जलवायु परिवर्तन।CLIMATE CHANGE IN HINDI।
वर्तमान में मानव के सामने पर्यावरण को बचाने के लिए जलवायु परिवर्तन की तीव्रता को कम करना पड़ेगा, नहीं तो आने वाले समय में मनुष्य के लिए यह बहुत हानिकारक साबित होगा। हमारा पर्यावरण बचेगा तभी यह धरती बच पाएगी और यहां पर जीव रह पाएंगे।
इस लेख में जलवायु परिवर्तन के बारे में बताया जा रहा है जिसे आप ध्यानपूर्वक पढ़ें और धरती को बचाने में अपना जो भी सहयोग हो सके वह करें।
ग्रीन हाउस प्रभाव किसे कहते हैं?
पूरे विश्व में औद्योगिक क्रांति के पश्चात हो रही अनेकों विकास गतिविधियों एवं जैविक ईंधन की बढ़ती खपत के कारण वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी अन्य ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा लगातार बढ़ती जा रही है। यह गैसे सूर्य से मिलने वाली गर्मी को सोखकर कर वातावरण का तापमान बढ़ाती है। गैसों के इस व्यवहार को ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं।
जलवायु परिवर्तन किसे कहते हैं?
विकास की गतिविधियों के चलते पर्यावरण प्रदूषण बढा है और वातावरण में इन गैसों के अधिक मात्रा में उपस्थित होने के कारण ‘ग्लोबल वार्मिंग’ यानी तेजी से गर्म होती धरती की स्थिति उत्पन्न हो गई है। जिस तेजी से धरती गर्म हो रही है, उससे यह सहज ही कहा जा सकता है कि आने वाले वर्षो में अकेले भारत में औसत तापमान में 1 से 6.5 डिग्री सेंटीग्रेड की वृद्धि हो जाएगी। ग्लोबल वार्मिंग का सीधा असर हमारी जलवायु पर पड़ता है और यह धीरे-धीरे परिवर्तित हो रही है इसी को जलवायु परिवर्तन कहते हैं।
पृथ्वी का तापमान पिछले एक सदी में लगभग 1 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ चुका है एवं अगले 100 वर्षों में इसके 2 से 6 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने की संभावना है।पृथ्वी के औसत तापमान में न्यूनतम परिवर्तन भी जलवायु परिवर्तन के बेहद घातक रूप में उपस्थित हो सकता है।
जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य पृथ्वी के मौसम में परिवर्तन से होता है। जिसके अंतर्गत तापमान, वायु की दिशा एवं प्रकार, वर्षा में परिवर्तन तथा विशेष रूप से कुछ गैसों मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड की वजह से पृथ्वी के तापमान में वृद्धि शामिल है।
जलवायु परिवर्तन का क्या कारण है?
सामान्यत: औद्योगिक क्रांति के पूर्व जलवायु परिवर्तन के मुख्य कारक प्राकृतिक ही माने जाते थे,जैसे- सौर ऊर्जा, ज्वालामुखी विस्फोट एवं हरित गृह गैस संकेंद्रण में प्राकृतिक परिवर्तन। किंतु वर्तमान में जलवायु परिवर्तन के लिए सिर्फ प्राकृतिक कारकों को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। बीसवीं शताब्दी के मध्य के पश्चात जलवायु परिवर्तन में इसकी भूमिका न्यून हो चुकी है। आज मानवीय क्रियाएं जलवायु परिवर्तन में एक बड़ी भूमिका निभा रही है।
जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग का दुष्प्रभाव क्या है?
- ग्लोबल वार्मिंग के कारण वर्षा में लगातार कमी हो रही है तापमान वृद्धि एवं वर्षा की कमी के कारण कृषि और जल संसाधनों पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।
- वन क्षेत्रों,वनस्पतियों और जैव विविधता पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।
- ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि इसी से आगे आने वाले वर्षों में समुद्र किनारे के तटीय इलाके जलमग्न हो जाएंगे, जैसे- मुंबई,मालदीव, मॉरीशस आदि।
- ग्लोबल वार्मिंग से ही हमारे हिम ग्लेशियर निरंतर पिघलते जा रहे हैं। पिछले 100 वर्षों के आंकड़े बताते हैं कि भारत ही नहीं बल्कि पूरे विश्व के हिमनदों का आकार तेजी से घट गया है।
- भारत का गंगोत्री ग्लेशियर 15 से 20 फ़ीसदी तक सिकुड़ गया है और हिंदुकुश हिमालय के अनेक छोटे हिमनद तो समाप्त ही हो गए हैं। यदि ऐसा ही रहा तो आने वाले वर्षों में उत्तर भारत में बहने वाली नदियां पूरी तरह सूख जाएगी।
- जलवायु परिवर्तन का सीधा असर ग्रामीण गरीब आबादी पर पड़ता है, क्योंकि वह अपनी मूलभूत आवश्यकताओं के लिए सीधे रूप से प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर होते हैं।
- जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून में अनिश्चितता बढ़ जाएगी। कुछ इलाके सूखे तो कुछ अक्सर भयावह बाढ़ की चपेट में रहेंगे। साथ ही वर्षा ऋतु की अवधि एवं महीनों में भी परिवर्तन आने से कृषि गतिविधियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
- जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल असर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं पर सबसे अधिक पड़ता है। हमारे ग्रामीण अंचलों में घर में पानी की आपूर्ति की जिम्मेदारी महिलाओं पर ही होती है । जल के गहराते संकट के कारण जल स्रोतों की दूरी बढ़ती जा रही है। महिलाओं को कोसों दूर पैदल चलकर दैनिक पानी की व्यवस्था जुटानी पड़ती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण रोग वाहको से फैलने वाली बीमारियां जैसे- मलेरिया, अशुद्ध पानी से फैलने वाली बीमारियां जैसे- हेजा, अतिसार, मोतीझरा (टाइफाइड)और तनाव संबंधी बीमारियां बढ़ती जा रही है।
- परिवार के सदस्यों की देखरेख की जिम्मेदारी महिलाओं की ही है और बिगड़ती पर्यावरणीय परिस्थितियों में उन पर अत्यधिक बोझ बढ़ जाता है।जिससे उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। वस्तुत: महिलाओं की स्थिति पर्यावरण शरणार्थी जैसी हो जाती है।
- जलवायु परिवर्तन के कारण से हमें भीषण गर्मी, मूसलाधार वर्षा, समुद्र तल में वृद्धि,क्षरण, निर्माण संबंधी खतरा, समुद्री अम्लीयता में वृद्धि, दावानल जैसी घटनाओं में वृद्धि, कीट प्रकोप आदि का सामना करना पड़ता है। जिसके घातक प्रभाव जैवविविधता, कृषि, मानव स्वास्थ्य एवं संवेदनशील वनस्पति वर्ग व जीवो पर पड़ता है।
- जलवायु परिवर्तन से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा भी बढ़ जाता है।