गौरिसुत गजानन महाराज गणेश।Gaurisut Gajanan Maharaj Ganesh।
गणेश आश्रम वाण |
गौरिसुत गजानन महाराज गणेश गणपति की पूजा: भारत से बाहर भी।
गणेश चतुर्थी के दिन पूरे महाराष्ट्र में “गणपति बप्पा मोरिया” की ध्वनि सुनाई देती है। शहर, कस्बे,गांव हर जगह विभिन्न आकार-प्रकार की गणेश प्रतिमाओं के साथ जुलूस निकलते हैं। मुंबई में तो इसके साथ कई अन्य कार्यक्रम भी जोड़ लिए गए हैं। जिनमें भाग लेने को सभी उम्र और वर्गों के लोग लालायित रहते हैं।
गजानन महाराज
पूजा तो दक्षिणी भारत में हजारों वर्षों से प्रचलित है, परंतु इसे वर्तमान स्वरूप देने का श्रेय श्री बाल गंगाधर तिलक जी को है। जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए अधिकाधिक जन संगठन जुटाने हेतु गणेश पूजा को एक सांस्कृतिक उत्सव का रूप दिया।
दक्षिण पूर्व एशिया में भगवान गणेश- गजानन महाराज|
भारतीय देवी-देवताओं में शायद गणेश (विनायक) ही ऐसे हैं जिनकी लगभग पूरे दक्षिणी-पूर्वी एशिया में मनोकामना पूरी करने वाले, सौभाग्यदाता देवता के रूप में मान्यता है। चीन, तुर्किस्तान, तिब्बत, नेपाल, जापान, कंबोडिया, वियतनाम, म्यानमार,थाईलैंड, इंडोनेशिया आदि देशों में गणेश की अनेक प्रतिमाएं हैं, जिनकी लोगों में मान्यता है।
इंडोनेशिया के लोगों को तो गणेश विशेष रूप से प्रिय है। गजानन महाराज जी की मूर्तियां भी इस देश में हर जगह मिलती है। यहां के बड़े करेंसी नोटों पर गणेश का चित्र है। यहां तक कि राष्ट्रपति भवन के मुख्य द्वार पर गणेश की विशाल प्रतिमा लगी है। जकार्ता के राष्ट्रीय संग्रहालय में विभिन्न मुद्राओं में गणित की प्रतिमाएं मौजूद है। जिन्हें हजारों वर्ष पूर्व की सांस्कृतिक धरोहर के रूप में संजोकर रखा गया है।
जापान में गणेश सौभाग्य ही नहीं वरन प्रेम के भी देवता है। वहां नर-मादा के प्रतीक रूप में दो गणेश आलिंगनबद्ध रूप में है ।जिन्हें वे “कांगी-टैन” के नाम से संबोधित करते हैं। चीन में सन 531 में विशाल चट्टान को काटकर बनाए किंग सेइन के मंदिर में गणेश की विशाल मूर्ति मौजूद है। जावा में गजानन महाराज को ध्यान और समाधि का देवता माना गया है।वहां सभी गणपति प्रतिमाएं शांत रूप समाधिस्थ भाव में है।नेपाल में पंचमुखी विनायक है।पांचो ही मुख हाथी के है।
भारत में गणेश के विविध स्वरूप।
मान्यता और स्वरूप की दृष्टि से गणपति के आकार-प्रकार प्रतिमाओं में भारत में भी कम विविधता नहीं है, कहीं गणेश कृष्ण के समान बाल रूप में है,तो कहीं शक्ति रूप में, कहीं वह शालिग्राम रूप में है, तो कहीं नृत्य की मुद्रा में।
आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध तीर्थ श्रीशैलम में गणेश कृष्ण की तरह बांसुरी बजाते हुए हैं। जबकि पांडुचेरी के कराईकल में वे शालिग्राम रूप में ही पूजे जाते हैं। हैलीबिड (कर्नाटक) के हौयसलेस्वर मंदिर में गणेश नृत्य मुद्रा में है। मदुरई के प्रसिद्ध मंदिर में व्याघ्रपद (शेर के पैर वाले) गणेश है। वेल्लोर किले में स्थित जलगंडेश्वर मंदिर में विनायक बाल रूप में मक्खन खाते दिखाई देते हैं।
सामान्यतः गजानन महाराज की सवारी चूहा बनाया जाता है, पर कहीं कहीं वें सिंह पर भी सवार है।चेन्नई के पास तिरुवोत्तर मंदिर में पंचमुखी गणेश है। इस प्रतिमा में 5 गज शीश एक ही सीध में है,जबकि तंजावुर जिले में नागापटनम मंदिर में गणेश के चार मुख्य एक सीध में है और पांचवा उनके ऊपर है। कर्नाटक के नंजंनगुड मंदिर में शक्ति गणेश है जिन्हें उच्छिष्ट गणपति के नाम से जाना जाता है। एचीन्द्रम मंदिर में गणेश स्त्री रूप में है। सुखासन में बैठें इन रूप के गजानन महाराज एक हाथ में फरसा, एक हाथ में अंकुश, एक में मुद्रा तथा चौथा हाथ अभय मुद्रा में है।
मुकुरुनी विनायक।
गणेश मुद्राओं के दो स्वरूप है। सामान्यत: कई बड़े मंदिरो में वह मंदिर की मुख्य प्रतिमा से अलग कही छोटे प्रतिमाकार में विराजमान है। कुछ मंदिर मुख्यत: गणेश के ही है, वहां प्रतिमा बड़ी है।पुणे के सारस बाग में स्थित गणेश के दर्शनों हेतु हजारों लोग रोजाना आते हैं।
जयपुर में तो प्रत्येक बुधवार को गणेशजी का भारी मेला लगने लगा है। रणथंबोर दुर्ग के अधिष्ठाता गणेश जी ही है। दक्षिण के कुछ बड़े मंदिरों में गणेश की विशाल प्रतिमा स्थापित है। मदुरई के मीनाक्षी मंदिर,चिदंबरम नटराज मंदिर, तिरुवनेका मंदिर तथा तिरूचेंदु मुरुगन मंदिर में विनायक की बड़ी-बड़ी प्रतिमाए है।
दक्षिण भारत में चावल की एक नाप है, जिसका एक मोदक (लड्डू) बनाया जाता है। इसी लड्डू का गणेश को भोग लगाया जाता है।अतः इसका नाम मुकुंरूनी विनयक पड़ गया है।
सर्वत्र गजमुखी।
देश और विदेश सब जगह गणपति मान्यता के संदर्भ में 2 बिंदु समान है। पहला- सभी जगह गणेश सौभाग्य के सूचक है, एवं दूसरा-गणेश की सभी प्रतिमाओं में उनका सिर हाथी का ही है।
ऐसा लगता है कि ईसा पूर्व की दूसरी तीसरी शताब्दियों में बौद्ध भिक्षुओ और जैन श्रावको के साथ गणेश पूजा दक्षिणी-पूर्वी एशियाई देशों में फैली। यह उल्लेखनीय है कि ये दोनों ही धर्म विनायक को अपना देवता मानते हैं।विनायक का सर्वत्र एक स्वरूप गजमुखी इस तथ्य का घोतक है कि बौद्ध और जैन धर्म में गणेश को हिंदू धर्म से ज्यों का त्यों स्वीकार कर लिया है।
दूसरे शब्दों में उनकी उत्पत्ति की वहीं कथा सर्वत्र मान्य है कि आद्यशक्ति (पार्वती) ने अपने स्नान के समय गिरे उबटन में चेतन्यता प्रदान कर उसे द्वार पर तैनात कर दिया। सारे देवता उसके डंडे से मार खाकर भाग खड़े हुए।क्रोधित शंकर ने त्रिशूल से उसका सिर काट दिया। तथ्य प्रकट होने पर उन्हें पुनर्जीवित करने हेतु हाथी के बच्चे का सिर उनके लगाया गया।क्योंकि वे आदिशक्ति द्वारा उत्पन्न है, अतः महा शक्तिमान, बुद्धिमान एवं सुख के दाता है।