गोवर्धन पूजा 2022 में कब है एवं इसकी कथा क्या है?(Govardhan pooja 2022)

गोवर्धन पूजा 2022 में कब है एवं इसकी कथा क्या है?(Govardhan pooja 2022)

गोवर्धन पूजा 2022 में कब है एवं इसकी कथा क्या है?(Gauvardhan pooja 2022)
गोवर्धन पूजा

गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त कब है?

25 अक्टूबर को प्रतिपदा तिथि शाम 05 बजकर 18 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जो कि 26 अक्टूबर को दोपहर 02 बजकर 42 मिनट पर समाप्त होगी। गोवर्धन पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06 बजकर 29 मिनट से सुबह 08 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। पूजन की कुल अवधि 02 घंटे 14 मिनट की है।

गोवर्धन पूजा या अन्नकूट कब मनाते हैं?

गोवर्धन पूजा कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को मनाई जाती है। अन्नकूट को दिवाली के ठीक अगले दिन मनाते हैं। लेकिन इस साल सूर्यग्रहण के कारण गोवर्धन पूजा 26 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इसी दिन भाईदूज का भी त्योहार मनाया जाएगा।
गोवर्धन पूजा प्रातःकाल मुहूर्त – 06:29 ए एम से 08:43 ए एम
अवधि – 02 घंटे 14 मिनट
प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 25, 2022 को 04:18 पी एम बजे
प्रतिपदा तिथि समाप्त – अक्टूबर 26, 2022 को 02:42 पी एम बजे

गोवर्धन पूजा कब की जाती है एवं इसका महत्व क्या है?

दिवाली के अगले दिन किये जाने वाली गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गौ माता और गोवर्धन पर्वत की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
गोवर्धन पूजा का त्योहार हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। दिवाली के अगले दिन किये जाने वाली गोवर्धन पूजा को अन्नकूट पूजा भी कहा जाता है। इस दिन गौ माता और गोवर्धन पर्वत की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। ये पूजा भगवान कृष्ण की लीला से जुड़ी हुई है।

गोवर्धन पूजा का महत्व :

पुराणों के अनुसार गोवर्धन पर्वतों के राजा और भगवान हरि के प्रिय हैं। एक बार श्री कृष्ण ने इंद्र के अंहकार को तोड़ा था। जिसके पीछे उनका उद्देश्य ब्रजवासियों की रक्षा और गौ धन को बचाना था। गौ माता की महत्वता को बताने के लिए ही गोवर्धन पूजा करने का विधान है। इस दिन गाय की सेवा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन जो भी श्रद्धापूर्वक भगवान गोवर्धन की पूजा करता है, उसे सुख समृद्धि प्राप्त होती है।

गोवर्धन की पौराणिक कथा।

पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी। लेकिन श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा कि हमें इंद्र की पूजा करके कोई लाभ नही होता। वर्षा करना तो उनका कर्म और दायित्व है और वह सिर्फ अपना कर्म कर रहे हैं। लेकिन गोवर्धन पर्वत हमारी गायों का संरक्षण और भोजन उपलब्ध कराते हैं। जिसकी वजह से वातावरण भी शुद्ध होता है। इसलिए हमें इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए।
गोवर्धन पूजा इस वर्ष 26 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा। इस साल दीपावली पर्व 24 अक्टूबर को है लेकिन अगले दिन यानी 25 अक्टूबर 2022 को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। जिसके कारण गोवर्धन पूजा पर्व 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
 
Govardhan Puja 2022: गोवर्धन पूजा के शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 02 घंटे 14 मिनट, जानें पूजा विधि, महत्व और कथा
Govardhan Puja 2022: दिवाली के अगले दिन यानी कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का पावन पर्व मनाया जाता है। लेकिन इस साल ऐसा नहीं होगा। जानें कारण व गोवर्धन पूजा टाइमिंग-
गोवर्धन पूजा इस वर्ष 26 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा। इस साल दीपावली पर्व 24 अक्टूबर को है लेकिन अगले दिन यानी 25 अक्टूबर 2022 को सूर्य ग्रहण लगने जा रहा है। जिसके कारण गोवर्धन पूजा पर्व 26 अक्टूबर को मनाया जाएगा।
पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार जब मवेशियों को चराते हुए भगवान कृष्ण गोवर्धन पर्वत पहुंचे तो वहां लोग उत्सव मना रहे थें। कारण पूछने पर उन्हें जानकारी मिली कि वहां इंद्रदेव प्रसन्न होकर वर्षा करें, इस हेतु पूजा हो रही है। जब उन्होंने अपनी मां को भी इंद्र की पूजा करते हुए देखा तो सवाल किया कि लोग इन्द्र की पूजा क्यों करते हैं? उन्हें बताया गया कि वह वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती और हमारी गायों को चारा मिलता है। तब श्री कृष्ण ने कहा ऐसा है तो सबको गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्योंकि हमारी गायें तो वहीं चरती हैं। तब श्रीकृष्ण ने कहा कि देवराज इंद्र से अधिक ताकतवर ये पर्वत है। इसी के प्रभाव से यहां बारिश होती है और लोगों को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए।
उनकी बात मान कर सभी ब्रजवासी इंद्र की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। देवराज इन्द्र ने इसे अपना अपमान समझा और प्रलय के समान मूसलाधार वर्षा शुरू कर दी। तब भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा कर ब्रजवासियों की भारी बारिश से रक्षा की थी। इसके बाद इंद्र को पता लगा कि श्री कृष्ण वास्तव में विष्णु के अवतार हैं और अपनी भूल का एहसास हुआ। बाद में इंद्र देवता को भी भगवान कृष्ण से क्षमा याचना करनी पड़ी। इन्द्रदेव की याचना पर भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और सभी ब्रजवासियों से कहा कि अब वे हर साल गोवर्धन की पूजा कर अन्नकूट पर्व मनाए। तब से ही यह पर्व गोवर्धन के रूप में मनाया जाता है।
गोवर्धन का दूसरा नाम अन्नकूट भी है। इसका अर्थ है भोजन का पहाड़। इस खास दिन पर भक्त भगवान कृष्ण के लिए भोग तैयार करते हैं जिसमें छप्पन या फिर 108 प्रकार के पकवानों को शामिल किया जाता है।
श्री कृष्ण की बात को समझते हुए सभी ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरु कर दी। जिससे इंद्र क्रोधित हो उठे और मेघों को आदेश दिया की गोकुल का विनाश कर दो। इसके बाद गोकुल में भारी बारिश होने लगी। भगवान श्री कृष्ण ने सभी गोकुल वासियों को गोवर्धन पर्वत के संरक्षण में चलने के लिए कहा। जिसके बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका ऊँगली यानी हाथ की सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया और सभी ब्रजवासियों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की।
इंद्र ने अपने पूरे बल का प्रयोग किया लेकिन उनकी एक न चली। लेकिन जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण विष्णु भगवान का ही अवतार हैं तो उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ और वह भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगने लगे। तब ही से गोवर्धन पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है।

गोवर्धन पूजा करने की विधि।

गोवर्धन पूजा करने के लिए आप सबसे पहले घर के आंगन में गोबर से गोवर्धन का चित्र बनाएं। इसके बाद रोली, चावल, खीर, बताशे, जल, दूध, पान, केसर, फूल और दीपक जलाकर गोवर्धन भगवान की पूजा करें। कहा जाता है कि इस दिन विधि विधान से सच्चे दिल से गोवर्धन भगवान की पूजा करने से सालभर भगवान श्री कृष्ण की कृपा बनी रहती है।

गोवर्धन पूजा से जुड़ी पौराणिक कथा-

मान्यता यह है कि ब्रजवासियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी दिव्य शक्ति से विशाल गोवर्धन पर्वत को छोटी उंगली में उठाकर हजारों जीव-जतुंओं और इंसानी जिंदगियों को भगवान इंद्र के कोप से बचाया था। श्रीकृष्‍ण ने इन्‍द्र के घमंड को चूर-चूर कर गोवर्धन पर्वत की पूजा की थी। इस दिन लोग अपने घरों में गाय के गोबर से गोवर्धन बनाते हैं। कुछ लोग गाय के गोबर से गोवर्धन का पर्वत मनाकर उसे पूजते हैं तो कुछ गाय के गोबर से गोवर्धन भगवान को जमीन पर बनाते हैं।

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