कैसे बने जीवन सफल? – अल्बर्ट आइंस्टाइन HOW TO SUCCESS:ALBERT EINSTIEN

कैसे बने जीवन सफल? – वैज्ञानिकअल्बर्ट आइंस्टाइन (HOW TO SUCCESS? -: SCIENTIST ALBERT EINSTIEN)

जो व्यक्ति अपने एवं समग्र मानव समाज के जीवन को तुच्छ समझता है, वह अभागा ही नहीं, वरन जीवित रहने के अयोग्य भी है।


हम अल्पकाल के लिए ही संसार में आए हैं। क्योंकि किस उद्देश्य साधन के निमित्त आए हैं? यह हम नहीं जानते। गंभीरता से इस प्रश्न पर यदि विचार न भी करें, तो भी कम से कम व्यवहारिक दृष्टि से मुझे ऐसा लगता है कि हमारा जीवन मानव जाति के लिए ही है। हम उनके लिए जीवित है, जिनकी हंसी और मुस्कुराहट पर हमारी शांति आश्रित हैं। हम उन सहस्रो नर- नारियों के लिए जीवित हैं जिनसे व्यक्तिगत परिचय ना होते हुए भी जीवन के साथ हमारी सहानुभूति का दृढ़बंधन है।

 प्राय: 24 घंटों में न जाने कितनी बार मुझे स्मरण हो आता है कि मेरे अंदर और बाहर का विकास अगणित जीवित और मृत मनुष्य के परिश्रम का फल है।जैसे मैंने इन व्यक्तियों से बहुत कुछ पाया है। ठीक उसी तरह मुझे अपने परिश्रम से समाज को दान भी करना है। सरल और सादा जीवन के प्रति मुझे मोह है।

 मैंने अपने लिए दूसरों को आवश्यकता से अधिक कष्ट दिया है- यह सोचते ही मेरा मन वेदना से छटपटाने लगता है। इसका अंतिम परिणाम शारीरिक बल प्रयोग ही होता है। ऐसा मेरा विश्वास है।मेरा विश्वास है कि सरल जीवन प्रत्येक के लिए सुखद है।

दार्शनिक दृष्टि से ‘मनुष्य मात्र की स्वाधीनता’ पर मुझे किंचित मात्र भी विश्वास नहीं। शोपेनहावर का कहना है कि मनुष्य अपनी इच्छा के अनुसार कार्य कर सकता है।परंतु वह कब, किस तरह कर पाएगा, यह जान लेना बहुत कुछ उसके अधिकार और क्षमता के बाहर की वस्तु है। साधारणत: अपने तथा विश्व के अस्तित्व का रहस्य अथवा जीवन के उद्देश्य की खोज में निरर्थक समझता हूं।परंतु फिर भी प्रत्येक व्यक्ति अपने सम्मुख कोई न कोई ऐसा आदर्श अवश्य रखता है जो उसके व्यवहार और विचारों को प्रभावित करें।

 इस तरह शारीरिक सुख और आराम को ही जीवन का एकमात्र लक्षय नहीं माना जा सकता। जिन्होंने मेरे जीवन पथ को आलोकित किया है, जो निरंतर मेरे जीवन को आगे बढ़ाने में सहायक हुए हैं, जिन्होंने मुझे साहस और प्रेरणा दी है-वे है सत, सौंदर्य एवं महानता।

 कला व विज्ञान के क्षेत्र में अदृश्य के प्रति अनुसंधान से विमुख जीवन मेरे निकट निसार है। धन-संपत्ति, वस्तु, जगत की सफलता और विलासिता संबंधित साधारण उद्देश्यों से मुझे घृणा है।अपने व्यक्तित्व में, मैं दो परस्पर विरोधी भाव धाराओ का अस्तित्व प्रतिक्षण अनुभव करता हूं। प्रथम सामाजिक न्याय और दायित्व पालन की प्रतिष्ठा एवं दूसरा मनुष्य के साहचर्य के प्रयोजन बोध का अभाव।

इन सारे बंधनों के होते हुए भी एक विच्छिन्न और निःसंग व्यक्तित्व का अस्तित्व मैंने सदा बनाए रखा। मैं तो गणतंत्र में विश्वास रखता आया हूं। प्रत्येक व्यक्ति को सम्मान मिले, परंतु किसी को पूजनीय के विशेषण से विभूषित न किया जाना चाहिए। इसे तो मैं विधि की विडंबना ही समझता हूं। कि मेरे निकट के संगी- साथियों से मुझे अधिकाधिक सम्मान प्राप्त हुआ। मेरे कृतित्व के पुरस्कार स्वरूप यह प्रशंसा मिली हो, ऐसा मैं नहीं मानता। कदाचित मेरे अथक परिश्रम से जिन युगांतरकारी सत्यों के दर्शन मुझे हुए, उन्हें समझने के लिए यथेष्ट संख्या में लगे लोगों में आग्रह था। मेरी प्रशंसा और विश्व ख्याति का कारण भी कदाचित यही हो।

यह में भली-भांति जानता हूं,कि किसी गूढ़ और जटिल कार्य की सफलता के निमित्त विचार और कर्म दोनों का परिचालन कोई न कोई व्यक्ति ही करेगा। किंतु उस व्यक्ति द्वारा जो लोग परिचालित होंगे उन्हें अपने नेता को निर्वाचित करने की पूरी स्वतंत्रता एवं अवसर प्रदान करना चाहिए। मेरा तो यह दृढ़ विश्वास है कि एकनायकवाद का पतन अवश्यंभावी है। मैं इस बात में भी विश्वास करता हूं कि प्रतिभाशाली तानाशाह के पश्चात की कठोर शासन का आविर्भाव होता है।इसे एक नियम ही मानना चाहिए। यही कारण है कि इटली (मुसोलिनी कालीन) और रूस के राजनीतिक दर्शन का मैं विरोधी हूं। यूरोप के गणतंत्र पर जनता की आस्था कम हो जाने का कारण यहां के शासक वर्ग की ढुलमुल कार्यविधि और निर्वाचन मंडल में स्वतंत्र और मौलिक विचारों का अभाव है। 

स्वयं गणतंत्र में कोई दोष नहीं है। मनुष्य की जीवन नैया खेने के लिए राष्ट्र की अपेक्षा व्यक्ति विशेष की सजगता और महानता को ही मैं बहुत उपयोगी समझता हूं। सामरिक अस्त्र- शस्त्र की प्रतिद्वंद्विता से मुझे घृणा है। नगाड़े की ताल के साथ साथ है। इसकी कल्पना करते ही मुझे उससे घृणा होने लगती है। 

शीघ्र अति शीघ्र युद्ध दूर होना चाहिए। क्योंकि कोई मेरे शरीर को काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दे, यह तो मुझे स्वीकार है। परंतु युद्ध जैसी घृणास्पद चीज में मैं लिप्त नहीं हो सकता। 

इन सब बातों के होते हुए भी मानव जाति के भविष्य के संबंध में मैं आशावादी हूं। मेरा विश्वास है कि राजनीतिक व व्यापारिक स्वार्थ लोलुप लोगों द्वारा जनसाधारण की निर्मल बुद्धि को विद्यालय और अखबारों के माध्यम से निरंतर कलुषित न  किया जाता तो युद्ध नामक अभिशाप पहले ही विलुप्त हो जाता।

ईश्वर आस्था की अनुभूति ही मनुष्य की श्रेष्ठतम अनुभूति है। इस अनुभूति में ही शिल्प, कला और विज्ञान का बीज निहित है। जो इस रहस्यानुभूति द्वारा अभिभूत ना होते वे मृतप्राय है। रहस्य धर्म का मूल है। विश्वास और मनुष्य की अंतरतम चेतना एवं उज्जवलता सौंदर्य के विकास संबंध की अनुभूति ही  वास्तव में धार्मिक मनोवृति है। मैं इसी मायने में एक निष्ठा पालक धार्मिक मनुष्य हूँ। में उस ईश्वर की कल्पना नहीं कर सकता। जो  स्व-निर्मित जीवो को दंड देता है अथवा उन्हें पुरस्कृत करता है, ऐसा मैं नहीं मानता। यह अवैज्ञानिक विश्वास दुर्बल चित व्यक्तियों ने फैलाए हैं।

अनंत जीवन जिज्ञासा सृष्टि का मूल स्रोत एवं विश्वव्यापी अखंड-चेतना जैसे गुढ़ सत्य यदि मुझे किंचित मात्र भी उपलब्ध हो,तो मैं अपने जीवन को सफल मानूंगा।

                                                     -अल्बर्ट आइंस्टीन

                                 

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