चुनाव में प्रत्याशी नकारने का विकल्प है – नोटा । What is NOTA?
NOTA(NO TO ANYONE) का प्रयोग भारतीय राजनीति में अयोग्य लोगों को आने से रोकने के लिए समय-समय पर तमाम बुद्धिजीवी और सामाजिक संगठन चुनाव सुधार के तहत ईवीएम में नोटा बटन लगाने की मांग करते रहे थे। अतः मौजूदा निर्वाचन प्रणाली में मतदाताओं के पास सभी प्रत्याशियों को नकारने का विकल्प भी मौजूद है। नोटा का अर्थ है नो टू एनीवन। इसमें ईवीएम मशीन में सबसे अंत का एक बटन NOTA दिया जाता है,जिसमें मतदाता अगर किसी भी प्रत्याशी को पसंद नहीं करते हैं एवं उनके कार्यों से संतुष्ट नहीं है, तो वे नोटा का प्रयोग कर अपनी राय दे सकते हैं।
चलिए जानते हैं नोटा के बारे में अन्य महत्वपूर्ण जानकारी:-
इस जानकारी का शुरू से ही पर्याप्त प्रचार न होने के कारण मतदाता इस विकल्प के इस्तेमाल से वंचित रहे। कालांतर में ईवीएम अर्थात इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन के प्रचलन में आने के बाद मशीन में इस विकल्प के इस्तेमाल का कोई बटन मौजूद न होने की वजह से दबंग, धनकुबेर और अन्य प्रकार से अयोग्य उम्मीदवार चुनावी अखाड़े में ताल ठोकते रहे। निर्वाचन आयोग का नियम उन जागरूक बुद्धिजीवियों को भी मतदान केंद्र तक जाकर अपने बहुमूल्य मताधिकार का इस्तेमाल करने को प्रेरित करता है जो आलस्य को छुपाने के लिए महज ड्राइंग रूम में बैठकर नेताओं को बुरा भला कह कर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। हालांकि नोटा मतों की संख्या सर्वाधिक मत पाने वाले प्रत्याशी से अधिक होने पर निर्वाचन आयोग के नियम मौन है। बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि चुनाव आयोग की ऐसी स्थिति में संबंधित सीट पर चुनाव रद्द कर फिर से मतदान कराना चाहिए। ईवीएम में नोटा के विकल्प के अलावा यह भी मांग की जा रही थी, कि विजेता प्रत्याशी को कुल मतदान का 50% प्रतिशत अर्जित करना अनिवार्य किया जाए।
नोटा के लिए क्या है प्रावधान?
- चुनाव आयोग के ‘नियम 49-O’ के तहत मतदाता अपनी पसंद का प्रत्याशी न होने पर सभी को खारिज कर सकता है। यह नियम ईवीएम के प्रचलन में आने के पहले से भी लागू था। लेकिन लोगों को इसके बारे में कम जानकारी होने की वजह से एवं जानकारी का अभाव होने की वजह से प्रयोग में नहीं लाते थे।
- नोटा का विकल्प 1950 से ही मतदाताओं के पास मौजूद रहा लेकिन पर्याप्त प्रचार के अभाव में यह उनकी नजर में अब तक नहीं आ सका था।
- हालांकि यह प्रक्रिया थोड़ी हटकर है और इसके बारे में अब तक पर्याप्त प्रचार-प्रसार न होने के कारण इसका प्रयोग न के बराबर रहा है।
- 1992 में ईवीएम के प्रचलन में आने के बाद से मतदाताओं के लिए नोटा (नो टू एनीवन) के विकल्प का इस्तेमाल करने की प्रक्रिया ज्यों की त्यों है।
पहले नोटा का प्रयोग करने के लिए क्या करना होता था?
- कोई मतदाता किसी भी उम्मीदवार को अपने चयन की कसौटी पर खरा नहीं पाता है, तो उसे अपनी इस इच्छा से मतदान केंद्र पर मौजूद निर्वाचन अधिकारी को अवगत करवाना होता था।
- निर्वाचन अधिकारी ऐसे मतदाता को वोटर रजिस्टर में फॉर्म 17-अ भरने को देता था। इस फॉर्म में मतदाता को अपनी पहचान उजागर करते हुए दस्तखत करने होते थे, एवं अंगूठा लगाना होता था।
- इसके बाद निर्वाचन अधिकारी उक्त मतदाता की तर्जनी पर अन्य मतदाताओं की भांति स्याही का निशान लगाकर इस तथ्य से पीठासीन अधिकारी को अवगत कराता था। जिसे पीठासीन अधिकारी अपने रजिस्टर में दर्ज कर लेता था।
- मतगणना के समय नोटा मतों की अलग से गिनती होती थी। यह बात अलग है कि निर्वाचन नियमावली में इस बात की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं थी, कि नोटा मतों की संख्या सर्वाधिक मत पाने वाले प्रत्याशी से ज्यादा होने पर क्या होगा? एवं आज भी इसके लिए कोई स्पष्ट निर्देश नहीं है। अतः यह व्यवस्था केवल मतदाता को अपने पसंद का प्रत्याशी न होने पर उसे नकारने का विकल्प देती है।
वर्तमान में नोटा का विकल्प ईवीएम मशीन में स्पष्ट रूप से दिया जाता है,एवं मतदाता को अपनी पहचान उजागर करने की जरूरत से छुटकारा देती है।