कालबेलिया नृत्य जाति का परिचय। Introduction Of Kalbeliya dance Caste In Hindi। Rajasthani Folk Dancers।
सपेरा जाति।नर्तक।राजस्थान का कालबेलिया नृत्य। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल कालबेलिया नृत्य।
कालबेलिया नृत्य।
Important facts about Kalbeliya Tribes In Hindi(कालबेलिया:महत्वपूर्ण जानकारी)
राजस्थान के कालबेलिया नृत्य को यूनेस्को ने अपनी सांस्कृतिक विरासत की प्रतिनिधि सूची में शामिल किया है।
कालबेलिया नृत्य राजस्थान की एक प्रसिद्ध नृत्य शैली है, जो यहां की सपेरा जाति द्वारा किया जाता है। इसलिए जाति के नाम के आधार पर ही इस नृत्य को कालबेलिया नृत्य कहा जाता है।
कालबेलिया नृत्य में नृत्यांगना घेरदार काले घागरे में गोल-गोल घूमते हुए सर्प की नकल करते हुए नृत्य करती है।जबकि पुरुष उनके साथ खंजरी और पुंगी वाद्य यंत्र बजाते हैं जो पारंपरिक रूप से सांपों को पकड़ने हेतु बजाया जाता है।
कालबेलिया नृत्य राजस्थान का प्रसिद्ध लोक नृत्य है जो सपेरा जाति द्वारा किया जाता है। इस नृत्य ने राजस्थान को विश्व पटल पर पहचान दिलाई है।
कालबेलिया नृत्यांगना गुलाबो ने इस कला को विदेशों तक प्रसिद्ध कर दिया है।
कालबेलिया।
राजस्थान की कालबेलिया जाति।
राजस्थान की अनेक घुमंतु जातियों में से एक जाती है कालबेलिया या सपेरा। रीति-रिवाज और आचार-विचार की भिन्नता होते हुए भी व्यवसायिक तौर पर यह जाति पूरे भारत में फैली हुई है। सांप का नाम सुनते ही आम आदमी भयभीत होता है,जबकि सपेरों के लिए सांप उनकी रोजी-रोटी का सहारा होता है।सांप पकड़ना, पुंगी अथवा बीन बजाकर सांप का प्रदर्शन करना,नाचना, गाना और विविध प्रकार की जड़ी-बूटियां बैचना इनकी दिनचर्या का प्रमुख अंग है।
कालबेलिया जाति की वेशभूषा।
भगवा वस्त्र, कानों में कुंडल, बढ़ी हुई दाढ़ी-मूछ,सर पर साफा,गले में साधुओं-सी माला और कंधे पर कावडनुमा झोली संभाले कालबेलिया दिन भर घूमते-फिरते हैं। सपेरे नाथ लोगों के गुरु कणीपाव कनीपाक अथवा कृष्णपाद थे। योगी कणिपाव गोरखनाथ या गोरक्षनाथ, मछंदरनाथ अथवा मत्स्येंद्रनाथ के समकालीन थे। यह लोग योगी कहलाते थे और सिद्ध परंपरा के अनुयायी थे।
योगी का अपभ्रंश जोगी बना इसलिए लोग इन्हें सपेरा जोगी भी कहते हैं। कणिपाव के गुरु जालंधर नाथ थे, जो एक पौराणिक कथा के आधार शिव-पार्वती के किसी गूढ़ वार्तालाप को समुद्र या जल में छिपकर सुनने में कामयाब हुए थे।इसलिए पारंपरिक तौर पर शिव को यह आदि गुरु मानते हैं। नाथों की सिद्ध परंपरा का यथा श्रद्धा पूर्वक अनुसरण करते हैं। सपेरों के कानों में कुंडल और हाथ में कमंडल एक तरफ जहां इसी परंपरा का परिचायक है वहीं दूसरी तरफ समाज में इनकी व्यवसाय की पहचान का प्रतीक भी है।
गोगामेडी का गोरक्ष टीला और ददरेवा का स्थान इनकी तीर्थ स्थली है। इनके गुरु कणिपाव ने किन परिस्थितियों में और किन कारणों से सांप जैसे जहरीले जानवर को अपनाया यह एक अलग प्रसंग है पर इतना सत्य है की बीन और सर्प इनके गुरु द्वारा इनहे रोजी-रोटी के साधन स्वरूप प्रदान किए हुए बताए जाते हैं।
कालबेलिया संभवतया कालबली का अपभ्रंश है।जिसका अर्थ है काल का मित्र अथवा काल को वश में करने वाला। सांप को काल के अलावा शक्ति और गति का प्रतीक भी स्वीकार किया गया है।भारत में ही नहीं बल्कि विभिन्न देशों की पौराणिक कथाओं में भी इसके उदाहरण मिलते हैं। भारत में तो नाग पंचमी नामक त्योहार भी मनाया जाता है। इस दिन नागों की पूजा की जाती है।नाथो(सपेरों) को दान दक्षिणा भी दी जाती है। कालबेलिया द्वारा सर्प को वश में करना विकास व विनाश दोनों को दर्शाता है। क्योंकि इसके आगे दोनों ही रास्ते खुले है।
स्त्रोत-pexels
सपेरों का कहना है कि बीन की धुन में सर्वप्रथम सर्प को आमंत्रित किया जाता है। धुन में अलग-अलग सांपों के नाम लेकर सर्पो को न काटने की कसम दी जाती है। धन्वंतरी वैद्य का मंत्र सुनाया जाता है। अंत में सांप के पास आ जाने के बाद लहरा सुनाकर सबको मस्त किया जाता है। टोकरी में डाल कर घर लाया जाता है। सांप के मुंह से जहर की थैली निकालकर उसे विष हीन कर दिया जाता है ।यही सर्प सपेरों द्वारा लोगों को दिखाया जाता है।
सपेरे विभिन्न प्रकार के औषधीय जड़ी बूटियां बेचने का काम भी करते है।इन जड़ी-बूटियों को पहाड़ी इलाकों से ढूंढ कर लाया जाता है। जहर, मौरा, सियाल-सिंगी, नरमादा कंजा, मोहिन,रुद्राक्ष,सर्पमणि आदि अनेकों जड़ी बूटियां इनके पास होती है। जड़ी बूटियों के अलावा अंधविश्वासी ग्रामीणों में कुछ सपेरों द्वारा ताबीज व नगीनों के रूप में पत्थर भी बेचे जाते हैं। सपेरों का कहना है कि खास चीज होती है-सर्प मणि। यह सांप के जहर को सोख लेती है। इससे सांप का काटा हुआ आदमी पुनः स्वस्थ हो जाता है। परंतु असली सर्प मणि एक दुर्लभ वस्तु है, इसे सपेरे भी स्वीकारते हैं।
पिछले दशक में कुछ कालबेलिया युवतियों ने भी नाचना शुरू कर दिया। कलापारखीयो की नजर ने इतना सराहा कि आज इन युवतियों का नृत्य कालबेलिया अथवा सपेरा के नाम से अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कर चुका है।
कालबेलिया नृत्य प्रमुख कलाकार व नृत्य के प्रकार।
कालबेलिया जाति की नृत्यांगनाए गीत गाती हुई नृत्य करती है। जिससे उनके शरीर की लोच का प्रदर्शन दक्षता से पूर्ण होता है। इसमें पुरुष बीन,डफ एवं मंजीरा वादन करते हुए गायन में साथ देते हैं। प्रमुख कालबेलिया कलाकार है- रुमालनाथ-गुलाबो आदि जिन्होंने इस नृत्य को विश्व स्तरीय पहचान दिलाई है।
कालबेलिया नृत्य के प्रमुख नृत्य निम्नलिखित है-पणिहारी, इंडोनी, शंकरिया व बागड़िया।