जोधपुर का धींगा गणगौर मेला/ राजस्थान का बेंतमार गणगौर मेला|
भारतीय नए साल की शुरूआत होते ही शोभाग्य का उत्सव गणगौर चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में प्रारम्भ होकर वैसाख कृष्ण पक्ष की तृतीया पर समाप्त होता है ।
जोधपुर का धींगा गणगौर मेला पर्व राजस्थान के पश्चिमी जिलों जोधपुर, बीकानेर, जैसलमेर आदि क्षेत्रों में सुहागिन स्त्रियों द्वारा अखंड सुहाग की कामना के लिए मनाया जाता है।
यह पर्व अखण्ड शोभाग्य का प्रतिक माना जाता है । महिलाए गणगौर के पर्व पर अपने अखण्ड शोभाग्य और कुंवारी कन्याएं मन वांछित जीवन साथी की मंगलकामनाएं करती है।
गणगौर क्यो मनाते है?
आदिकाल में भरतखण्ड पर देवी सती ने कठोर तपस्या और गौरी व्रत से भगवान शिव को पति स्वरूप प्राप्त किया था । तभी से संसार की कन्याएं शिव के ईसर स्वरूप और देवी पार्वती जी के गौरी स्वरूप की पूजा करती आ रही है ।
तपस्या त्याग और गृह स्वामी के उज्ज्वल भविष्य , सुख समृद्धि और अखण्ड शौभाग्य के रूप में लम्बी आयु की कामना से यह व्रत उत्सव भारतीय नारी सदियों से परम्परा के साथ करती रही है ।
राजस्थान का मारवाड़ हमेशा से संस्कृति- परंपराओं और उत्सवों का प्रदेश रहा है । मारवाड़ के नागरिक वर्ष पर्यन्त तीन सौ से अधिक व्रत उत्सव और त्यौहार मनाते है ऐसा कोई दिन नही जब हम कोई व्रत या पर्व नहीं मनाते है। हमारी यही परम्परा हमे समृद्ध और आशावादी बनाती है ।
मारवाड़ के राजा सातल जी ( 1489–1492 ई. ) ने गवर माता की पूजा करने गई पीपाड़ शहर की कन्याओं को जब अजमेर के सूबेदार मल्लू खां ने उनका हरण कर लिया तब मल्लू खां को कोसाना गांव तक पीछा कर युद्ध में पराजित किया और सभी कन्यायो को छुड़ा कर नारी के उज्ज्वल चरित्र का मान रखा । वे युद्ध में इतने घायल हो गए थे की अगले दिन तृतीय को राव सातल जी का स्वर्गवास हो गया ।
तभी से मारवाड़ में गणगौर पर ईशर जी की मूर्ति की सवारी नही निकलती है । हमारे यहां सनातन परंपरा रही है की जी त्यौहार के दिन परिवार के मुखिया का स्वर्गवास हो जाने पर उस तिथी का उत्सव तब तक नही मनाया जाता है जब तक उस परिवार में नए बालक का जन्म नही हो जाता तब तक वह नही मनाया जाता है ।
मारवाड़ में महिलाओं के लिए गणगौर और धींगा गवर का पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । गणगौर तो पूरी दुनिया में भारतीय नारी शौभाग्य पर्व के रूप में मानती है ।
धींगा गवर का मेला कहाँ भरता है?
धींगा गवर का मेला भारतवर्ष में केवल जोधपुर शहर में ही मनाया जाता है। यह पर्व नारी शक्ति कि स्वतंत्रता हर्षोल्लास और मनवांछित कलाओं के प्रदर्शन के साथ मनाया जाता है ।
जोधपुर का धींगा गणगौर मेला उत्सव जोधपुर के भीतरी शहर में सम्पूर्ण रात्रि मनाया जाता है । यह एकमात्र त्यौहार है जिसमे केवल महिलाएं ही भाग लेती है । महिलाएं भिन भिन स्वांग रच कर रात्रि में अनेक आयोजन करती है । भारतीय संस्कृति के महान इतिहास के चरित्र नायकों के जीवन की लिलालो का मंचन और बहुआयामी कला का प्रदर्शन बड़ा मनोहारी होता है ।
धींगाना का अर्थ जबरदस्ती होता है । बीकानेर शहर में आज भी यह शब्द कहते लोगो को सुन सकते है । इतिहास ग्रंथो में लिखा है की मारवाड़ की राठौड़ राजकुमारी का विवाह मेवाड में हुआ था । प्रसिद्ध इतिहासविद पद्मश्री रानी लक्ष्मी कुमारी जी भी अपनी पुस्तक में इसका उल्लेख करती है ।
धींगा गवर उत्सव की शुरुआत कब से मानी जाती है?
महाराणा जी ने महारानी राठौड़ी जी को प्रसन्न करने के लिए अपने रणवास की महिलाओं को कह कर चैत्र मास में गणगौर के समय एक रात्रि में महिलाओं के द्वारा स्वांग रच कर अनेक प्रकार के कार्यक्रमों को संपादित किया गया था , तब से यह धींगा गवर का उत्सव शुरू होता है । मेवाड में तो महारानी राठौड़ जी के लिए यह उत्सव प्रारंभ हुआ था लेकिन यह उत्सव राठौड़ी जी के साथ उनके पीहर जोधपुर में मनाया जाने लगा । कहते है की यह राठौड़ी राणी मेवाड़ के महाराणा राज सिंह जी एक महारानी थी ।
धींगा गवार का उत्सव 18 वी शताब्दी में प्रारंभ होना इतिहास के उल्लेख से पता चलता है । तभी से जोधपुर शहर (Sun city Jodhpur) का यह उत्सव संपूर्ण विश्व में बड़ा प्रसिद्ध हुआ ।
आज भी यह त्यौहार मारवाड़ की संस्कृति के साथ साथ नारी शक्ति के प्रतीक और उसकी स्वतंत्र सत्ता का भी पर्याय है ।
राजस्थान के जोधपुर का बेंतमार गणगौर मेला|
धींगा के साथ बेंत मार का शब्द भी जुड़ गया । जब यह उत्सव मनाया जाता है तब पुरुष उस समय वहां से निकलते है तब महिलाएं एक लकड़ी की छड़ी से उसे मारती है । जिस किसी को भी इस छड़ी की मार पड़ती है तो उसे बहुत अच्छा शगुन माना जाता है । कुंवारे लड़के को छड़ी की मार पड़ना शुभ संकेत होता है । जिनका विवाह नहीं हो रहा है तो उसका विवाह हो जाता है ।
उत्साह और नवाचार का पर्याय धींगा गवर जिसे लोटिया का मेला भी कहा जाता है । जोधपुर के भीतरी शहर में यह उत्सव बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है । कुंवारी युवा बुजुर्ग सभी आयु की नारी शक्ति इस उत्सव में भाग लेती है एक रात्रि के लिए जैसे समय ठहर सा जाता है ।
मांड संस्थान और धींगा गवर समिति के श्री गोविंद जी कल्ला और उनके साथियों के द्वारा भव्य गायन परम्परा में कविताओं गीतो का प्रदर्शन बड़ा मनोहारी होता है । संगीत और नाटक नुकड़ के बहुआयामी प्रदर्शन गली मोहल्लों में संपूर्ण रात्रि होता है ।
महिला सशक्तिकरण का इससे बेहतर कोई और उदाहरण नहीं हो सकता । सूर्य नगरी जोधपुर का यह पर्व संपूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है इस पर्व में राजस्थान की लोक संस्कृति और परंपरा के दर्शन होते हैं।