प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है भाटी राजाओ की नगरी जैसलमेर। A FAMOUS TOURIST PLACE BHATI KINGDOM JAISALMER ।
“गढ़ दिल्ली, गढ़ आगरो, भल अध गढ़ बीकानेर।
भलो चुणायो भाटियों, सिरजे तो जैसलमेर।।”
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सूर्य गढ़ जैसलमेर। |
सोनार किले का गौरवमय इतिहास दरअसल वीरो और वीरांगनाओं की अनेक गौरव गाथाओ को अपने में संजोए हुए हैं। थार के रेगिस्तान में चारों और फैली हुई रेत ही रेत। सूर्य की किरणों की स्वर्णिम आभा से सोने जैसी दिखाई देती यहां की बालू मिट्टी। यहां रेत के धोरों के पास में कहीं-कहीं पीले रंग के फैले हुए बलुआ पत्थर। इन्हीं के बीच तो बसा हुआ है यह सुंदर नगर- जैसलमेर।
कहा जाता है कि महाभारत काल में जब युद्ध समाप्त हो गया और भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को साथ लेकर द्वारका की ओर प्रस्थान किया, तब इसी नगर से कभी उनका रथ गुजरा था। रेगिस्तान के बीचो-बीच ही यहां की त्रिकूट पहाड़ी पर कभी महर्षि उत्तुंग ने तपस्या की थी। इसी त्रिकूट पहाड़ी पर विक्रम संवत 1212 (सन 1255 ईस्वी) में श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी अर्थात 12 जुलाई 1155 को इस सुंदर किले की नींव रखी गई। आधुनिक जैसलमेर यहीं पर बसा हुआ है। जैसलमेर पर्यटको का वर्तमान में राजस्थान में सर्वाधिक पसंदीदा पर्यटन स्थल है। विदेशी सैलानियों का सर्वाधिक आगमन इसी स्थान पर होता है। यहां पर्यटन आकर्षण के प्रमुख स्थल निम्नलिखित है:-
1. त्रिकूट पहाड़ी पर बना सोनार का किला जैसलमेर
जैसलमेर के दुर्ग में अद्भुत सौंदर्य है। रेत के टीलों के बीच त्रिकूट पहाड़ी पर दूर से दुर्ग ऐसा लगता है, मानो पहाड़ पर लंगर डाले कोई बड़ा जहाज खड़ा हो। जमीन से 250 फीट ऊंचाई पर निर्मित, स्थापत्य कला में भी बेमिसाल, घागरा नुमा परकोटे की किले की दीवारों पर सुबह और शाम जब सूरज की किरणे पड़ती है तो सब कुछ सुनहरा हो जाता है। ऐसा लगता है कि सोने का कोई महल बनाया गया हो, और इसलिए इस किले को कहा जाता है- सोनारगढ़।
सोने से बना हुआ यह गढ़ प्रातः और सूरज ढलने की बेला में किसी सुनहरे कल्पना लोक में ले जाता है। पीले पाषाणों से निर्मित सोनार किले की यही है जीवंत कथा। कल्पना नहीं आंखों का सच है और मजे की बात यह है कि कल्पना लोक से इस किले मैं आज भी लोग रहते हैं, काम करते हैं और हां उनका जीवंत इतिहास है।
यह किला आज भी यहां पर हुई लड़ाईयो और शाकों का मौन गवाह बनकर खड़ा हुआ है। आज भी इसमें आबादी की चहल-पहल आप देख सकते हैं। यही वह दुर्ग है जिसमें 11 वीं सदी से 18 वीं सदी तक अनेकानेक उतार-चढ़ाव देखते गौरी, खिलजी, फिरोजशाह तुगलक और ऐसे ही दूसरे मुगल आक्रमणकारियो के भीषण हमलो को लगातार झेला है। यही वह दुर्ग जिससे होते कभी सिंधु, मिश्र, इराक, कंधार और मुल्तान आदि देशों का व्यापारिक कारवां देश के अन्य भागों को जाता था।
1661ई से 1708ई के बीच यह दुर्ग नगर समृद्धि के चरम शिखर पर पहुंच गया। व्यापारियों ने यहां स्थापत्य कला में बेजोड़ हवेलियों का निर्माण किया, तो हिंदू, जैन धर्म के मंदिरों की आस्था का भी यह प्रमुख केंद्र बना रहा। भाटी वंश के शासकों की आन, बान और शान के गौरवमई इतिहास का प्रतीक सोनार किला अपने अंदर समेटे हुए है। वीरता की अनगिनत कहानियां, स्थापत्य कला का भी नायाब उदाहरण है। खास बात यह है कि इसे बनाने में चुने एवं पत्थर का प्रयोग नहीं किया गया है। भारी भरकम 99 वर्गाकार बुर्ज वाले 1500 फीट लंबे और 750 फीट चौड़े इस दुर्ग की प्रत्येक बुर्ज लगभग 30 फीट ऊंची है। मरुस्थलीय दुर्ग में विश्व का सर्वाधिक बुर्जो वाला दुर्ग है- जैसलमेर का सोनार दुर्ग।
शौर्य और बलिदान के प्रतीक जैसलमेर के सोनार किले के साथ भाटी वीरों के पराक्रम और वीरांगनाओं के जोहर की अमर कथाएं भी जुड़ी हुई है। कहा जाता है चित्तौड़ दुर्ग में जहां इतिहास प्रसिद्ध 3 साके हुए वहीं जैसलमेर दुर्ग में ढाई साके हुए। पहला साका इस किले में तब हुआ जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने विशाल सेना के साथ दुर्ग को घेरा और किले में रसद समाप्त हो गया। राव मूलराज, कुंवर रतन सिंह सहित अनगिनत वीर योद्धाओं ने तब क्षत्रिय धर्म का पालन करते केसरिया बाना पहनते हुए युद्ध लड़ा, तो ललनाओ ने जोहर का अनुष्ठान किया।
सोनार दुर्ग में स्थित रंगमहल, मोतीमहल, बादल विलास, जवाहर विलास और जनाना महल स्थापत्य कला के आदित्य उदाहरण है।
रंग महल भित्ति चित्रों का खजाना है। विभिन्न महलों के जालिया और झरोखों में पत्थर की बारिक खुदाई का कार्य इस कदर आकर्षक है कि देखते हुए मन नहीं भरता।
2. जैसलमेर का संग्रहालय
जैसलमेर दुर्ग अपने स्थापत्य कला के कारण ही नहीं प्राचीन वस्तुओं के संग्रहण के कारण भी अपनी अलग पहचान रखता है। दुर्ग के भीतर दशहरा चौक में स्थित गज विलास एवं अन्य प्रासादों के परिसर में रियासत कालीन पालकिया एवं दैनिक जीवन के लिए उपयोगी अन्य सामग्री का अनुपम संग्रह है। देश की स्वतंत्रता के समय राजपूताना की 22 रियासतों से संबंधित स्टांप एवं डाक टिकटों का अनूठा संग्रह भी यहां पर है। इसी संग्रहालय में जैसलमेरी वस्त्र, झुकी हुई पाग, शिकार दृश्य के चित्र भी अनुपम एवं मनोहारी है।
3.सम के धोरे (सैंड ड्यून्स)
जैसलमेर के सम के धोरे देखकर देश-विदेश के सैलानी दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। सम के धोरों की सुंदरता देखते ही बनती है।
जैसलमेर शहर से 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है सम गांव। इसी गांव के चारों तरफ रेतीले धोरों का साम्राज्य स्थापित है सम के रेत के इस फैले हुए समंदर में सोने के समान दमकते विशाल रेतीले धोरों में इतना आकर्षण है कि यह यहां आने वाले पर्यटक के जेहन में हमेशा के लिए याद के रूप में बस जाता है।
सम के धोरों की विशेषता है कि यह रात में एकदम शीतलता प्रदान करना शुरू कर देते है। वही ग्रीष्म ऋतु में दिन के समय यहां का तापमान लगभग 50 डिग्री तक पहुंच जाता है।किंतु सर्दियों में यह तापमान जमाव बिंदु से भी नीचे आ जाता है। अक्टूबर से लेकर मार्च के बीच यहां पर हर साल लाखों लोग इन रेतीले धोरों पर घूमने का आनंद उठाते हैं। ऊंट पर सवार होकर रेतीले धोरों में सफर करने कि न भूलने वाली यादों को अपने साथ लेकर यह सैलानी जाते हैं। यहां आने वाले पर्यटकों के लिए रात में ठहरने के लिए टेंट में कैंप लगाए गए है। यहां लगे टेण्ट में लोग ठहरकर रेगिस्तान में रात बिताने का आनंद लेते हैं। चांदनी रात की रोशनी में ठंडी रेत पर बैठकर चमकते रेगिस्तान को निहारने का अनुभव यहां आकर ही महसूस किया जा सकता है।
4. पटवों की हवेली जैसलमेर
जालीदार झरोखे एवं अद्भुत महीन नक्काशी का अद्भुत संगम है पटवों की हवेली जैसलमेर। जो भी पर्यटक जैसलमेर घूमने आता है वह पटवों की हवेली जरूर देखता है। इसकी सुंदरता देखकर पर्यटक आश्चर्यचकित हो जाते हैं, कि पत्थर में इतनी बारीक नक्काशी उस काल में किस प्रकार से की गई होगी। इन झरोखों को देखकर उस काल की वास्तुकला का ज्ञान हमें होता है। एक परिसर में पांच छोटी-छोटी हवेलियों का एक शानदार समूह है पटवों की हवेली। खिड़कियों और बालकनी के ऊपर जटिल नक्काशी और उत्तम वॉल पेंटिंग और शीशे का काम हवेलियों की भव्यता को और बढ़ाता है। इस विशाल हवेली में हवादार आंगन और बालकनी ।है जिनमें से प्रत्येक में विशिष्ट नक्काशी है। जो इसके आकर्षण को और बढ़ा देती है। हवेली के संग्रहालय में आपको पटवा परिवार से संबंधित पत्थर के काम और कलाकृतियों का दुर्लभ संग्रह भी देखने को मिलता है। पटवों की हवेली आने का सबसे अच्छा समय सितंबर से फरवरी के बीच होता है।
5. बड़ा बाग की छतरिया जैसलमेर
जैसलमेर राजवंश से संबंधित राजाओ की छतरिया यहां बनी हुई है। यह स्थान राजस्थान के अतीत से संबंधित एक महत्वपूर्ण स्थान है। यह एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित है। जिसमें पहाड़ी के तल पर राज परिवार का श्मशान घाट स्थित है। बगीचे में कई भूरे रंग की छतरियां है,जो कि गुंबद,चौकोर और गोलाकार या पिरामिड के आकार की बनी हुई है। आप यहां बगीचे में टहल सकते हैं और पक्षियों को देखकर इस जगह का आनंद उठा सकते हैं। बड़ा बाग देखने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से फरवरी के बीच होता है।
6. गड़ीसर झील जैसलमेर
शहर के बाहर की तरफ एक खूबसूरत झील स्थित है जिसे गड़ीसर झील के नाम से जाना जाता है। शांति चाहने वालों के लिए एकदम परफेक्ट लोकेशन है यह झील। इस झील का इतिहास 14वी शताब्दी का है जब यह पूरे शहर के लिए पानी का एक प्रमुख स्रोत हुआ करती थी। अब गड़ीसर झील एक लोकप्रिय पर्यटक केंद्र के रूप में प्रसिद्ध है।
यहां आप बोटिंग का मजा भी ले सकते हैं और निकटवर्ती जैसलमेर किले और इसके किनारे पर मौजूद मंदिरों के सुंदर दृश्यों का आनंद ले सकते हैं। यदि आप सर्दियों में यहां घूमने आ रहे हैं तो आपको यहां कई प्रवासी पक्षियों का भी जमावड़ा दिखाई देगा। यहां आने का सबसे सर्वोत्तम समय अक्टूबर से मार्च के बीच में होता है।
7. जैसलमेर के भाटी राजवंश की राजधानी लौद्रवा
लोद्रवा जैसलमेर शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक ऐतिहासिक स्थल है। इस स्थान को भाटी राजवंश की राजधानी होने का गौरव प्राप्त है। लौद्रवा का महत्व इसलिए भी अधिक बढ़ जाता है क्योंकि इस स्थान के बारे में एक लोककथा प्रचलित है जो प्रेम की पराकाष्ठा को दर्शाती है। महेंद्र व मूमल की प्रेम कहानी। जैसलमेर घूमने आने वाले पर्यटकों को लो दवा का भ्रमण जरूर करना चाहिए।
8. बेमिसाल हवेलियों का शहर जैसलमेर
सुंदर हवेलियों का दृश्य देखना हो तो आपको जैसलमेर आना पड़ेगा। एक से बढ़कर एक सुंदर हवेली। विश्व भर में विख्यात। स्थापत्य कला में बेजोड़ पत्थरों पर नक्काशी। अलंकृत खंभे और विशाल गलियारे प्रकोष्ठ। सैनी और हथौड़े की सूक्ष्म कारीगरी ऐसी कि देखकर अचरज होता है- कैसे शिल्पी ने सौंदर्य के इस खजाने को गढा होगा। जालीदार झरोखे, बालकनी, सब कुछ शानदार।
जी हां, हम बात कर रहे हैं सालीम सिंह की हवेली की। जो जैसलमेर शहर की सुंदरतम हवेलियों में से एक है। यह 6 मंजिला इमारत है। जैसलमेर राज्य के दीवान मेहता सालम सिंह के नाम पर बनी है यह खूबसूरत हवेली। सन 1841 से 1881 का समय सालम सिंह के प्रजा पर अत्याचारों का काल था। सालीम सिंह ने अपार धन संपदा एकत्र कर जैसलमेर, जोधपुर तथा बीकानेर में शानदार हवेलियों का निर्माण करवाया था। सालम सिंह ने जैसलमेर में सात खंड की खूबसूरत हवेली बनाई। कहते हैं इसके तीन हिस्से उसके मरने के बाद महारावल गज सिंह ने उतरवाकर जमीन पर रखवा दिए थे। फिर भी यह हवेली दूसरे भवनों से ऊंची ही रही। इसके 9 गुंबद बाद में वर्षा से गिर गए। बावजूद इसके हवेली का सौंदर्य मन को मोहित करता है।
जैसलमेर में सालीम सिंह की हवेली के अलावा पटवों की हवेली, दीवान नथमल की हवेली आदि भी सौंदर्य से सम्मोहित करती है। घुमावदार संकरी गलियों में जैसलमेर की हवेलियां पुरातत्व और मूर्तिकला का अपने आप में जीवंत संग्रहालय है। पत्थरों में गढा है अद्भुत सौंदर्य। पटवों की हवेली को राष्ट्रीय पुरातत्व विभाग ने अपने संरक्षण में लेते हुए इसे राष्ट्रीय स्मारक भी घोषित कर दिया है।
9. Wood fossils Park Jaisalmer
जैसलमेर शहर से 18 किलोमीटर पूर्व की ओर जैसलमेर बाड़मेर सड़क के दक्षिण दिशा में 17 करोड वर्ष पुराने वुड फॉसिल उपलब्ध हुए हैं इन वर्ड फॉर सेल्स को अब सुरक्षित रख दिया गया है प्राचीन संघ जमाने में यह वृक्ष से परंतु अभी पाषाण हो गए इन वृक्षों की शाखाएं तना पत्ती और आदि सभी कुछ पत्थर के बने स्पष्ट दिखाई देते हैं जैसलमेर आने वाले पर्यटकों के लिए यह वृक्ष विशेष आकर्षण का केंद्र है। भूविज्ञान के छात्रों के लिए यह स्थान स्वर्ग से कम नहीं है। पृथ्वी की आंतरिक संरचनाओं की जानकारी व भूगर्भीय हलचल की जानकारी भी इन जीवश्मो के अध्ययन करने से प्राप्त होती है।
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