चंद्रग्रहण क्यों लगता है?(Why does a lunar eclipse happen?)
प्रिय पाठकगण,
आइये जानते है चंद्रग्रहण क्या होता है? चन्द्रमा घटता व बढ़ता क्यों है?
चन्द्रमा घटता व् बढ़ता क्यों है? व् चंद्रग्रहण क्यों लगता है?
पृथ्वी सूर्य के चारो ओर घुमती है. चन्द्रमा पृथ्वी के चारो ओर घूमता है.लेकिन जब पृथ्वी घुमती-घुमती सूर्य और चन्द्रमा के बीच में आ जाती है.जब कभी ऐसा होता है,तो पृथ्वी की छाया सूर्य को ढक लेती है,परिणामस्वरूप सूर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नहीं पहुँच पाता है. जितने समय तक सुर्य का प्रकाश चन्द्रमा तक नहीं पहुंचता है उतने समय के लिए चन्द्रमा काला नजर आता है.इसे ही हम चंद्रग्रहण का लगना कहते है.
कभी-कभी पृथ्वी की छाया पुरे चन्द्रमा पर पड़ती है और कभी-कभी आधे या आंशिक भाग पर पड़ती है.जब छाया पुरे मंडल पर पड़ती है तो चन्द्रमा को सूर्य से प्रकाश बिलकुल भी नहीं मिल पाता है,इसी को पूर्ण चंद्रग्रहण का लगना कहते है.
इसके विपरीत जब छाया आधे या आंशिक भाग पर पड़ती है तो चन्द्रमा का आधा या बाकी भाग तो प्रकशित रहता है.शेष भाग पर अँधेरा रहता है.इसी को खंड चंद्रग्रहण या आंशिक चन्द्र ग्रहण का लगना कहते है.
चंद्रमा प्रत्येक महीने में 15 दिन आकाश में दिखाई पड़ता है प्रतिपदा आदित्य को दिखाई पड़ता है और बढ़ते बढ़ते 15 दिन पूर्ण आकार का बन जाता है जिस दिन पूर्णा कर का बन जाता है उसे पूर्णिमा कहते हैं पूर्णिमा को रात्रि में चंद्रमा पूरा दिखाई पड़ता है पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से चंद्रमा पुनः घटने लगता है और धीरे-धीरे करता हुआ 15 दिन बिल्कुल अदृश्य हो जाता है जिस दिन अदृश्य हो जाता है उसे हम अमावस्या कहते हैं अमावस्या की रात में चंद्रमा बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ता इस प्रकार चंद्रमा 15 दिन धीरे धीरे बढ़ता है और 15 दिन धीरे-धीरे घटता है जिस पथ दिन में धीरे धीरे बढ़ता है उसे शुक्ल पक्ष और जिस दिन में धीरे धीरे करता है उसे कृष्ण पक्ष कहते हैं और बढ़ने की कला को चंद्रकला कहते हैं
आइए अब हम जानते समझते हैं चंद्रमा की कलाएं क्या होती है? चंद्रमा क्यों घटता बढ़ता है?
चंद्रमा जिस पृथ्वी से निकला हुआ है वह सदैव सूर्य के चारों ओर घूमती रहती है जिस प्रकार पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है, उसी प्रकार चंद्रमा भी पृथ्वी के चारों ओर घूमता है. चंद्रमा को पृथ्वी की एक परिक्रमा पूरी करने में साढे उनतीस दिन का समय लगता है. इतने ही दिन उसे अपनी धुरी की परिक्रमा पूरी करने में लगते हैं .अतः चंद्रमा का महीना 30 दिन का नहीं होता है. चंद्रमा का एक महीना साढ़े उनतीस दिन का होता है. चंद्रमा ज्यो-ज्यो आगे बढ़ता है त्यों-त्यों सूर्य के प्रकाश की कमी बढ़ती जाती है .और फलस्वरूप चंद्रमा की कला भी घटती जाती है. 15 वे दिन चंद्रमा ऐसे स्थान पर पहुंचता है जब उस पर सूर्य का प्रकाश बिल्कुल नहीं पड़ता. ऐसी स्थिति अमावस्या कहलाती है.
अमावस्या की रात में चंद्रमा में कोई कला नहीं होती.वह रात्रि को आकाश में दिखाई नहीं पड़ता. चंद्रमा का हमें सदा एक ही भाग दिखाई पड़ता है. क्योकि उसका एक ही भाग सूर्य के सामने पड़ता है. उसका दूसरा भाग सदा सूर्य की और पीठ किए हुए हैं.चंद्रमा का जो भाग दिखाई पड़ता है उसमें बड़े-बड़े पहाड़, बड़ी-बड़ी चट्टानें और बड़ी बड़ी गुफा है. जो भाग दिखाई नहीं पड़ता उसमें क्या है ?इस बात की जानकारी जुटाने में वैज्ञानिक लगे हुए हैं. अतः हम कह सकते हैं कि चंद्रमा के बढ़ने और घटने के पूरे प्रक्रम को चंद्रकला कहा जाता है.
भारत में चंद्र ग्रहण के दौरान मंदिरों के पट बंद कर दिए जाते हैं. भगवान को उस समय भोग नहीं चढ़ाया जाता है. साथ ही घरों के अंदर खाने की चीजों को ढक कर रख दिया जाता है. चंद्र ग्रहण के दौरान भोजन नहीं करना चाहिए .ऐसी मान्यता है हिंदू धर्म में कि ग्रहण के समय सूतक लगा रहता है. क्योंकि चंद्रदेव उस समय कष्ट में होते हैं. अतः ग्रहण उतरने के बाद गंगाजल का छिड़काव कर उसके बाद ही भोजन करना चाहिए .लेकिन वैज्ञानिक ऐसा नहीं मानते क्योंकि चंद्रग्रहण एक सामान्य प्राकृतिक घटना है.
निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं की चंद्र ग्रहण वह प्राकृतिक घटना है ,जिसमें सूर्य. चंद्रमा व पृथ्वी एक ही सीध में आ जाते हैं. एवं सूर्य व चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आकर के सूर्य के प्रकाश को चंद्रमा तक नहीं पहुंचने देती. ऐसी स्थिति चंद्रग्रहण कहलाता है.