ नवंबर 1963 में थुम्बा के नवनिर्मित प्रक्षेपण पैड़ से एक छोटे अमेरिकी ‘नाईक एपाशे रॉकेट’ के प्रक्षेपण के साथ हुआ था। इंडियन नेशनल कमिटी फॉर स्पेस रिसर्च के चेयरमैन डॉक्टर विक्रम साराभाई इस बात से सहमत थे कि नव विकसित अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी भारत जैसे आर्थिक रूप से पिछड़े देश की बहुत सी समस्याओं को हल कर सकती है। आज भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, अंतरिक्ष विज्ञान के अंतर्गत अपने अनेक केंद्रों के द्वारा अंतरिक्ष से संबंधित राष्ट्रीय गतिविधियों में मुख्य भूमिका निभा रहा है। इन गतिविधियों में अंतरिक्ष यंत्रों का विकास, प्रक्षेपण और संचालन के साथ-साथ उनके अनुप्रयोग भी शामिल है।
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का एक प्रमुख उद्देश्य इस बात पर केंद्रित है, कि कम से कम समय में अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी से लाभ उठाया जा सके। परिणाम स्वरूप इसरो नामक संस्था ने उपग्रह प्रक्षेपण क्षमता प्राप्त करने से पहले ही उपग्रह के निर्माण का कार्य आरंभ कर दिया था। भारत में निर्मित पहला उपग्रह आर्यभट्ट था। जिसे वर्ष 1975 में सोवियत प्रक्षेपण यान की सहायता से कक्षा में स्थापित किया गया था। उसके बाद कई उपग्रह छोड़े गए। इससे भारतीय अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने उपग्रह तकनीकों का पूर्ण अनुभव प्राप्त किया। भारत के दो रिमोट सेंसिंग उपग्रह IRS-1 और IRS-1B इनसेट क्रम के उपग्रहों की सफलता इस विषय में अनुभवों का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
प्रौद्योगिकी और संसाधनों की कमी वाले, बाधाओं से ग्रस्त भारत जैसे विकासशील देश के लिए अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना कोई छोटी उपलब्धि नहीं है। इस उपलब्धि को प्राप्त करने का श्रेय अगर डॉक्टर होमी जहांगीर भाभा और विक्रम साराभाई को दिया जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। उनके प्रयास एवं लगन से ही भारत इस मुकाम तक आज पहुंचा है। इनसेट -2ए और इनसेट-2बी की सफलता ने भूस्थैतिक उपग्रहो को बनाने जैसे उच्च तकनीकी क्षेत्र में भारतीय क्षमता को सिद्ध कर दिया है। आज भारतीय महासागरीय क्षेत्र में इनसेट एकमात्र ऐसे उपग्रह है, जो मौसम से संबंधित क्षेत्रों पर लगातार नजर रखे हुए है। भारत ने उपग्रह के निर्माण के साथ-साथ अपने 4000 किलोग्राम भार वाले उपग्रह के प्रक्षेपण की योग्यता भी प्राप्त कर ली है।
भारत की अंतरिक्ष के क्षेत्र में वर्तमान उपलब्धियां क्या है?
भारत को दुनिया में कम लागत पर अंतरिक्ष संबंधी सेवा प्रदाता देश के रूप में प्रचारित-प्रसारित करने की प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की परिकल्पना को बढ़ावा देते हुए ISRO ने 23 जून को PSLV-38 का प्रक्षेपण किया। इसके जरिए पृथ्वी के प्रेक्षण के लिए 712 कि.ग्रा. वजन के कार्टोसेट-2 के साथ-साथ छोटे-छोटे 30 अन्य उपग्रह भी आकाश में भेजे गये जिनमें से कई यूरोप के देशों के थे। पीएसएलवी का यह एक के बाद दूसरी लगातार सफलता प्राप्त करने वाला 39 वां मिशन था।
भारत ने इस साल 5 जून को अपने सबसे शक्तिशाली, स्वदेश निर्मित और अब तक के सबसे भारी संचार उपग्रह जीसैट-19 को भू स्थिर अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहन मार्क-III (जीएसएलवी एमके- III डी 1) के जरिए प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष टेक्नोलाजी के क्षेत्र में दुनिया के गिने-चुने अग्रणी देशों की जमात में अपनी जगह बनायी।
भारत अंतरिक्ष की महा शक्तियों में शामिल।
वर्तमान में विश्व के कुछ चुनिंदा देशों के साथ 7 भारत भी 4000 किलोग्राम वजन के उपग्रह को अंतरिक्ष में भेजने वाला देश बन गया है। यह क्षमता अर्जन भारत की एक बड़ी उपलब्धि है। 3,136 किग्रा वजन के इस उपग्रह ने चार टन तक के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की इसरो की क्षमता को साबित कर दिया। इससे स्वदेशी क्षमता से क्रायोजेनिक इंजन बनाने की हमारी क्षमता का भी परीक्षण हुआ और भविष्य में मनुष्य को धरती के वायुमंडल से दूर अंतरिक्ष में भेजने का मार्ग प्रशस्त हो गया। अब भारत अपने संचार उपग्रहों को खुद ही अंतरिक्ष में भेज सकता है। अब तक सिर्फ अमेरिका, रूस, यूरोप, चीन और जापान ने 4 हजार किग्रा या इससे अधिक वजन के उपग्रहअंतरिक्ष में प्रक्षेपित किये थे।
इससे पहले 5 मई को भारत ने पहला दक्षिण एशिया उपग्रह (एसएएस) अंतरिक्ष में छोड़ कर अपने छह पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, बंगलादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका के बीच संचार को बढ़ावा देने और आपात संपर्क मजबूत करने में कामयाबी हासिल की थी। इसरो निर्मित और पूरी तरह भारत द्वारा वित्त पोषित 2,230 किग्रा वजन के जीसैट-9 उपग्रह के जीएसएलवी-एफ09 राकेट से प्रक्षेपण के बाद प्रधानमंत्री ने कहा था कि इस ‘’अभूतपूर्व’’ घटनाक्रम से दुनिया को यह संदेश गया है कि अगर क्षेत्रीय सहयोग का सवाल है तो ‘’आसमान भी इसकी सीमा नहीं बन सकता’’।
इस साल फरवरी में भारत ने ध्रुवीय अंतरिक्ष प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी सी-37) के जरिए एक ही अभियान के अंतर्गत एकसाथ 104 उपग्रह प्रक्षेपित कर अंतरिक्ष अनुसंधान के इतिहास में नया अध्याय लिखा। इनमें कार्टोसैट श्रृंखला का कार्टोसैट-2 उपग्रह भी शामिल था। यह राकेट छह अलग-अलग देशों के प्लेलोड लेकर रवाना हुआ था। इस शानदार कामयाबी ने भारत को दुनिया में छोटे उपग्रहों के प्रक्षेपण की सुविधा प्रदान करने वाले देश के रूप में स्थापित कर दिया।
इन महान उपलब्धियों ने इसरो को अंतरिक्ष की दौड़ में बड़ी मजबूत स्थिति में ला दिया है। अंतरिक्ष अनुसंधान और इसरो को लेकर प्रधानमंत्री कितने संवेदनशील हैं इसका पता इस साल के बजट आबंटन में अंतरिक्ष विभाग के खर्च में 23 प्रतिशत की जोरदार बढ़ोतरी से स्पष्ट रूप से लगाया सकता है।
2016 की प्रमुख उपलब्धियों में दिसंबर में दूर संवेदी उपग्रह रिसोर्ससैट-2 का प्रक्षेपण, जून में एक ही प्लेलोड में रिकार्ड संख्या में 20 उपग्रहों के प्रक्षेपण के अलावातीन नौसंचालन उपग्रहों और जीसैट-18 संचार उपग्रह का छोड़ा जाना शामिल है।
इसरो ने 2015 में जीसैट-15 संचार उपग्रह और विभिन्न तरंग लंबाई वाले अंतरिक प्रेक्षण उपग्रह एस्ट्रोसैट को आकाश में छोड़ा। उसने स्वदेशी क्षमता से विकसित उच्च शक्ति क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन का जमीनी परीक्षण किया। इसके अलावा जुलाई में पीएसएलवी के जरिए पांच उपग्रह छोड़े गये और इंडियन रीजनल रेविगेशन सेटेलाइट सिस्टम (आईआरएनएसएस) प्रणाली का चौथा उपग्रह प्रक्षेपित किया।
दिसंबर 2014 में संचार उपग्रह जीसैट-16 का प्रक्षेपण किया गया। पीएसएलवी ने अक्तूबर में देश के तीसरे नौसंचालन उपग्रह आईआरएनएसएस-1सी के अलावा पूरी तरह नौवहन को समर्पित दूसरे उपग्रह आईआरएनएसएस-1बी का अप्रैल में प्रक्षेपण किया।
आने वाले वर्षों में इसरो के वैज्ञानिकों का बड़ा व्यस्त कार्यक्रम है। कई उपग्रहों का काम चल रहा है। 2018 के प्रारंभ में भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी दो चंद्र अभियान शुरू करेगी। चंद्रयान-2 इससे पहले के चंद्रयान-1 का परिष्कृत संस्करण होगा। इसके अंतर्गत स्वदेशी क्षमता से निर्मित आर्बिटर, लैंडर और रोवर का निर्माण किया जाएगा। इस अभियान के जरिए चंद्रमा की सतह पर खनिज विज्ञान और तत्व संबंधी अध्ययन किये जाएंगे। दूसरा अभियान टीम इंडस नाम के अंतरिक्ष में दिलचस्पी रखने वाले ग्रुप के सहयोग से चलाया जाएगा।
Bharat ka सौर मिशन।
अगली बड़ी परियोजना सूर्य से संबंधित वैज्ञानिक मिशन की है जिसमें कोरोनाग्राफ नाम की एक दूरबीन से सूर्य की तीन प्रमुख बाहरी पर्तों कोरोना, फोटोस्फीयर और क्रोमोस्फीयर के साथ ही सौर पवन का अध्ययन किया जाएगा। इसके अंतर्गत पीएसएलवी XL के जरिए 2020 में आदित्य-एल1 का प्रक्षेपण किया जाएगा। यह उपग्रह इस बात का पता लगाएगा कि सौर ज्वालाओं और सौर पवन से धरती के संचार नेटवर्क और इलेक्ट्रानिक्स प्रणालियों में व्यवधान क्यों आता है।
इसके बाद इसरो संभवत: 2021-22 में एक बार फिर से मंगल का भी रुख करेगा और मंगलयान-2 नाम का दूसरा मंगल आर्बिटर मिशन (एमओएम) अंतरिक्ष में भेजेगा। इसके बाद सितंबर 2024 के आते-आते किसी दूसरे ग्रह की पड़ताल पर निकले भारत के रोबोटयुक्त अंतरिक्ष यान मंगलयान-1 का अभियान पूरे जोरों पर होगा और यह रक्तिम आभा वाले मंगल ग्रह पर अपने उतरने की तीसरी जयंती मनाएगा। भारत दुनिया का पहला राष्ट्र है जिसने किसी ग्रह के लिए अपने पहले ही मिशन में मंगल की कक्षा में पहुंच कर इतिहास रचा है। इतना ही नहीं हमारा यह मिशन खर्च के लिहाज से अब तक का सबसे सस्ता मिशन साबित हुआ है।
2021 के बाद भारत ने पहली बार शुक्र ग्रह की जानकारी के लिए अभियान का आगाज किया है। शुक्र का आर्बिटर मिशन इस ग्रह के वातावरण का अध्ययन करेगा। शुक्र ग्रह को पृथ्वी की बहन कहा जाता।
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