जीवन बीमा एजेंट कैसे बने? HOW TO BECOME A LIFE INSURENCE ADVISOR?

जीवन बीमा एजेंट कैसे बने? HOW TO BECOME A LIFE INSURENCE ADVISOR?

जीवन बीमा एजेंट बनने के लिए क्या योग्यताएं होनी चाहिए?जीवन बीमा एजेंट का कार्य क्या होता है? जीवन बीमा एजेंट कौन-कौन से बीमा को कर सकता है? आदि के बारे में संपूर्ण जानकारी इस लेख के माध्यम से मैं आप लोगों तक पहुंचा रहा हु।

जीवन बीमा प्रत्येक व्यक्ति के लिए क्यों अनिवार्य है? इसको जानने के लिए मैं आपको एक कहानी बताता हूं।

रामलाल गांव के विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे। उनके दो बेटे थे, और एक बेटी। सबसे बड़ा बेटा कॉलेज में पढ़ रहा था। बेटी अभी दसवीं कक्षा में थी, और छोटा बेटा अभी चौथी कक्षा में था। नौकरी के अलावा आय का कोई अन्य साधन नहीं था। इसलिए वह ट्यूशन पढ़ाकर आय बढ़ाना चाहते थे। फिर भी घर के खर्च पूरे नहीं होते थे। ऋण(Loan) ले कर काम चलाना पड़ता था। उधारी का रोग आसानी से नहीं छूटता है।एक दिन ऐसा आया कि महीने भर के खर्चे उधार से ही चलते थे और वेतन पूरा उधार अदा करने में चला जाता था।

अचानक एक शाम को रामलाल ट्यूशन पढ़ाने के लिए जाते समय रास्ते में बस से टकरा गए। गंभीर चोट लगी, काफी खून निकल चुका था, कुछ लोग उन्हें उठाकर अस्पताल ले गए। अस्पताल पहुंचते- पहुंचते बीच रास्ते में उनके प्राण पखेरू उड़ गए।

दूसरी ओर नरेंद्र एक साधारण सा मास्टर था।उसका परिवार भी ज्यादा बड़ा नहीं था। उसके भी तीन संताने थी। बस फर्क ये था कि उसकी बेटी बड़ी थी और दोनों बेटे छोटे। तीनों अभी पढ़ ही रहे थे कि 1 दिन छत से गिर जाने पर उनकी मृत्यु हो गई। गनीमत यह थी कि उन्होंने अपना जीवन बीमा करा रखा था। इसलिए उनकी पत्नी को बीमा की अच्छी खासी रकम मिल गई। जिसके कारण परिवार का खर्चा ही नहीं चला, बल्कि उन्होंने समय रहते बेटी के हाथ भी पीले कर दिए। यह समझदारी उन्हें दिखाई थी एक बीमा एजेंट(insurence advisor) ने। यद्यपि अपनी गरीबी की हालत देखते हुए नरेंद्र ने बीमा एजेंट को बहुत टाला था,किंतु बाद में उसकी बातों पर उन्होंने गंभीरता पूर्वक विचार किया और अपनी सामर्थ्य को देखते हुए दो बीमा पॉलिसीया भी ले ली थी। एक अपने नाम पर दूसरी बेटी की शादी के लिए। बीमा की किस्त अदा करने में यद्यपि नरेंद्र को काफी पापड़ बेलने पड़ते थे। मगर फिर भी वह हिम्मत नहीं हारे। अपना पेट काटकर  उन्होंने पैसे बचाएं और बीमा की किस्त(insurence premium) अदा की, यही धन बाद में उनके परिवार के काम आया।

आज आम आदमी की आमदनी तो सीमित है पर दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई और व्यक्ति की अपनी बढ़ती इच्छाओं के कारण खर्चे इतने अधिक हो गए हैं, कि वह चाहकर भी भविष्य के लिए कुछ बचा नहीं पाता। उधर बुढ़ापे की वजह से कामकाज करने में असमर्थ हो जाने अथवा अचानक मृत्यु हो जाने से सारे परिवार के सामने एक भयानक स्थिति पैदा हो जाती है। अगर कोई व्यक्ति आज बीमारी या दुर्घटना का शिकार हो जाए तो शरीर पंगु हो जाता है और उसमें काम करने की क्षमता नहीं रहती। संपत्ति नष्ट हो जाने या उसमें हानि हो जाने जैसी घटनाएं भी घट सकती है। बीमे की मदद से ऐसी आर्थिक कठिनाइयों को काफी हद तक कम अवश्य किया जा सकता है। बीमा कराने वाला व्यक्ति बीमा संगठन को नियमित रूप से निर्धारित समय तक एक निश्चित रकम देता है, जिसे प्रीमियम कहते हैं। बीमे की पहली किस्त देने के समय से ही बीमा कराने वाले व्यक्ति तथा उसकी संपत्ति की सुरक्षा आरंभ हो जाती है। बीमा करने वाले संगठन और बीमा कराने वाले व्यक्ति के बीच जो करार होता है, उसे बीमा पॉलिसी कहते हैं। दुर्घटना मृत्यु होने पर पॉलिसी की निर्धारित रकम बीमा कराने वाले व्यक्ति को मिल जाती है।

भारत में जीवन बीमा का व्यवसाय केवल सरकारी कंपनी भारतीय जीवन बीमा निगम(LIC OF INDIA)द्वारा ही किया जाता था, किंतु आजकल और भी निजी क्षेत्र की कंपनियां कार्य कर रही है। आग, दुर्घटना से होने वाले नुकसान आदि का बीमा जनरल बीमा निगम द्वारा किया जाता है। 

यह बीमा कंपनी बीमा आदि कार्य के लिए विभिन्न क्षेत्रों में अपने एजेंट नियुक्त करती है। यह बीमा एजेंट ही लोगों से संपर्क स्थापित करके बीमा निगम की ओर से उस व्यक्ति अथवा उसकी चीजों आदि का बीमा करते हैं। इन बीमा एजेंटों को बीमा सलाहकार भी कहा जाता है। इंश्योरेंस एडवाइजर का कार्य वर्तमान में कई लोग कर रहे हैं एवं इससे अच्छी खासी कमाई भी कर रहे हैं। यह क्षेत्र, सेवा के साथ-साथ कमाई करने का एक अच्छा स्रोत हो सकता है।

बीमा एजेंट का कार्य(Insurence Advidor’s Work)

बीमा एजेंट अर्थात इंश्योरेंस एडवाइजर का कार्य कार्यालय से बाहर होता है। वो बीमा कराने के इच्छुक लोगों से व्यक्तिगत रूप से संपर्क करता है, और उनकी समस्याओं पर चर्चा करता है। फिर वह उन्हें अच्छी तरह समझाता है, कि जीवन बीमा अथवा अन्य प्रकार के बीमे द्वारा किस तरह उनकी समस्याएं हल हो सकती है। बीमा एजेंट का कार्य किसी व्यक्ति अथवा संपत्ति का बीमा करा देने के बाद ही समाप्त नहीं हो जाता, बल्कि यह तो उसके कार्य की शुरुआत है। जब कोई पॉलिसी होल्डर समय पर प्रीमियम जमा नहीं करता तो बीमा एजेंट उससे संपर्क स्थापित कर बीमे की रकम जमा कराने के लिए कहता है, और स्वयं उससे उस प्रीमियम का चेक या नकद रकम हासिल करने की कोशिश करता है। तथा फिर उसे बीमा कार्यालय में जमा करा देता है। वह पॉलिसी लेने वाले की बढ़ती हुई पारिवारिक जिम्मेदारियों और बदलती परिस्थितियों के अनुसार उसे नई-नई पॉलिसिया लेने की सलाह देता है। वह पॉलिसी लेने वाले की मृत्यु हो जाने पर उसके आश्रितों को बीमे की रकम दिलाने में भी मदद करता है। चोरी,आग आदि दुर्घटनाओं का बीमा 1 साल की अवधि के लिए होता है, और इस अवधि के समाप्त होने से पहले ही आमतौर पर उसका नवीनीकरण करा लिया जाता है। जिससे अगर बीमें की पिछली अवधि के समाप्त हो जाने पर कोई दुर्घटना हो जाने से बीमा कराने वाले को कोई नुकसान हो जाए तो वह उसकी भरपाई के लिए दावा कर सके।

बीमा सलाहकार बनने के लिए शैक्षणिक योग्यता(EDUCATIONAL QUALIFICATION FOR INSURENCE ADVISOR)

इस व्यवसाय के लिए व्यक्ति को अधिक  शैक्षणिक योग्यता की आवश्यकता नहीं है, परंतु यह माना जाता है कि विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई किया व्यक्ति इसमें अधिक सफल हो सकता है।1 लाख या इससे अधिक आबादी वाले शहर के लिए एजेंट का 12वी पास होना पर्याप्त है। जबकि छोटे शहरों के लिए दसवीं पास व्यक्ति भी एजेंट बन सकता है। इस व्यवसाय में आयु संबंधी कोई प्रतिबंध नहीं है। लेकिन यह आवश्यक है कि एजेंट अच्छे स्वभाव का और अच्छे व्यक्तित्व वाला हो। ग्राहकों को पॉलिसी के प्रति आकर्षित करने वाला तथा सहनशील और विनम्र हो।

बीमा सलाहकार बनने के लिए प्रशिक्षण(TRAINING FOR INSURENCE AGENT)

एजेंट बनने के लिए पहले प्रशिक्षण आदि नहीं लेना पड़ता था।किन्तु किंतु वर्तमान में एजेंट बनने के लिए बीमा कंपनी के अनुभवी अधिकारियों द्वारा शाखा कार्यालय में निशुल्क प्रशिक्षण दिया जाता है। यह प्रशिक्षण व्यवहारिक और सैद्धांतिक दोनों प्रकार का होता है। प्रत्येक एजेंट को जीवन बीमा या जनरल बीमा के बारे में एवं एजेंट के रूप में कार्य करने के तरीकों की जानकारी दी जाती है। साथ ही बीमा एजेंट बनने के लिए जो परीक्षा आयोजित की जाती है, उस परीक्षा में सफल होने के लिए उनको थ्योरी एवं प्रैक्टिकल दोनों का प्रशिक्षण दिया जाता है। 

एजेंट के लिए बीमा का कार्य करने के लिए घंटे निर्धारित नहीं होते।वह चाहे तो पूरे समय यही कार्य कर सकता है या कोई और काम करने के साथ-साथ कुछ समय इस काम में भी लगा सकता है। वैसे पूरे समय तक कार्य करने वाला एजेंट अच्छा व्यवसाय कर सकता है। वह जीवन बीमा के साथ-साथ जनरल बीमा का कार्य भी कर सकता है।

बीमा एजेंट बनने के लिए आवेदन(APLICATION FOR INSURENCE ADVISOR)

स्त्री और पुरुष में से कोई भी बीमे का व्यवसाय कर सकता है।इस व्यवसाय के इच्छुक लोगों को जीवन बीमा निगम के स्थानीय कार्यालय में जाकर अधिकारियों से संपर्क करके प्रवेश मिल सकता है। स्थानीय कार्यालय में निर्धारित फीस जमा करके आवेदन पत्र लिया जा सकता है। उस आवेदन पत्र को भरकर देने पर शाखा प्रबंधक आवेदक से कुछ बातें पूछता है और फिर अपनी सिफारिश सहित आवेदन पत्र को क्षेत्रीय कार्यालय को भेज देता है। क्षेत्रीय कार्यालय से ही एजेंट की नियुक्ति का आदेश जारी किया जाता है। फिर एजेंट के रूप में कार्य शुरू किया जा सकता है।

बीमा एजेंट का लाइसेंस और कमीशन

एजेंट के रूप में कार्य शुरू करने से पहले बीमा नियंत्रक से लाइसेंस प्राप्त करना पड़ता है। बीमा एजेंट बीमा कंपनी के लिए प्रत्येक पॉलिसी की वसूली पर कमीशन पाता है।इसलिए व्यवसाय शुरू करते ही उसकी कमाई होने लगती है।एजेंट को पॉलिसी में निर्धारित रकम और उसके प्रीमियम के आधार पर कमीशन मिलता है। कमीशन की दरें काफी आकर्षक होती है। जीवन बीमा में यह दरें प्रीमियम की पहले वर्ष की क़िस्त पर अधिकतम 35% होती है। जनरल बीमा में यह दरें पांच और 15% प्रतिशत के बीच होती है। एजेंट को कमीशन के अलावा पॉलिसी का नवीनीकरण करने पर भी कमीशन मिलता है जो 5 और 7 प्रतिशत के बीच है। यह उसको या उसकी मृत्यु के बाद उसके उत्तराधिकारी को लगातार तब तक मिलता रहता है, जब तक पॉलिसी जारी रहती है। बशर्ते उसने उसके लिए कम से कम निर्धारित व्यवसाय किया हो। यदि कोई एजेंट आगे बीमा करने का काम बंद भी कर देता है, तो भी उसको नवीनीकरण का कमीशन मिलता रहता है। बीमा एजेंट अपने प्रयत्नों से अपनी आय को जितना चाहे बढ़ा सकता है। बीमा कंपनियों में मासिक वेतन वाले पद अधिक नहीं है। इनका लक्ष्य वेतन कर्मचारियों से अधिक एजेंटों के जरिए व्यवसाय बढ़ाना है। फिर भी जनरल बीमा कंपनियों में क्षेत्रीय प्रबंधको, विकास अधिकारियों, सहायक,शाखा प्रबंधक के लिए कुछ अवसर उपलब्ध है। यह देखा गया है कि एजेंट मासिक वेतन मिलने वाले पद के इच्छुक नहीं होते, क्योंकि इससे उनकी आय महीने के वेतन तक ही सीमित हो जाती है। वास्तव में बीमा एजेंट के लिए कमाई के असंख्य अवसर है, क्योंकि अभी तक बहुत से लोगों ने बीमा नहीं करा रखा है।

यह माना जाता है कि बीमें का व्यवसाय विश्व में सबसे कठिन,सबसे बड़ा और सबसे अधिक आय वाला है। वाणिज्य, उद्योग और कृषि क्षेत्र में विकास हो जाने से प्रति व्यक्ति आय बढ़ने के साथ जीवन बीमा और जनरल बीमा दोनों ही बहुत आकर्षक हो रहे हैं।

प्रोफेशनल्स के लिए बीमा सुरक्षा(INSURENCE SECURITY FOR PROFESSIONALS)

एक प्रोफेशनल के रूप में आप अपने ज्ञान और अनुभव के आधार पर सेवाएं उपलब्ध कराते हैं, लेकिन जैसा कि अन्य कार्य क्षेत्रों में होता है,इसमें भी गलतियों की गुंजाइश रहती है।इन गलतियों के कभी-कभी भारी वित्तीय दुष्परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी वास्तुकार यानी आर्किटेक्ट ने किसी ऐसे रिहायशी भवन का डिजाइन बना दिया, जिसमें अनजाने ही कुछ खतरनाक संरचनात्मक दोष रह गया हो, तो असंतुष्ट गृह स्वामी वास्तुकार पर मुकदमा कर सकता है। 

यहीं पर पेशागत क्षतिपूर्ति आनी प्रोफेशनल इनडेमनिटी काम आती है। जो पेशागत क्षतिपूर्ती पॉलिसी से प्राप्त होती है। पेशागत क्षतिपूर्ती पॉलिसी बीमा कवर के अनुसार वह पूरी या आंशिक रकम अदा करने का वादा करती है, जो एक बीमित व्यक्ति के रूप में आप अपनी सेवाएं प्रदान करते समय होने वाली त्रुटियों के कारण अपने ग्राहक को हर्जाने के रूप में कानूनन अदा करने के भागी बनते हैं। 

अभी तक भारतीय बीमाकर्ताओं ने केवल मेडिकल प्रोफेशनल्स को प्रतिवर्ष बीमा कवर का शत-प्रतिशत क्लेम करने का ऑप्शन दिया है, अन्य प्रोफेशनल स्कोर प्रति केस, प्रतिवर्ष लगाए गए हरजाने का 25% तक क्लेम करने की अनुमति है।  क्षतिपूर्ण पॉलिसी हर्जाने के दावे के अलावा कानूनी लागते और खर्चे पॉलिसी और बीमा कवर में निर्दिष्ट सीमाओं के अनुसार ही मिलते हैं।

केवल डॉक्टरों के लिए ही नहीं है यह पॉलिसी

अभी तक प्रोफेशनल इनडेमनिटी डॉक्टरों में ही ज्यादा लोकप्रिय थी। इसका एक कारण यह है कि मेडिकल प्रोफेशन में त्रुटियों के भयंकर नतीजे सामने आते है, और वे उपभोक्ता विवाद अधिनियम के दायरे में आते है। 

इसका एक कारण यह भी था कि ज्यादातर बीमाकर्ता डॉक्टरों को ही यह पॉलिसी ऑफर करते थे। पर अब कुछ बीमाकर्ताओं ने ऐसी सुरक्षा की जरूरत महसूस करने वाले अन्य प्रोफेशनल्स को भी प्रोफेशनल इनडेमनिटी ऑफर करनी शुरू कर दी है।

कौन-कौन ले सकता है यह बीमा पॉलिसी

निम्नलिखित प्रोफेशनल्स भी बीमा करा सकते हैं:-

  • Chartered accountant, 
  • advocate, solicitor,
  • engineer, 
  • architect, 
  • interior decorator, 
  • medical establishments,
  • फाइनेंशियल कंसल्टेंट्स
  • मैनेजमेंट कंसल्टेंट्स

क्यों ली जाए पॉलिसी?

बहुत से प्रोफेशनल्स अपनी ड्यूटी निभाते समय जाने-अनजाने में गलती या भूल-चूक कर सकते हैं। जिससे उनके ग्राहकों को कठिनाई या नुकसान हो सकता है। इससे वे देश के आम कानून के तहत उत्तरदायी हो सकते हैं और उन्हें भारी मुआवजा चुकाना पड़ सकता है। कई बार इस मुआवजे की अदायगी उनकी क्षमता के बाहर हो सकती है।उनका लाइसेंस रद्द हो सकता है। ऐसी परिस्थितियों में प्रोफेशनल इनडेमनिटी पॉलिसी लेना बड़ी राहत की बात हो सकती है।

ध्यान रखें

पॉलिसी लेते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान जरूर रखें:-

  1. सुनिश्चित कर ले की पॉलिसी में उसका लगातार नवीनीकरण करते रहने पर पूर्वव्यापी अवधि लाभ यानी रेट्रोएक्टिव पीरियड का लाभ प्रस्तावित किया हो। पूर्वव्यापी अवधि लाभ का मतलब है कि बीमाकर्ता आपके द्वारा किसी पिछली पॉलिसी अवधि में किए गए कार्य की वजह से उत्पन्न होने वाले क्लेम को मान्य करेगा; हालांकि चार्जेस चालू अवधि के दौरान लगाए जा रहे हैं। कहने की आवश्यकता नहीं कि पूर्वव्यापी अवधि लाभ तभी मिल सकता है, जब आप बीमा लेना जारी रखें।
  2. पॉलिसी किसी ऐसे क्लेम को भी कवर कर सकती है, जो आपकी पॉलिसी समाप्त होने या रद्द हो जाने के बाद उत्पन्न हुए हो। बशर्ते वह पॉलिसी की समाप्ति या निरस्तीकरण के 90 दिनों के भीतर बीमाकर्ता को सूचित कर दी जाए। इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि क्लेम के रूप में परिणत होने वाला कार्य पॉलिसी चालू रहने पर घटित होना चाहिए।
  3. अपने लिए सर्वोत्तम  क्षतुपूर्ति सीमा यानी लिमिट ऑफ इनडेमनिटी चुनते समय अपने बीमा सलाहकार से सलाह लीजिए। आपको पॉलिसी की अवधि के लिए वार्षिक कवर ही नहीं चुनना है, बल्कि यह भी चुनना है, कि उस कवर का कितना प्रति घटना यानी इंसीडेंट देय है। जैसा कि पहले कहा जा चुका है मेडिकल प्रोफेशनल्स को छोड़कर जो शत-प्रतिशत एओए क्लेम कर सकते हैं। किसी एक दुर्घटना के लिए क्षतिपूर्ती सीमा वार्षिक सीमा की अधिकतम 25% है।

प्रोफेशनल इनडेमनिटी खरीदना एक दीर्घकालिक प्रतिबद्धता है। समय पर अपनी पॉलिसी का नवीनीकरण कराना यानी रिन्यू कराना ना भूले अन्यथा आप पूर्वव्यापी अवधि के लाभ को खो देंगे।

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