माघ मास के शुक्ल पक्ष पंचमी: बसंत पंचमी (Basant Panchami)|
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जिस प्रकार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के साथ ही सभी देवता, राक्षस, यक्ष, गंधर्व आदि राशि में प्रवेश से ऋतुओं के राजा बसंत की शुरुआत होती है। वैसे तो बसंत मास की पूरी अवधि का काफी महत्व है, लेकिन इसका आरंभ सर्वाधिक महत्वपूर्ण है। क्योंकि इस दिन ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी मां सरस्वती का जन्मदिन मनाया जाता है। बसंत ऋतु को “मधुमास” भी कहा जाता है, क्योंकि इस दिन के बाद न तो अधिक सर्दी पड़ती है और न अधिक गर्मी।
इस मौसम में संसार के लगभग सभी वृक्ष पुरानी पत्तियों को त्याग कर नई पत्तियों व पुष्पों को जन्म देते हैं।फलों में श्रेष्ठ आम में पुष्प भी इसी दौरान दिखाई देते हैं। चारों और हरियाली और पुष्प ही पुष्प नजर आते हैं। मधुमक्खियों और भौरों का झुंड पुष्पलता पर मंडराते नजर आता है।वातावरण में भीनी-भीनी सुगंध की मस्ती छा जाती है।
ऋतुराज कहलाता है बसंत मास।
प्राचीन काल से वसंत को ऋतुराज कहा जाता है। हमारे देश में मुख्य रूप से छह ऋतुएँ है- ग्रीष्म, वर्षा, शरद, शिशिर,हेमंत और बसंत। काल गणना के अनुसार प्रत्येक ऋतु का 2 माह का समय गिना जाता है। इस समय के लिए ऋतु का वर्गीकरण प्रकृति ने किया है। प्राचीन ज्योतिष और पुराणों के अनुरूप चैत्र से बसंत का आगमन माना जाता है। बसंत पंचमी (Basant Panchami) तो माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही मनाई जाती है।
अतः काल गणना की पुरानी पद्धति मौसम के आधार पर परिवर्तित हो सकती है। कहा जाता है कि बसंत पंचमी (Basant Panchami) को बसंत ऋतु की अभिनंदन तिथि है।बसंत का यह उत्सव उत्साह पूर्वक मनाया जाता था। पुराणों में इस उत्सव का नाम “मदनोत्सव” है।
अन्य ऋतुओं का प्रभाव वातावरण एवं पेड़-पौधों एवं जंतुओं सभी पर स्पष्ट नजर आता है। जैसे शिशिर ऋतु में ठंड से सिकुड़ते लोग एवं जीव-जंतु तथा यह ऋतु अत्यंत कष्टकारी होती है।इसमें मनुष्य,पशु- पक्षी तो दूर वृक्ष, लता आदि तथा जल के प्राकृतिक दृश्य भी शोभा दायक प्रतीत नहीं होते है।
जबकि बसंत के आगमन से चारों और स्वच्छंदता तथा आनंद फैलाने वाले बन जाते है, तभी पुराणों में इस उत्सव का उत्साह पूर्वक वर्णन मिलता है। विक्रमादित्य के समय से शुरू हुआ यह उत्सव गुप्त काल में लोकप्रिय बन गया था।
Basant Panchami Mahima
बसंत पंचमी ही है श्री पंचमी।बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है?
बसंत पंचमी (Basant Panchami) को श्रीपंचमी भी कहा जाता है।जो बसंत के आने की पूर्व सूचना का प्रतीक है। इस दिन विद्या की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती का पूजन किया जाता है। सभी विद्यार्थी तथा धार्मिक व्यक्ति पुष्पांजलि देकर इस देवी को प्रसन्न करने की आराधना करते हैं। कहा जाता है कि बसंत के आगमन से होली की पूर्व तैयारी की चेतना मिलती है।
गांव में लोग ढोल, नृत्य ,गा- बजाकर होली की मंगल कामना करते हैं। बसंत पंचमी (Basant Panchami) के दिन प्रात स्नान संध्या आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भक्ति पूर्वक कलश स्थापन किया जाता है। फिर गणेश, सूर्य, विष्णु, शंकर आदि देवों की विधिवत पूजा अर्चना की जाती है।सरस्वती पूजन के समय बसंती वस्त्र पहने जाती है तथा फूल मालाओं से पूजा अर्चना की जाती है।
बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएं|
बसंत में मदनोत्सव का महत्व।
बसंत पंचमी (Basant Panchami) को लक्ष्मी पूजन का भी प्रचलन है। स्नान आदि कर अच्छे पीले वस्त्र पहनकर विष्णु सहित लक्ष्मी का पूजन करते हैं, तथा मंदिरों में जाकर अबीर,गुलाल, गंध पीत पुष्प, धूप , दीप से पूजा करके गायन-वादन किया जाता है। ब्रज क्षेत्र में तो फाग गाकर कृष्ण जी का गायन भी किया जाता है। बसंत के आगमन पर मदनोत्सव मनाए जाने का वर्णन सभी पुराणों में मिलता है।
इस तिथि को रति और कामदेव का पूजन भी करते है। इन दोनों को सहचर माना जाता है। पूजन की विधि प्रतिमा की स्थापना अथवा कुमकुम से कलश रचना कर की जाती है। रति-काम की प्रार्थना में पारिवारिक जीवन को सुख समृद्धि से पूर्ण करने की प्रार्थना की जाती है। कालिदास ने ‘शकुंतला नाटक’ में इसको ‘वसंतोत्सव’ और ‘मदनोत्सव’ कहा है।
बसंत आगमन के समय किसान अपनी फसल की अच्छी प्रकार से घर आने की कामना से देवताओं के आगे अपनी फसल के कुछ छोटे बड़े पौधे लाकर रखते हैं।जौ, चना, आम, तिल आदि के नए पौधे पूजन स्थल पर रखे जाते है।कभी-कभी नवोन्नेष्ठी-नूतन अन्न का भोग लगाकर उसी दिन से गृहस्थ लोग स्वयं भी नूतन अन्न को प्रसाद के रूप में खाते हैं।इसे नवेष्ठि अथवा शस्त्रेष्ठि मदनोत्सव बसंत भी कहते हैं।
बसंत पंचमी (Basant Panchami) उत्सव देव पूजन तथा नए पीले वस्त्रों से प्रारंभ होता है। इसमें व्रत रखने का कोई विधान नहीं है।सभी पूजन के पश्चात अच्छी तरह से भोजन आदि करते हैं।सारा समय राग एवं आमोद-प्रमोद,फ़ाग खेलने में व्यतीत होता है।