एनी बेसेंट: मूल रूप से आयरिश महिला, विवाह से अंग्रेज लेकिन भारत को अपना लेने के कारण बन गई थी भारतीय।
आज आपको भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अग्रदूत राष्ट्रवाद की जबरदस्त समर्थक एनी बेसेंट के बारे में बता रहा हूं।
भारत को ही अपनी मातृभूमि समझने वाली एनी बेसेंट एक ब्रिटिश समाज सुधारक, महिलाओं के अधिकार की प्रचारक, भारत की आजादी की मांग करने वाली और भारतीय राष्ट्रवाद की जबरदस्त समर्थक महिला थी। वह एक ऐसी महिला थी जो मूल रुप से आयरिश, विवाह से अंग्रेज और भारत को अपना लेने के कारण भारतीय थी।
1 अक्टूबर 1847 को लंदन में एनी बेसेंट का जन्म हुआ। जब एनी बेसेंट 5 साल की थी, तभी उनके पिता की मृत्यु हो गई। उनके जीवन का मूल मंत्र कर्म था। भारत की स्वतंत्रता के लिए आजीवन काम करते रहने वाली एनी बेसेंट कि महात्मा गांधी से लेकर उनके दौर के तमाम सामाजिक नेताओं ने हमेशा प्रशंसा की है। देश की आजादी के लिए वह हर बलिदान देने को तैयार थी। यह एनी बेसेंट के व्यक्तित्व का ही प्रभाव था कि भारत के कई समाज सेवकों को देश सेवा के लिए तत्पर होने की प्रेरणा मिली थी।
एनी बेसेंट ने 1913 में भारतीय राजनीति में सक्रिय भागीदारी शुरू की और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हो गई। वह 1917 में कांग्रेस की अध्यक्ष भी बनी। और उसके बाद से लगातार भारत की आजादी की मांग करती रही। भारत के प्रति उनके मन में अगाध प्रेम था, और वह महिलाओं के उत्थान और शिक्षा के लिए कार्य करती रही।
उन्होंने ही सेंट्रल हिंदू कॉलेज की शुरुआत की थी। जो बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के शुरुआती कॉलेजों में से एक बना। एनी बेसेंट को भारत में शिक्षा के क्षेत्र में अद्भुत योगदान के लिए डॉक्टर ऑफ लेटर्स डिग्री प्रदान की गई थी। आज केंद्र सरकार एनी बेसेंट जैसे लोगों के दिखाए रास्ते पर चलकर महिलाओं के उत्थान और उनकी शिक्षा के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। इसी प्रयास के तहत भारत की केंद्र सरकार ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ योजना’ जैसे कार्यक्रम चला रही है।
एनी बेसेंट ने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के साथ मिलकर होम रूल लीग की स्थापना की थी। जो कांग्रेस से भी अधिक सक्रिय था। होमरूल का तात्पर्य है जिसमें किसी देश का शासन वहां के स्थाई नागरिकों के द्वारा ही चलाया जाता है। इस आंदोलन ने भारत में राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान पनप रहे सूनेपन को समाप्त किया और जनमानस को स्वतंत्रता आंदोलन से जोड़ने का कार्य किया।
उन्होंने 1914 में साप्ताहिक समाचार पत्र ‘कॉमनविल’ की स्थापना की और मद्रास स्टैण्डर्ड को खरीद कर उसे ‘न्यू इंडिया’ नाम से प्रकाशित किया। बेहद खुले विचारों वाली एनी बेसेंट हर बुराई के खिलाफ खुलकर आवाज उठाती थी और भारत में सामाजिक बुराइयों जैसे- बाल विवाह, जाति व्यवस्था, डाकण प्रथा आदि को दूर करने के लिए लगातार प्रयत्नशील रही।
एनी बेसेंट जीवन पर्यंत थियोसॉफिकल सोसायटी की अध्यक्ष रही। 20 अक्टूबर 1933 को 86 साल की उम्र में उनका देहांत हो गया। उनकी इच्छा के मुताबिक बनारस में गंगा घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। उनकी अस्थियों को गंगा में विसर्जित किया गया।