ग्राम पंचायत की निजी आय कैसे बढ़ाएं?। HOW INCREASE INCOME OF GRAM PANCHAYAT?
राज्य वित्त आयोग(STATE FINANCE COMISSION)की राय रही है, कि जब तक वित्तीय स्वतंत्रता नहीं होगी, तब तक पंचायती राज संस्थाओं को स्वायत्तशासी कैसे माना जा सकेगा? खुद के संसाधन नहीं होने के कारण ही पंचायतें उनको सौंपे पर गए कार्यों का प्रभावी तरीके से क्रियान्वयन नहीं कर पाती है। अधिकतर पंचायतों की निजी आय नगण्य है। वे संसाधनों के लिए पूर्णतया राज्य व केंद्र सरकार पर ही निर्भर है। वित्त आयोग की सिफारिश अनुसार पंचायतों को प्रतिवर्ष रुपए 1.50 लाख से 2लाख तक निजी आय बढ़ानी चाहिए।
पंचायती राज प्रणाली में अच्छा वित्तीय प्रबंधन बहुत आवश्यक है। सरकार की ओर से पंचायत क्षेत्र के विकास के लिए वित्तीय अनुदान तो मिलता ही है,लेकिन सीमित संसाधनों को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है,की पंचायतीराज संस्थाएं विभिन्न योजनाओं में पात्र लाभार्थियों को क्षेत्र के विकास में भागीदार बनावे। जनभागीदारी केवल योजना बनाने तक ही सीमित नहीं होती है। वे सभी लोग अपना-अपना, छोटा-छोटा योगदान जैसे- सामर्थ्य के अनुसार धन देकर, सामग्री देकर अथवा श्रमदान देकर भी कर सकते हैं।यहां यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी, कि पंचायतें अपननी निजी आय बढ़ाकर व जनसहयोग से ही अपनी प्राथमिकता के अनुसार विकास कार्य कर सकती है,और असली स्वायत्तशासी संस्था बन सकती है। अतः अब यह जरूरी हो गया है, कि पंचायतीराज संस्थाएं अपने वित्तीय साधन, निजी आय, ऑन सोर्स रेवेन्यू(OSR) बढ़ाने के लिए अधिकाधिक प्रयास करें।
राजस्थान पंचायती राज नियम,1996 के नियम 33 के अनुसार पंचायतें अपने नियमित कृत्य सफाई,रोशनी, जल-निकास, सड़कों का अनुरक्षण आदि भी नहीं कर पाती है ।नियम 34 के अनुसार पंचायतों से निजी आय के स्रोत जुटाने की अपेक्षा की गई है, कि वह कर राजस्व जुटाने के साथ-साथ सरपंच द्वारा पंचायत के वार्ड पंचों के परामर्श से दरो,फीसों, प्रभारो और शस्तियो में वृद्धि करके राष्ट्रीय राजमार्गों पर ढाबो, होटलों, ऑटोमोबाइल सर्विस स्टेशनों और मरम्मत की दुकानों,पेट्रोल-डीजल पंप पर कर/फीस निर्धारित करके भी गैर राजस्व में वृद्धि करें।
ग्राम पंचायत की निजी आय कैसे बढ़ाएं? HOW TO INCREASE INCOME OF GRAM PANCHAYAT?
प्रत्येक ग्राम पंचायत अपने निजी आय में बढ़ोतरी निम्न प्रकार से कर सकती है:-
- आबादी भूमि के भूखंड बिक्री कर, भू-पट्टा बिक्री आय, पुराने मकानों की पट्टा आय।
- आबादी भूमि में स्थाई दुकान, हाट बाजार आदि का निर्माण कर इन बाजारों से आय करना।
- चारागाह भूमि के अतिक्रमण से जुर्माने की राशि प्राप्त कर ग्राम पंचायत की आय बढ़ाना।
- चारागाह से पान-पापड़ी अन्य प्राकृतिक ऊपर से आए प्राप्त करना।
- चारागाह भूमि में खड़े बबूलो की नीलामी कर ग्राम पंचायत की आय बढ़ाना।
- गोबर,बबूल,घास की नीलामी से आय एवं पशु चराई फीस से आय प्राप्त कर।
- गवाई तालाबों से मछली पालन के ठेके द्वारा आय बढ़ोतरी।
- सिंघाड़े/कमलनाल व अन्य उपज के ठेके देकर उनसे आय प्राप्त करना।
- मृत पशुओं की खाल उतारने के ठेके की नीलामी।
- मेला स्थानों पर वाहन कर के ठेके की नीलामी।
- बजरी पत्थर के ट्रक व ट्रैक्टर से आय।
- पानी के ठेके से आय।
- तालाब/एनीकट से मिट्टी निकालने के ठेके देकर ग्राम पंचायत की आय बढ़ाना।
- खजूर, अरंडी, ढाक पत्ते, पत्तल दोना, पेड़ों के ठेके आदि से आय बढ़ाना।
- गांव की नाली के गंदे पानी के सिंचाई में उपयोग हेतु ठेके से आय करना।
- कचरे से खाद हेतु उपयोग के ठेके से आय करना।
ग्राम पंचायत स्तर पर कौन-कौन से कर लगाए जा सकते हैं? (TAX BY GRAM PANCHAYAT)
गांव के चहुमुखी विकास के लिए ग्राम पंचायत निम्न प्रकार के कर लगा सकती है, एवं अपनी आय को बढ़ा सकती है-
- व्यक्तियों के स्वामित्व वाले भवनों पर कर लगाकर।
- कृषि में उपयोग आने वाले वाहनों को छोड़कर अन्य वाहनों पर कर लगाकर।
- तीर्थयात्री कर लगाकर।
- पंचायत सर्कल के भीतर पेयजल की व्यवस्था करने के लिए कर लगाकर।
- वाणिज्यिक फसलों पर कर लगाकर।
- सामुदायिक सेवा के लिए विशेष कर लगाकर।
- देसी शराब पर दो प्रतिशत चुंगी वसूल करके।
- उपरोक्त सभी कर ग्राम पंचायतें लगाने हेतु अधिकृत है।केवल यात्री कर हेतु सरकार की पूर्व स्वीकृति लेनी अनिवार्य है।
शास्ति(धारा-62)
पंचायत के आदेशों का पालन न करने पर रुपए 200 तक का दंड तथा अनुपालना न होने पर रु 10 प्रतिदिन अतिरिक्त शास्ति लगा कर।
अन्य (नियम 68)
ग्राम पंचायत नियम-68 के तहत प्रार्थना पत्र,प्रमाण पत्र,अनापत्ति प्रमाण पत्र,राशन कार्ड, निरीक्षण नकल हेतु शुल्क एवं आबादी भूमि के भूखंडों की बिक्री कर के भी अपनी आय को बढ़ा सकती है। इसके अलावा भूमि को अस्थाई उपयोग के लिए किराए पर देकर जैसे- धार्मिक मेलों, त्योहारों व सर्कस के लिए देकर भी अपनी आय बढ़ा सकती है।
एक पंचायती राज संस्था द्वारा कर लगाने की पूरी प्रक्रिया क्या होती है?
राजस्थान पंचायती राज नियम 1996 के नियम 57 से 62 हमें यह बताते हैं कि पंचायती राज संस्था को कोई भी कर लगाने के लिए क्या प्रक्रिया अपनानी चाहिए।चलिए इसको साधारण एवं सरल शब्दों में समझने का प्रयास करते हैं-
नियम 57
इसके अंतर्गत सर्वप्रथम संबंधित पंचायती राज संस्था अपनी सामान्य साधारण सभा बैठक में कर लगाने के संबंध में प्रस्ताव पारित करेगी।
नियम 58
यह नियम यह प्रावधान करता है, कि संबंधित पंचायती राज संस्था अपनी बैठक में कर संबंधी प्रस्ताव पारित करने के बाद एक नोटिस का प्रकाशन करेगी। जिसके माध्यम से प्रस्तावित कर, फीस या सरचार्ज लगाने के बारे में लोगों से आपत्ति आमंत्रित की जावेगी। उक्त नोटिस को निम्न प्रकार से प्रकाशित किया जाएगा:-
- एक प्रति संबंधित पंचायत, पंचायत समिति व जिला परिषद के सूचना पट्ट पर चस्पा की जाएगी।
- एक प्रति तहसीलदार व कलेक्टर को सूचना हेतु भेजी जाएगी।
- सामान्य प्रचार हेतु स्थानीय समाचार पत्र में एक प्रेस विज्ञप्ति भी दी जा सकती है।
नियम 59
इस नियम के अंतर्गत आपत्तियां पेश करने हेतु नोटिस जारी होने की तारीख से कम से कम 1 माह का समय दिया जाना अपेक्षित है।
नियम 60
सूचना की अवधि समाप्त हो जाने पर पंचायती राज्य संस्था प्रभावित व्यक्तियों द्वारा पेश की गई, सभी प्रकार की आपत्तियों पर फीस या सरचार्ज लगाने या बढ़ाने के बारे में सामान्य साधारण सभा बैठक में विचार करेगी, एवं पंचायतीराज संस्थाओं के प्रस्ताव को संशोधन सहित, संशोधन रहित या आपत्तियां निरस्त करते हुए पुनः प्रस्ताव पारित करेगी।
नियम 61
परंतु यदि वह प्रस्ताव अधिनियम की धारा 65(डी) या(ई) अथवा धारा 68(2) के अधीन प्रस्तावित कर लगाने से संबंधित हो, तो राज्य सरकार की पूर्व अनुमति भी प्राप्त करना आवश्यक होगा। यह स्वीकृति नियम 61 के अंतर्गत दी जाएगी।
नियम 62 (प्रस्ताव का प्रकाशन व क्रियान्विति)
पंचायती राज संस्था द्वारा नियम 60 के प्रावधान अनुरूप दुबारा प्रस्ताव पारित कर दिए जाने के बाद एक अंतिम नोटिस जारी होगा जिसमें निम्न बिंदु होंगे:-
- उक्त प्रकार स्वीकृत कर का ब्यौरा।
- दर्ज जिसके अनुसार वह लगाया या वसूल किया जावेगा।
- तारीख जब से वह निर्धारित या वसूल किया जावेगा।
- ऐसे अन्य विवरण जो कि स्वीकृत करारोपण से प्रभावित व्यक्तियों को सूचनार्थ आवश्यक हो।
उक्त नोटिस का प्रकाशन भी नियम 58 में वर्णित प्रक्रिया के अनुसार ही किया जाएगा।
पंचायती राज संस्था का अंकेक्षण (AUDIT OF GRAM PANCHAYAT)
एक पंचायती राज संस्थान विकेंद्रित, प्रजातांत्रिक स्वशासी संस्था होने के नाते जनता के प्रति जवाबदेह है। वह स्वच्छ और पारदर्शी प्रशासन व्यवस्था कायम करने के लिए के प्रति कृत संकल्प है। जनता की अदालत में विकास कार्यों का लेखा-जोखा नियमित रूप से ग्राम सभा/वार्ड सभा बैठकों में पढ़कर सुनाए जाने हेतु सामाजिक अंकेक्षण की स्वस्थ संस्थागत प्रणाली है, जो कि राजस्थान पंचायती राज व्यवस्था का अभिन्न एवं महत्वपूर्ण अंग है।
हर ग्रामसभा अथवा वार्डसभा बैठक में सामाजिक अंकेक्षण एक स्थाई एजेंडा बिंदु के रूप में शामिल किया जाना अनिवार्य है। जिसके तहत वर्ष में संपादित निर्माण कार्यों का लेखा-जोखा एवं व्यक्तिगत लाभार्थियों का योजनावार विवरण ग्रामसभा सदस्यों की जानकारी के लिए सार्वजनिक रूप से पढ़ कर सुनाया जाना अपेक्षित है।
सामाजिक अंकेक्षण एक प्रकार से सतत जनभागीदारी आधारित आंतरिक अंकेक्षण की प्रक्रिया है, ताकि ग्रामसभा पंचायती राज संस्थाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में कराए जा रहे विकास कार्यों की निगरानी भी रखे एवं कार्य सही होने एवं उचित खर्च होने की पुष्टि करें। विकास कार्यों में धन के अपव्यय होने अथवा कार्यों की गुणवत्ता से असंतुष्ट होने पर अपनी आपत्ति भी ग्रामसभा सदस्य सार्वजनिक रूप से दर्ज करा सकते हैं।
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