भगवान श्री कृष्ण का साम्राज्य द्वारका नगरी
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देवभूमि द्वारका -श्रीकृष्ण का साम्राज्य(Dwarka-The Kingdom of Lord Krishna)। |
प्रिय पाठकों,
आज की मेरी पोस्ट भगवान श्री कृष्ण को समर्पित है। जगत को गीता ज्ञान देने वाले भगवान श्री कृष्णा का साम्राज्य द्वारका नगर वर्तमान में गुजरात राज्य में स्थित है ।इस अलौकिक स्थान का भ्रमण जब मैंने किया तो ब्लॉग लिखते समय मेरी हार्दिक इच्छा हुई की मैं मेरे पाठकों को द्वारका के महत्व ,द्वारका दर्शन व भगवान श्रीकृष्ण व द्वारका के संबंध में जो भी जानकारी मुझे वहां मिली के बारे में विस्तार से बताऊं।
द्वारिका नाम का महत्व क्या है?
‘द्वारिका’ शब्द में ‘द्वार’और ‘का’ अक्षर का समन्वय हुआ है -द्वार अर्थात दरवाजा और का शब्द के गूढ़ार्थ में ‘ब्रह्म’ है अर्थात ब्रह्म तक पहुंचने का जो द्वार है वह द्वारिका।थोड़ा और विशेष गूढ़ार्थ में देखें तो कर्म के बंधन में से मुक्ति प्राप्त करने का द्वार अर्थात ‘द्वारिका’।इस अर्थ में द्वारिका को मुक्तिधाम या मोक्षपुरी भी कहा जाता है।पौराणिक श्लोक में कहा है कि मुक्ति पाने के जो धाम है उसमें द्वारिका नगरी भी एक है।
” अयोध्या मथुरा माया, काशी कांची अवंतिका,
पूरी द्वारवती चैव सप्तधा मोक्षदायिका: ।।”
अर्थात अयोध्या,मथुरा ,काशी ,कांचीपुरम,अवंतिका(उज्जैन), पूरी(जगन्नाथपुरी) व द्वारावती(द्वारिका)यह साथ मोक्ष देने वाली नगरी है।
पौराणिक कथा अनुसार द्वारका का महत्व क्या है?
पुराणों की एक वार्ता के अनुसार द्वारिका को मुक्तिधाम मानकर हजारों वर्षों पूर्व ब्रह्मा जी के मानस पुत्र सनकादिक ऋषियो ने मोक्ष प्राप्ति हेतु इस भूमि पर मोक्ष दाता भगवान विष्णु की आराधना की थी। कठिन तपस्या के बाद जब ऋषियों को भगवान विष्णु के दर्शन होने वाले थे, उससे पहले समुद्र से सुदर्शन चक्र उनके सामने प्रकट होता है ।उसके बाद जब भगवान विष्णु के पूजन हेतु यहां ऋषि-मुनियों ने गंगा का आह्वान कर उनका स्वर्ग से अवतरण करवाया था। महर्षि वशिष्ठ मुनि के साथ स्वर्ग से गंगा का ‘गो’ अर्थात ‘पृथ्वी’ पर अवतरण हुआ।अतः द्वारका में बहती हुई यह गंगा, गोमती के रूप में प्रसिद्ध हुई। गो का अर्थ पृथ्वी,मति का अर्थ अवतरण। स्वयं भगवान विष्णु ,चक्र के साथ प्रकट हुए इसलिए वे ,चक्रनारायण भी कहलाते हैं। चक्रनारायण द्वारका नगरी की भूमि पर प्रकट हुए थे इसलिए द्वारिका को चक्रतीर्थ के नाम से भी जाना जाता है। द्वारिका का 4 योजन तक का विस्तार चक्रतीर्थ कहलाता है।द्वारिका के रत्नाकर अर्थात समुद्र के साथ गोमती नदी का संगम होने से यह स्थान संगम नारायण भी कहा जाता है।जो पवित्र गोमती संगम घाट मनुष्य के कई जन्मों के पापों का नाश कर उन्हें मुक्ति दिलाता है। अतः द्वारिका का गोमती स्नान का अति महत्व है। त्रेता युग में भगवान ने वामन अवतार धारण किया उस समय तीन कदम भूमि दान मांगने वाले त्रिविक्रम भगवान ने बलीराजा को द्वारिका की भूमि के पाताल में स्थापित कर स्वयं भी भक्ताधिन होकर बलि राजा की नगरी के द्वारपाल बने। तत्पश्चात द्वापर युग के अंतिम समय में जब श्री कृष्ण का द्वारिका में आगमन हुआ तब भगवान के दर्शन हेतु गोमती स्नान के महत्व को लेकर दुर्वासा ऋषि वहां पधारें किंतु उस समय कुशादी दैत्यों ने ऋषि को भगवत दर्शन करने में और पवित्र स्नान करने में अड़चनें पैदा कर दी।इसलिए दुर्वासा मुनि सीधे ही पाताल लोक में गए वहां जाकर भगवान विष्णु को अपनी आपत्ति का वृतांत कहा। भगवान तो सदा भक्तों के अधीन थे अतः बलिराजा की सहमति लेकर भगवान द्वारिका आये एवं द्वारिका में आकर वहां रहने वाले दैत्यों का नाश किया। और दुर्वासा ऋषि को स्नानकरवाया और दर्शन दिए।इस प्रकार भगवान भक्तों के लिए तुरंत ही द्वारिका पधारे। पाताल से त्रिविक्रम का यहां आगमन हुआ इसलिए द्वारिका का एक नाम त्रिविक्रम क्षेत्र भी है।
द्वारका(गुजरात) का संक्षिप्त परिचय
गुजरात राज्य में सौराष्ट्र प्रदेश के जामनगर जिले में द्वारिका स्थित है। द्वारिका में श्री कृष्ण चंद्र का जगत मंदिर स्थापित है ,जो पुरातत्व के मतानुसार 12वीं से 13वीं शताब्दी में निर्मित किया हुआ है।
इस मंदिर का मुख्य मंडप जिसे लाडवा मंडप भी कहा जाता है। जो 1 5वी-16वी शताब्दी में बना है। इस मंदिर का शिल्प मौर्यकालीन गुप्तकालीन चावड़ा राजवंश व चालुक्य राजवंश के समकालीन है।
द्वारका के संबंध में इतिहासकारों का एक मत यह भी है कि वर्षों पूर्व भारत देश के विदेशी व्यापार द्वारिका बंदरगाह से ही होता था। प्राचीन काल में द्वारिका को भारत का प्रवेश द्वार भी कहा जाता था। समुद्र मार्ग से इजिप्ट, अरेबिया, मेसोपोटामिया आदि देशों के साथ आवागमन होता था।एवं व्यापार भी होता था। अतः हम कह सकते हैं कि यहां पर देशी और विदेशी संस्कृति का आदान-प्रदान भी होता था। प्राचीन काल में किसी द्वारिका को द्वारावती कहा जाता था।
गुजरात के द्वारका शहर का एक प्राचीन इतिहास है जो सदियों पुराना है, और इसका उल्लेख महाभारत महाकाव्य में द्वारका साम्राज्य के रूप में मिलता है । गोमती नदी के तट पर स्थित, इस शहर को भगवान कृष्ण की राजधानी के रूप में वर्णित किया गया है।
हिंदुओं का मानना है कि मूल मंदिर का निर्माण कृष्ण के आवासीय महल के ऊपर, कृष्ण के महान पुत्र वज्रनाभ द्वारा किया गया था।
चालुक्य शैली में वर्तमान मंदिर का निर्माण 15-16वीं शताब्दी में किया गया है। यह मंदिर २1 मीटर का क्षेत्रफल २१ मीटर और पूर्व-पश्चिम की २ ९ मीटर और उत्तर-दक्षिण चौड़ाई २३ मीटर है। मंदिर की सबसे ऊँची चोटी 51.8 मीटर ऊँची है।
हिंदू धर्म में चार धाम यात्रा का बड़ा महत्व है इस चार धाम की यात्रा में चारों दिशाओं में फैले चारों धाम इस प्रकार है उत्तर में बद्रीनाथ दक्षिण में रामेश्वरम पूर्व में जगन्नाथ एवं पश्चिम में द्वारिका नगरी है हिंदू धर्म में ऐसी मान्यता है की चार धाम की यात्रा करने से मनुष्य के जीवन का उद्धार हो जाता है। इसलिए द्वारिका नगरी का हिंदू धर्म में आस्था के प्रतीक के रूप में विशेष महत्व है
द्वारिका मैं प्रसिद्ध दर्शनीय स्थान कौन-कौन से हैं?
- श्री द्वारिकाधीश मंदिर
- श्री रुकमणी मंदिर
- गोमती घाट
- छप्पन सीढ़ी मंदिर
- पंचतीर्थ
- श्री प्राचीन कुशेश्वर महादेव मंदिर
- श्री हरी कुंड
- गोपाल घाट
- श्री गीता मंदिर
- श्री भद्रकाली मंदिर
- श्री शारदा पीठ
- श्री सरस्वती मंदिर
- श्री गायत्री मंदिर
- श्री जलाराम मंदिर
- 12 ज्योतिर्लिंग श्री नागेश्वर मंदिर
- गोपी तालाब
- सुदामा ब्रिज
- समुद्र के अंदर श्री बेट द्वारिका मंदिर
जो भी यात्री द्वारिका दर्शन या पर्यटन के उद्देश्य से जाता है उसे उपरोक्त स्थानों का भ्रमण अवश्य करना चाहिए। यह सभी स्थल मनमोहक एवं आनंद दायक है। समुद्र के किनारे द्वारिका नगरी की अलौकिकता देखते ही बनती है। यहां पहुंचने के लिए सड़क मार्ग व रेल मार्ग दोनों से पहुंचा जा सकता है। ठहरने के लिए यहां अच्छी होटलें व धर्मशालाएं है अतः यात्रियों को यहां रुकने में कोई परेशानी नहीं होती है।
द्वारका से कुछ तस्वीरें
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देवभूमि द्वारका -श्रीकृष्ण का साम्राज्य(Dwarka-The Kingdom of Lord Krishna)। |
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देवभूमि द्वारका -श्रीकृष्ण का साम्राज्य(Dwarka-The Kingdom of Lord Krishna)। |
भारत के जलमग्न प्राचीन शहर द्वारका को एआई प्रौद्योगिकी द्वारा फिर से कल्पना के रूप में…
यह पौराणिक कथा नहीं है, यह हमारा वास्तविक इतिहास है..!!
हमारे प्राचीन ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान श्री कृष्ण ने समुद्र में एक भव्य द्वारका का निर्माण किया जो एक भीषण बाढ़ में डूब गया
अब मुझे बताओ अगर महाभारत पौराणिक कथा है और कृष्ण कल्पना है तो एएसआई की समुद्री इकाई द्वारा समुद्र के नीचे की खोज की गई यह विशाल शहर क्या है?
महाभारत में वर्णित द्वारका शहर भारत के महानतम पुरातत्वविदों द्वारा खोजा गया था।प्रोफेसर एस.आर. राव जिन्होंने कई हड़प्पा स्थलों की खोज की है।
“हरे कृष्ण” 🙏
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